कहानी की शुरूआत कहां से करें- 7 जनवरी 2009 से जब कंपनी के उस समय के चैयरमैन बी रामलिंग राजू की एक चिट्ठी से सत्यम के शेयर की कीमत में 78 परसेंट की गिरावट एक दिन में ही हो गई?
या इस तथ्य से कि कम से कम 5 साल तक उस समय देश की चौथी सबसे बड़ी सॉफ्टफेयर कंपनी सत्यम ने उतना मुनाफा नहीं कमाया जितना लगातार 20 तिमाही तक सबको बताती रही?
या फिर कहानी के मूल में ये बात तो नहीं है कि बी रामलिंग राजू चलाते थे सॉफ्टवेयर कंपनी लेकिन दिल जमीन से जुड़े कारोबार में था?
दूसरे शब्दों में कहें तो बी रामलिंग राजू की कहानी की कई परतें हैं. चूंकि एक वेब सीरीज की वजह से फिलहाल इसकी चर्चा हो रही है, तो हम भी जान लेतें हैं कि सारी परतें एक दूसरे से कैसे जुड़ी थी.
लेकिन सबसे पहले जान लेते हैं कि जिसको आजतक का सबसे बड़ा कॉरपोरेट घपला बताया जा रहा है वो आखिर था क्या. अलग-अलग जांच एजेंसी की रिपोर्ट से जो बात सामने आती है उसकी बड़ी बातें कुछ इस प्रकार की हैं:
- 1987 में रामलिंग राजू ने सत्यम कंप्यूटर की शुरूआत की. पूरी दुनिया में आउटसोर्सिंग के बढ़ते चलन से इस कंपनी को कुछ ही सालों में काफी फायदा हुआ.
- लेकिन राजू की दिक्कत थी कि उसी समय इसी क्षेत्र में इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो जैसी कंपनियों का कारोबार काफी तेजी बढ़ रहा था. इन कंपनियों के रेवेन्यू और मुनाफे में काफी तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी और इसी वजह से उनके शेयर की कीमत भी तेजी से भाग रहे थे.
- राजू शायद अपने आप को पिछड़ते दिखना नहीं चाहते थे. यही वजह है कि कंपनी में अकाउंटिंग की जादूगरी शुरू हुई. उदाहरण के तौर पर 2008-09 में कंपनी की बिक्री 4,100 करोड़ रुपए की थी लेकिन बताया गया 5,200 करोड़ रुपए. कंपनी का मार्जिन 3 परसेंट था लेकिन बताया 24 परसेंट.
- फर्जी इनव्यास, जरूरत से ज्यादा भर्ती के जरिए यह जताने की कोशिश होती रही कि सत्यम भी इस स्पेस में काम करने वाली दूसरे कंपनियों से कम नहीं है. दावा किया जाता रहा कि कंपनी के पास 5,000 करोड़ से ज्यादा का बैंक बैलेंस है जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं था.
- झूठे ऐलानों से कंपनी के शेयर की कीमत तो बढ़ती रही लेकिन कंपनी खोखली होती गई. हालत ऐसे हो गए कि कारोबार चलाना मुश्किल होने लगा.
- सारे काले कारनामों पर से पर्दा उठने से एक महीना पहले राजू ने ऐसे-ऐसे उटपटांग फैसले लिए जिसका कंपनी के शेयरहोल्डर्स ने काफी विरोध किया. पहला फैसला था उन्हीं की दो कंपनियों- मेटास इंफ्रा और मेटास रियल एस्टेट- का सत्यम में विलय का प्रस्ताव. इस फैसले के बाद कंपनी के एडीआर की कीमत में एक दिन में 51 परसेंट की कमी आई.
- कुल मिलाकर हालात ऐसे हो गए कि राजू को दुनिया के सामने में मानना पड़ा कि सत्यम वैसा नहीं है जैसा ये वादा करती रही है. उसने झुठा मुनाफा बताया है, रेवेन्यू वो नहीं है जो सालों साल ऐलान हो रहा है और कैश बैलेंस तो दूर कारोबार चलाने के पैसे भी नहीं है.
- अप्रैल 2015 में राजू को 7 साल कैद की सजा सुनाई गई और 5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया.
- इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चौकाने वाली बात ये है कि सालों तक सत्यम कंप्यूटर्स में वन टू का फोर का धंधा चलता रहा और ना ही ऑडिटर और ना ही किसी रेगुलेटर को इसकी भनक लगी. इतने सालों तक निवेशक ठगे गए और किसी को पता भी नहीं चला.
जब निवेशकों की संपत्ति खत्म हो रही थी तो राजू ने जमीन कैसे इकट्ठा की
अब सवाल उठता है कि राजू ने ऐसा किया क्यों? क्या सालों तक सफल दिखते रहने की जिद में उन्होंने अपनी ही बनाई कंपनी को बर्बाद कर दिया? क्या वो इस बात को मान नहीं पाए कि नंदन निलेकणी की इंफोसिस, अजीम प्रेमजी की विप्रो और टीसीएस से मुकाबला संभव नहीं है? या फिर ये सीधा-साधा गबन का मामला था और राजू की नीयत ही खराब थी?
जांच में इन सवालों का सटीक जवाब तो नहीं मिला है. लेकिन जितनी परतें खुली हैं उससे मोटिव का अंदाजा लगाया जा सकता है. जांच के बाद निकले दो तथ्यों पर गौर कीजिए.
रामलिंग राजू और उनके परिवार के पास करीब 6,000 एकड़ जमीन है और राजू परिवार की सत्यम में हिस्सेदारी 2009 में घटते घटते महज 2 परसेंट की रह गई गई थी. मतलब कि प्रोमोटर सत्यम के शेयर लगाताग बेचकर लैंड बैंक बढ़ाने में लगे रहे.शेयर बेचकर मोटी कमाई हो ताकी ज्यादा जमीन खरीदी जा सके, इसके लिए जरूरी था कि शेयर की कीमत लगातार बढ़ती रहे.
हमें पता है कि शेयर में तेजी बरकरार रहे इसके लिए जरूरी है कि कंपनी लगातार अपने प्रदर्शन को बेहतर करती रही. सत्यम के मामले में प्रदर्शन बेहतर नहीं हो रहा था. तो एक शॉर्ट-कट अपना लिया गया- अकाउंट की भयानक हेराफेरी.
इस हेराफेरी से राजू तो अपने लिए हजारों एकड़ का लैंड बैंक बना गए, कई सालों तक बिजनेस के सम्मानित आईकन बने रहे. लेकिन लाखों निवेशकों को करोड़ो का नुकसान हुआ. फर्ज कीजिए कि 7 जनवरी 2009 को सुबह सत्यम के एक लाख रुपए के शेयर आपके पास थे. उस दिन शाम को उसकी वैल्यू 22,000 रुपए ही रह गई.
इस हेराफेरी से हमारे आपके जैसे लाखों निवेशकों ने अपनी जमा पूंजी को खत्म होते देखा है. ऐसी हेराफेरी करने वाले रामलिंग राजू की गलतियों को हम भूल पाएंगे? या फिर हमें इस बात पर पूरा भरोसा हो पाएगा कि किसी और कंपनी में कोई और रामलिंग राजू ऐसा नहीं कर पा रहा होगा?
(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो इकनॉमी और पॉलिटिक्स पर लिखते हैं. उनसे @Mayankprem पर ट्वीट किया जा सकता है. इस आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं और क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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