ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘खतरों के खिलाड़ी’ मोदी, कैसे और क्यों करते हैं कल्पना से परे काम?

पीएम मोदी ने पिछले कुछ सालों में बीजेपी के बारे में बनी धारणा को पलट दिया

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर: पूर्णेंदू प्रीतम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे टर्म यानी मोदी 2.0 के पहले साल में हमेशा की तरह स्क्रिप्ट पर उनका पूरा नियंत्रण था लेकिन इसी साल स्क्रिप्ट में एक नया किरदार आ गया वो भी बिना उनकी परमिशन के. वो है कोरोना वायरस. मोदी अपनी Audacity यानी बड़े और साहसी रिस्क लेने के लिए जाने जाते हैं. कोरोना वायरस से भी लड़ाई में यही दिखलाई पड़ रहा है कि ये लड़ाई भी उनकी शैली में लड़ी जाएगी. दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन, लेकिन उसके पहले ताली-थाली.

इकनॉमी के बर्बाद होने के खतरे पर आम राय एक तरफ और सरकार का पैकेज एक तरफ. सरकार ने दिए 2 लाख करोड रुपये, लेकिन गिनवाए 20 लाख करोड़ रुपये. कई देश ये लड़ाई अंधेरे में लड़ रहे हैं. अंत किसी को नहीं पता. इसलिए प्रवासी मजदूरों के पलायन के बाद भी कोई ये नहीं कह पा रहा है कि मोदी सरकार कोरोना कंट्रोल में नाकाम रही है. सब कह रहे हैं मोदी हैं तो ठीक ही कर रहे होंगे.

पीएम मोदी कैसे करते हैं करिश्मे?

पीएम मोदी कल्पना से परे ये काम और ये करिश्मे कैसे करते हैं. नरेंद्र मोदी को आप खतरों के खिलाड़ी कह सकते हैं. दरअसल, प्रधानमंत्री के रूप में पिछले छह सालों में उन्होंने कई ऐसे काम किए जो आमतौर पर पॉलिटिशियन करने के पहले दस बार सोचता है. उनमें बड़ा राजनीतिक जोखिम उठाने की अपार क्षमता है. ऐसा वो क्या करते हैं, कैसे करते हैं और क्यों करते हैं? आइए तलाशते हैं इन सवालों के जवाब.

उनका सबसे चौंकाने वाला फैसला था नोटबंदी का. तब आम राय बनी कि वो एक गलत और गैर जरूरी काम था जो अंतत: विफल हुआ. उसके बावजूद नरेंद्र मोदी बिना किसी बड़ी राजनीतिक खरोंच के उस झंझट से बाहर निकल आए. यहां तक कि उस समय कई लोगों ने कहा था कि नोटबंदी की विफलता के बाद आगे कोई एडवेंचर करने के पहले नरेंद्र मोदी बहुत सोच समझ कर कुछ करेंगे. लेकिन हुआ इसका उलटा. वो जीएसटी लेकर आए. खस्ताहाल इकनॉमी और पस्त हो गई. विपक्ष ने माहौल बनाया कि आर्थिक तंगी झेल रही जनता 2019 के आम चुनाव में बदला लेगी. लेकिन फिर उलटा हुआ. मोदी पहले से बड़ी जीत के साथ वापस आए.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

2019 में दोबारा जीतने पर नोटबंदी से भी बड़ा गेम

2019 में वो जब नरेंद्र मोदी दोबारा जीत कर आए तो लोगों को ये लगता था कि दूसरे कार्यकाल में वो थोड़ा आराम से, थोड़ा इत्मिनान से चलेंगे, लेकिन दोबारा सत्ता में आते ही हमने देखा कि उन्होंने नोटबंदी से भी बड़ा गेम खेल दिया - अगस्त 2019 में उन्होंने कश्मीर की ऑटोनोमी को खत्म कर दिया. एक स्पेशल राज्य तो छोड़िए उसे एक केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया. उसको एक अंतहीन लॉकडाउन में बंद करके वहां के सभी विरोधी नेताओं को बंदी भी बना दिया.

उन्होंने एक इतना बड़ा राजनीतिक कदम उठाया जिसके गंभीर अंतरराष्ट्रीय परिणाम हो सकते थे. पाकिस्तान का रिएक्शन और भी खतरनाक हो सकता था. घाटी के लोगों का प्रतिकार बेहद उग्र हो सकता था. लेकिन अब लगता है कि हालात मुश्किल भी रहे तब भी पुरानी यथास्थिति तो बहाल नहीं हो सकती. भारत के इतिहास का ये बहुत बड़ा बदलाव है.

पाकिस्तान के संदर्भ में यहां ऑडैशियस मोदी के दो रूप देखिए. अचानक लाहौर जाकर नवाज शरीफ से मिलने वाले एक मोदी और आतंकी वारदातों का जवाब देने वाले, सर्जिकल स्ट्राइक करने और फिर बालाकोट पर एयर स्ट्राइक करने वाले दूसरे मोदी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीजेपी के बारे में बनी धारणा को पलट दिया!

BJP के बारे में एक धारणा थी कि वो सत्ता में आने के पहले तक धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करती है, लेकिन सत्ता में आने के बाद वो सेक्युलर या कहिए मध्यमार्गी पार्टी बन जाती है. नरेंद्र मोदी ने इस धारणा को भी पलटकर रख दिया और ध्रुवीकरण की महा-फैक्ट्री से मुस्लिम महिलाओं के तुरंत तलाक वाला कानून और फिर नागरिकता कानून में बदलाव जैसे प्रोडक्ट निकल कर बाहर आए.

मोदी सरकार की पोजीशन इस पर बड़ी साफ थी कि बाहर से जो नागरिक आएंगे उनको नागरिकता देने में सिर्फ मुसलमानों को अलग रखा जाएगा. हिंदू और दूसरे धर्मों के लोगों को नागरिकता देने में तव्वजो दी जाएगी. इतना ही नहीं गृह मंत्री ने साफ कहा कि सरकार देश भर में NRC लाएगी.

धर्म के आधार पर नागरिकता देने का ये तरीका हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. देश में CAA-NRC के खिलाफ बड़ा विरोध-प्रदर्शन खड़ा हुआ. बवाल बढ़ा तो मोदी ने कह दिया NRC पर अभी कोई बात ही नहीं हुई. थोड़े बहुत सवाल उठे लेकिन मोदी सरकार ने इसको भी हजम कर ही लिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

किसी विषय को 'मोदीमय' कैसे बनाते हैं पीएम मोदी?

सार्वजनिक जीवन का कोई भी विषय हो, उसको “ऑल अबाउट मोदी” बना देना नरेंद्र मोदी की एक बड़ी खासियत है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी 'मोदीमय' कर देने में तो वो 2014 के शपथ ग्रहण समारोह से ही लग गए थे, जब सार्क देशों के नेताओं को बुलाया गया था. लेकिन 2019 में ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' और उसके बाद अहमदाबाद में 'नमस्ते ट्रंप', इन दो कार्यक्रमों को मोदी ने अप्रत्याशित स्तर का इवेंट बना डाला, जो खुद को ग्लोबल लीडर बनाने के उनके अगले प्रोजेक्ट का हिस्सा था.

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का भारत आना और मोदी की मर्जी के मुताबिक क्यूरेट किए गए कार्यक्रम में परफॉर्म करना कोई साधारण बात नहीं थी.

फरवरी के आखिरी हफ्ते में हुए इस कार्यक्रम के बाद की विडंबना देखिए. अमेरिका लौट कर ट्रंप कोरोना के मिसमैनेजमेंट में फंस गए और भारत में कोरोना महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई की पूरी कप्तानी मोदी जी ने संभाल ली. उन्होंने दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन लगाया और अब कोरोना के जो आंकड़े हैं उसके आधार पर ये बात कही जा सकती है कि भारत कोरोना की लड़ाई में कई दूसरे देशों से बेहतर कर रहा है.

हालांकि इसकी आर्थिक कीमत बहुत बड़ी है. इतनी बड़ी कि आर्थिक बर्बादी का हम हिसाब भी नहीं लगा सकते. 4 घंटे के अल्टीमेटम पर लगाए गए संपूर्ण लॉकडाउन से गरीबों-प्रवासी मजदूरों का क्या हश्र हुआ, ये पूरे देश ने देखा. ऐसा नहीं है कि मोदी को ये पता नहीं होगा कि करोड़ों दिहाड़ी मजदूरों पर लॉकडाउन से क्या बीतेगी, लेकिन उन्होंने खतरा उठाया और अब देखिए कि टीवी के परदों पर रोते मजदूरों को कई दिन तक देखने के बाद भी मोदी समर्थक टस से मस नहीं हो रहे. ये मोदी ही कर सकते हैं.

इतना सब होने के बावजूद कोरोना कंट्रोल में नहीं है. यहां भी मोदीजी का हुनर काम आ रहा है और इसके लिए कोई उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा पा रहा कि भारत में कोरोना से लड़ाई मिसमैनेज हो गई. दरअसल अब अच्छे बुरे परफॉरमेंस पर चर्चा का फोकस राज्यों, नगरपालिकाओं और लोगों पर चला गया है. बहुत लोग ये कहते हैं कि अगर इस सरकार ने बहुत खराब काम किया है तो यही कहानी दुनिया के बाकी देशों की भी है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

नरेंद्र मोदी 'ग्रेट गैंबलर' क्यों हैं?

तो मोदीजी इतने ऑडैशियस क्यों हैं और उनका हर काम चौंका देने वाला क्यों होता है. दरअसल मोदी जी पॉलिटिक्स में कोई रूटीन कहानी लिखने नहीं आए हैं. उनके तौर तरीकों का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो ये साफ हो जाता है कि इतिहास उन्हें कैसे याद करे, ये पहले से सोचकर, उसका एक-एक पैराग्राफ और एक एक पन्ना लिखते हैं.

इसमें हालात भी उनका पूरा साथ दे रहे हैं. भारत जैसे लोकतंत्र में किसी भी सरकार के विरोध और उसकी आलोचना की पूरी गुंजाइश रहती है लेकिन इस समय जो विपक्ष है वो इस काम को नहीं कर पा रहा और उसी के साथ लोकतंत्र की दूसरी संस्थाएं और मीडिया भी इस ‘जगरनॉट’ को समझने में, हैंडल करने में या साधने में बिलकुल भी सक्षम नहीं है.

ऐसे दर्जनों प्रसंग याद किए जा सकते हैं जिसका बड़ा विरोध हो सकता था लेकिन ये मुद्दे टिक नहीं पाते. दो उदाहरण देखें -

  • एक इलेक्टोरल बॉन्ड का जो कहीं से भी चुनाव सुधार का कदम नहीं था और सत्तारूढ़ दल उस बॉन्ड का दुरुपयोग कर सकता है ये बात साबित हो चुकी है फिर भी ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया.
  • इसी तरह सरदार पटेल की प्रतिमा हो या दिल्ली के सेंट्रल विस्टा का पुनर्निर्माण, मोदी जी कल्पनातीत आइडिया लेकर आते हैं और ये बिना किसी बड़ी दिक्कत के सार्वजनिक समीक्षा में से पास हो जाते हैं
ADVERTISEMENTREMOVE AD

राजनीति को बनाया मैनेजमेंट साइंस!

मोदी जी ये सब कैसे कर लेते हैं इसमें राजनीतिक संदर्भ तो एक बात है, जहां कमजोर विपक्ष, मीडिया और संस्थाएं उन्हें ये सब करने देती हैं. लेकिन एक दूसरा फैक्टर भी है. उन्होंने अपनी राजनीति को एक ऐसा मैनेजमेंट साइंस बना लिया है, एक ऐसा बड़ा ऑपरेशन खड़ा कर दिया है जो भारत के विपक्षी नेताओं की समझ के बाहर है. उनके पास डेटा और फीडबैक का एक रहस्यमय संसार है.

एक गंभीर स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर है जिसके तहत कब क्या करना है इसकी बड़ी बारीक प्लानिंग है. उनकी राजनीति का मैसेज या कंटेंट क्या है, उसको लोगों तक कैसे पहुंचाना है और पहुंचाने के सारे माध्यमों, डिस्ट्रीब्यूशन चैनलों पर पक्की पकड़ बनाए रखनी है इन चीजों पर वो पूरी मेहनत करते हैं. अपनी राजनीति को उन्होंने ‘डायरेक्ट टू कंज्यूमर’ की तरह ‘डायरेक्ट टू वोटर’ बना दिया है. जिसमें ब्रांड और मार्केटिंग के एक मूल सिद्धांत का एकाग्र भाव से पालन होता है. वो है थ्री ई- इंगेज, इंटरटेन एंड एक्साइट.

युद्ध के मैदान में अगर किसी कमांडर के पास जीत का तगड़ा ट्रैक रिकॉर्ड हो और हाथ में इतना कंट्रोल हो, तो मुझे इस बात पर कोई शक नहीं कि कोरोना काल के बाद जब तक हम नई दुनिया को समझने की कोशिश ही कर रहे होंगे, तब तक हम देखेंगे कि खतरों का ये खिलाड़ी किसी नई स्क्रिप्ट के साथ लोगों को रोमांचित करने में जुटा होगा.

‘आत्मनिर्भर भारत’ शायद उसका स्टार्टिंग पॉइंट है. याद दिला दूं - 2019 की जीत के बाद मोदी जी ने अपने पहले भाषण में एक बात कही थी कि अब अधिकारों के बजाय कर्तव्यों की बात करने का वक्त आ गया है. भारत में कोई नेता ये कहे, ये भी ऑडेशियस काम है.

इस थीम पर नजर रखिएगा. मोदी जी ने आपके और हमारे लिए होमवर्क दे दिया है- राष्ट्रवादी आत्मनिर्भरता में हम नागरिकों का कर्तव्य!

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×