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महामारी के वक्त विरोध प्रदर्शन: कोरोना से कैसे लड़ेगा शाहीन बाग?

शाहीनबाग में CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शनकारी पिछले 3 महीनों से धरने पर बैठे हैं.

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कड़ाके की ठंड. शातिर फर्जी प्रोपेगंडा. सांप्रदायिकता में डूबे चुनाव. हिन्दू-मुस्लिम हिंसा का वर्षों बाद सबसे बुरा दौर. मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शाहीन बाग के प्रदर्शन ने तीन महीने से ज्यादा वक्त के दौरान यह सबकुछ सहा है.

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लेकिन अब जबकि कोरोना वायरस की महामारी से करीब-करीब पूरी दुनिया ठप हो रही है और भारत में 137 मामले सामने आने का दावा किया जा रहा है तो ऐसा क्या है कि शाहीन बाग और देशभर में दूसरे सीएए विरोधी लोग धरना जारी रखने को प्रेरित हो रहे हैं?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने 16 मार्च को अपनी सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों की घोषणा करते हुए कहा कि शहर में भीड़ इकट्ठी होने देने से बचें. उन्होंने कहा कि एक जगह पर 50 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने की अनुमति भी नहीं है. यह प्रदर्शनों पर भी लागू होगा.

कोरोना के खतरे को कैसे कम कर रहे प्रदर्शनकारी?

अब तक देशभर के बड़े और छोटे शहरों में शाहीन बाग की तर्ज पर दर्जनों बाग सामने आ चुके हैं. शाहीन बाग में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन का समर्थन कर रहे कई लोगों ने स्वास्थ्य पर खतरे को देखते हुए आंदोलन वापस लेने का आग्रह किया है.

वहीं, शाहीन बाग के आयोजकों ने कहा है कि पूरी तरह से प्रदर्शन वापस लिया जाए या नहीं, इस पर कोई निर्णय उन्होंने नहीं लिया है. दिल्ली पुलिस के साथ भी उनकी लगातार बातचीत चल रही है.

बेंगलुरू में शाहीन बाग की तरह बिलाल बाग में चल रहे धरने के आयोजकों ने फैसला किया है कि वे विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे. आयोजकों में से एक साकिब ने कहा, “हम हाथों से बनाए गये मास्क पाने की कोशिश कर रहे हैं और कोरोना वायरस को लेकर जागरुकता फैलाने में जुटे हैं. हम भीड़ को आने से रोक नहीं सकते. शाम 7 बजे से 10 बजे तक भीड़ 200 से 250 तक हो जाती है. हम इसे घटाकर 150 तक करने की कोशिश रहे हैं.”

“हम शाहीन बाग के समर्थन में बैठे हैं. भारत भर में कई ऐसे बाग हैं जिन्होंने शाहीन बाग को समर्थन दिया है. अब तक कोई बाग उठा नहीं है क्योंकि शाहीन बाग ने कोई फैसला नहीं किया है.” 
साकिब, आयोजक, बिलाल बाग प्रदर्शन

बिलाल बाग के आयोजकों ने एक बयान में कहा है, “चूकि पहले बाग (शाहीन) का फैसला सामने नहीं आया है, ऐसे में सबके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हम कर्नाटक के मुख्यमंत्री को यह अवसर देते हैं कि वे बिलाल बाग की महिलाओं और छात्रों को संबोधित करें और उनकी शंकाओं का जवाब दें जिससे आंदोलन खत्म करने का रास्ता निकल सके.”

शाहीन बाग से प्रेरित एक अन्य मुंबई बाग प्रदर्शन के आयोजक रूबैद अली भोजानी ने कहा, “हमने गम्भीर रोग से पीड़ितों, वरिष्ठ नागरिकों और उन लोगों को, जो बच्चों के साथ मुंबई बाग आते हैं, नोटिस जारी कर कहा है कि वे मुम्बई बाग नहीं आएं क्योंकि कोरोना वायरस से वैसे लोग प्रभावित हो रहे हैं जिनमें प्रतिरोधक क्षमता कम है.”

बहरहाल इससे सामुदायिक स्तर पर बीमारी फैलने का खतरा कम नहीं होता. अगर कोई कोविड-19 से संक्रमित युवक विरोध प्रदर्शन के लिए आता है, जिसमें बीमारी के लक्षण नहीं दिख रहे हैं तो वे दूसरे युवाओं को संक्रमित कर सकते हैं और वही फिर बुजुर्ग या कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को कहीं और भी संक्रमित कर सकते हैं.

महामारी से लड़ रहे वैज्ञानिक वायरस के फैलाव को रोकने की जरूरत बता रहे हैं क्योंकि तभी दुनिया में संक्रमित लोगों की तेजी से बढ़ती संख्या को रोका जा सकता है. इससे अत्यधिक संक्रमण और इसके फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी. जो वक्त मिलेगा उससे हमें वैक्सीन विकसित करने और इलाज के विकल्पों पर काम करने का अवसर मिलेगा.

चूकि भारत अब भी महामारी की प्रारंभिक अवस्था में है, समय पर हस्तक्षेप से यह काम संभवत: किया जा सकता है.

अली आगे कहते हैं, “हमने धरनास्थल पर वॉशरूम के पास हैंडवॉश की व्यवस्था कर दी है. धरनास्थल के प्रवेश द्वार पर सेनेटाइजर और मास्क के साथ हमारे वॉलेंटियर खड़े हैं. डॉक्टरों की हमारी अपनी टीम है जो चिकित्सा जांच कर रही है. हमने बीएमसी के अधिकारियों से आग्रह किया है कि पूरे इलाके को सेनिटाइज करने में भी हमारी मदद करें.

प्रदर्शन वापस लेने की योजना के बारे में पूछे जाने पर अली कहते हैं,

“चूकि आंदोलन का कोई चेहरा नहीं है इसलिए बहुत मुश्किल है कि कोई व्यक्ति प्रदर्शन वापस लेने को कहे और लोग आना बंद कर दें. लेकिन हम विकल्पों को देख रहे हैं.”

“प्रदर्शनकारियों की संख्या घटाने की तत्काल जरूरत”

शाहीन बाग की दादियां दूर-दराज तक सुर्खियों में रही हैं लेकिन वे भी उन लोगों में शामिल हैं जो कोरोना वायरस की महामारी का जल्द शिकार हो सकते हैं. प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण दुनिया भर में बुजुर्गों के लिए यह बीमारी घातक साबित हुई है. भारत में भी जो तीन लोग इस वायरस के कारण मारे गये हैं वे सभी 65 साल से अधिक उम्र के हैं.

विरोध प्रदर्शन के आयोजन में मदद कर रहे एक वॉलेंटियर ने कहा, “महिलाएं इतने दिनों से प्रदर्शन कर रही हैं. उन्हें रातोंरात रोक पाना बहुत मुश्किल है. हम बातचीत कर रहे हैं और आपात स्वास्थ्य जरूरतों के बारे में उन्हें यकीन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. अब तक हमने कुछ डॉक्टरों को भी बुला लिया है और लोगों समझा रहे हैं कि वे इस बात के लिए तैयार हो जाएं कि किसी एक जगह पर 50 से ज्यादा लोग इकट्ठा ना हों.”

कवि हुसैन हैदरी, जिनकी 2017 को लिखी कविता ‘हिन्दुस्तानी मुसलमान’ देशभर में कई सीएए विरोधी प्रदर्शनों में गाई गयी, ने भी इसी तरह का सुझाव दिया. क्विंट से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा,

“प्रदर्शनकारियों को मूर्ख की तरह नहीं, बल्कि उन्हें सहानुभूतिपूर्वक देखा जाना चाहिए. वे किसी मकसद के लिए वहां बैठे हैं और कोई इसे रातों रात खारिज नहीं कर सकता. लेकिन स्वास्थ्य की आपात स्थिति को देखते हुए हर किसी को बीच का रास्ता तलाशना चाहिए और प्रतीकात्मक प्रदर्शन जारी रखना चाहिए.”

फेसबुक पर पोस्ट लिखकर उन्होंने सुझाव दिया कि स्टेज पर सिर्फ तीन महिलाएं बैठ सकती हैं. उनका सुझाव है कि लोगों के साथ सामाजिक दूरी बनाते हुए और जरूरी जांच और सावधानियों के साथ महिलाएं अलग-अलग शिफ्ट में बैठ सकती हैं.

[Important: Regarding Protests] I have a suggestion that can perhaps help us continue the protests and also use the...

Posted by Hussain Haidry on Sunday, March 15, 2020

हैदरी अपने फेसबुक पोस्ट में आगे लिखते हैं, “अगर हम कुछ जोड़ना चाहें तो खुले पंडाल में हम पांच से सात महिलाओं को बिठाएं. किसी भी विरोध प्रदर्शन में 10 महिलाओं से अधिक न हों. सभी एक-दूसरे से अच्छी खासी दूरी पर रहें. उनमें से हर किसी की चिकित्सकीय जांच जरूरी रहेगी.”

मुंबई बाग प्रदर्शन के आयोजक अली कहते हैं कि यह सुझाव है और इस पर विचार किया जा रहा है. जल्द ही एक बैठक में इस बारे में फैसला लिया जाएगा.

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“नैरेटिव हमारे पक्ष में रहे इसलिए दहशत कम करने की जरूरत”

हैदरी को संदेह है कि “अगर हम अभी भी जोर-शोर से आंदोलन करते रहे तो सरकार और उसके लिए प्रोपेगंडा करने वाला तंत्र हमारे आंदोलन और समुदाय को नुकसान पहुंचा सकते हैं.” वे कहते हैं कि संदेश को जिन्दा रखने के लिए तत्काल यह जरूरी है कि प्रदर्शन को सीमित और सांकेतिक बनाया जाए.

ऐसा करने के लिए उनका सुझाव है कि प्रदर्शन के इन दिनों में बैनर, तस्वीरें और दूसरे सांकेतिक तरीकों से मुकाबला किया जाए.

हमारी भीड़ के कारण किसी किस्म के डर की आशंका को हम पैदा नहीं होने देना चाहते. हम डर को घटाना चाहते हैं ताकि सही संदेश जाता रहे. हम प्रदर्शन से जुड़ने वाले लोगों को रोक नहीं सकते. हम उन्हें बता सकते हैं कि यह जारी है और वे एक बार फिर लौट सकेंगे. यह केवल कुछ दिनों की बात है जिसका हमें इंतजार रहेगा.”

यह पूछे जाने पर कि आंदोलन क्या सोशल मीडिया पर विशेष तौर पर जारी रहेगा, हैदरी कहते हैं, ”यह संभव नहीं होगा क्योंकि नागरिकता कानून का विरोध करने के मुकाबले सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी की तादाद बहुत बड़ी है. कुछ सांकेतिक तरीकों से जमीनी स्तर पर विरोध जारी रखने की आवश्यकता है.”

“प्रदर्शनों को धरने से आगे ले जाने की जरूरत”

जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद, जो ‘युनाइटेड अगेंस्ट हेट’ नामक एक नागरिक अभियान से जुड़े हैं और जो दिसंबर के बाद से कई विरोध प्रदर्शनों की अगली पंक्ति में रहे हैं, कहते हैं, “आंदोलन हमेशा से देश के हित में रहा है और आपातकालीन स्वास्थ्य परिस्थिति में सावधानियां बरतना भी देश के हित में है.”

खालिद ने कहा, “जब कोई कोरोनावायरस नहीं था तब भी हमें आंदोलन को धरने से आगे ले जाने की आवश्यकता पर सोचने की जरूरत थी. हां, हो सकता है कि अगर महामारी ने हमें अपनी चपेट में नहीं लिया होता तो हम कुछ दिनों के बाद अगले चरण के बारे में बात करते.”

आगे वे कहते हैं, “अगर पूरी तरह ना भी हो तो आंशिक रूप से यह आंदोलन सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब रहा है. गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि एनपीआर एक्सरसाइज के दौरान कोई भी व्यक्ति ‘डी’ या ‘डाउटफुल’ नहीं रहेगा. लेकिन जब तक कि सरकार अधिसूचना नहीं लाती है, हमें नयी रणनीति के बारे में सोचना होगा ताकि घर-घर जाकर एनपीआर एक्सरसाइज को रोका जा सके. और, यह उस स्थिति में संभव नहीं है जब सारे लोग एक जगह बैठकर प्रदर्शन जारी रखें.”

देश भर में सीएए-एनआरसी-एनपीआर के विरुद्ध प्रदर्शनों की सूची को समय-समय पर तैयार करने वाले प्रणव साहने कहते हैं कि यह एक तथ्य है कि कम से कम 12 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने एनपीआर/एनआरसी के खिलाफ रुख दिखाया है. यह किसी हद तक प्रदर्शनों की सफलता को दिखाता है. वे इन्स्टाग्राम पर लिखते हैं :

“महामारी की आक्रामकता को देखते हुए यह प्रदर्शन स्थल बेहद असुरक्षित है. मैं सभी इंकलाबी महिलाओं से आह्वान करता हूं कि वे प्रदर्शन को विराम देने पर विचार करें. यह असफलता का प्रतीक नहीं होगा. इससे प्रतिरोध को मजबूत करने, आराम करने और अगले चरणों के लिए दोबारा इकट्ठा होने का समय मिलेगा. मुझे अपनी कमियों के बारे में पूरी तरह पता है फिर भी यह नपातुला फैसला है.”

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