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झारखंड से तेलंगाना तक दरिंदगी,इधर दिल्ली में रो रही निर्भया की मां

NCRB का नया डेटा कहता है कि देश में हर घंटे महिलाओं के लिए खिलाफ हिंसा की 41 घटनाएं हो रही हैं.

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झारखंड में चुनाव होने जा रहे हैं. पता नहीं क्यों होने जा रहे हैं? सरकार ही तो बनेगी. सरकार थी तो. जहां सरकार का गढ़ था, वहीं से तो वो स्टूडेंट अगवा कर ली गई.

सरकार तो तेलंगाना में भी है. उस डॉक्टर के काम आई क्या? उसे भी वहीं से ले गए, जहां सरकार का गढ़ है. ले गए उसे एक टोल से खींचकर, जैसे जंगल से सटे किसी गांव से बाघ मासूमों को खींचकर ले जाते हैं. ये जंगल ही तो है.

और फिर सरकार तो चंडीगढ़ में भी होगी. कहते तो हैं. वहां एक नाबालिग को ऑटो वाला उठा ले गया. उसके साथ भी वही इंतेहा. और दिल्ली में तो है ही सरकार. फिर क्यों वहां आज भी रो रही है निर्भया की मां?

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हैदराबाद

28 नवंबर: 27 साल की डॉक्टर. बेखौफ थी. सपनों ने अभी उड़ान भरना शुरू ही किया था. काम से लौट रही थी.

आठ ही तो बजे थे. स्कूटी पर थी. टायर पंक्चर  हो गया. एक टोल प्लाजा पर रुकी. बहन को फोन किया. कहा - दीदी डर लग है. मददगार का भेष धर भेड़िए आए. कहा-स्कूटी बनवा देंगे. फिर लौटे. टोल से खींच ले गए. वहीं 50 मीटर दूर. ट्रकों के पीछे रेप किया. गैंगरेप. हत्या की. फिर एक आधे-अधूरे बने ब्रिज के नीचे ले जाकर जला दिया. 

एक बार फिर देश में हल्ला मच गया है. सोशल मीडिया से सड़क तक स्यापा. लेकिन राज्य के गृहमंत्री ने क्या कहा -

महिला के साथ हुई घटना पर हमें दुख है. अफसोस की बात है कि पढ़ी-लिखी होने के बावजूद डॉक्टर ने अपनी बहन को फोन किया. अगर वह 100 नंबर पर कॉल करती, तो पुलिस अलर्ट हो जाती और वह सेफ हो जाती.
मो. महमूद अली, गृहमंत्री, तेलंगाना  

शर्म तो आई नहीं आपको? टोल प्लाजा से उठाकर ले गए थे उसे. क्या कर रही थी आपकी पुलिस?

रांची

26 नवंबर : सत्ता का दूसरा गढ़. झारखंड की राजधानी. राजधानी का भी केंद्र-कांके का इलाका. करीब में सीएम का घर-हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का घर-राज्य के डीजीपी का घर. मगर खींच ले गए दरिंदे.

लॉ की छात्रा. नामी यूनिवर्सिटी के कैंपस से महज चार किलोमीटर दूर खड़ी किसी से बात कर रही थी. दरिंदों ने पहले बाइक पर बिठाया. पेट्रोल खत्म हो गया तो कार बुलवा ली. कितनी तसल्ली थी. कितने बेखौफ थे. एक ईंट भट्ठे पर ले गए. और भेड़ियों को बुलाया. गैंगरेप में 12 पकड़े गए हैं. जो पकड़े गए उनके पास बंदूक मिली. गोलियां मिलीं. चुनाव होने हैं. क्या सुरक्षा है!

कूडल्लूर

22 नवंबर. 32 साल की महिला. बाइक पर एक रिश्तेदार के साथ घर का सामान लेकर लौट रही थी. रास्ते में पांच शराबियों ने रोक लिया. रिश्तेदार को डरा धमकाकर भगा दिया. फिर गुंडों ने गैंगरेप किया. ‘पहले कौन’ को लेकर झगड़ा भी हुआ. चारों ने मिलकर अपने पांचवे साथी को मार डाला. अगले दिन महिला थाने पहुंच पाई.

क्या करें? पढ़ाई छोड़ दें? पढ़ गईं हैं तो काम पर न जाएं? क्या घर का सामान भी न लाएं, घर में ही कैद रहें? यही तो चाहते हैं आप शायद.

और इस बीच 2012 में अपनी बेटी के साथ हुई दरिंदगी का इंसाफ मांगती फिर रही निर्भया की मां रो रही हैं. वो एक साल से दोषियों को फांसी दिलाने के लिए दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट के चक्कर काट रही हैं. 29 नवंबर को भी वह इंसाफ की आस में कोर्ट पहुंची थीं, लेकिन उस वक्त उनकी आंखों में आंसू छलक उठे, जब कोर्ट ने दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी करने से इनकार कर दिया. मामला राष्ट्रपति के पास है.

ऐसी सरकारें चाहिए क्या? जिनके राज में लड़कियों को पढ़ने में डर लगे. काम पर जाने में डर लगे. घर लौटने में डर लगे. NCRB का नया डेटा (जो पुराना है क्योंकि 2017 का डेटा है) कहता है कि देश में हर घंटे महिलाओं के लिए खिलाफ हिंसा की 41 घटनाएं हो रही हैं.

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