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मैं आपको भारत की एक डरावनी कहानी सुनाना चाहता हूं!

जॉर्ज ऑरवेल की किताब 1984 से भी डरावनी है आपके भारत की कहानी. सुनिए तो जरा...

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दादरी में गौमांस खाने की अफवाह पर भीड़ ने एक शख्स की हत्या कर दी. मुजफ्फरनगर में दंगे के बाद हजारों लोग बेघर हो गए. ईमानदार फिल्म होने की वजह से सेंसर बोर्ड ने ‘उड़ता पंजाब’ का नाम बदलने को कहा. रुकिए...ये सब फालतू और फर्जी कहानियां हैं.

अब मैं आपको एक असली कहानी सुनाना चाहता हूं. आपके भारत की एक डरावनी कहानी. इससे पहले आप जिस कुर्सी पर बैठकर ये कहानी सुन रहे हैं, मैं उससे आपके हाथ-पांव बांध देना चाहता हूं ताकि आप डर से कांपें, चिल्लाएं और खुद को नोंच भी डालें.

लेकिन कहानी अधूरी न छोड़ पाएं. मैं चाहता हूं, ये कहानी आपको इतना डरा दे कि आप इस कहानी को याद करते ही सिहर उठें. लेकिन किसी और को ये कहानी सुनने से रोक न पाएं.

जॉर्ज ऑरवेल की किताब 1984 से भी डरावनी है आपके भारत की कहानी. सुनिए तो जरा...

ये कहानी है आपके अपने प्यारे भारत की. एक अंग्रेज लेखक हुए हैं जॉर्ज ऑरवेल. उन्होंने एक किताब लिखी थी ‘1984’ जो बड़ी डरावनी है. लेकिन मैं आपको भारत की जो कहानी सुनाने जा रहा हूं, वो इससे भी ज्यादा डरावनी है.

ऑरवेल साहब की कहानी में न्यूक्लियर वॉर के बाद इंग्लैंड खत्म होकर ‘एयरस्ट्रिप वन’ हो जाता है. लंदन वहीं रहता है, जहां पहले था. लोग भी वही हैं, जो पहले थे.

‘एयरस्ट्रिप वन’ में सब ठीक है. बस सोचना गुनाह है. जानते है आजादी से सोचना गुनाह क्यों था इस मुल्क में? क्योंकि देश के सबसे बड़े नेता बिग ब्रदर ने लोगों को बता रखा था कि एक वो ही है, जो उनका तारनहार है.

और लोग अंधराष्ट्रवाद की अफीम चाट-चाटकर सीख चुके हैं कि एक अलग तरह सोचकर ‘देशद्रोह’ नहीं करना है. इश्क़ तो बिलकुल ही नहीं करना है. बच्चे पैदा करने हैं, लेकिन बिग ब्रदर के चलाए युद्धों में खपाने के लिए. इन नियमों के खिलाफ जाने वालों के लिए तैनात हैं सोच पर पहरा देने वाले पहरेदार, जो बाज सी निगाहों से आपकी हर हरकत पर नजर रखते हैं.

इस देश में आपका सबसे बड़ा दुश्मन है खुद आपका नर्वस सिस्टम. क्योंकि मन में चलती उधेड़बुन आपके चेहरे पर दिखते ही. आप समूल नष्ट हो जाते हो. नाम, पहचान और आपकी हस्ती सब एक झटके में खत्म हो जाती है. बचती है तो केवल एक खाली जगह वो भी थोड़ी देर के लिए. फिर सब नॉर्मल. पहले जैसा.

जॉर्ज ऑरवेल की किताब 1984 से भी डरावनी है आपके भारत की कहानी. सुनिए तो जरा...

अब मैं आपको सुनाता हूं आपके भारत की कहानी. आपके भारत में भी एक सरकार है. एक नेता है, जिसने देश को झुकने नहीं देने की कसम खाई है. आप भी लपालप अंध-राष्ट्रवाद की अफीम चाट रहे हैं. पर इस देश में सोचने की आजादी है (लेकिन सिर्फ कागजों में).

डरावनी बात यह है कि इस देश में सोच पर सरकारी पहरेदार नहीं है. देश में बच्चे-बच्चे के दिमाग में भर दिया गया गया है बस संकट शाश्वत है इस मुल्क में. धर्म पर संकट, संस्कृति पर संकट, अर्थव्यवस्था पर संकट, सीमाओं पर संकट और देश की आन-बान-शान पर संकट. बच्चे-बच्चे के दिमाग में भर दिया गया है कि उसे ही देश को इन संकटों से बचाना है.

वैसे सबसे ज्यादा खतरा उन देशवासियों से है, जो इन संकटों को धता बताते हैं. ऐसे में अगर आप खुद को ऐसे ही देशवासियों की जमात में खड़ा पाते हैं, तो आप बड़े संकट में हैं. क्योंकि आप सबसे ज्यादा खतरे में तब होते हैं, जब आप खतरा पैदा होने की संभावना से सावधान नहीं होते.

अपने दोस्त, प्रेमी और घरवालों से दिल की बात बेबाकी से कह डालते हैं. लेकिन अब कोई दोस्त नहीं, जो आपके दिल की बात सुनेगा और समझेगा. अब आपके आसपास हैं सोच पर पहरा देने वाले खूंखार और निर्दयी पहरेदार, जो आपकी बात सुनते ही आपको एक कठघरे में खड़ा कर देने को आतुर हैं. आपकी पीठ पर सेक्युलर, देशद्रोही और पाखंडियों जैसे तमाम लेबल लगाने को गोंद और कागज हाथ में लेकर तैयार हैं.

इस मुल्क में आप सच इसलिए नहीं बोल सकते, क्योंकि एक नंगा सच कई झूठी छवियों को पलभर में शीशे की तरह चकनाचूर कर सकता है.

आप एक ईमानदार फिल्म नहीं बना सकते. क्योंकि इससे एक प्रदेश की झूठी छवि टूट सकती है. आप अपनी व्यस्क जनता को वो कहानी नहीं सुना सकते, जिससे वो अपना सच देख सके. आपकी हर अभिव्यक्ति पर सरकारी रोक लगने से पहले ही हजारों-हजार लोग आपके पास्ट, प्रजेंट और फ्यूचर को कॉन्टेक्स्ट में लाकर ऐसे सवाल खड़े कर देंगे कि आपका मुंह बंद हो जाएगा.

यहां तक कि आप वो बात न बोल पाएंगे जो लोगों को सोचने पर मजबूर करे. क्योंकि बस सोचना गुनाह है इस मुल्क में. और सोचकर दूसरों को सोचने के लिए मजबूर करना उससे भी बड़ा गुनाह.

आपकी हर हरकत पर हर दम हजार निगाहें हैं. जो अंधी हैं और आपकी हरकतों को समझने के लिए माइक्रोस्कोप में आंखें गढ़ाती हैं. वो माइक्रोस्कोप, जिससे आवाज आती है- ‘ये हरकत देशद्रोही है’ और आपके खिलाफ इंटरनेट से लेकर सड़कों तक पर शुरू हो जाता है एक युद्ध.

आपके घर पर पत्थर फेंके जा सकते हैं. ट्रेन और बस से बाहर फेंका जा सकता है और सैकड़ों लोगों की भीड़ आपके घर में घुसकर आपकी बच्चों और मां को जख्मी करके आपको मौत के घाट उतार सकती है. क्योंकि आप एक ऐसे मुल्क में रहते हैं, जहां सोचना और अपनी तरह से जीना एक गुनाह है.

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