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इमरान खान अविश्वास प्रस्ताव- पाकिस्तान आर्मी क्यों खुलकर सामने नहीं आ रही है?

Imran Khan का सेना के साथ संबंधों में ना सिर्फ खटास आई है बल्कि वो कुछ भी डिलीवर करने में फेल हुए हैं

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पाकिस्तान (Pakistan) में जब तक कुछ हो ना जाए तब तक निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता कि ‘ये जाने वाला है, या फिर जा रहा है या फिर चला गया’. अगर देखें तो सदन में प्रधानमंत्री इमरान खान (PM Imran Khan) बहुमत खो चुके हैं और उनका इस्तीफा हो जाना चाहिए था. लेकिन जब तक वोटिंग से ये साबित नहीं हो जाता, वो बाहर नहीं होंगे. और जैसा कि राष्ट्र के नाम संबोधन में उन्होंने बताया कि वो आखिर तक लड़ेंगे. उनको आखिरी गेंद में किसी ट्विस्ट की उम्मीद है.

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ये भी समझना चाहिए कि उनकी पार्टी हमेशा से विनम्रता की जगह सख्त मिजाज वाली रही है. ऐसे में थर्ड अंपायर यानि ‘आर्मी’ की सलाह पर नजर रहेगी और जब राजनीतिक वजूद किसी धागे से लटका रहता है, तो उम्मीदें बन जाती हैं .

बहुत जोर का धक्का

आखिरी धक्का देने का प्लान काफी महीनों से था. विपक्षी नेताओं के खिलाफ इमरान सरकार लगातार केस मुकदमे दर्ज करती रही है और अब विपक्ष इनसे छुटकारा पाने के लिए इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है. इमरान सरकार का सबसे बड़ा निशाना नवाज शरीफ रहे हैं.

सिर्फ नवाज शरीफ ही नहीं, बल्कि उनके कई करीबी और मददगार यहां तक कि इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख आफताब सुल्तान, जियो न्यूज के मालिक मीर शकीउर रहमान, जिनके खिलाफ पंजाब में जमीन आवंटन के मामले बनाए गए. कुछ निष्पक्ष माने जाने वाली वॉचडॉग नेशनल एकाउंटिबलिटी ब्यूरो ने नवाज शरीफ की बेटी को भी नहीं छोड़ा.
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फिर ये दक्षिण एशिया है. पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ जो मामले दर्ज किए गए थे, उन्हें 2017 में खत्म कर दिया गया. लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के खिलाफ साल 2020 में केस दोबारा लगाए गए, जब सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता मजबूत हुई और वो एकजुट होने लगे.

इसके बाद जरदारी के खिलाफ नया केस हुआ और शाहबाज शरीफ को हिरासत में लिया गया. इमरान खान ने कमिटी को लंदन से नवाज शरीफ को वापस लाने के लिए कार्रवाई करने को कहा. जबकि इग्लैंड के साथ पाकिस्तान की ऐसी कोई प्रत्यर्पण की संधि भी नहीं है.

संक्षेप में इमरान खान ने उनको बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और अब ये पलटकर खुद इमरान खान पर आ गया है.

MQM-P का झटका

कई दिनों तक तो ऐसा लगा कि तमाम दावों के बाद भी विपक्ष जरूरी नंबर नहीं जुटा पाएगा. लेकिन इमरान ने पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार को हटाकर परवेज इलाही को नियुक्त किया, ताकि इलाही का समर्थन अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उन्हें मिले, लेकिन उनका ये कदम आत्मघाती साबित हुआ.

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पार्टी के भीतर जो असंतुष्ट थे उनको लगा कि क्या पार्टी के भीतर कोई और नहीं था, जो इलाही की जगह पंजाब संभाल सके.

फिर मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट(पाकिस्तान) ने झटका दिया. सदन में 7 सीटों पर सहयोगी MQM-P ने इमरान से हटकर विपक्ष के साथ गठबंधन कर लिया.

‘MQM-P एक बहुत दिलचस्प पार्टी है. पार्टी के सुप्रीमो अल्ताफ हुसैन जबसे साल 2017 में लंदन भागे हैं तब से इसके कई धड़े बन गए.’ इनमें MQM-Haqiqi भी एक धड़ा है जो अल्ताफ के खिलाफ बनाया गया था, फिर पाकिस्तान सरजमीन पार्टी , MQM-फारुख सत्तार ,अमेरिका बेस्ट वॉयस ऑफ कराची और नवाजुवन्नान –ए- कराची हैं.

संक्षेप में, जो कभी सिंध प्रांत में बहुत बड़ी ताकत थी, उन्हें काट काटकर छोटा कर दिया गया. यहां ये भी याद रखना चाहिए कि पार्टी के टूटने से साल 2018 के आम चुनाव में मोहाजिर वोट बंट गए और MQM की जगह कराची में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ मजबूत चुनावी ताकत बन गई.

कराची नेशनल असेंबली चुनाव में PTI, 21 में से 14 सीटों पर जीती. MQM का हर धड़ा ‘Aabpara’ ( ISI जिस नाम से जाना जाता है) यानि ISI का टूल्स के नाम से जाना जाता है. जो MQM पार्टी के नेता लंदन चले गए उनसे भी ज्यादा करीब.

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ये साफ नहीं नहीं है कि क्या यह पार्टी के चुनावी कर्मों का नतीजा है जो अब इमरान खान को भुगतना पड़ रहा है , या फिर पाकिस्तानी सियासत पर पकड़ रखने वालों की चाल है ? इमरान खान ने आरोप लगाया है कि ‘लंदन का एक शख्स’ इसके पीछे है. उन्होंने कहा कि नवाज शरीफ ‘लंदन के उस शख्स ‘के साथ मिलकर उनको और उनकी सरकार को हटाना चाहते हैं.

इसके अलावा एक और फैक्टर है. देश में महंगाई, बेरोजगारी और खराब शासन, जो कि PTI की अपनी भी लाइन रही है, उसमें खुद PTI और इमरान सरकार फंस गई है. पहले की सरकारों पर PTI ने महंगाई, बेरोजगारी को लेकर हमला किया लेकिन अब इस बार इमरान की खुद की बारी आ गई.

साजिश की सभी थ्योरी को आजमा चुके इमरान

इमरान खान अभी सत्ता की डोर को मजबूती से पकड़े हुए हैं. इस तथ्य को जानने के बाद बाद भी कि विपक्ष के पास अब नंबर है और विपक्ष को PTI की दरकार भी नहीं. इमरान खान अपने लिए दो तरीके से उम्मीदें बनाए हुए हैं.

पहला बागियों को डरा धमकाकर. इमरान की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सिंध हाउस जहां पर असंतुष्टों को रखा गया था खुलेआम हमला किया. इसके आगे PTI, संविधान के आर्टिकल 63 A को लेकर कोर्ट चली गई है .

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इसमें पार्टी छोड़ने वालों को अनैतिक और विनाशकारी बताते हुए इस पर सफाई मांगी है कि क्या दलबदल करने वालों को जिंदगी भर के लिए सदन से प्रतिबंधित किया जा सकता है ताकि वो फिर कभी लोकतांत्रिक पंरपरा को प्रदूषित ना करें. हालांकि कोर्ट अब तक इसको लेकर बहुत उत्साहित नहीं दिख रहा है. कोर्ट का मानना है कि ये उसका काम नहीं है कि वो नया दलबदल विरोधी कानून बनाए.

दूसरा – इमरान खान ने अपनी रैली में एक चिट्टी को लहराते हुए दिखाया था और कहा था कि ये चिट्टी उनको सत्ता से हटाने की साजिश का सबूत है. बाद में मीडिया को बताया गया कि पाकिस्तानी दूत को एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी जिनका नाम डॉनल्ड लू है और अब वो राजदूत हैं, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को पसंद नहीं करते.

डॉनल्ड लू , साउथ और सेंट्रल एशियाई मामलों के US असिस्टेंट सेक्रेटरी हैं और ये बताया गया कि उनको पाकिस्तान की इमरान सरकार की विदेश नीति से परेशानी है. खासकर उनकी रूसी विदेश यात्रा और यूक्रेन युद्ध पर रुख से. यह एक गंभीर आरोप है. ये इससे पहले ‘लंदन’ की साजिश की जो बात इमरान ने बताई थी उससे अलग है. हालांकि अमेरिका ने ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है.

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इन सबसे ऊपर, एक और पीटीआई नेता ने अब दावा किया है कि प्रधानमंत्री की हत्या हो सकती है. उन्होंने प्रधानमंत्री को बहादुर शख्स बताया और कहा कि ना तो वो डॉलर स्वीकार करेंगे और ना ही देश में किसी को अपना ठिकाना बनाने देंगे. जाहिर है, दहशत में आ चुकी , पीटीआई खुद को बचाए रखने के लिए साजिश की जितनी बातें हो सकती हैं सब कर रही है.

जनरल बाजवा की मैच्योर आर्मी

इस बीच खेल में अंपायर अपना सामान्य रोल निभाते हुए ही नजर आ रहे हैं. सच है कि आर्मी के टॉप बॉसेज का प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात में सम्मानजनक और सुरक्षित विदाई और समय से पहले चुनाव और अंतरिम सरकार पर बात हुई. सेना इस सियासी कीचड़ में खुद को शामिल होता हुआ नहीं दिखाना चाहती, कम से कम सार्वजनिक तौर पर तो ऐसा ही लगता है. इस बीच मीडिया ये बता रहा है कि जो सामान्य फोन कॉल्स होते हैं वो नहीं किए जा रहे हैं और इससे छोटी पार्टियां काफी कन्फ्यूजन में हैं.

लेकिन सेना पहले से कहीं ज्यादा बेहतर हुई है. जनरल बाजवा के नेतृत्व में, यह कहीं अधिक परिष्कृत और यहां तक कि परिपक्व भी लग रही है, जैसा कि पाकिस्तानी क्षेत्र में भारतीय मिसाइल के घुसने के मामले में भी दिखा था.
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यदि सेना हस्तक्षेप कर भी रही है तो वो मीडिया ट्रायल को धता बताते हुए सावधानी से करेगी. इसके अलावा, यह साफ है कि इमरान खान का सेना के साथ संबंधों में ना सिर्फ खटास आई है बल्कि वो कुछ भी डिलीवर करने में फेल हुए हैं.

हालांकि इमरान खान की अमर्यादित भाषा और उनके व्यवहारों को देखते हुए उनसे सहानुभूति नहीं हो सकती है, लेकिन दुर्भाग्य से हकीकत ये है कि अब पाकिस्तान जो कि आर्थिक और सामाजिक तौर पर अपने सबसे कमजोर दौर में जा चुका है, किसी नई व्यवस्था में भी शायद ही स्थिर हो पाए.

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जो नई तरह की व्यवस्था पाकिस्तान में बनेगी ..उसमें भारत के साथ संबंधों को बेहतर करने और निष्पक्ष तौर पर आगे बढ़ने को बढ़ावा मिलेगा. क्या पाकिस्तान में फिर सब कुछ रीसेट होगा ताकि पाकिस्तान फिर से एक प्रमुख क्षेत्रीय संपर्क केंद्र के रूप में उभर सके.

(डॉ. तारा कार्था Institute of Peace and Conflict Studies (IPCS) में एक प्रतिष्ठित फेलो हैं. उनका ट्विटर हैंडल @kartha_tara है. ये ओपिनियन आर्टिकल है और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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