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इमरान ने जयशंकर के बहाने भारत की तारीफ नहीं की है,पाकिस्तानी 'गिफ्ट' से सजग रहें

Imran Khan कभी भी भारत के प्रशंसक नहीं रहे हैं, यहां तमाम क्रिकेटर दोस्त होने के बाद भी उनका पूर्वाग्रह छिपा नहीं है

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लाहौर के हॉकी स्टेडियम में अपनी सियासी ताकत का शक्ति प्रदर्शन करते हुए पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) ने 13 अगस्त की रात अपने देश की आजादी की 75वीं सालगिरह पर एक विशाल सार्वजनिक बैठक या 'जलसा' की, क्योंकि पाकिस्तान में इन बैठकों को ‘जलसा’ ही कहा जाता है. जलसा आधी रात के आगे भी चला और इस तरह 14 अगस्त शुरू हो गया, जिस दिन पाकिस्तान 1947 में भारत से अलग होकर स्वतंत्र हुआ था.

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जलसे में अपने संबोधन के दौरान, इमरान खान ने मौजूद लोगों को कई छोटे छोटे वीडियो दिखाकर अपनी बात को मजबूती से सामने रखने की कोशिश की. सबसे दिलचस्प बात यह है कि इनमें से एक क्लिप भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की थी. इस क्लिप में जयशंकर रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले का जबरदस्त बचाव करते दिखे थे. जाहिर सी बात है कि इमरान खान अपने लोगों और पार्टी के कैडर को संदेश देना चाहते थे कि कैसे भारत अमेरिका के दबाव के आगे नहीं झुकता है और अपने हितों के लिए खड़ा होता है.

हालांकि उनका असली मकसद भारत की तारीफ करना नहीं था ..लेकिन ये दिखाना था कि अभी जो पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट वाली शहबाज शरीफ की सरकार है वो विदेशी सरकारों के हाथों की कठपुतली है- भ्रष्ट है और शरीफ सरकार पाकिस्तान के हितों की रक्षा नहीं कर सकती है.

और इमरान जो संदेश देना चाहते थे वो यही था कि सिर्फ ‘कप्तान’ ही पाकिस्तान का बचाव कर सकते हैं.

इमरान खान का भारत विरोधी पूर्वाग्रह

यह पहली बार नहीं है जब इमरान खान ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की ‘तारीफ’ की है. 20 मार्च को इसी साल जब वो विपक्ष के विरोध का सामना कर रहे थे तो खैबर पख्तूनख्वा (KP) प्रांत में उन्होंने एक विशाल रैली की. उन्होंने पाकिस्तानियों को यह कहकर चौंका दिया कि वो भारत की विदेश नीति की तारीफ करते हैं जो कि भारतीय जनता के हितों का ख्याल रखती है.

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दो महीने बाद और सरकार से बाहर होने के 30 दिन बाद ही 22 मई को ट्विटर पर उन्होंने लिखा:

“क्वाड का हिस्सा होने के बाद भी अमेरिका के दबावों की परवाह नहीं करते हुए भारत ने अपनी जनता को राहत देने के लिए रूस से कम कीमतों पर तेल खरीदा.”

इमरान खान कभी भी भारत के प्रशंसक नहीं रहे हैं. भारत में तमाम क्रिकेटर दोस्त होने के बाद भी उन्होंने कभी भी भारत विरोधी अपना पूर्वाग्रह नहीं छिपाया है. वैसे तो इमरान खान मोदी सरकार के खिलाफ निंदापूर्ण रुख रखते रहे हैं. फिर आखिर लाहौर के जलसे में ‘भारत की तारीफ‘ के पीछे उनका असली मकसद क्या था ? वो यह जरूर जानते रहे होंगे कि लाहौर के हॉकी स्टेडियम में मौजूद लोगों की विशाल भीड़ में भारत के विदेश मंत्री की क्लिप दिखाकर खलबली मचेगी.

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इस सवाल का जवाब 'जलसा' में इमरान खान की तरफ से दिखाई गई पहली क्लिप से ही मिलता है. यह क्लिप पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का था, जिसमें वे पाकिस्तान के बनने से पहले कहते हैं कि

“मुसलमान दूसरे किसी से भी ज्यादा आजादी चाहते हैं क्योंकि आजादी, भाईचारा और खुलापन से प्यार उनके वजूद का सबकुछ है. लेकिन आजादी का मतलब ब्रिटिश शोषण और हिंदू वर्चस्व दोनों से आजादी होना चाहिए. सिर्फ आकाओं के बदलने को करोड़ों मुसलमान कभी भी मंजूर नहीं करेंगे.”

पाकिस्तान को बनाने के लिए जो मजहबी भावनाएं भड़काई गईं वो आज भी पाकिस्तान में काफी मजबूत हैं. यह सिर्फ मजहबी गुटों या समूहों में ही नहीं बल्कि आम पाकिस्तानी अवाम में भी है.

पाकिस्तानी नेताओं को संदेश देना चाहते थे इमरान खान

जलसे में जिन्ना का वीडियो क्लिप दिखाने के बाद इमरान खान ने कहा कि ‘ ब्रिटिश गुलामी को खत्म करने के बाद हम हिंदू गुलामी की बेड़ियों में नहीं बंधे रहना चाहते. हम एक आजाद मुल्क में रहना चाहते हैं.’

उन्होंने ये भी याद दिलाया कि मुसलमानों ने हमेशा ही आजादी के लिए लंबा संघर्ष किया है . अपने लंबे भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को चार तरह की गुलामी खत्म करनी होगी जो जिन्ना की गुलामी वाली बातों से आगे बढ़कर उनमें कुछ नई बातें जोड़ी गई थी. एक मुस्लिम के तौर पर पाकिस्तानी सिर्फ अल्लाह के सामने झुकेंगे, किसी दूसरे शख्स, समूह या देश का गुलाम नहीं होंगे...ना ही वो पैसे की गुलामी करेंगे. वो हमेशा सच के रास्ते का पालन करेंगे.

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अपने पूरे भाषण के दौरान इमरान खान ने विदेशियों के आगे झुकने और सच का रास्ता छोड़ने के लिए अपने विरोधियों पर जोरदार हमला बोला. उन्होंने कहा कि इस्लाम में जिस तरह से आजादी की बात कही गई है उनका मकसद मुसलमानों को उसी तरह से आजाद रखना था और बिना सत्ता खोने , मौत से डरे वो वैसा ही करते रहे लेकिन उनके सियासी विरोधी पूरी तरह से डरपोक हैं और गैर-इस्लामी रास्ता अपना रहे हैं. इसलिए इस पूरे भाषण में उनका मुख्य मकसद अपने सियासी विरोधियों पर निशाना साधना था फिर अचानक से भारत को इसमें वो क्यों ले आए . आखिर क्यों ?

इसका जवाब यह है कि वो वो यह दिखाना चाहते थे कि PDM के नेता, शरीफ भाई , जरदारी-भूट्टो और मौलाना फजलुर रहमान अल्लाह में पूरा यकीन नहीं रखते और गैर इस्लामी काम कर रहे हैं क्योंकि वो विदेशियों के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं कर सकते. इसलिए ये नेता जिन्हें वो अक्सर ‘चूहा’ कहते हैं वो अवमानना के लायक ही हैं.

जयशंकर का क्लिप दिखाकर वो एक शॉक थेरेपी देना चाहते थे ताकि पाकिस्तानी जनता पूरी तरह से उनका संदेश समझ सके. इसलिए भारतीय लोगों को भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और भारतीय जनता के हितों की सुरक्षा के लिए ‘भारत की तारीफ’ वाली इमरान खान की बात को इसी नजरिये से समझना और देखना चाहिए. उन्हें निश्चित तौर पर यह नहीं सोचना चाहिए कि इमरान खान भारत को लेकर निष्पक्ष हो रहे हैं या फिर अपना रुख बदल रहे हैं.

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सावधान रहें

इमरान खान पाकिस्तानी आर्मी को लेकर बहुत सावधान रहे हैं और जिस तरह के आरोप पाकिस्तानी सियासी पार्टियों पर वो लगाते रहे हैं वैसा कुछ आर्मी के लिए करने से वो बचते हैं.

वास्तव में अपने लंबे भाषण के दौरान उन्होंने कई बार आर्मी से जो मदद उन्हें मिली इस पर जोर भी दिया .. हालांकि फिर भी उनका संदेश सेना के जनरल कमर बाजवा को भी उसी तरह सीधा और साफ था जैसा कि PDM के नेताओं के लिए था. लेकिन निश्चित तौर पर ही जयशंकर के वीडियो क्लिप ने जनरल या फिर जूनियर आर्मी ऑफिसर को खुश नहीं ही किया होगा.

यूरोपीय प्राचीन ज्ञान परंपरा में बड़े बुजुर्गों ने ये बताया है कि अगर यूनानी कोई गिफ्ट भी दें तो उनसे सावधान रहना चाहिए. ऐसे में पाकिस्तानी नेताओं के मुंह से निकलने वाली प्रशंसा भरी बातों के लिए भारतीयों पर भी ये चेतावनी लागू होती है.

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