पूर्व चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और केन्द्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह अक्सर विवादों में रहे हैं. सेना में उनके एक सहयोगी ने यहां तक कह दिया था कि उन्हें गलत बोलने की (‘फुट इन माउथ’) बीमारी है. इस बार भी उनकी नीयत ठीक ही थी, बस बोल कुछ और गये.
हाल ही में जनरल सिंह मदुराई में स्थानीय मीडिया को भारत-चीन सीमा विवाद के संबंध में ये बताने की कोशिश कर रहे थे कि भारत ने अपना कोई हिस्सा नहीं खोया है. इसी दौरान उन्होंने मीडिया से जोश में ये भी कह डाला कि भारत ने चीन के तुलना में ज्यादा बार वास्तविक सीमा रेखा पार की है. वो भी ऐसे समय में जब दोनों ही पक्ष इलाके में शांति भंग करने के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.
मोदी सरकार ने बड़ी मुश्किल से जनता को ये समझाया था कि मई 2020 में हमारी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीनी घुसपैठ की कोशिश को विफल कर दिया था. वैसे जमीनी हकीकत कुछ और थी.
गलवान घाटी में झड़प के बाद खुद पीएम मोदी ने एक सर्वदलीय बैठक में कहा था कि किसी ने हमारी सीमा का अतिक्रमण नहीं किया. चीनी मीडिया ने इस बयान को हाथों-हाथ लेते हुए जम कर प्रचारित किया कि हमने कभी भारतीय सीमा का अतिक्रमण नहीं किया.
चीन को दिया सुनहरा मौका
वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति के बारे में जनरल सिंह की इस बेतुकी टिप्पणी ने राजनीतिक, कूटनीतिक और राजनयिक गलियारों में हलचल मचा दी है. वो भी ऐसे समय में जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ये साबित करने का प्रयास कर रहे हैं कि चीन की सीमा पर सैन्य जमावड़ा, प्रोटोकॉल और समझौतों का उल्लंघन है और LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) को एकतरफा बदलने की कोशिश ने दोनों देशों की सीमाओं पर शांति और स्थिरता को गंभीर रुप से प्रभावित किया है.
जनरल सिंह ने दावा किया कि अगर चीन ने 10 बार सीमा पार की तो भारतीय सैनिकों ने कम से कम 50 बार ऐसा किया. ये विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव के उस बयान के बिल्कुल विपरीत है, जो 25 जून 2020 को उन्होंने दिया था : “भारतीय सेना ने LAC पर कभी भी कोई आक्रामक कदम नहीं उठाया और ना ही कभी यथास्थिति को बदलने का एकतरफा प्रयास किया.”
जनरल सिंह ने बयान ने चीन को तुरंत जवाब देने का मौका दे दिया. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेंबिन ने कहा – “ये भारतीय सेना द्वारा लगातार सीमा पार करने की स्वीकारोक्ति है. काफी समय से भारतीय सेना हमारी सीमा पार कर आती रही है और चीनी क्षेत्र में अतिक्रमण के मकसद से विवाद खड़ी करती रही है. मौजूदा समय में भी भारत-चीन सीमा विवाद की मुख्य वजह यही है. भारतीय पक्ष से हमारा आग्रह है कि वे चीन के साथ हुई सहमतियों, समझौतों और संधियों का पालन करें और सीमा पर ठोस कदम उठाते हुए शांति और स्थिरता बनाये रखें.“
भारत सरकार के लिए विषम परिस्थिति
पूर्व आर्मी चीफ की अपनी सैन्य जानकारी दिखाने के अतिउत्साह ने सरकार के लिए विषम परिस्थिति खड़ी कर दी है. 2010-12 में बतौर आर्मी चीफ जनरल सिंह ने अपनी उम्र के विवाद में सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. और इसी दौरान रुटीन एक्सरसाइज बताते हुए पारा ब्रिगेड और मैकेनाइज्ड फोर्स को दिल्ली पहुंचने का आदेश जारी कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने इसे सरकार को धमकाने की प्रयास बताया था, जबकि कुछ लोगों के मुताबिक ये विद्रोह की दिशा में एक कदम था. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन इस कदम से इतने चिंतित हो गये कि मलेशिया दौरे पर गये रक्षा सचिव शशिकांत मिश्रा को फौरन बुलवा लिया. सुप्रीम कोर्ट में भी जनरल सिंह ना सिर्फ केस हार गये बल्कि उन्हें अदालत की झिड़की भी खानी पड़ी – “आपने इतना कुछ हासिल किया है. एक और साल से क्या फर्क पड़ेगा?”
इससे पहले भी...
जनरल सिंह ने अपने दो उत्तराधिकारियों के लिए भी मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश की, खास तौर पर जनरल बिक्रम सिंह और जनरल दलबीर सुहाग के लिए क्योंकि वो चाहते थे कि चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) उनकी पसंद का हो. रिटायर होने के बाद जनरल सिंह पहले ऑर्मी चीफ थे, जो चुनाव लड़े और बहुमत (मोदी के बाद दूसरे नंबर पर) से जीते. वैसे, जब वो मंत्री बनने के योग्य हुए, तब तक जनरल दलबीर सुहाग चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) बन चुके थे. मेरे जानने वाले कुछ लोगों ने तत्कालीन रक्षा और वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की और उनके आग्रह किया कि जनरल सिंह को कम से कम रक्षा मंत्रालय से दूर रखा जाए. बाद में विदेश विभाग के राज्य मंत्री के तौर पर जनरल सिंह ने मुसीबत के वक्त सूझबूझ से स्थिति संभाली और विदेशों में कई बचाव अभियान का नेतृत्व किया. लेकिन इस दौरन कई बार उनकी जुबान फिसली और छिटपुट विवादों में फंसे.
जनवरी 2021 में ऑल इंडिया कॉन्फ्रेंस ऑफ चाइनीज स्टडीज के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सीमा विवाद को शानदार तरीके से चित्रित और परिभाषित किया था. इसमें द्विपक्षीय हित, सम्मान और संवेदनशीलता के साथ 8 सिद्धांतों की बात कही गई थी, जो भारत-चीन संबंधों में सुधार के लिए अहम थे.
उन्होंने जोर दिया था कि स्थायी द्वीपक्षीय संबंधों के लिए सीमा पर शांति पहली शर्त है। लेकिन जनरल सिंह के LAC उल्लंघन से जुड़े बड़बोलेपन की वजह से सरकार के सद्प्रयासों को गहरा झटका लगा है।
(रिटायर्ड मेजर जनरल अशोक के. मेहता, डिफेंस प्लानिंग स्टाफ के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं। ये श्रीलंका में भारतीय शांति सेना से कमांडर रहे और 2003 से भारत-पाकिस्तान ट्रैक 2 वार्ता के कंवेनर रहे। इस लेख में अभिव्यक्त बातें लेखक के निजी विचार हैं। क्विंट का इन विचारों से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही इसके लिए जिम्मेदार है)
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