विपक्षी दलों के गठबंधन 'I.N.D.I.A' का अभी तक दौर आसान रहा. दो महीनों में तीन बैठकों के बाद, विपक्ष ने 2024 में मोदी रथ का मुकाबला करने के लिए खुद को एक नाम, एक नारे और 14 सदस्यीय समन्वय समिति से लैस कर लिया है.
लेकिन, विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A के लिए असली चुनौती अब शुरू होगी, जब सीटों के बंटवारे को लेकर माथापच्ची होगी और तय किया जाएगा कि 543 लोकसभा सीटों पर बीजेपी के हर कैंडिडेट के सामने कौन सा उम्मीदवार उतारें, जो टक्कर दे सके.
उनके सामने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ना भी एक बड़ा चैलेंज है. पार्टियों ने घोषणा की कि वे अगले साल का लोकसभा चुनाव "जहां तक संभव होगा" साथ मिलकर लड़ेंगे.
दूसरे शब्दों में, ऐसा भी हो सकता है कि किसी क्षेत्र में दो या दो से अधिक I.N.D.I.A उम्मीदवार एक दूसरे के सामने भी उतर सकते हैं और वो बीजेपी के खिलाफ भी लड़ रहे होंं.
विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A के लिए सीट शेयरिंग कर बीजेपी के खिलाफ कोई एक उम्मीदवार उतारना भी चुनौती है.
मुंबई में एक परेशान करने वाली बात यह थी कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच तनाव देखने को मिला.
यह भी देखना बाकी है कि पहले विरोधी रह चुकीं पार्टियां, राजनीतिक हितों को साधते हुए अपना रास्ता कैसे बनाती हैं?
यह स्पष्ट है कि सीट-बंटवारे की बातचीत आगे बढ़ने पर पार्टियों के बीच तनाव और खींचतान देखने को मिलेगा. हालांकि, स्थानीय टेंशन को व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोण के साथ संतुलित करना होगा.
मुंबई बैठक के दौरान विरोध
पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, पंजाब और दिल्ली, इन पांच राज्यों में समस्याएं हैं. इन पांचों में लोकल नेता ज्यादा मजबूत हैं, जो कांग्रेस के पारंपरिक प्रतिद्वंदी रह चुके हैं.
यह भी देखना बाकी है कि पहले विरोधी रह चुकी पार्टियां, राजनीतिक हितों को साधते हुए बीजेपी के खिलाफ अपना रास्ता कैसे बनाती हैं, इससे पहले कि वह उन्हें निगल जाए.
मुंबई में एक परेशान करने वाली बात यह थी कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच टेंशन देखने को मिला. ममता बनर्जी के भतीजे और पार्टी उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी ने सम्मेलन के दूसरे दिन सुबह 6 बजे राहुल गांधी के साथ नाश्ते पर मुलाकात की. जाहिर है बैठक का उद्देश्य सीट-बंटवारे पर चर्चा शुरू करना था. बैठक के बाद जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक, उस मुलाकात में हुई बातचीत अच्छी नहीं रही. अभिषेक बनर्जी ने मांग की लेकिन राहुल गांधी तैयार नहीं हुए.
कांग्रेस पार्टी की हठधर्मिता से नाराज होकर, ममता बनर्जी एक दिन बाद हुई औपचारिक वार्ता में चिड़चिड़ी नजर आईं. उन्होंने "जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया" के नारे पर आपत्ति जताई. उन्होंने राजनीतिक प्रस्ताव में जाति जनगणना के संदर्भों को शामिल करने से इनकार कर दिया. हालांकि, समझौता हुआ. नारा तो अपनाया गया लेकिन कोई राजनीतिक समाधान नहीं निकला. शाम को संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले वह अपने भतीजे और पार्टी प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन के साथ कोलकाता के लिए रवाना हो गईं.
दिलचस्प बात यह रही कि अरविंद केजरीवाल, जिन्हें पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस के साथ सीट शेयर करने को लेकर समस्या है, इसके बावजूद वो वहां रुके रहे और उन्होंने एकता की मजबूत घोषणा के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया.
उनके अधिक नरम रवैये का एक कारण यह दबाव हो सकता है कि मोदी सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से दिल्ली में उनकी अधिकांश शक्तियां छीन ली हैं, जिसे हाल ही में संपन्न हुए मॉनसून सत्र में कानून में बदल दिया गया था.
अस्तित्व की लड़ाई
यूपी ऐसा राज्य है, जो विपक्षी गठबंधन के दलों के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है. अगर कांग्रेस, SP और RLD के नेता अपने अहंकार को अलग नहीं रखते और एक साथ आकर बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार नहीं होते हैं.
यह राज्य महत्वपूर्ण होगा क्योंकि यह लोकसभा में 80 सांसद भेजता है और यह बीजेपी का गढ़ है, जहां योगी आदित्यनाथ जैसे करिश्माई स्थानीय नेता हैं.
भाग्य से I.N.D.I.A. के दो अन्य प्रमुख राज्यों बिहार और महाराष्ट्र, जहां कुल मिलाकर 88 लोकसभा सीटें हैं, उनमें एक में विपक्षी गठबंधन पहले से ही मौजूद है. बस सीट शेयरिंग का अनुपात ठीक करने का मामला है.
यह स्पष्ट है कि सीट-बंटवारे की बातचीत आगे बढ़ने पर खींचतान और दबाव होगा. हालांकि, स्थानीय तनाव को व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोण के साथ संतुलित करना होगा. यदि बीजेपी तीसरे कार्यकाल के लिए लौटती है तो अधिकांश विपक्षी दलों पर खतरा मंडरा रहा है. नतीजतन, मोदी के खिलाफ लड़ाई अस्तित्व की लड़ाई है.
कैसे बीजेपी के कारण विपक्षी एकता सामने आई?
विडम्बना यह है कि बीजेपी अपने लगातार कटाक्षों और हमलों से केवल विपक्षी एकता की मदद करती दिख रही है. जैसे ही मुंबई में I.N.D.I.A की संयुक्त प्रेस वार्ता समाप्त हुई, और बीजेपी ने गठबंधन की आलोचना की और बैठक का मजाक उड़ाया, वैसे ही बीजेपी भक्त टीवी और सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी के मनमौजी व्यवहार और संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनकी अनुपस्थिति के बारे में ताने देने लगे.
बीजेपी की प्रतिक्रियाओं का I.N.D.I.A पर दोहरा प्रभाव पड़ा है. सबसे पहले, विपक्षी नेताओं को लग रहा है कि वे कुछ तो सही कर रहे हैं क्योंकि I.N.D.I.A गठबंधन बीजेपी को परेशान कर रहा है.
जैसा कि राहुल गांधी और लालू यादव ने मुंबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, बीजेपी को हराने के लिए एकता जरूरी है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सभी पार्टियां, जितना भी बलिदान देना होगा, देंगी.
मुंबई से यही संदेश मिला कि I.N.D.I.A. का कार्य अभी भी प्रगति पर है. विपक्षी गठबंधन के आकार लेने से पहले उन्हें चढ़ाई करनी है और बाधाओं से निपटना है.
(अराती आर जेरथ दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे @AratiJ पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपनियन है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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