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बहुत धारदार हैं तीखे बयान, काश इतना ही असरदार होता वैक्सीन प्लान

याद रखिए अभी तक कोई भी वैक्सीन 100 प्रतिशत प्रभावशाली नहीं है

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मुझे हैरत होती है उस लैब की दक्षता पर जहां हमारे शासक दल के प्रवक्ता तैयार किए जाते हैं. वहां तैयार होने वाले कटाक्षों में एक कमाल की निरंतरता है .भारत चाहे जिससे भी जूझ रहा हो -चाहे जानलेवा महामारी की त्रासदी हो या चांद पर उतरने का जश्न- उनका कटाक्ष 100% प्रभावशाली ही रहता है. काश वह लैब जहरीले कटाक्षों की जगह कोविड-19 के वैक्सीनों का उत्पादन करती .याद रखिए अभी तक कोई भी वैक्सीन 100 प्रतिशत प्रभावशाली नहीं है. इसलिए अपनी गुणवत्ता को वैक्सीन उत्पादन में भी बनाए रखकर उन्हें नाम कमाने का मौका मिलता.

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वैक्सीन की किल्लत में देशभक्ति का अवसर

अभी पिछली शाम ही ,उस लैब से पासआउट एक नायाब शख्स एक प्राइम टाइम न्यूज पर लंबा वक्तव्य दे रहा था. उसका हाव-भाव विलक्षण रूप से भयानक था, आंखों में अंगार थे ,नथुने फूल रहे थे और आवाज गुस्से के मारे आसमान छू रही थी.

प्रवक्ता: “ भारत में वैक्सीन की कोई कमी नहीं है. यह ट्वीट देखो ( अपना आईफोन लहराते हुए) .यह हॉस्पिटल लोगों को बुला रहा है क्योंकि उसके मात्र आधे वैक्सीन ही प्रयोग हुए हैं. वैक्सीन की कोई कमी नहीं है “.

न्यूज एंकर:( तर्क करते हुए)" आपको किसी एक उदाहरण को ऐसे जनरलाइज नहीं करना चाहिए. सच तो यह है कि हम हर रोज मात्र 20 लाख वैक्सीन का उत्पादन कर रहे हैं जबकि हमारी रोज की खपत 30 लाख वैक्सीन की है. इस तरह वैक्सीन की कमी तो होगी ही."

प्रवक्ता: “हर दिन 30 लाख लोग! आपको तो सरकार के इस उपलब्धि पर गर्व होना चाहिए. विश्व में दूसरे नंबर पर हर दिन सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन यहां हो रहा है. असल में एक करोड़ के आंकड़े को सबसे तेजी से छूने वाला देश भारत है. अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन और यूरोप से भी तेज.”

न्यूज एंकर:" सर यह तो गलत आत्मप्रशंसा है. आज ही हमारा वैक्सीनेशन का दर 50% से ज्यादा गिर गया. यह 26 लाख प्रतिदिन से 12 लाख प्रतिदिन पर आ गया. आपके यह आंकड़े गुमराह करने वाले हैं .अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के मुकाबले हमने मुश्किल से अपनी 10% जनसंख्या को वैक्सीन दी है, जबकि उन्होंने अपनी 50% जनसंख्या को....

प्रवक्ता: (अपने चिर परिचित अंदाज में बीच में बात काटते हुए)‘ आपको पता है हमारे देश की आबादी 100 करोड़ से ऊपर है? आपको पता है इतनी बड़ी जनसंख्या को कवर करना सरकार के लिए कितनी बड़ी चुनौती है? आप सब हर चीज को लेकर नेगेटिव हो. अपने देश में गर्व की जगह आप हर समय आलोचना करते हो.... यह दुर्भाग्य है कि इस मुश्किल घड़ी के बीच भी आप देशभक्त होने से इंकार कर रहे हो.”

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आह!!फिर से वही कहानी ,मैंने खुद से कहा. जब सारे तर्क खत्म हो जाए, देशभक्ति वाला कार्ड निकाल लो!

"आलोचकों, शर्म आनी चाहिए तुम्हें कि तुम भारत की उपलब्धि को कम करके आंक रहे हो".

मैं इंतजार में था कि प्रवक्ता देश में वैक्सीन की कमी के लिए जवाहरलाल नेहरू को लताड़े पर उससे पहले न्यूज एंकर को कमर्शियल ब्रेक लेना था.

"गुड डॉक्टर" का मोदी को संदेश

फिर समाचार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लिखे लेटर पर आ गया. उनका यह पत्र विशेष रूप से 'विनम्र', संभली हुई भाषा और 'रचनात्मक सहयोग' की भावना में लिखा हुआ था. उसमें सरकार के वैक्सीनेशन में विफलता को लेकर कोई तंज नहीं था. यह एक प्रधानमंत्री से दूसरे प्रधानमंत्री को गरिमा पूर्ण संदेश था. इसमें कुछ तर्कपूर्ण सलाह थी :

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  • वैक्सीन की सप्लाई लाइन पर पूरी स्पष्टता के लिए अगले 6 महीने तक फर्मों को दिए गये वैक्सीन डोज के आर्डर को जनता के सामने रखें.
  • 10% विवेकाधीन और इमरजेंसी प्रयोग के पाइपलाइन वैक्सीन को छोड़कर अन्य 90% वैक्सीन को कैसे बांटना है, उसके पारदर्शी फार्मूले को सरकार सामने रखे.
  • सरकार राज्यों को अपनी वरीयता के आधार पर लोगों की स्पेशल कैटेगरी तय करने का अधिकार दे. उन्होंने एक अच्छा उदाहरण देते हुए कहा कि 45 वर्ष से कम उम्र वाले शिक्षकों को वैक्सीन दिया जाए ताकि स्कूल और कॉलेज जल्दी से खुलें. या वकीलों और टैक्सी/ बस ड्राइवर को वरीयता दें.
  • सरकार वैक्सीन उत्पादकों को प्रोत्साहन, छूट और फंड उपलब्ध कराएं ताकि वे कम वक्त में उत्पादन दुगना कर सकें. इजराइल की तरह कंपलसरी लाइसेंसिंग को सरकार रद्द करे ताकि लोकल उत्पादक IPR विवादों में ना फंसे. उन्होंने HIV-AIDS का उदाहरण भी दिया.
  • उन्नत देशों में अप्रूव हो चुकी वैक्सिनों के 'लिमिटेड पीरियड' आयात को मंजूरी दी जाये, चाहे उनका प्रयोग अभी भारतीय वॉलिंटियर्स पर ना हुआ हो. कन्फर्मेट्री ट्रायल इसके साथ साथ अलग से किया जा सकता है.
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लेटर का अंत उन्होंने सरकार की हल्की आलोचना से की.” हमें इस संख्या को देखकर संतुष्ट नहीं होना है कि कितने लोगों को वैक्सीन लगी. हमारा ध्यान इस पर होना चाहिए कि जनसंख्या के कितने प्रतिशत को वैक्सीन लगी है. मैं जानता हूं कि सही पॉलिसी बनाकर हम और अच्छा और तेजी से काम कर सकते हैं .

शायद एक खुले विचारों वाली सरकार (शायद वाजपेयी जी वाली NDA 1) ऐसे "गुड डॉक्टर" को चाय पर आमंत्रित करती और राजनीतिक सहमति पर राजी होती. यानी " इस राष्ट्रीय आपातकाल से मिलकर संघर्ष करें"

मगर यह कपोल कल्पना है. वर्तमान व्यवस्था में कोई कोई टी-पार्टी नहीं हो सकती. मैंने मान लिया.

मनमोहन की चिट्ठी का सम्मान से भरा और दृढ़ जवाब ये होता-

" प्रिय डॉ. सिंह-लिखने के लिए धन्यवाद .हमें आपको बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारी सरकार ने कुछ जरूरी कदम उठाए हैं. आपने जो सुझाया है वो और उनसे भी ज्यादा. फिर भी मैं आपकी सलाह के लिए आपका धन्यवाद करता हूं.

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सादर आपका".

लेकिन अगर आप एक भी इंच राजनीति नहीं छोड़ना चाहते हैं तो आप उस लेटर को नजरअंदाज कर सकते थे .मानो लेटर मिला ही ना हो ,चुप्पी और फिर बात खत्म.

एक मंत्री का 100% प्रभावशाली कटाक्ष

अब आपको याद है कि मैंने शुरू में क्या कहा था ? उनका कटाक्ष 100% प्रभावशाली है. वैक्सीन की तरह वह आपके खून में उतरता है और इम्यून रिस्पांस को ट्रिगर करता है.

24 घंटे के अंदर कटाक्ष भरे लहजे में देश के स्वास्थ्य मंत्री ने लेटर का जवाब दिया:

  • " यह चौंकाने वाली बात है कि अभी तक एक भी वरिष्ठ कांग्रेस सदस्य ने हमारे वैज्ञानिकों और वैक्सीन निर्माणकर्ताओं के प्रति कोई भी आभार नहीं जताया है ....(आपकी) राज्य सरकारों ने वैक्सीन की क्षमता के बारे में झूठे प्रचार किए हैं, लोगों में वैक्सीन के प्रति शंका उत्पन्न की है और देशवासियों के जीवन से खिलवाड़ किया है."
  • " हालांकि यह लगता है कि जिसने भी आपका लेटर ड्राफ्ट किया है ( आउच ,मेरी प्रतिक्रिया) या सलाह दी है उसने आपको पहले से ही पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी के बारे में भरमाया है और आपका अपकार किया है".( फिर से आउच, क्योंकि इसका मतलब तो यह हुआ कि 'गुड डॉक्टर' के पास खुद का दिमाग या विवेक नहीं है!)

हर तरफ बस राजनीति ही राजनीति ,पर देने को वैक्सीन नहीं.

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