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पाक के खिलाफ माहौल में कुछ दिनों तक मीडिया से दूरी बना लें PM मोदी

भारत नफा-नुकसान के बारे में सोचकर पाकिस्तान से युद्ध नहीं करता. 

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देश में ऐसे लोगों की तादाद कम नहीं, जो अर्से से ये मानते आए हैं कि आतंकवाद को लेकर भारत जानबूझकर पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाता रहा है. साथ ही भारत में हिंसक घटनाएं होने पर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए.

यहां तक कि पाकिस्तानी आतंकवादियों के इन घटनाओं में शामिल होने के पुख्ता सबूत होने बावजूद, मसलन मुंबई हमले के बाद खुद पाकिस्तान सरकार ने ये माना कि उनके देश के आतंकवादी संगठनों का इसमें हाथ है, भारत ने बदले की कोई कार्रवाई नहीं की. ऐसा न करके देश के हुक्मरानों ने भारी भूल की है. देश में ऐसे तमाम लोग हैं, जो मानते हैं कि सीमा पार बैठे इन आतंकवादियों के खिलाफ पाकिस्तान ने कभी कड़ी कार्रवाई नहीं की.

ये लोग मानते हैं कि इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान के खिलाफ जानबूझकर कार्रवाई नहीं करना भारत के कायराना रुख को दिखाता है, जबकि बदले की कार्रवाई करने का रास्ता हमेशा खुला रहा है.

नफा-नुकसान सोचकर रुक जाता है भारत

देश पर जब-जब आतंकवादी हमले होते हैं, भारत सरकार हर वक्त ‘रणनीतिक संयम’ के नाम पर जंग टालती रही है. भारत सोच-समझकर हर बार खून का घूंट पीकर संकट को बढ़ने से रोकता रहा है. इसके पीछे जंग से होने वाले नफे-नुकसान को लेकर गहरी सोच मानी जाती है. इसी सोच ने 2001 में जैश-ए-मोहम्मद के संसद हमले के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और 2008 में लश्कर-ए-तैयबा के मुंबई हमले के वक्त मनमोहन सिंह को पाकिस्तान से जंग करने से रोक दिया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी पाक के खिलाफ बड़े एक्शन के पैरोकार रहे हैं. उरी में आतंकवादी हमले के बाद मोदी बदले की कार्रवाई के अपने वादे से या तो पीछे हटते नजर आ रहे हैं या ऐसा करने से हिचक रहे हैं. इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं. शायद इसके पीछे वो वजहें हैं, जिनके बारे में वो सत्ता में आने के पहले न जानते हों.

वजह चाहे जो हो, मोदी अब अपने उन समर्थकों के निशाने पर आ चुके हैं, जिन्हें ये यकीन था कि मोदी अपने वादे पर खरे उतरेंगे. न्यूज वेबसाइट्स पर उनके समर्थकों के कमेंट्स से अपने प्रिय नेता को लेकर उनके गुस्से का अंदाजा लगाया जा सकता है. इन कमेंट्स में ज्यादातर लिख रहे हैं कि मोदी की कथनी और करनी में फर्क है.

लेकिन वेबसाइट्स पर टीका-टिप्पणियां कर रहे ये लोग शायद वो जानकारी नहीं रखते, जो मोदी के पास है. जंग के नफा-नुकसान को लेकर तीनों सेनाओं, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, वित्त मंत्रालय का विश्लेषण, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके असर को लेकर विदेश मंत्रालय के नजरिया और देश की आंतरिक स्थिति को लेकर गृह मंत्रालय और इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स – भारत के सामने क्या विकल्प हैं, जंग हुई, तो उसकी क्या कीमत चुकानी पड़ेगी, उसके नतीजे क्या होंगे और फायदा कितना होगा, ये सब वो असुविधाजनक बातें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.

मीडिया से दूर रहें मोदी

इस सबको देखते हुए मोदी को कम से कम एक काम जरूर करना होगा और वो है, जितना हो सके मीडिया को नजरअंदाज किया जाए. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. जैसा कि मैंने कहा, जितनी जानकारी उनके पास हैं, हमारे पास नहीं है, फिर भी हम नसीहतें दे रहे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और किस दिशा में जाना चाहिए. कई मामलों में तो उनके खिलाफ खराब भाषा का भी इस्तेमाल हो रहा है. हममें से कई तो अकड़ में खुद को राष्ट्रहित का सबसे बड़ा रक्षक साबित करने में जुटे हैं, जबकि हकीकत ये है कि मीडिया को सिर्फ अपनी रेटिंग से ज्यादा फिक्र किसी चीज की नहीं. हालांकि हमारा दावा देशभक्ति है. कई टीवी एंकरों की आक्रामकता तो सिर्फ इसलिए है, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके दर्शकों को यही भाता है.

ऐसा नहीं कि इन एंकरों को ये सब पता नहीं. लेकिन देश जानना चाहता है कि ये लोग युद्ध पर उसी तरह डिबेट करते हैं, जैसे एक सोशलाइट के अपनी बेटी के कत्ल की खबर. सरकार को इन लोगों को गंभीरत से नहीं चाहिए और मुझे यकीन है कि सरकार ऐसा कर भी रही है. दूसरी चीज, मोदी को सोशल मीडिया को नजरअंदाज करना होगा. खुद मोदी सोशल मीडिया के चैंपियन रहे हैं. ट्विटर पर उन्हें दो करोड़ से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं. मोदी ने अपने हक में सोशल मीडिया का बेहद कुशलता से इस्तेमाल किया है.

वो मानते हैं कि परंपरागत मीडिया ने उनके खिलाफ जो माहौल बनाया था, उसे बदलने में सोशल मीडिया ने काफी अहम रोल निभाया है. लेकिन अब उन्हें इस प्लेटफॉर्म पर अपने चाहने वालों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. ये लोग उनके पाकिस्तानी विरोधी बयानों को पोस्ट कर रहे हैं.

मोदी ने उरी हमले पर अपनी शुरुआती प्रतिक्रिया के बाद 2-3 दिन तक ट्विटर पर खामोशी ओढ़े रखी. फिलहाल कुछ और वक्त तक वे ऐसा कर सकते हैं. अंत में सोशल मीडिया पर नाराजगी के ये बादल धीरे-धीरे छंट जाएंगे. सोशल मीडिया और मीडिया की प्रतिक्रिया का कोई गंभीर नतीजा होगा, ये सोचना नासमझी होगी.

जिस संस्था के लिए मैं काम करता हूं, कुछ हफ्ते पहले तक वो खबरों में थी और उस पर ‘देशद्रोही’ होने का आरोप लगाया जा रहा था. चैनल जब ये खबर आक्रामक तरीके चला रहे थे, उन दिनों मैं विदेश में था. मेरे पिता मुझे लेकर चितिंत थे और परेशान होकर उन्होंने मुझे फोन किया. मैंने उन्हें समझाया कि जो टीवी सेट पर दिख रहा है, हकीकत उससे बिल्कुल जुदा है. मैंने कहा कि कुछ दिन के लिए टीवी स्विच ऑफ कर दीजिए. मैं मोदीजी को भी यही सलाह दूंगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और Amnesty International India में कार्यकारी निदेशक हैं. ट्विवर हैंडल- @aakar_amnesty)

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