हर आधुनिक राष्ट्र का लक्ष्य होता है अपने नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना. इसका सबसे बड़ा हिस्सा है उनके आर्थिक जीवन में सुधार, यानी उनकी पहुंच पर्याप्त वस्तुओं एवं सेवाओं तक है या नहीं. इसलिए आधुनिक राष्ट्र नियमित अंतराल पर अर्थव्यवस्था की स्थिति को मापने का तरीका खोजते हैं ताकि यह आकलन किया जा सके कि सुधार हुआ भी है या नहीं. ऐसी ही एक माप है GDP ,जो अब हमारे आम बोल-चाल की भाषा का अंग बन चुकी है.यह एक उपयोगी टूल है जिससे अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन ,उससे हुई कमाई का स्तर मापने के साथ-साथ इससे यह भी आकलन किया जा सकता है कि खपत,बचत और निवेश कितना हुआ.
लेटेस्ट आंकड़ों पर बहुत राजनीति नहीं हुई
GDP अर्थव्यवस्था के ग्रोथ या 'विकास' का आधारभूत माप भी है.उच्च GDP वृद्धि दर से हमें सुकून मिलता है,मानो हम 'अच्छे दिनों' में जी रहे हों. अगर GDP के आंकड़े खराब हो तो इसका हमारी भावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यह इसके साथ-साथ राजनीतिक दलों के लिए जंग का मैदान भी है.
आश्चर्यजनक रूप से मोदी सरकार द्वारा सोमवार, 31 जून को जारी लेटेस्ट GDP डेटा पर बहुत अधिक राजनीति नहीं हुई .इसका एक कारण यह भी है कि सभी को खराब आंकड़ों की उम्मीद थी. दूसरा कि आंकड़े इतने बुरे भी नहीं थे जितना विपक्षी दलों ने पसंद किया होता.
इस साल के आंकड़ों की तुलना पिछले साल से करना उचित क्यों नहीं?
भारत की GDP पिछले वित्तीय वर्ष में 7.3% से नीचे गिर गई .यह ब्लूमबर्ग 'पोल ऑफ इकोनॉमिस्ट' के अनुमान (-7.5% )से थोड़ी बेहतर थी. इन्हीं अर्थशास्त्रियों ने वर्ष 2021 के पहले 3 महीने के लिए 1% की वृद्धि का अनुमान लगाया था: सरकार के डेटा के मुताबिक इस तिमाही में वास्तविक GDP ग्रोथ 1.6% रही. साथ ही इनके द्वारा अनुमान किया गया था कि ग्रॉस वैल्यू एडिशन(GVA) में जनवरी से मार्च के बीच 2.6% का ग्रोथ देखने को मिलेगा, जबकि सरकारी डेटा के मुताबिक GVA में ग्रोथ 3.7% का रहा. यह खबर अच्छी नहीं है, लेकिन कम से कम अधिकतर अर्थशास्त्रियों ने जितना अनुमान लगाया था उसके मुकाबले बेहतर है.
मुश्किल यह है कि यहां पर इस साल के डेटा की तुलना पिछले साल के डेटा से करना शायद उचित नहीं होगा. पिछले साल हमें बताया गया कि मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह में लगे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का प्रभाव वित्त वर्ष 2019-20 के अंतिम तिमाही के GDP आंकड़ों पर पड़ा.
हाउसहोल्ड की खपत के आंकड़े से यह स्पष्ट है कि यह तुलना गलत क्यों है. ऐसी खपत के लिए तकनीकी टर्म- प्राइवेट फाइनल कंजप्शन एक्सपेंडिचर (PFCE) है.2020 के पहले 3 महीनों में PFCE का आंकड़ा उससे पहले के 3 महीनों की अपेक्षा नीचे गिर गया था.
2021 की शुरुआत में हाउसहोल्ड खपत में वृद्धि: रिकवरी का यह संकेत भ्रामक है
2019-20 की तीसरी तिमाही में जहां हाउसहोल्ड खपत 21.73 लाख करोड़ रही, वही चौथी तिमाही के अंत में लॉकडाउन के कारण यह कम होकर 21.04 लाख करोड़ हो गई. वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में हाउसहोल्ड खपत मात्र 21.60 लाख करोड़ पर ही अटकी हुई है,जबकि इस पीरियड में अधिकतर भारतीयों को लगा था कि हमने कोविड-19 को हरा दिया है.
दूसरे शब्दों में कहें तो 2021 के शुरुआती 3 महीनों के हाउसहोल्ड खपत में वृद्धि रिकवरी का भ्रामक संकेत है .वास्तविकता में यह अभी भी 2019 के अंतिम 3 महीनों की अपेक्षा कम है.
हाउसहोल्ड खपत में यह कमी विशेष रूप से तब चिंताजनक है जब हम इसकी तुलना फैक्ट्री उत्पादन में वृद्धि से करते हैं. 2020-21 की चौथी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में GVA उसके पिछले वर्ष के इसी पीरियड की अपेक्षा 6.9% बढ़ा है.मार्च 2020 के आखिरी कुछ दिनों में फैक्ट्रियां बंद थीं, इसलिए इस वृद्धि को भी एडजस्ट करना पड़ेगा. लेकिन 2019 के अंतिम 3 महीनों की अपेक्षा 2020-21 के Q4 के मैन्युफैक्चरिंग GVA में 15% से भी ज्यादा की वृद्धि हुई है.
बेशक फैक्ट्री उत्पादन में मौसम के अनुसार परिवर्तन होता है और विभिन्न तिमाहियों की तुलना सीधे नहीं की जा सकती है.
सरकार ने खुद का खपत बढ़ा लिया:यह खतरे का संकेत क्यों है?
यह तथ्य गंभीर है कि 2019-20 की तीसरी तिमाही और 2020-21 की चौथी तिमाही के बीच हाउसहोल्ड खपत में तो लगभग 1% की गिरावट हुई है,जबकि फैक्ट्री उत्पादन में 15% की वृद्धि हो गई.
इससे पता चलता है कि उत्पादन आंशिक रूप से कायम रहा क्योंकि सरकार ने अपनी खपत बढ़ाकर इसको बैलेंस किया है. स्पष्ट रूप से यही हुआ है क्योंकि सरकार का फाइनल कंजप्शन एक्सपेंडिचर(GFCE) वित्त वर्ष 20-21 की चौथी तिमाही में वित्त वर्ष 19-20 के इसी पीरियड की अपेक्षा 28% से अधिक बढ़ गया है.
दूसरी बात कि उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियों का तो विस्तार नहीं हुआ लेकिन मशीनों और उपकरणों का उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियों का हुआ. इसका भी कारण रहा ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉरमेशन(GFCF) में 11% की वृद्धि.पिछले साल के इसी अवधि की तुलना में इन्वेंटरी और स्टॉक में भी 12% से अधिक की वृद्धि हुई है.यह आने वाले तिमाहियों में एक समस्या के रूप में दिखाई दे सकता है.खासकर जब से वित्त वर्ष 21-22 की पहली तिमाही के 2 महीने कोविड की दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
रिकवरी अभी दूर है
यदि भारत की अर्थव्यवस्था को सरकारी खपत के लिए उत्पादन, पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन और इन्वेंटरी को बढ़ाकर बनाए रखा गया है तो इसका मतलब हुआ कि यह हाउसहोल्ड खपत को नजरअंदाज करके किया गया है. हाउसहोल्ड खपत को बढ़ाने में अब काफी समय लगेगा.
CMIE का लेटेस्ट आंकड़ा दिखाता है कि शहरी बेरोजगारी बहुत अधिक है. कंज्यूमर सेंटीमेंट का डेटा गहरे निराशावाद का संकेत देता है.दूसरी लहर के डरावने अनुभव से बाहर आते परिवार पहले से ही भारत में कोविड की संभावित तीसरी लहर की तैयारी कर रहे हैं. खपत मांग में तेजी से सुधार के लिए ये अच्छे संकेत नहीं है.
इस परिदृश्य में यदि कॉरपोरेट्स ने अधिक उत्पादन किया है, मशीनों और उपकरणों को खरीदा है ,मालों का स्टॉक जमा किया है तो हमें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी निरंतर सुधार की जगह अचानक गिरावट देखने को मिल सकता है.
आगे का रास्ता
कई लोगों के साथ-साथ इस लेखक ने यह तर्क लगातार दिया कि इसका एकमात्र तरीका है -सरकार लोगों के हाथ में पैसा सौंपकर खपत को प्रोत्साहित करें. यह वह ऑक्सीजन है जिसकी भारत की कोविड प्रभावित अर्थव्यवस्था को अभी सख्त जरूरत है.
एक सुनियोजित और व्यापक आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज का स्टेरॉयड भी आगे लगना चाहिए. अन्यथा हम खपत में मंदी भरा एक और साल देखेंगे, चाहे हमारा GDP आंकड़ा कुछ भी कहे.
(लेखक एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफिट के सीनियर मैनेजिंग एडिटर थे।.वह इन दिनों स्वतंत्र तौर पर यूट्यूब चैनल 'देसी डेमोक्रेसी 'चला रहे हैं.उनका ट्विटर हैंडल है @AunindyoC. यह एक ओपनियन लेख है.ये लेखक के निजी विचार हैं.क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)
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