ADVERTISEMENTREMOVE AD

GDP में ये ‘खेल’ किया तो हिंदू सम्राट मुगल शासकों को पटक देंगे !

पिछले इकनॉमिक डेटा से छेड़छाड़ करने में अपनी राजनीतिक पूंजी खर्च न करे सरकार

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

कौटिल्य (यानी चाणक्य और विष्णुगुप्त) ने 5000 ईसा पूर्व के अपने बेस्टसेलर अर्थशास्त्र (द साइंस ऑफ गवर्नेंस यानी सुशासन का विज्ञान) के 2014 में पुनः प्रकाशित अंक को उत्साहित होकर हाथों में उठाया. आज वह इसकी एक प्रति सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य को भेंट करेंगे और उन्हें यह खुशखबरी देकर अभिभूत कर देंगे कि उनके राजनीतिक शत्रु यूपीए का पूरी तरह सफाया हो गया है. यूपीए की आखिरी उपलब्धि यह थी कि उसने अपने शासन काल के दौरान कहीं तेज जीडीपी ग्रोथ हासिल की थी. अतुल्य कौटिल्य ने उसे भी ध्वस्त कर दिया है.

वह अपनी लाल बत्ती वाली कार में बैठते हैं, जो उन्हीं के नाम पर रखे गए कौटिल्य मार्ग पर खड़ी है. कार का मुंह लोक कल्याण मार्ग की तरफ है, जहां सम्राट का आवास है. कौटिल्य बहुत हल्का महसूस कर रहे हैं और वह उम्मीदों से भरे हुए हैं.

लेकिन सम्राट के आवास पर पहुंचते ही कौटिल्य देखते हैं कि वह बेचैनी के साथ टहल रहे हैं. वह खीझे हुए हैं. कुछ गुस्से में भी हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चंद्रगुप्तः मैंने खबर पढ़ी. ये जीडीपी की सेंधमारी आपने कैसे की, जरा मुझे भी बताइए?

कौटिल्य (कुछ अनिश्चित दिखते हैं): महाराज, मैंने इसके लिए तक्षशिला विश्वविद्यालय के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पाठ्यक्रम (कोर्स) की मदद ली, जिसे मैं वहां पढ़ाता था. इसके लिए मैंने अतीत के आंकड़ों पर आर्टिफिशियल (कृत्रिम या बनावटी)... माफ कीजिएगा, नए डेटा की पूरी परत चढ़ा दी.

चंद्रगुप्तः आप मुझे जल्दी इसकी मुख्य बातों की जानकारी दें.

कौटिल्य (उनके माथे पर पसीने की कुछ बूंदें दिख रही हैं): महोदय,मैंने गणना (कैलकुलेशन) के लिए आंकड़ों का आधार बदला. पुरानी गणना में नए मोबाइल ग्राहकों की संख्या का इस्तेमाल होता था. उसकी जगह मैंने गणना के लिए इसे आधार बनाया कि उन्होंने कितनी देर बात की थी और उन्होंने कितने डेटा की खपत की. पहले हर फैक्टरी में जितनी मोटरसाइकिलें बनती थीं, उनकी संख्या का इस्तेमाल होता था. मैंने इसे बदलकर मोटरसाइकिल की कीमत को आधार बनाया. मैंने असंगठित क्षेत्र और वित्तीय बिजनेस का वेटेज बदल दिया, जिससे हमारे जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान कम हो गया. मैंने कुछ और चतुराई दिखाई और तीर बिल्कुल निशाने पर लगा! अब वे (यूपीए) हमसे करीब एक प्रतिशत पीछे चले गए हैं. मैंने 2010-11 में दोहरे अंकों की उनकी जीडीपी ग्रोथ के दावे को भी धोकर रख दिया है. बदकिस्मती से इससे हमारे प्यारे भारतवर्ष को भी नुकसान हुआ है. मुझे लगता है कि हमें मान लेना चाहिए कि भारत के लिए 8 प्रतिशत से अधिक ग्रोथ हासिल करना असंभव है. हे,हे, हे (वह घबराहट के साथ खिलखिलाते हैं)...

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चंद्रगुप्त: चुप रहिए! यह बताइए कि क्या आप हमारी अति-महत्वाकांक्षी योजना के बारे में भूल गए हैं? यूपीए को परास्त करना तो हमारी इस योजना का बहुत छोटा हिस्सा था.

कौटिल्य (अब चिंतित और भ्रमित दिख रहे हैं): महाराज, माफ कीजिएगा, कौन सी अति-महत्वाकांक्षी योजना? मैं आपकी बात समझ नहीं पा रहा हूं...

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चंद्रगुप्त (आक्रोश में दिख रहे हैं): हमारी अति-महत्वाकांक्षी योजना,मित्र! हमें इस जीडीपी सीरीज के हिसाब से 5561 ईसा पूर्व तक यानी 7,500 वर्ष से भी पहले के आंकड़े भी बदलने पड़ेंगे ताकि यह साबित किया जा सके कि महाभारत और हिंदू राजाओं के शासन काल में आर्थिक विकास दर मुगलों की तुलना में ज्यादा, कहीं ज्यादा थी. यह अच्छी बात है कि यूपीए को परास्त करने के लिए हमने 2005 तक के आंकड़ों में बदलाव किया है, लेकिन हमारा वास्तविक उद्देश्य 80 सदियों तक के आंकड़ों में बदलाव करना है ताकि हमेशा के लिए बाबर की औलाद (बाबर द्वारा स्थापित किया गया मुगल साम्राज्य) के दावे नेस्तोनाबूद हो जाएं. कौटिल्य,आपके नए तरीके से यह काम हो सकता है, आप साबित करके दिखाइए... वर्ना (खतरे की चेतावनी देती चंद्रगुप्त की आवाज धीरे-धीरे गुम हो जाती है)

कौटिल्य (घबराहट छिपाने के लिए गहरी सांस लेते हुए): सम्राट,आप चिंता न करें. मैंने उसकी भी व्यवस्था कर ली है. अगर आप अनुमति दें तो मैं एक-एक करके इस बारे में बताना चाहूंगा:

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दूरसंचारः हमें तो पता है कि कि हाई स्पीड इंटरनेट का प्रयोग महाभारत युग में होता था, लेकिन नासमझ मलेच्छों ने इसकी जगह मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर के जमाने में कबूतरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया था. इसलिए इस मामले में हम तो आसानी से जीत जाएंगे.

मोटरसाइकिलः महाभारत युग में पांडवों के रथ में लेजर और परमाणु हथियार लगे हुए थे. दूसरी तरफ, मुगल गंदे और धीरे-धीरे चलने वाले हाथियों की सवारी करते थे. इसलिए यहां भी जीत पक्की समझिए.

वित्तीय क्षेत्रः महाभारत काल में सामानों की अदला-बदली के जरिये व्यापार होता था. उस युग में मुद्रा का लेन-देन नहीं होता था. इसलिए महंगाई बढ़ने का खतरा भी नहीं था. वहीं, मुगलों ने मुद्रा का इस्तेमाल शुरू किया. इसलिए मैं महाभारत काल के लिए शून्य ‘इन्फ्लेशन डिफ्लेटर’ का इस्तेमाल करूंगा. चिंतित होने की कोई बात ही नहीं है, इस मामले में भी हमारी जीत सुनिश्चित है.

असंगठित क्षेत्रः हिंदू कारीगरों की जगह मुगलों के जमाने में मुसलमानों ने ले ली थी. मुसलमान तो दिन में पांच वक्त रोजा पढ़ते हैं और उस दौरान कार्य नहीं करते. मैं इस आधार पर कहूंगा कि महाभारत युग के हिंदू कारीगर उनसे अधिक उत्पादन करते थे. लीजिए, मिल गई न हमें जीत.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कौटिल्य (अपनी बात जारी रखते हुए): आप आश्वस्त रहिए. जिस तरीके से हमने यूपीए के रिकॉर्ड को धराशायी किया है, उसमें बिना कोई बदलाव किए मैं साबित कर दूंगा कि हिंदू राज में जीडीपी ग्रोथ मुगलों के मुकाबले कहीं ज्यादा तेज थी...

चंद्रगुप्त (अब मुस्कुरा रहे हैं): कौटिल्य आप धन्य हैं. आप मेरे अस्त्र हैं. आप अनमोल हैं.

आर्थिक तरक्की के साथ नए इकनॉमिक वेरिएबल बनते हैं

मैंने ऊपर व्यंग्य का सहारा इसलिए लिया है ताकि इस मुद्दे की संजीदगी को आपके सामने रख सकूं. मैंने विषय की गंभीरता कम करने के लिए ऐसा नहीं किया है. जिस तरह से नई तकनीक, वैश्विक व्यापार के नए नियम, सोशल मोबिलिटी और इनकम ग्रोथ देशों की अर्थव्यवस्था को बदलती है, उसी हिसाब से अलग-अलग वेरिएबल की अहमियत भी बदलती है.

मिसाल के लिए,100 डॉलर से कम प्रति व्यक्ति आय वाले कृषि प्रधान समाज में लोग मोटा अनाज खाएंगे. जैसे-जैसे देश और नागरिक अमीर होते हैं (1,500 डॉलर से अधिक प्रति व्यक्ति आय), वे ज्यादा फल, दूध और मीट खाने लगते हैं. तब आपको फूड इन्फ्लेशन यानी खाने के सामान की महंगाई दर की खातिर इन चीजों को अधिक वेटेज देना होगा.

इसी तरह, साल 2005 में नए टेलीकॉम सब्सक्राइबर को 10,000 रुपये में हैंडसेट मिल जाता था, लेकिन वॉयस और डेटा पर उसे हर महीने कहीं ज्यादा यानी 2,000 रुपये खर्च करने पड़ते थे. इसलिए इकनॉमिक आउटपुट का यह कहीं सटीक प्रतिनिधित्व करता था. उस वक्त डेटा कंजम्पशन की बात करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि तब आईफोन, यूट्यूब वीडियो या फेसबुक की मौजूदगी न के बराबर थी.

लेकिन आज साल 2018 यानी रिलायंस जियो के युग में हैंडसेट और वॉयस कॉल मुफ्त में मिल रहे हैं और बहुत कम कीमत में आपके पास गीगाबाइट्स डेटा अवेलेबल हैं. इसलिए अब आर्थिक पैमाना मिनट या घंटे के हिसाब से डेटा कंजम्पशन में स्विच हो जाना चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
जिस तरह से 2005 में एक नया टेलीकॉम सब्सक्राइबर सही पैमाना था, उसी तरह से डेटा कंजम्पशन आज सही मानक है. अगर आप टेलीकॉम जीडीपी का पता लगाने के लिए 2005 में डेटा कंजम्पशन को आधार बनाएंगे तो वह गलत होगा. इससे 2018 की तुलना में 2005 की जो तस्वीर मिलेगी, वह सही नहीं होगी. मोदी सरकार ने यूपीए के कार्यकाल में जीडीपी ग्रोथ कम दिखाने के लिए इस पैमाने (और ऐसे ही ना जाने कितने और बदलाव) का इस्तेमाल किया है, वह गलत है और उससे कई सवाल खड़े होते हैं.

कंपनियों के मुनाफे, निवेश, टैक्स कलेक्शन, लोन, एक्सपोर्ट ग्रोथ के आधार पर भी बैक सीरीज के डेटा गलत दिख रहे हैं. अगर इन पैमानों पर देखें तो मनमोहन सरकार के दौरान जीडीपी ग्रोथ मोदी सरकार की तुलना में कहीं ज्यादा तेज थी. इन पक्के सबूतों को सिर के बल खड़ा करना ठीक नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रधानमंत्री जी, इस पर पीछे हट जाएं तो अच्छा होगा!

वैसे भी, जीडीपी नागरिकों की आर्थिक हैसियत मापने का सही तरीका नहीं है. इसलिए डेटा में इस हेराफेरी से कुछ हाथ नहीं लगेगा क्योंकि इसमें हमेशा ‘ज्यादा’ पर जोर होता है, न कि ‘बेहतर’ पर.

अगर अस्पताल में ज्यादा मरीजों की मौत हो जाए तो जीडीपी बढ़ जाता है. वहीं, अगर सभी लोग सेहतमंद हों और कभी डॉक्टर के पास न जाएं तो जीडीपी में गिरावट आती है. अगर किसी कार में ज्यादा पेट्रोल की खपत होती है और वह ज्यादा प्रदूषण फैलाती है तो जीडीपी बढ़ता है, लेकिन इंजन एफिशिएंट हो तो इसमें कमी आती है. अगर एजुकेशन सिस्टम भयानक हो और हर छात्र को प्राइवेट ट्यूशन की जरूरत पड़े तो जीडीपी बढ़ता है. यह सही तरीका नहीं है.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रधानमंत्री को इतिहास बदलना पसंद है. हालांकि, पिछले इकनॉमिक डेटा से छेड़छाड़ करने में वह अपनी राजनीतिक पूंजी न खर्च करें, जो वैसे भी दिनोंदिन कम हो रही है. ऐसे खेल से बहुत हुआ तो कुछ लोग उनकी वाहवाही करेंगे, लेकिन वे इससे आंदोलन कर रहे किसानों और बेरोजगार युवाओं को प्रभावित नहीं कर पाएंगे. साथ ही, इससे देश के राजनीतिक लोकतंत्र का एक और सम्मानित संस्थान मटियामेट हो जाएगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×