भारतीय सेना ने इस सप्ताह 89 सोशल मीडिया ऐप पर पाबंदी लगाने का ऐलान किया, ऐसा साइबर प्लेटफॉर्म पर लगातार जारी जासूसी और इससे जुड़ी दूसरी गतिविधियों की वजह से किया गया. भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने क्विंट के लिए मुझसे बातचीत में इसकी पुष्टि की है.
भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया, ‘हमें नुकसान पहुंचाया जा रहा है. इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि दुश्मन हमारी सेना के जवानों और अधिकारियों की प्रोफाइल पर नजर रख रहे हैं. इसकी भी पुष्टि हो चुकी है कि वो उनके मोबाइल फोन और कंप्यूटर तक पहुंचने में कामयाब हो रहे हैं. सोशल मीडिया प्रोफाइल के जरिए हमारे कुछ लोगों को हनी-ट्रैप किया गया. सोशल मीडिया के माध्यम से जासूसी में बहुत तेजी आई है’.
सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाने के इस फैसले की घोषणा (अनाधिकारिक तौर पर) 8 जुलाई को की गई, लेकिन ये निर्देश एक आंतरिक नोट के जरिए दिया गया था – जो कि मुझे जून के पहले हफ्ते में मिल गई थी – जिसकी योजना पिछले चार महीने से जारी थी. ‘प्रतिबंधित वेबसाइट्स’ पर ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए विनियामक उपाय' नाम से जारी इस नोट में लिखा था:
‘दुश्मन की खुफिया एजेंसियों के हमलों में बेतहाशा बढ़ोतरी और मौजूदा सुरक्षा खामियों को देखते हुए, सैन्यकर्मियों के फेसबुक अकाउंट इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगा दी गई है. इसलिए सभी अकाउंट को 1 जून 2020 तक डिलीट करने की जरूरत है, डिएक्टिवेट रखकर छोड़ना काफी नहीं होगा.
नोट में आगे सभी प्रतिबंधित साइट्स की जानकारियां थीं और नियमों की अनदेखी कर सोशल मीडिया पर बने रहने वालों के खिलाफ होने वाली संभावित कार्रवाईयों के बारे में लिखा था.
भारतीय सेना ने फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे ऐप पर पाबंदी लगाई – पहले, नौसेना ने ऐसा किया था. बताते हैं क्यों
प्रतिबंधित सोशल मीडिया ऐप में फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिकटॉक के अलावा डेली हंट और न्यूज डॉग जैसे न्यूज ऐप पर भी शामिल हैं. भारतीय सेना का ये फैसला भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और IT मंत्रालय के उस निर्णय के कुछ ही दिनों बाद आया है जिसमें 59 चीनी मोबाइल ऐप को बैन कर दिया गया, जो कि उनके मुताबिक, ‘भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की रक्षा, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए पूर्वाग्रह पूर्ण थे’.
जब उनसे अचानक इतने सारे ऐप को बैन किए जाने के बारे में पूछा गया, तो भारतीय सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने क्विंट के लिए बातचीत में मुझे बताया: ‘सोशल मीडिया ऐप की सूचना सुरक्षा संबंधी चिंताएं लंबे समय से हमारे विशेषज्ञों की जांच के दायरे में थी. यह मानने के लिए हमारे पास पर्याप्त सबूत हैं कि कुछ कमजोरियों का हमारे दुश्मन फायदा उठा रहे हैं. हम ऐसे उपाय जारी रखेंगे जो हमारे जवानों, सामग्रियों और सूचनाओं की रक्षा के लिए आवश्यक माने जाते हैं.’
भारतीय नौसेना ने, फरवरी 2020 की शुरुआत में, 85 सोशल मीडिया साइट को बैन कर दिया था, जिसमें फेसबुक, ट्विटर, टिकटॉक के अलावा यूट्यूब, सिग्नल और टेलीग्राम भी शामिल था.
इसके अलावा नौसेना ने युद्धपोतों के साथ देश के सभी नौसेना परिसरों में स्मार्टफोन के उपयोग पर भी पाबंदी लगा दी थी. भारतीय नौसेना का ये फैसला राष्ट्रव्यापी छापेमारी में गिरफ्तार सात सेवारत कर्मियों की गिरफ्तारी के बाद आया, जो पाकिस्तान के लिए जासूसी गतिविधियों में संलिप्त पाए गए थे. हिरासत में लिए गए ये नाविक मुंबई, कारवार और विशाखापत्तनम में तैनात थे, जब यह पता चला कि वो सोशल मीडिया साइट्स के जरिए हनी-ट्रैप कर लिए गए थे, और लगातार पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों से अहम जानकारियां साझा कर रहे थे.
जहां भारतीय सेना में सोशल मीडिया ऐप के इस्तेमाल को लेकर पिछले एक दशक से बहस जारी है, हाल में सोशल मीडिया के जरिए जासूसी की कई घटनाएं सामने के बाद आखिरकार फैसला ले ही लिया गया. जासूसी की इन घटनाओं की चेतावनी मिलिट्री इंटेलिजेंस और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने पहले ही दे दी थी.
- फेसबुक समेत 89 सोशल मीडिया ऐप्स बैन करने का भारतीय सेना का ये फैसला सरकार के उस फैसले के कुछ ही दिनों बाद आया जिसमें 59 चीनी मोबाइल ऐप्स पर पाबंदी लगा दी गई थी.
- सोशल मीडिया के जरिए जासूसी की इन घटनाओं की चेतावनी मिलिट्री इंटेलिजेंस और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने पहले ही दे दी थी.
- मई 2019 में, इनफ्रेंट्री बटालियन में तैनात भारतीय सेना के 26 साल के एक क्लर्क को मध्य प्रदेश के महू से गिरफ्तार किया गया था, जिसे पाकिस्तान की एक खुफिया एजेंसी ने हनी-ट्रैप कर लिया था.
- नवंबर 2019 में, भारतीय सेना के दो जवानों को राजस्थान के पोखरण जाते हुए जोधपुर से गिरफ्तार किया गया था, पता चला कि दोनों कई सारे सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए पाकिस्तानी महिला एजेंटों के साथ सामरिक जानकारी साझा कर रहे थे.
- गलवान घाटी में टकराव के बाद पाकिस्तानी ISI एजेंटों की गतिविधि तेज हो गई है, जो कि भारतीय पत्रकारों, सेना के जवानों और दूसरे लोगों से लद्दाख में भारतीय सेना की तैनाती और नई दिल्ली की संभावित कार्रवाईयों की जानकारी मांग रहे हैं.
- सुरक्षा से जुड़े खतरा पैदा करने वाले वेबसाइट्स और ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना नुकसान और सूचना के रिसाव को रोकने के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम हो सकता है, लेकिन इसका मुकाबला करने के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है.
पाकिस्तानी जासूसी का खतरा
31 मई 2020 को, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने नई दिल्ली में करोल बाग इलाके से पाकिस्तान उच्चायोग के दो अधिकारियों को गिरफ्तार किया, एजेंसियों को गुप्त जानकारी मिली थी कि दोनों अधिकारी भारतीय सशस्त्र बलों से जुड़ी गोपनीय दस्तावेजों की खरीद-बिक्री में शामिल थे. सूत्रों के मुताबिक दोनों भारतीय सेना के जवानों को लुभाकर उनसे सेना के बुनियादी ढांचों और गतिविधियों से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां जुटा रहे थे.
जिसके बाद, ‘ऑपरेशन डेजर्ट चेज’ के जरिए, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के लिए जासूसी करने वाले ISI के दो एजेंट - विकास कुमार और चिमन लाल - को मिलिट्री इंटेलिजेंस ने राजस्थान से धर दबोचा.
पता चला कि पाकिस्तान खुफिया एजेंसी (PIO) ‘अनुष्का चोपड़ा’ नाम के एक फर्जी फेसबुक प्रोफाइल, जो कि पाकिस्तान के मुल्तान से चलाया जा रहा था, के जरिए श्रीगंगानगर में सेना के एम्यूनिशन डिपो में काम करने वाले सिविल डिफेंस कर्मचारी विकास कुमार से जानकारियां ले रही थी. कुमार ने उनसे सैन्य संरचना (Order of Battle), संगठन, सैन्य लड़ाई की रचना का क्रम (Order of military fighting formation) और गोला-बारूद की जानकारियों के साथ सैन्य अभ्यास के लिए आने वाली इकाइयों का विवरण भी साझा किया था.
इससे पहले मई 2019 में, इनफ्रेंट्री बटालियन में तैनात भारतीय सेना के 26 साल के एक क्लर्क को मध्य प्रदेश के महू से गिरफ्तार किया गया था, जिसे पाकिस्तान की एक खुफिया एजेंसी ने हनी-ट्रैप कर लिया था. क्लर्क फेसबुक पर खुद को अंतरराष्ट्रीय पत्रकार बताने वाली एक महिला के संपर्क में था, जिसे उसने सैनिकों की आवाजाही और सैन्य प्रशिक्षण से जुड़ी जानकारियां मुहैया कराई थी.
नवंबर 2019 में, भारतीय सेना के दो जवानों को राजस्थान के पोखरण जाते हुए जोधपुर से गिरफ्तार किया गया था, पता चला कि दोनों कई सारे सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए पाकिस्तानी महिला एजेंटों के साथ सामरिक जानकारी साझा कर रहे थे. महिला वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (VoIp) के जरिए कॉल कर उससे पंजाबी लहजे में बात करती थी और भारतीय सेना की तैनाती, महत्वपूर्ण उपकरण और सेना की गतिविधियों के बारे में जानकारियां इकट्ठा करती थी.
पाकिस्तानी जासूसी में चीन कैसे करता था ‘मदद’
हालांकि ये बात अब तक पूरी तरह साफ हो चुकी है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां भारतीय सैन्यकर्मियों को अपनी जाल में फंसाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करती है, खुफिया सूत्रों ने अब एक अलग और व्यापक स्पाई नेटवर्क का खुलासा किया है – जिसमें चीन तिब्बती शरणार्थियों के जरिए हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला, अरुणाचल प्रदेश के तवांग और कर्नाटक के बेंगलुरु में जासूसी को अंजाम देता है. सूत्रों ने यह भी बताया कि भारत से जानकारियां जुटाने के लिए चीन अक्सर नेपाली गोरखा का इस्तेमाल करता है. हाल में पाकिस्तान और चीन के बीच 'खुफिया जानकारियों का लेनदेन' बहुत तेजी से बढ़ गया है.
जहां इस्लामाबाद बीजिंग के साथ अहम खुफिया जानकारियां साझा करता है, चीन उसे टेकनोलॉजी और उपकरण मुहैया कराता है.
भारतीय खुफिया एजेंसियों की नजर चीन के टेकनॉलोजी दिग्गज Huawei के चीनी कर्मचारियों पर भी बनी है, जिनके बारे में आशंका है कि वो आईटी विशेषज्ञ या इंजीनियर होने की आड़ में भारत में खुफिया एजेंट का काम करते हैं.
भारतीय खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, हाल में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच गतिरोध के बीच, पाकिस्तानी ISI एजेंटों की गतिविधि तेज हो गई है, जो कि भारतीय पत्रकारों, सेना के जवानों और दूसरे लोगों से लद्दाख में भारतीय सेना की तैनाती और नई दिल्ली की संभावित कार्रवाईयों की जानकारी मांग रहे हैं.
एजेंसियों को आशंका है कि ISI बीजिंग के इशारे पर ये जानकारियां जुटाने में लगा है.
चीन का ‘साइबर और सूचना युद्ध’ पर ध्यान केंद्रित होना चिंताजनक है
‘चीन ने तीन तरह के युद्ध की रणनीति बनाई है - मीडिया वॉर, लीगल वॉर, और साइबर वॉर, जिसमें मनोवैज्ञानिक/सूचना का युद्ध भी शामिल है. वो इसी में भरोसा रखता है. चीन ने दबदबा बनाने के इरादे से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को मजबूत और सुसज्जित जरूर किया, लेकिन आखिरकार उनका उद्देश्य बिना लड़ाई के युद्ध जीतना है; बिलकुल पुराने सन त्जू मॉडल की तरह. नतीजतन, चीन आने वाले समय में साइबर और सूचना युद्ध पर भरपूर ध्यान केंद्रित करेगा. ये इंटरनेट ऐप्स चीन की मदद का जरिया हैं. ये लोगों की अवधारणा और दिमाग बदलने के साथ-साथ वैकल्पिक विचार की प्रक्रिया में मदद करते हैं. मेरा भी यह मानना है कि वो हमारे खर्च पर पैसे ना बनाएं. सार्वजनिक दृष्टिकोण से, इसमें कोई दो राय नहीं है, कि इन्हें हटाया जाना जरूरी था,’ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) अता हसनैन ने बताया, जो कि कश्मीर में भारतीय सेना की 15वीं चिनार कोर के पूर्व जीओसी, और वर्तमान में भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य हैं.
हनी-ट्रैपिंग के लिए सोशल मीडिया ऐप्स के इस्तेमाल के अपार अवसर
‘इंस्टाग्राम और फेसबुक चीनी ऐप्स नहीं हैं लेकिन सोशल मीडिया के लोकप्रिय रूप हैं. सेना में लंबे समय से ये बहस होती रही है कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए जवानों को पूरी छूट दी जाए. एक नया आकर्षण होने के नाते, सेना में आंतरिक रूप से कुछ एहतियाती चेतावनी दी गई थी. हालांकि, समय के साथ, सोशल मीडिया पर अनजाने में बहुत सारी संवेदनशील और महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आने लगीं. इन सोशल मीडिया साइटों के मैसेंजर मोड से हनीट्रैप के लिए गुंजाइश बहुत बढ़ जाती है, और पाकिस्तान और चीन दोनों इसका फायदा उठाने के लिए जाने जाते हैं. मैं कहूंगा कि सोशल मीडिया ऐप्स पर पाबंदी लगाना एक अस्थायी कदम होना चाहिए, जब तक हम खास तौर पर इस खतरे की घड़ी से गुजर रहे हैं. सेना को ज्यादा से ज्यादा कोशिश करनी चाहिए सभी रैंकों को इन साइबर खतरों के बारे में शिक्षित किया जाए, जो कि निश्चित तौर पर एक बड़ी चुनौती है. कई लोगों को दुश्मनों द्वारा जुटाई जा रही इन संवेदनशील जानकारियों की क्षमता का एहसास नहीं होता. फिलहाल, इस बारे में लोगों को ठीक से समझने में समय लगेगा, इसलिए भारतीय सेना का इन ऐप पर पाबंदी लगाने का फैसला सही था.’ले. जरनल (रिटायर्ड) अता हसनैन ने क्विंट से बताया
क्या सोशल मीडिया ऐप्स को बैन करना भारतीय सेना के लिए पर्याप्त है? और क्या करने की जरूरत होगी?
भारतीय सेना ने सुरक्षा कारणों से सोशल मीडिया ऐप्स पर पाबंदी लगाने का फैसला तो ले लिया लेकिन कई चिंताएं अभी भी बनी हुई हैं. सोशल मीडिया की खामियों को लेकर
जागरूकता फैलाने और इसके सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर सुरक्षा बलों को संवेदनशील बनाने की कोशिशों से नतीजे नहीं निकले.
इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और क्षमता-निर्माण की कमी ने सुरक्षाबलों को ऐसे वक्त में कमजोर कर दिया है, जब भारत के पास मौजूद सुरक्षा प्रणालियों के कई अहम हिस्से चीन से मंगाए जाते हैं. चीन की साइबर युद्ध प्रणाली बेहद विकसित है, जिसमें न सिर्फ खुफिया जानकारी जुटाना, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक युद्ध भी शामिल है, जो हैकिंग या दूसरे तरीकों के जरिए अपने विरोधी के उपकरणों को अपने काबू में कर लेता है. भारत ज्यादातर खुफिया जानकारी जुटाने पर ध्यान देता रहा है और अभी तक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के विचार पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया है.
सुरक्षा से जुड़े खतरा पैदा करने वाले वेबसाइट्स और ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना नुकसान और सूचना के रिसाव को रोकने के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम हो सकता है, लेकिन इसका मुकाबला करने के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है, यहां तक कि दुश्मन इलेक्ट्रॉनिक युद्ध छेड़ने की हिम्मत ना करे इसके लिए भी कोई कदम नहीं उठाए गए.
अब भारतीय सेना और सुरक्षा संस्थान को तेजी से बदलती लड़ाकू तकनीकों और सामरिक बदलावों के मुताबिक आधुनिकीकरण पर ध्यान देना होगा – इसके अलावा जरूरत इस बात की है कि सेना की भूमि-युद्ध शक्ति को सूचना-युद्ध शक्ति से साथ मिलाया जाए. समय आ गया है कि रक्षा से जुड़े संगठन साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की चुनौतियों का सामना करें और भारत को भविष्य में इसी तरह के संचालन के लिए आत्मनिर्भर बनाएं.
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