ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारतीय अर्थव्यवस्था : GDP के हालिया आंकड़े क्या पूरी कहानी दर्शाते हैं?

इस समय का घटनाक्रम श्रम बाजार की निरंतर गिरावट को दर्शा रहा है.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने पिछले सप्ताह वित्त वर्ष 2021-22 (FY22) की दूसरी तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का अनुमान जारी किया, जिसमें खुलासा हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था में 2020-21 में इसी समय की तुलना में 8.4% की वृद्धि हुई है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई थी, वहीं दूसरी तिमाही में 8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है यह देखते हुए क्या यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी से प्रेरित गिरावट के बाद वापस पटरी पर आ गई है?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकार के लिए दो तरह की बाधाएं

इस मुद्दे के समाधान में कारकों के दो सेट अहम भूमिका निभाते हैं. पहला यह है कि क्या अर्थव्यवस्था एक सतत विकास पथ पर लौट आई है. जो भारत को दूर भविष्य में $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था ($5 trillion economy) बनने के सरकार के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम बनाएगी.

और दूसरा यह कि विकास की गति की स्थिरता पर प्रतिकूल परिस्थितियों के संभावित प्रभाव पड़ सकते हैं जैसे कि मुद्रास्फीति संबंधी दबाव.

एक महत्वपूर्ण तथ्य जिसे आम तौर पर महामारी के बाद के जीडीपी डेटा के मूल्यांकन में दिखाया जाता है वह यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था COVID-19 महामारी के प्रभाव को महसूस किए जाने से पहले तेजी से घटते विकास पथ पर थी, जिसे चार्ट 1 से देखा जा सकता है.

2017-18 की चौथी तिमाही से 2019-20 की चौथी तिमाही तक यानी 9 तिमाहियों की अवधि के दौरान भारत की GDP ग्रोथ 8.1 प्रतिशत से गिरकर 3.0 प्रतिशत हो गई. इसे हम चार्ट 1 पर देख सकते हैं. Covid 19 महामारी से पहले और इसके बाद के आर्थिक मंदी के दोहरे प्रभाव के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकार के सामने दो तरह की चुनौतियों हैं.

पहला यह कि अर्थव्यवस्था को फिर से नए सिरे से ऊपर उठाने का प्रयास सरकार को करना चाहिए.

और दूसरा यह कि इसे राजकोषीय नीति उपकरणों के माध्यम से अपने विस्तार को बनाए रखने के लिए अर्थव्यवस्था की सहायता करना जारी रखना चाहिए, जिनके अच्छे आवेग (positive impulses) तेजी से देखे जा सकते हैं.

इस समय का घटनाक्रम श्रम बाजार की निरंतर गिरावट को दर्शा रहा है.

 चार्ट 1

भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और स्तर

चार्ट 1 को देखकर यह कहा जा सकता है कि बाद की चुनौती ज्यादा कठिन प्रतीत हो रही है. पिछले वित्तीय वर्ष की मंदी के बाद से GDP में लगातार चार तिमाहियों में वृद्धि हुई है लेकिन इस तथ्य के बावजूद विकास की गति कम या गायब होती दिख रही है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वित्त वर्ष 2012 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2021) में भारत की जीडीपी 15 तिमाहियों की तुलना में कम थी, जो 2017-18 की तीसरी तिमाही में थी. इसके अलावा इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में वृद्धि के बावजूद जीडीपी अभी भी पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही या 11 तिमाहियों की तुलना में कम है. नतीजतन, यह स्पष्ट है कि महामारी के बाद अब तक देखी गई रिकवरी अस्थिर बनी हुई है.

0

निजी क्षेत्र में अंतिम खपत घटी है

यह परिदृश्य आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि GDP का मुख्य आधार, प्राइवेट फाइनल कंजंप्शन एक्सपेंडेचर (PFCE) यानी अंतिम उपभोग व्यय, रिकवरी अवधि के दौरान कमजोर रहा है. PFCE बेहतर समय में जीडीपी के 55% से कहीं अधिक रहा है, लेकिन हाल की तिमाहियों में यह 55 फीदसी के आंकड़े तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करता हुआ दिखा है. वहीं वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही में यह इससे भी नीचे गिर गया है. इसके अलावा 2018-19 की तीसरी तिमाही और पिछले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में रिकवरी से पहले तक PFCE में लगातार गिरावट आई थी. हालांकि, उसके बाद PFCE में रिकवरी कायम नहीं रही, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था के समग्र प्रदर्शन पर इसका प्रभाव पड़ा.

इस समय PFCE के रुझान को देखें तो यह श्रम बाजार की लंबे समय तक उदास स्थिति को दर्शाता है, जिसे कोविड महामारी की शुरुआत के बाद लॉकडाउन के दौरान गंभीर रूप से झटका लगा था. हालांकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही के दौरान बेरोजगारी दर में कमी आई थी. लेकिन श्रम बल की भागीदारी दर उस गहराई से बहुत ज्यादा नहीं उबर पाई जो COVID-19 के कारण पैदा हुए आर्थिक व्यवधान के दौरान काफी नीचे गिर गई थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जोखिम भरी हो सकती है बाहरी मांग पर निर्भरता

वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था के पीछे जो प्रेरक शक्ति रही वह निर्यात वृद्धि, या विदेशी मांग थी. जीडीपी के प्रतिशत के रूप में देखें तो निर्यात इस तिमाही के दौरान उच्चतम स्तर पर था. यह वही स्तर जो 2019-20 में छुआ गया था. दूसरी ओर, मुख्य रूप से कमोडिटी की बढ़ती लागत के कारण आयात में काफी वृद्धि हुई है. नतीजतन, भारत का व्यापार-से-जीडीपी (trade-to-GDP) अनुपात 2013-14 के बाद पहली बार 50% से अधिक हो गया था. वर्तमान स्थिति को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि वित्त वर्ष 22 अर्थव्यवस्था के लिए एक प्रमुख विकास उत्प्रेरक यानी ग्रोथ ट्रिगर के रूप में कार्य करने वाले व्यापार के साथ बंद हो जाएगा.

हालांकि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बाहरी या विदेशी मांग पर निभर्र होने पर उसकी अपनी समस्याएं हो सकती हैं. जैसा कि 2008 की वैश्विक मंदी के बाद देखा गया या अनुभव किया गया है.

भारत सहित कई देशों में निर्यात वृद्धि को गति देकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी से रिकवरी प्राप्त की गई थी, लेकिन यह जल्द ही अनिश्चितता की विस्तारित अवधि में वापस आ गई. इसलिए भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए अपने विशाल आंतरिक बाजार पर अधिक भरोसा करना चाहिए और केवल एक अतिरिक्त सपोर्ट के तौर पर बाहरी या विदेशी मांग का उपयोग करना चाहिए.

मुद्रास्फीति का दबाव एक पहलू है जिसे भारत को अल्पावधि में ध्यान में रखना चाहिए, खासकर तब जब वह निर्यात से लाभ उठाना चाहता है. थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित मुद्रास्फीति की दर पिछले कई महीनों में काफी अधिक रही है. पिछले छह महीनों में विनिर्मित वस्तुओं यानी कि मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स ने दोहरे अंकों की मुद्रास्फीति का अनुभव किया है, जो अक्टूबर 2021 में बढ़कर 12% हो गई थी.

मुद्रास्फीति की उच्च दर वैश्विक बाजारों में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को कम कर सकती है वहीं देश के आर्थिक पुनरुद्धार में निर्यात मांग की भूमिका को अनुमति देनी है तो इससे पहले इसे जांचना होगा.

(बिस्वजीत धर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में प्रोफेसर हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं, क्विंट न तो इनका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×