ADVERTISEMENTREMOVE AD

इंटरनेट से निकली गर्मी और लाइव वीडियो स्ट्रीमिंग के खतरे

टेक्नोलॉजी का बढ़ता इस्तेमाल आज ग्लोबल वॉर्मिंग के लिये नया खतरा बनता जा रहा है

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

आपने टीवी पर वो विज्ञापन तो जरूर देखा होगा, जब मेहमान बताते हैं कि वह डिनर पर नहीं आ पाएंगे तो अपनी पत्नी को उदास होता देख पति शरारती अंदाज में कहता है – एलेक्सा! प्ले द पार्टी म्यूजिक.

और फिर खुशी से पत्नी भी चहक उठती है –

एलेक्सा! डिम द लाइट्स.

लेकिन संगीत बजाने और बत्ती धीमी करने के साथ ही एलेक्सा एक काम और करती है. आपके घर और डेटा सेंटर के बीच सूचना की एक ऐसी चेन शुरू होती है, जिससे बिजली का खर्च बढ़ता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये एक छोटा सा उदाहरण है लेकिन ऐसे कई छोटे-छोटे कदम मिलकर आज बिजली के खर्च को कई गुना कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर आप पढ़ते वक्त अंग्रेजी के कठिन शब्द का अर्थ नहीं जानते और कुछ कदम चलकर अलमारी से डिक्शनरी उठाने के बजाय बगल में रखे मोबाइल फोन पर शब्द टाइप करते हैं. और गूगल उस शब्द की जन्मकुंडली खोलने के साथ फिर डेटा की एक चेन शुरू करता है.

बदला लाइफ स्टाइल और टेक्नोलॉजी का ये बढ़ता इस्तेमाल आज ग्लोबल वॉर्मिंग के लिये नया खतरा बनता जा रहा है क्योंकि दुनिया में 80% बिजली उत्पादन अब भी कार्बन छोड़ने वाले ईंधनों से ही हो रहा है. भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है. जानकार बताते हैं कि इंटरनेट अब दुनिया के 5 सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों (emitter) में है क्योंकि ऑनलाइन सर्चिंग का जोर ऐसा बढ़ा है कि हर सेकेंड लाखों लोग डेटा सर्फिंग में लगे हैं.

ग्लोबल वॉर्मिंग: इंटरनेट अव्वल कारणों में शामिल

जी हां, अब बिजलीघरों, वाहनों, खेतीबाड़ी और इंडस्ट्री के साथ इंटरनेट दुनिया में एक बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक है. माना जाता है कि आपकी एक गूगल सर्च 1 ग्राम से 10 ग्राम के बीच कार्बन इमीशन के बराबर है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपने किस तरह की डिवाइस (डेस्कटॉप, लेपटॉप, टैब आदि) इस्तेमाल की और क्या उस डिवाइस को सर्च के वक्त स्टार्ट किया या वो पहले से ऑन थी.

कल्पना कीजिए कि बड़ी-बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों में हो रहे डेटा एक्सचेंज से क्या स्थिति पैदा हो रही है. ये इस तरह है जैसे इन मल्टीनेशनल कंपनियों के छत पर लगी चिमनियों से काला धुंआ निकल रहा हो.

स्मार्टफोन की बाढ़ और लाइव वीडियो स्ट्रीमिंग के खतरे

अगर हीटिंग के नजरिए से देखें तो एक 10 घंटे का हाइ डेफिनिशन वीडियो विकिपीडिया पर अंग्रेजी में मौजूद सारे टैक्स्ट के बराबर है. इससे समझा जा सकता है कि वीडियो देखने के खतरे पर्यावरण के लिहाज से कितने ज्यादा हैं.

फ्रांस स्थिति रिसर्च बॉडी ‘द शिफ्ट प्रोजेक्ट’ की रिपोर्ट कहती है कि डिजिटल टेक्नोलॉजी दुनिया में कुल 4% इमीशन कर रही है. यह पूरे सिविल एविएशन सेक्टर के छोड़े गए धुएं से ज्यादा है. खतरा ये है कि 2025 तक यह आंकड़ा 8% होने वाला है. दुनिया में स्मार्टफोन की बाढ़ आ गई है और वीडियो ऑनलाइन देखना नया शौक है. इंटरनेट के नजरिए से देखें तो इससे सबसे ज्यादा ग्लोबल हीटिंग हो रही है.

आज कुल ऑनलाइन वीडियो लाइव स्ट्रीमिंग डिजिटल टेक्नोलॉजी से होने वाले 80% इमीशन के लिये जिम्मेदार है. शोध बताते हैं कि 60% वीडियो ऑनलाइन और 20% ऑफलाइन देखे जा रहे हैं. ऑनलाइन में स्काइप वगैरह पर की जाने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी शामिल है. बाकी 20% इस्तेमाल नॉन वीडियो इस्तेमाल का है.

वीडियो में पॉर्न का बड़ा हिस्सा

YouTube के अलावा अब Netflix और Hotstar सुविधायें भी आपके लैपटॉप और स्मार्टफोन से और धुआं छोड़ रही हैं. 2018 में ऑनलाइन वीडियो देखने से कुल 30 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड इमीशन हुआ और इसमें से 8 करोड़ यानी करीब 27% पोर्नोग्राफिक वीडियो देखने से था. पॉर्न का ऑनलाइन ट्रैफिक इतना इमीशन करता है, जितना फ्रांस के सारे घरों में इस्तेमाल होने वाली कुल बिजली से होता है. पॉर्न वीडियो अकेले दुनिया के 0.2% इमीशन के बराबर है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत: बड़ा उपभोक्ता बाजार और बड़े संकट का साया

भारत आज ऑनलाइन वीडियो सब्सिक्रिप्शन के मामले में दसवें नंबर में है और अब यह उपभोक्ता हर साल करीब 23% की रफ्तार से बढ़ रहे हैं. ऐसे में अगले 5 सालों में इंटरनेट के उपभोक्ता और हर डिजिटल डिवाइस पर वीडियो सर्फिंग बढ़ना तय है.

भारत में स्मार्टफोनों की बिक्री से इंटरनेट का इस्तेमाल और वीडियो देखना और बढ़ेगा. पिछले साल 2018 में देश में 16 करोड़ से अधिक स्मार्टफोन बिके, जिनकी कुल कीमत 2 लाख करोड़ रुपये थी.

स्मार्टफोन के बढ़ते इस्तेमाल की एक वजह यह भी है कि यहां करीब 35% आबादी युवा (15 से 34 के आयुवर्ग) में है. आर्थिक सर्वे बताता है कि दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 8 में से 1 भारतीय है. आज भारत में 50 करोड़ से ज्यादा लोग इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे हैं और देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या साल 2015 से 2018 के बीच बढ़कर दोगुनी हो गई.

आज असम से लेकर बिहार तक बाढ़ में डूबा है, महाराष्ट्र के कई हिस्सों में सूखे के बावजूद मुंबई में मनमौजी बरसात जिंदगी को थाम देती है. हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ों में भूस्खलन हो रहे हैं और राजस्थान को अब भी बरसात का इंतजार है. दुनियाभर के वैज्ञानिक इसे क्लाइमेट चेंज का असर बता रहे हैं, जिसके पीछे ग्लोबल हीटिंग जिम्मेदार है. लेकिन देश के 40 करोड़ युवाओं को ये जानने के लिये स्मार्टफोन पर झुकी गर्दन उठानी होगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(हृदयेश जोशी स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्होंने बस्तर में नक्सली हिंसा और आदिवासी समस्याओं को लंबे वक्त तक कवर किया है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×