मेडिकल से जुड़ी चुनौतियों के अलावा कोविड-19 ने इससे निपटने के लिए आवश्यक कार्रवाई की वैधानिकता की ओर भी ध्यान दिलाया है. हालांकि बड़े स्तर की संक्रामकता के कारण सामाजिक दूरी और सेल्फ-क्वॉरन्टीन नागरिक जिम्मेदारी बन जाती है, मगर राज्य के आदेश और उसकी ओर से क्वॉरन्टीन करने को अनिवार्य बनाने पर कई वाजिब वैधानिक मुद्दे भी उठ जाते हैं.
विश्व के स्तर पर क्वॉरन्टीन प्रोटोकॉल इससे पहले कभी इतनी गम्भीरता से बलपूर्वक लागू नहीं किए गये. वर्तमान में कोविड-19 की जबरदस्त मार झेल रहे इटली ने क्वॉरन्टीन के उल्लंघन पर जुर्माना लगाने की कार्रवाई शुरू की है. यह घोषणा की गयी है कि अगर कोई व्यक्ति बुखार, खांसी, ठंड आदि जैसे लक्षणों का सामना कर रहा है और वह खुद को सेल्फ-आइसोलेट नहीं करता है यानी एकांत में नहीं रखता है तो उस पर हत्या की कोशिश का मुकदमा चलेगा. (भारतीय दंड संहिता ‘आईपीसी’ के अनुच्छेद 307 की तरह) ऑनलाइन चर्चा के फोरम सोशल मीडिया पर इस दंड की तुलना एचआईवी संक्रमित उस व्यक्ति को दी जाने वाली सज़ा से की जा रही है जो नये लोगों में यह बीमारी फैला दिया करता था.
राजकीय आदेश और राज्य की ओर सेअनिवार्य बनाए गये क्वॉरन्टीन की प्रक्रिया से कई वैधानिक मुद्दे खड़े होते हैं.
स्थानीय प्रशासन के लिए भी यह जरूरी है कि वह उन लोगों के लिए क्वॉरन्टीन से जुड़े औपचारिक आदेश जारी करें जो कोविड-19के टेस्ट में पॉजिटिव पाए गये लोगों के व्यक्तिगत संपर्क में आए.
14 दिन के क्वॉरन्टीन प्रोटोकॉल को तोड़कर साथी नागरिकों के जीवन को खतरे में डालना मानसिक और दिमागी दोनों स्तर पर दोषपूर्ण कार्रवाई है. ऐसा इसलिए क्योंकि कोविड-19 की उच्च संक्रामकता निस्संदेह साथी नागरिकों को जोखिम में डालेगी.
क्व़ॉरन्टीन से भागे लोगों के लिए निम्नलिखित वैधानिक प्रावधान लागू किए जा सकते हैं : महामारी रोग अधिनियम की धारा 3, आईपीसी का अनुच्छेद 269 जो ‘जीवन को खतरे में डालने वाली बीमारी को फैलाने के प्रति लापरवाही’ के लिए दंडित करता है और आईपीसी काअनुच्छेद 270 जो उन लोगों को दंडित करता है ‘जो जीवन को खतरे में डालने वाली बीमारी को संक्रामक बनाने की घृणित कार्रवाई करते हैं’.
कानून लागू करने वाली एजेंसियों कोनागरिक प्रशासन की मदद से समय रहते सक्रियता दिखानी चाहिए और कानून की शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि इसे लागू किया जा सके.
कोरोना वायरस के संदिग्धों के साथ कैसे निपट रहे हैं भारत और दूसरे देश
ब्रिटेन में हेल्थ प्रोटेक्शन (कोरोना वायरस) रेगुलेशन्स 2020 के मुताबिक नियमों का पालन नहीं करना अपराध है और ऐसे लोग हजार पाउन्ड का जुर्माना और नहीं देने की स्थिति में जेल जाने के अधिकारी हैं. अमेरिका में भी क्वॉरन्टीन तोड़ने पर व्यक्ति को जुर्माना, आपराधिक अभियोग और यहां तक कि कारावास का सामना करना पड़ता है, जो संघीय और स्थानीय वैधानिक नियमों के अनुरूप तय होता है. सिंगापुर और हांगकांग में जो लोग अधिकारियों को गुमराह करते हैं और यात्रा प्रतिबंधों को तोड़ते हैं उन्हें कानून के समक्ष लाया जाता है.
ऑस्ट्रेलिया के अलग-अलग राज्यो में 2 हजार से 20 हजार ऑस्ट्रेलियन डॉलर का जुर्माना या छह महीने की कैद का प्रावधान उन लोगों के लिए है जो 14 दिन के क्वॉरन्टीन रूल का पालन नहीं करते हैं. विक्टोरिया प्रांत इस मामले में एक कदम आगे है. पब्लिक हेल्थ एंड वेलबीइंग एक्ट 2008 के तहत मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी की ओर से जारी निर्देश के मुताबिक क्वॉरन्टीनप्रोटोकॉल तोड़ने वाली कंपनियों पर 1 लाख ऑस्ट्रेलियन डॉलर का जुर्माना लगाया जाताहै.
भारत सरकार पहले से ही देश में प्रवेश करने वाले लोगों को हवाई अड्डे पर क्वॉरन्टीन की तारीख के स्टाम्प लगाते हुए चिन्हित कर रही है. स्थानीय प्रशासन के लिए भी यह जरूरी है कि वह उन लोगों के लिए ऑपचारिक रूप से क्वॉरन्टीन ऑर्डर निकालें, जो कोविड-19 के लिए हुए टेस्ट में पॉजिटिव पाए गये लोगों के व्यक्तिगत संपर्क में हैं. अमेरिका में तुलनात्मक रूप में अन्य महामारी के लिए क्वॉरन्टीन ऑर्डर निकाले जाने की चुनौती रही है. लेकिन, चूकि कोविड-19 अत्यधिक संक्रामक है इसलिए व्यक्गित स्वतंत्रता की तुलना में जन सुरक्षा आवश्यक रूप से प्रमुख हो जाती .
कोरोनावायरस क्वॉरन्टीन प्रोटोकॉलतोड़ने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई शुरू हो
क्वॉरन्टीन प्रोटोकॉल तोड़ने वाले लोगों के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई क्या न्यायोचित है? बिल्कुल हां. 14 दिन के क्वॉरन्टीन प्रोटोकॉल को तोड़कर साथी नागरिकों के जीवन को खतरे में डालना मानसिक और दिमागी दोनों स्तर पर दोषपूर्ण कार्रवाई है. ऐसा इसलिए क्योंकि कोविड-19 की उच्च संक्रामकता निस्संदेह साथी नागरिकों को जोखिम में डालेगी. आंकड़े भी इसी बात को पुष्ट करते हैं.
एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और आज्ञा का पालन नहीं करने वाले नागरिकों पर महामारी रोग अधिनियम 1897 के तहत भारतीय दंड संहिता के संबंधित प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए. संक्रामक रोगों से जुड़े कार्यकारी आदेशों की अवज्ञा के मामलों में महामारी रोग अधिनियम का अनुच्छेद 3 जुर्माने का प्रावधान करता है. यह भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत दण्डनीय अपराध है. इसमें 6 महीने तक की कैद या हजार रुपये का जुर्मान या फिर दोनों हो सकता है.
आईपीसी का अनुच्छेद 269 ‘जीवन को खतरे में डालने वाली बीमारी को फैलाने के प्रति लापरवाही’ के लिए दंडित करता है. इसके लिए 6 महीने तक का कारावास या जुर्माना या फिर दोनों की सजा का प्रावधान है. इससे एकस्तर ऊपर आईपीसी का अनुच्छेद 270 है जो उन लोगों को दंडित करता है ‘जो जीवन को खतरे में डालने वाली बीमारी कोसंक्रामक बनाने की घृणित कार्रवाई करते हैं’. और, इसके लिए दो साल तक की सजा या जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है. अनुच्छेद 269 उन लोगों पर लागू होगा जो विदेश से लौट रहे हैं और 14 दिन के सेल्फ क्वॉरन्टीन प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं और अनुच्छेद 270 उन मामलों में लागू होगा जहां एक व्यक्ति यह जानते हुए भी कि उस पर कोविड-19 का टेस्ट पॉजिटिव पाया गया है, वह साथी नागरिकों के जीवन को खतरे में डालता है.
संभव है क्वॉरन्टीन की सुविधाएं बहुत अच्छी न हो, लेकिन दूसरों को खतरे में डालने और भागने की इजाजत कतई नहीं है.
हाल में क्वॉरन्टीन प्रोटोकॉल तोड़ने का मामला लोगों के बीच चर्चा में है. पश्चिम बंगाल में एक प्रमुख आईईएएस अफसर के बेटे को जब क्वॉरन्टीन होना चाहिए था, तब वह एक मॉल में घूम रहा था. मुख्यमंत्री ने इस पर बहुत सही नाराजगी दिखलायी. कोविड-19 ने वास्तव में समानता के स्तर पर बड़ा काम किया है और जिस तरह से कानून के समक्ष सभी समान माने जाते हैं, क्वॉरन्टीन के नियमों को भी समान रूप से सब पर लागू करना होगा.
बॉलीवुड की गायिका कनिका कपूर भी एअरपोर्ट पर अनिवार्य स्क्रीनिंग से बच निकलने और इस तरह एक सांसद समेत साथी नागरिकों के जीवन को खतरे में डालने की वजह से एकांत घर में हैं. ऐसी खबरें हैं कि कई राज्यों में हवाई अड्डों पर लैंडिंग के बाद लोग मेडिकल जांच से भाग निकले. यह सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा है. क्वॉरन्टीन की शर्त के बावजूद जानबूझकर साथी नागरिकों की जिन्दगी को खतरे में डालना आपराधिक कार्रवाई होनी चाहिए और इससे निर्ममता से निपटा जाना चाहिए. कानून लागू करने वाली एजेंसियों को नागरिक प्रशासन की मदद से समय रहते सक्रियता दिखानी चाहिए और कानून की शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि इसे लागू किया जा सके.
(श्लोक चंद्र वकील हैं जो भारत सरकार के सीनियर पैनल काउंसिल और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के जूनियर स्टैंडिंग काउंसिल में हैं. यह एक विचार है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इससे कोई सरोकार नहीं है.)
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