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चीन पर नजर: मिडिल ईस्ट में अमेरिका का जिओ-पॉलिटिकल गुणा-भाग

मध्य पूर्व और दुनिया की राजनीति पर चीन के असर ने अमेरिका की चिंताओं को बढ़ा दिया है.

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अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2009 में अपने चुनाव के बाद मध्य पूर्व (Middle East) की यात्रा को अपनी शुरुआती राजकीय यात्राओं में से एक के तौर पर चुना. राष्ट्रपति बाइडेन को अपने कार्यकाल में इस इलाके का दौरा करने में एक साल से ज्यादा का समय लग गया.

क्या यह देरी किसी ट्रेंड का इशारा है, या ऐसी सोच एक संयोग को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर देखने जैसी है? शायद बाद वाली बात ही सही है क्योंकि विदेश नीति का संसार इतना आलसी नहीं है कि संयोगों के जरिये इशारा देने में समय बर्बाद करे.

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जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वली नस्र ने मध्य पूर्व में अमेरिकी भूमिका के अपने साफ विश्लेषण में एक जगह लिखा है कि, “इसके उलट अमेरिकी विरोध के बावजूद वाशिंगटन अब मध्य पूर्व की लड़ाई (Middle East conflicts) में उलझने का ख्वाहिशमंद नहीं है— और यह बात इलाके में उसके दोस्तों और दुश्मनों के सामने साफ हो चुकी है.”

ट्रेंड इससे ज्यादा साफ नहीं हो सकता. अमेरिकी सरकार के लिए अब “समान विचारधारा वाले इंडो-पैसेफिक और यूरोपीय देशों से मजबूत संबंध” ही भविष्य है.

बड़े संघर्षों में आगा-पीछा

अपने आंतरिक कानूनों के अनुसार अमेरिका के लिए इजरायल की “गुणात्मक सैन्य बढ़त” (qualitative military edge) सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी है. अमेरिका ने “इजरायल का पार्टनर और कट्टर समर्थक” बने रहने की प्रतिबद्धता जताई है; इसके साथ ही बाइडेन प्रशासन के तहत मध्य पूर्व नीति ने आश्चर्यजनक मोड़ ले लिया है. इस साल जुलाई में राष्ट्रपति बाइडेन के इंटरव्यू को याद करें, जब उन्होंने नेतन्याहू कैबिनेट के सदस्यों को “अतिवादी” कहा था. ईमानदारी से कहें तो राष्ट्रपति बाइडेन संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब के निराशाजनक मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर उनके भी आलोचक रहे हैं.

यूक्रेन पर रूसी हमले ने इस समीकरण में काफी बदलाव ला दिया.

बड़ी लड़ाइयों में आगा-पीछा करना अमेरिकी नीति का ढर्रा बन गया है. बाइडेन प्रशासन अपने इलाके में चीन से मुकाबले लिए तैयार है, बाकी पर यूरोप ने अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है. जहां तक मध्य पूर्व का सवाल है, इन हालात में सिर्फ “बेरहम व्यावहारिकता” के लिए जगह बची है.

इसका एक उदाहरण सीरिया में असद सरकार के प्रति अमेरिकी नजरिया है. विदेश विभाग एक तरफ सीरिया को अरब लीग में शामिल करने का आलोचक है; दूसरी तरफ यह कुल मिलाकर सीरियाई संघर्ष को हल करने के मकसद के समर्थन में है (इसके पीछे वजह शायद यह है कि अमेरिका सीरिया और सीरियाई शरणार्थियों को अपने यहां रखने वाले पड़ोसी देशों में मानवीय सहायता का सबसे बड़ा दानदाता है).

अक्टूबर, 2022 में जारी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी पेपर में अमेरिकी सरकार ने साफ तौर से रूस और चीन को अपनी विदेश नीति की प्रमुख चुनौतियां बताया है.

दस्तावेज में रूस और चीन की दोहरी चुनौती से निपटने में समर्थ होने के लिए यूरोप और इंडो-पैसेफिक देशों के साथ जुड़ने पर जोर दिया गया है. और यह दुनिया के बड़े संकटों को चीन और रूस के साथ संघर्ष से जोड़ने की कोशिश करने तक जाता है (इसमें दूसरी बातों के साथ-साथ वैश्विक एनर्जी संकट से लेकर कोरोना महामारी के दौरान सहयोग करने में चीनी सरकार की अनिच्छा भी शामिल है).

एकीकृत मध्य पूर्व की ख्वाहिश भी जताई जाती है ताकि “संयुक्त राज्य अमेरिका की संसाधनों की मांग को हमेशा के लिए कम किया जा सके.”

ध्यान देने के लिए बड़ा निशाना

प्रस्तावित फ्रेमवर्क में व्यापक और लचीले सिद्धांत शामिल किए गए हैं, जिससे उन देशों के साथ पार्टनरशिप को मजबूत किया जा सके जो अमेरिकी चार्टर के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में शामिल होने के ख्वाहिशमंद हैं. राजनीति में निश्चित जुड़ाव नहीं है तो यह सीधे तौर पर अलगाव की निशानी है!

और 2022 और 2023 की घटनाओं का क्या मतलब निकाला जाए, जब अमेरिका ने “यूक्रेन भेजने के लिए मित्र राष्ट्रों के भंडार के वास्ते इजरायल में रखे वार रिजर्व स्टॉक से कथित तौर पर 155-मिलीमीटर तोपखाने के 3,00,000 गोले निकाल लिए थे.

कई रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका के साथ टकराव टालने के लिए इजरायली अधिकारियों ने पेंटागन की मांग को स्वीकार कर लिया और एक इजरायली अधिकारी के अनुसार, चूंकि “यह उनका गोला-बारूद था और इसे लेने के लिए उन्हें असल में हमारी इजाजत की जरूरत नहीं थी.”

2022 में जेद्दा में अमेरिका और GCC+3 (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) के बीच बैठक के आधिकारिक वक्तव्य में कहा गया है कि; बाइडेन प्रशासन ने साझेदारी और तालमेल पर जोर दिया था. ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति ऊर्जा संसाधनों और मामूली कामयाबियों से संतुष्ट होने को राजी हैं. उदाहरण के लिए, सऊदी अरब द्वारा इजरायल से उड़ानों को अपने हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने की अनुमति देने, एयर फोर्स वन के यरुशलम से जेद्दा तक सीधे उड़ान भरने के लिए शुक्रिया कहा गया.

आखिरकार गंभीरता से ध्यान देने के लिए एक और बड़ा मुद्दा था– चीन. मध्य पूर्व और दुनिया भर की राजनीति पर चीनी असर ने अमेरिका की चिंता को बहुत बढ़ा दिया है.

खासकर तब जब वह अमेरिका के “सबसे गंभीर प्रतिस्पर्धी” क्षेत्र में सीमित सुरक्षा सहयोग के बावजूद सऊदी अरब और ईरान को राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल करने के लिए एक साथ ला सकता है.

हालांकि, मार्च, 2023 में विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सीनेट की विदेश संबंध समिति के सामने अपनी गवाही में कहा था, “हमारे पास जो जानकारी है, उसके आधार पर मुझे लगता है कि चीन ने ऐसा किया कि इन देशों ने जो काम किया है, उस प्रक्रिया के एकदम अंत में उसने चालाकी से एक तरह से उसका फायदा उठा लिया. और फिर बुनियादी रूप से उस समझौते के नतीजों को सामने लाया जिस पर वे राजनयिक संबंधों को बहाल करने के लिए पहुंचे थे, न कि उन्हें एक साथ लाने के लिए खुद कुछ किया. वह बस इसका मेजबान बन गया.”

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यह भविष्य की एक झलक है जहां क्षेत्र में अमेरिका की दशकों पुरानी मौजूदगी के बावजूद असल कूटनीतिक जीत चीन को मिलती है.

यह सिर्फ कूटनीतिक जीत नहीं है. इजराइल और चीन के बीच “इन्नोवेटिव कंप्रिहेंसिव पार्टनरशिप” को लेकर अमेरिका में चिंता है. अमेरिका के बाद चीन, इजरायल का सबसे बड़ा “सिंगल-स्टेट ट्रेडिंग पार्टनर” है.

दोनों देशों के बीच गहरे संबंधों की निशानी हाइफा (Haifa) में देखी जा सकती है, जहां नए टर्मिनल के संचालन का कांट्रेक्ट शंघाई इंटरनेशनल पोर्ट ग्रुप को दिया गया है; और, अशदोद (Ashdod) में चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी की एक सहायक कंपनी बंदरगाह बना रही है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हाइफा और अशदोद दोनों जगह इजरायली नौसैनिक अड्डे हैं. उम्मीद की जा सकती है कि बाइडेन प्रशासन ने अपने इजरायली समकक्षों के साथ इस पर बात की होगी.

गणित का दूसरा हिस्सा फाइनेंशियल इन्वॉल्वमेंट का है.

इस आंकड़ों पर जरा नजर डालें: 2016 में अमेरिका ने इजरायल को विदेशी मिलिट्री फाइनेंसिंग में 3.3 अरब डॉलर देने और संयुक्त मिसाइल रक्षा कार्यक्रमों (वित्त वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 2028 तक) पर सालाना 50 करोड़ डॉलर खर्च करने का वादा किया था. यह समझौता लड़ाई जैसी आपात स्थितियों में मदद की संभावना के अनुमान पर आधारित है. इजरायल पर हमास के हालिया हमले के बाद, बाइडेन प्रशासन “कथित तौर पर अनुरोध कर रहा है कि कांग्रेस इजरायल को सुरक्षा सहायता के लिए 14 अरब डॉलर और सामान्य मानवीय सहायता के लिए 10 अरब डॉलर मुहैया कराए.”

पूरी तस्वीर को देखें तो कोई अचंभे की बात नहीं है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जैक सुलिवान (Jake Sullivan) ने इजरायल पर हमास के हमले के बाद अपने साक्षात्कार में “एकीकृत मध्य पूर्व क्षेत्र” की जरूरत पर जोर दिया है.

लेबनानी कॉमेडियन रोला ज़ेड अपने शो के दौरान एक घिसा-पिटा मजाक करती हैं: “ यहां कोई पूर्व फौजी हैं? आप हमारे लिए जो कुछ भी करते हैं उसके लिए शुक्रिया. आप लोगों के बिना मैं आज यहां नहीं होती. मध्य पूर्व में कोई युद्ध नहीं होता.”

मुझे लगता है कि अमेरिकी सरकार ने उनकी बात साफ-साफ सुनी होगी.

(संगीता चक्रवर्ती एक पूर्व वकील हैं और मौजूदा समय में जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी, वाशिंगटन डीसी में स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज की स्टूडेंट हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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