7 अक्टूबर 2023 को, फिलिस्तीनी कट्टर समूह- हमास ने इजरायल पर अपना दशकों में सबसे विनाशकारी हमला (Israel Hamas War) किया.
दक्षिणी इजरायल के सिमचट तोराह में यहूदी छुट्टी के दिन दिन के भोर में एक अप्रत्याशित हमला किया गया था. हमास के बंदूकधारियों ने सैकड़ों इजरायली नागरिकों और सैनिकों का कत्लेआम किया और कई का अपहरण कर लिया. उसने यरूशलेम तक के स्थानों की ओर हजारों रॉकेट दागे. इजरायल ने बड़े पैमाने पर जवाबी हवाई हमले किए.
इजराइल में अब तक 700 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. वहीं जब से इजरायल ने जवाबी हमला शुरू किया है तब से गाजा में 500 से अधिक लोग मारे गए हैं.
गाजा में लोगों ने तुरंत भोजन का स्टॉक कर लिया और बिजली की कमी के कारण अधिकांश परिक्षेत्र अंधेरे में डूब गए हैं. इजरायल ने गाजा की घेराबंदी की घोषणा की है. इजरायल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने कहा कि इजरायल गाजा पर "पूर्ण घेराबंदी" कर रहा है. उन्होंने कहा, "वहां बिजली नहीं है, खाना नहीं है, पानी नहीं है और ईंधन नहीं है."
जब हमास ने किया हमले का ऐलान
हमास के मिलिट्री विंग के प्रमुख मोहम्मद दीफ ने इजरायल पर रॉकेट बरसाने के बाद कहा, "हम ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड की शुरुआत की घोषणा करते हैं, और हम घोषणा करते हैं कि पहले हमले में 5,000 से अधिक मिसाइलें और गोले दागे गए. इसमें दुश्मन के ठिकानों, हवाई अड्डों और सैन्य किलेबंदी को निशाना बनाया गया".
इजरायली सेना के अनुसार, आतंकवादियों ने जमीन, समुद्र और हवा के रास्ते इजरायल में धावा बोल दिया.
हमास ने कुछ देर के लिए रॉकेट बरसाना रोका लेकिन फिर शाम को इजरायल के मध्य क्षेत्र में कस्बों और शहरों पर हमला किया, जिससे रेड अलर्ट सायरन बजने लगे और हजारों इजरायली सुरक्षित पनाह के लिए भागने लगे. इसके बाद प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इजरायली सैन्य रिजर्वों की लामबंदी की घोषणा की और कहा, "हम युद्ध में हैं, और हम इसे जीतेंगे."
किसी को खबर नहीं थी और कॉर्डिनेशन में कमी नहीं- हमास की रणनीति
हमास की स्थापना एक सुन्नी इस्लामिक उग्रवादी समूह के रूप में पहले इंतिफादा (1987) के दौरान फिलिस्तीन को आजाद कराने और एक इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए इजरायल को नष्ट करने के लिए की गई थी. हमास अक्सर रीजनल प्लेयर्स की मदद से इजरायली सैनिकों और नागरिकों पर अलग-अलग तीव्रता के कई हमलों और सुसाइड बम विस्फोटों में शामिल रहा है.
अतीत में, इस समूह ने इजरायल पर कम दूरी और मध्यम दूरी की मिसाइलों से हमला किया है और नागरिकों पर हमला करके क्रूरता का प्रदर्शन किया है, जिसे 'मानवता के खिलाफ अपराध' माना जाता है. वर्तमान हमला मौत और विनाश में अभूतपूर्व है, और शायद दशकों में सबसे बुरा सुरक्षा संकट है.
इस बार, हमास ने बहुत अधिक कॉर्डिनेशन के साथ हमला शुरू किया है. उसने सैन्य ठिकानों पर हमला किया और सैनिकों और नागरिकों को मार डाला और बंधक बना लिया. इस हमले का अंदाजा पहले से किसी को नहीं लगा और अपने इसी सरप्राइज एलिमेंट के कारण यह इजरायल पर मिस्र और सीरिया द्वारा 1973 के योम किप्पुर हमले के समान है.
ऐसा लगता है कि हमास ने इस बड़े हमले से पहले महीनों तक योजना बनाई थी और खुद को तैयार किया था. हमले की तीव्रता और इसके पीछे की गोपनीयता को देखने के बाद इस समय हमास को हथियारों की सप्लाई में किसी बाहरी खिलाड़ी (चाहे क्षेत्रीय या वैश्विक) का हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है.
हमास के प्रवक्ता गाजी हमाद ने बीबीसी को बताया कि इजरायल के खिलाफ अचानक हमले करने के लिए हमास को ईरान का समर्थन प्राप्त है और "यह गर्व की बात है". घटनाओं पर बारीकी से नजर डालने से इजरायल की खुफिया एजेंसी की गंभीर सुरक्षा खतरे का पता लगाने में विफलता का पता चलता है.
मोसाद (एक इजरायली खुफिया एजेंसी) के पूर्व प्रमुख, एफ़्रैम हेलेवी ने सीएनएन को बताया: "हमें किसी भी प्रकार की कोई चेतावनी नहीं थी, और यह पूरी तरह से आश्चर्य की बात थी कि आज सुबह युद्ध छिड़ गया."
अभी निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी, लेकिन हमले के पहले आठ घंटों में इजरायल की तैयारियों की कमी दिखाई देती है, जिसके कारण एक दिन में इतने अधिक इजरायली नागरिकों की मौत हो गयी, यह कुछ ऐसा है जो 1973 के बाद कभी नहीं हुआ.
ईरान (और हिजबुल्लाह की) का हाथ हुआ तो?
हमलों में ईरान की सहायता का पश्चिम एशियाई क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है. तनाव तेजी से बढ़ सकता है, क्योंकि ईरान पश्चिम एशिया में इजरायल के लिए सबसे बड़ा क्षेत्रीय खतरा है. कतर, कुवैत, सीरिया और लेबनान के हिजबुल्लाह सभी ने हमास के हमले का समर्थन और प्रशंसा की है और वर्तमान स्थिति के लिए इजरायल को दोषी ठहराया है.
दूसरी तरफ सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, मिस्र और मोरक्को ने बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की और अंतरराष्ट्रीय समुदायों और संगठनों से एक विश्वसनीय शांति प्रक्रिया को सक्रिय करने के लिए कहा है. अगर हमले में ईरान का हाथ है तो इसका मकसद सऊदी-इजरायल के बीच चल रही शांति वार्ता से भी जुड़ा हो सकता है.
ईरान लगातार इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने का विरोध करता रहा है. मुस्लिम जगत का नेता सऊदी अरब, इजराइल के साथ बातचीत में लगे रहने के साथ-साथ फिलिस्तीनियों के हित की वकालत करता है.
साथ ही, ईरान के पास फिलिस्तीनी मुद्दे पर आगे बढ़कर यह दिखाने का अवसर है कि वह मुस्लिम देशों का असली नेता है. क्षेत्र में प्रत्येक देश का भू-राजनीतिक दांव ऊंचा है, जिसका क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. युद्ध का असर रियाद और तेहरान के बीच हालिया मेल-मिलाप समझौते पर भी पड़ सकता है.
चीन पंच बना और सऊदी-ईरान के बीच शांति समझौता हुआ. इसके बाद दुनिया भर के शिक्षाविदों और नीति विश्लेषकों ने क्षेत्रीय शत्रुता में कमी की आशंका जताई है. हालांकि, हमास के हमले ने उन सभी को चौंका दिया है.
हमले के दूसरे दिन हिजबुल्लाह के सामने आने से इस हमले में नया मोड़ आ गया है. इजरायल-लेबनान सीमा पर तनाव बढ़ गया है, जहां हिजबुल्लाह ने इजरायल के कब्जे वाले शेबा फार्म्स पर कई रॉकेट दागे.
एक लिखित बयान में, हिजबुल्लाह ने कहा कि हमले में तीन साइटों को निशाना बनाया गया, जिसमें शेबा फार्म्स में एक "रडार साइट" भी शामिल है. शेबा फार्म्स को 1967 से इजराइल ने अपने नियंत्रण में लिया था और इसपर लेबनान अपना दावा करता है. इजरायली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने लेबनान में हिजबुल्लाह चौकियों पर हमला करके जवाबी कार्रवाई की. आगे तनाव बढ़ने और बहु-मोर्चे पर युद्ध की संभावनाएं बहुत अधिक हैं. अगर ऐसा है तो अंतर्राष्ट्रीय महाशक्तियां आगे आ सकती हैं.
हमास के इस मध्ययुगीन शैली के क्रूर हमले के बाद, शायद फिलिस्तीनियों को फिर से असहाय पीड़ितों के रूप में नहीं देखा जा सकता है और पश्चिम एशिया में इसका स्थायी प्रभाव हो सकता है.
इस युद्ध के साथ, दो-राज्य समाधान (Two Nation Solution) या इजरायल और फिलिस्तीनियों के सह-अस्तित्व की संभावना के बारे में बातचीत हमेशा के लिए खत्म हो सकती है. यहूदियों और फिलिस्तीन के बीच अस्तित्व का युद्ध प्रसिद्ध ट्राइबल अरब नियम के अनुसार लड़ा जा सकता है: या तो मार डालो या मर जाओ.
(अंजलि सिंह राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट हैं, और उन्होंने नई दिल्ली में भारतीय विश्व मामलों की परिषद में रिसर्च इंटर्न के रूप में काम किया है. अनमोल कुमार के पास पांडिचेरी यूनिवर्सिटी से राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री है. उन्होंने द क्विंट और न्यूज18 के लिए ओपिनियन पीस लिखे हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लिखकर के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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