जम्मू वायुसेना स्टेशन (Jammu Airforce Station) की एक इमारत पर हुए 27 जून को हमलों में कम मात्रा में विस्फोटक ले जाने वाले दो क्वाडकॉप्टर ड्रोन (मिनी / माइक्रो-ड्रोन) का इस्तेमाल (Drone Attack) किया गया था.
हालांकि नुकसान मामूली था, हमले ने उपमहाद्वीप में एक बड़े हमले का संकेत दिया है जो कि छोटे ड्रोन और संबंधित तकनीकों का उपयोग करके नए युग के उप-पारंपरिक युद्ध का आगमन है. वायु सेना स्टेशन पर हमले के बाद रात में जम्मू में सेना के शिविर के ऊपर दो और ड्रोन देखे गए. 27 जून का हमला भारत में इस तरह का पहला हमला है.
छोटे ड्रोन, सस्ती और सरल तकनीकों और झुंड की रणनीति के नए युग के युद्ध में आपका स्वागत है जो पारंपरिक भारी हथियारों और उच्च तकनीक वाले युद्ध को चुनौती देगा.
प्रभावी युद्ध मशीनों के रूप में ड्रोन का सत्यापन
विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, जम्मू वायु सेना स्टेशन पर हुए हमले में दो क्वाडकॉप्टर ड्रोन का इस्तेमाल शामिल था, जिसमें कम मात्रा में विस्फोटक थे. हमले के परिणामस्वरूप इमारत को मामूली क्षति हुई और दो जवानों को चोटें आईं. तब से, UAV की कम से कम सात घुसपैठ हुई है, ज्यादातर रात में.
सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए छोटे क्वाडकॉप्टर ड्रोन का इस्तेमाल कर हमलों को अंजाम दिया गया. इनकी रेंज 10-50 किलोमीटर हो सकती है. वे एक जीपीएस सेंसर से लैस हो सकते हैं, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक ड्रोन को पूर्व-प्रोग्राम किए गए मिशन के रास्ते पर लॉन्च किया जा सकता है. ड्रोन अगर ऑटानमस नहीं है लेकिन जमीन से इसे नियंत्रित किया गया है, तो इसका मतलब हमले वाले क्षेत्र से एक छोटी सी सीमा के अंदर से ही इसे नियंत्रित किया होगा. लेकिन ऐसे हमले में जोखिम है जिसे देखते हुए, इसकी संभावना नहीं हो सकती है. यह भी संभव है कि इनमें से कुछ ड्रोन को घुसपैठ के लिए सक्षम बनाने के लिए इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर हों.
काफी समय से, बीएसएफ और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने छोटे मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) का इस्तेमाल करने के बढ़ते कोशिशों पर प्रकाश डाला है, जिसमें ड्रग्स, छोटे हथियार ले जाने और निगरानी-जासूसी करने के लिए क्वाडकॉप्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह केवल कुछ समय पहले की बात है जब आतंकवादी संगठनों ने हमलों को अंजाम देने के लिए इनका इस्तेमाल किया था जिससे उनका इस नए हथियार के प्रति विश्वास बढ़ा.
वर्तामन घटनाएं आतंकी संगठन अपनी क्षमता जानने के लिए कर सकते हैं, और इसलिए शायद भविष्य में और अधिक गंभीर हमलों की कोशिश की जा सकती है.
मानव रहित हवाई प्रणालियों का तेज और स्थिर विकास
कई शोधकर्ताओं और रणनीतिकारों की माने तो विद्रोहियों, राष्ट्रविरोधियों और आतंकवादियों के हाथों में छोटे मानर रहित एरीअल सिस्टम (UAS) एक बहुत शक्तिशाली हथियार साबित हो सकता है.
जब 30 साल पहले यूएवी इस्तेमाल में आया था तो यह विशेष रूप से एक सैन्य डोमेन था. और मध्यम और बड़े आकार के यूएवी को ध्यान में रखकर इसे बनाया गया था, जो मध्यम से उच्च ऊंचाई पर और सभी बाधाओं के बीच धैर्य के साथ इस्तेमाल करने के लिए डिजाइन किया गया था. इसे बनाने में सफलता हासिल करने के बाद, इसके तकनीक में कई तरह के और विकास हुए, जिसके बाद इसे निगरानी और जासूसी के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए गए थे.
2010 में, नागरिकों के इस्तेमाल के लिए छोटा और मध्य साइज के यूएवी बनाने पर तेजी से काम हुआ. बाजारों में आसानी से इसकी पहुंच बन गई. खुले मार्केट में सस्ते ड्रोन मौजूद है और यह कम वजन की चीजें ले जाने में सक्षम भी है. इसे चलाने के लिए कोई बड़ी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती. हर कोई इस्तेमाल कर सकता है. जिसके कारण आतंकवादियों के लिए यह एक आसान और किफायती विकल्प बन जाता है.
2015 तक, इराक, अफगानिस्तान, सीरिया और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठनों में विद्रोहियों ने हमलों के लिए इन सस्ते, छोटे और स्वायत्त ड्रोन के लाभों का फायदा उठाना शुरू कर दिया है. छोटे सेंसर, जीपीएस मॉड्यूल, माइक्रोप्रोसेसर और डिजिटल रेडियो के गठजोड़ से स्वायत्त क्षमता हासिल की जाती है, जो सभी व्यावसायिक रूप से उपलब्ध और सस्ती हैं. जिसके कारण सस्ते, स्वायत्त ड्रोन से आईईडी का इस्तेमाल किया जा सकता है.
जम्मू एयरबेस पर ड्रोन हमला भविष्य में बड़े पैमाने पर ड्रोन हमलों की चेतावनी हो सकती है. यह केवल समय की बात थी कि LeT, जैश-ए-मोहम्मद जैसे भारत विरोधी आतंकवादी संगठन आईएसआईएस जैसे अपने सहयोगी संगठनों की नकल नहीं करते हैं, लेकिन इस हमले ने सबको सचेत कर दिया है.
भारत अब किसका सामना कर रहा है: छोटे ड्रोन और बड़े नुकसान
इन ड्रोन का छोटा आकार, उनके निर्माण में इस्तेमाल सामग्री (ज्यादातर लकड़ी और प्लास्टिक), उनके कम शोर वाले इंजन जैसे कारणों की वजह से यह रडार से बच निकलने में कामयाब हो जाता है. जिससे वायु रक्षा रडार द्वारा उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है. हमले के लिए कमर्शियल ड्रोन का इस्तेमाल करना आसान और अनुकूल भी है.
उदाहरण के लिए, एक व्यावसायिक रूप से उपलब्ध क्वाडकॉप्टर जो 100 ग्राम सेंसर ले जा सकता है, उसे एक विस्फोट करने वाले वारहेड से बदला जा सकता है, जो एक विमान को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है.
नैनो-एनर्जेटिक्स या नैनो-विस्फोटक जैसी नई तकनीक उनकी क्षमता को और बढ़ा सकती हैं. इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन सस्ते और छोटे ड्रोन के इस्तेमाल में जरूरी चीजों और इसे बनाने वाले लोगों को आराम से हायर कर सकते हैं.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक स्कॉलर्स ने 2016 में इराक में इस्लामिक स्टेट गतिविधियों और कैप्टर किए गए साक्षों के आधार पर एक रिपोर्ट जारी किया है. इसमें ड्रोन के इस्तेमाल के साथ-साथ उच्च स्तर की योजनाओं को अच्छी रणनीति अपनाने की बात कही गई है. वे सुनियोजित और सामरिक दोनों स्तरों पर नुकसान पहुंचाने वाली शक्तियों को वे पहचानते हैं.इस्लामिक स्टेट ने 2017 के दौरान COTS ड्रोन के अपने व्यापक इस्तेमाल से इसे साबित कर दिया, जिसमें डीर एज़र में एक गोला बारूद डिपो पर एक जबरदस्त हमला भी शामिल है.
बड़े पैमाने पर ड्रोन हमले का पहला उदाहरण 6 जनवरी 2018 को सीरिया में रूसी एयरबेस खमीमिम से आया था, जब 13 ड्रोनों के झुंड ने एयरबेस पर हमला किया था.
रूसी वायु रक्षा प्रणाली इन ड्रोनों को ट्रैक करने में सक्षम थी. सात को उनकी एयर डिफेंस सिस्टम ने मार गिराया. इस मामले में पैंटिर-एस1 द्वारा छह ड्रोन को इंटरसेप्ट किया गया और रूसी इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर एसेट्स से नियंत्रित किया गया, जिनमें से तीन सफलतापूर्वक उतरे, तीन लैंडिंग के समय विस्फोट हो गए. हमले में रूसी एयर बेस को रणनीतिक झटका लगा. करीब एक सप्ताह पहले 31 दिसंबर 2017 को, एक ही बेस पर दो ड्रोन से हमला किया गया था. जिसमें कुछ लड़ाकू विमान क्षतिग्रस्त हो गए और दो रूसी सैनिक मारे गए.
क्या भारत ऐसे ड्रोन हमलों का मुकाबला कर सकता है?
देश विरोधी ताकतों और आतंकवादी समूहों द्वारा छोटे ड्रोन के इस्तेमाल से होने वाले खतरों को पहचान कर निपटने की शुरुआत 2014 में हुई थी.
2015 से दुनिया के अग्रणी देशों के बीच यूएएस और ड्रोन के खतरों को काउंटर करने के लिए टेक्नोलजी और टेक्नीक पर काम चल रहा है. हालांकि ड्रोन और मानव रहित हवाई प्रणाली कंप्यूटर और कम्यूनिकेशन सिस्टम पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए इस हैक भी किया जा सकता है. अधिकांश ड्रोन संचार के लिए मानक 2.4 गीगाहर्ट्ज और 5 गीगाहर्ट्ज फ्रीक्वन्सी का इस्तेमाल होता है, इससे इन्हें नियंत्रित और निष्क्रिय करने में आसानी होती है.
इसी तरह एक झुंड में, ड्रोन-टू-ड्रोन संचार भी जरूरी है, इसे भी जाम किया जा सकता है. हालांकि, एक बार ड्रोन के स्वायत्त होने के बाद इसे फिजिक्ली रूप से बेअसर करने की जरूरत होगी.
मुख्य चुनौती ड्रोन को वक्त से पहले पता लगाकर बेअसर करना है.
काउंटर- यूएएस के तहत नियमों का उल्लंघन करते पाए जाने पर ड्रोन या यूएएस को जब्त किया जा सकता है. डिटेक्शन टेक्नोलॉजी ध्वनिक, दृष्टि, निष्क्रिय रेडियो आवृत्ति, रडार और डेटा संलयन पर आधारित हैं. जिससे उसकी पहचान कर हैक या जाम किया जा सकता है. डिटेक्शन टेक्नोलॉजी की क्षमताओं का इस्तेमाल आसमान से ड्रोन पकड़ने के लिए नेट का इस्तेमाल जैसा है. जिससे पता लगाकर उसे हैकर किया जा सकता है. उसे अपने कब्जे में लेकर उसके कैमरे और अन्य सेंसर को बंद किया जा सकता है.
जम्मू हमला भारतीय सुरक्षा रणनीतिकारों के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए. भारत को इस उभरते हुए खतरे से निपटने के लिए व्यापक पैमाने पर और पूरे देश में काउंटर-यूएएस क्षमताओं को हासिल करने की आवश्यकता होगी.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स और स्वीमिंग ड्रोन का एकीकरण भविष्य में युद्ध की प्रकृति को बदल सकता है. क्या होगा अगर ऐसी क्षमताएं आतंकवादियों के हाथों में पड़ जाती हैं, जिसे एक फिल्म 'स्लॉटरबॉट्स' में अच्छी तरह से समझाया गया है. - जहां आतंकवादी लोगों की पहचान करने और उन्हें मारने के लिए छोटे ड्रोनों का इस्तेमाल करते हैं.
(एयर मार्शल एम मातेश्वरन AVSM VM PhD (Retd) इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के पूर्व डिप्टी चीफ हैं. वह अभी एक चेन्नई-बेस्ड पॉलिसी थिंक टैंक 'The Peninsula Foundation' के प्रेसिडेंट हैं. इस लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं.)
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