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कश्मीर से 370 हटाने के पीछे दलितों की चिंता में सच्चाई कम है

कश्मीर में दलित हैं ही नहीं, जम्मू में जरूर इनकी आबादी 8 फीसदी है.

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संसद में जब धारा-370 और 35-A खत्म करने का बिल पास हो रहा था तो सरकार को सबसे ज्यादा चिंता दलित हित की दिखी. बिल पेश करते समय एक एककर जो भी दूसरे वक्ता बीजेपी से बोले, सबसे पहले उनकी फिक्र दिखी कि इनके हटने से दलितों को आरक्षण का पूरा लाभ मिलेगा. इनके खुद का 2014 से इतिहास आरक्षण के संरक्षण और आरक्षण लागू करने का क्या रहा है, ये किसी से छिपा नहीं है.

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दूसरी बार जब सरकार में आए तो दना-दन ऐलान किए गए कि ज्यादातर सरकारी कंपनियों को बेचना है ताकि बचा-खुचा आरक्षण भी खत्म हो जाए. यह साबित भी करने की कोशिश की गई है कि मुस्लिम बाहुल्य राज्य होने की वजह से दलितों के साथ भेदभाव हुआ. डॉ अंबेडकर धारा-370 के खिलाफ थे इसका भी जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया गया. जांच-पड़ताल की जरुरत है कि वास्तव में धारा-370 के पहले स्थिति खराब थी.

डोगरा रियासत ने कभी लगभग 556 वाल्मीकि परिवार को बसाया था. गोरखा भी बाहर से आए थे. जो भी बाहर से आए वो सब अपने ही पेशे तक सीमित कर दिए गए थे. बड़ी संख्या में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से भी आए. उन सभी को जम्मू-कश्मीर की नागरिकता नहीं मिली और अब अनुच्छेद 35-A हटने के बाद, सबको नागरिकता स्वाभाविक रूप से मिल गयी है. अब तक इन सभी को सरकारी नौकरियां नहीं मिलती थी क्योंकि नागरिकता ही नहीं थी.

जम्मू में अलग-अलग श्मशान घाट

वाल्मीकि समुदाय को एक छूट जरूर दी गयी थी कि वो नगर-निगम में सफाई के काम में नौकरी कर सकते हैं. कश्मीर में दलित हैं ही नहीं, जम्मू में जरूर इनकी आबादी 8 फीसदी है. अनुसूचित जाति/जनजाति परिसंघ के जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष आर. के कल्सोत्रा ने विरोध जताया कि बीजेपी दलितों के कंधे पर बंदूक रखकर न चलाए. उनका कहना है कि जो भी अत्याचार होता है वो सवर्ण-हिन्दू करते हैं न कि मुस्लिम.

उन्होंने एक दृष्टान्त का जिक्र किया कि पूर्व में सांसद रहे श्री जुगल किशोर ने अपने कोष से सवर्णों को अलग से श्मशान बनाने के लिए राशि अनुमोदित की जो जगह बिशनाह के नाम से जाना जाता है. जब इसका विरोध हुआ तब जाकर रुकावट लगी. अभी भी जम्मू में अलग-अलग श्मशान घाट हैं.
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पिछड़ों और दलितों को क्या फायदा हुआ

असल में धारा-370 काफी घिस भी गयी थी. 1958 से ही केंद्र सरकार के आडिट एंड अकाउंट का अधिकार जम्मू-कश्मीर राज्य में हो गया था. इसी तरह भारतीय निर्वाचन आयोग के तहत ही चुनाव करवाए जाते थे. यूनियन लिस्ट के 97 में से 94 विषय वहां लागू हो चुके हैं. इसी तरह संविधान के 395 में से 260 अनुच्छेद और 250 से ज्यादा केंद्र सरकार के कानून वहां पर लागू हैं. अनुच्छेद-370 और 35-A को हटा तो दिया लेकिन पिछड़ों और दलितों को फायदा क्या हुआ, ये जानना जरुरी है.

अभी तक पिछड़ों का आरक्षण वहां 2% लागू था, जबकि 27% होना चाहिए. अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा आयोग स्थापित किया जाएगा कि नहीं. इस पर अभी तक सरकार का कोई रुख साफ नहीं हुआ. अब और संविधान के 106 अनुच्छेद लागू होने हैं, जिसमें यह साफ नहीं है कि 81वां , 82वां, 85वां संवैधानिक संशोधन क्या इसमें शामिल है.

ये संवैधानिक संशोधन आरक्षण से संबंधित हैं. जम्मू-कश्मीर में 2004 में आरक्षण कानून और SRO 144 पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बना था लेकिन हाईकोर्ट ने इसको खारिज कर दिया था. इसका क्या होगा कुछ साफ नहीं है. जम्मू- कश्मीर में जनजाति को 10%, अनुसूचित जाति को 8% , पिछड़ा वर्ग को 2%, क्षेत्रीय पिछड़ा वर्ग को 20%, गरीब सवर्णों को 10% , पहाड़ियों को 3%, लाइन आफ कंट्रोल वालों को 3% और सीमा पर रहने वालों को 3%. इस तरह से कुल 59% आरक्षण बनता है. अब केंद्र सरकार के आरक्षण के मापदंड लागू होंगे तो क्या स्थिति होगी, ये तो आने वाला समय बताएगा.

बीजेपी ने विधानसभा में दलितों-पिछड़ों के सवाल उठाए?

आरएसएस और बीजेपी को वहां के दलितों की बड़ी चिंता है लेकिन जब इन्हें मौका मिला था तो क्या किया? जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ में 2001 में सरकार बनाई. पीडीपी के साथ भी 4 साल की सरकार रही है. क्या बीजेपी के विधायकों ने विधानसभा में दलितों और पिछड़ों से संबंधित इन सवालों को उठाया? अप्रैल 2015 में जम्मू-कश्मीर सरकार की कैबिनेट ने फैसला लिया कि बिना आरक्षण सरकारी नौकरी में भर्ती की जाएगी. परिसंघ सहित तमाम संगठनों ने जब आंदोलन किया तब जाकर आरक्षण कोटा को भी आधार माना. ध्यान रहे कि उस समय बीजेपी और पीडीपी की सरकार थी.

अगर सवाल उठाए हुए होते तो माना जाता कि इनके इरादे नेक हैं वर्ना मुस्लिम-हिंदू का कार्ड खेलने के अलावा इसमें और क्या है? जब धारा-370 का विवाद बढ़ा तब कुछ सच्चाई उभर के सामने आई. वरना तो लोग सोचते थे कि जम्मू-कश्मीर में भुखमरी और गरीबी ज्यादा है. जब सच्चाई सामने आई तब जाकर पता लगा कि कई मानकों में न केवल गुजरात से आगे है बल्कि तमाम अन्य प्रदेशों से भी आगे है.

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डॉ अंबेडकर जाति खत्म करना चाहते थे, क्या हो पाई?

नेशनल कांफ्रेंस नेता शेख अब्दुल्ला और बख्शी गुलाम, जब मुख्यमंत्री थे, तो जमीन सुधार कानून सख्ती से लागू किया. जिससे जमींदारी टूटी और सबके पास जोतने के लिए जमीन मुहिया हो सकी. यह कानून सख्ती से इसलिए लागू हो सका क्योंकि धारा-370 की वजह से जमींदार अदालत का सहारा नहीं ले पाए वरना दसियों साल तक मामले लटके रहते हैं. कई राज्यों में लैंड रिफॉर्म कानून इसलिए सफल नहीं हो पाया क्योंकि अदालतों में दशकों से लंबित रहे. दलितों को भी इसका फायदा मिला, यही कारण है कि वहां पर अन्य राज्यों से स्थिति बेहतर है.

अन्य राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर में बलात्कार, उत्पीड़न और हिंसा जैसी घटनाएं दलितों के साथ सुनने को नहीं मिलती हैं. अगर अभी तक दलितों का भला नहीं हुआ है तो ये अवसर अच्छा है, कुछ करके दिखाएं. जहां तक बाबा साहेब डॉ अंबेडकर का मत धारा-370 के बारे में है तो इस तरह से उनके सैकड़ों मांगे नहीं पूरी की जा सकी.

डॉ अंबेडकर जाति खत्म करना चाहते थे तो क्या हो पाई. जमीन के राष्ट्रीयकरण की बात कही थी, वह भी न हो पाया. समय और परिस्थितियां बदल गई हैं, पुरानी बातों को उद्धृत करने से समस्याओं का हल सुलझाने के बजाय उलझाने में ही लगे रहेंगे.

डॉ अंबेडकर ने यह भी कहा था कि जम्मू-कश्मीर को तीन भागों में विभाजित कर दिया जाए. लद्दाख को टेरेटरी बना दिया जाए और कश्मीर के लोगों को ये स्वतंत्रता दी जाए कि वह भारत के साथ रहना चाहते हैं या स्वयत्तता चाहते हैं. आधे-अधूरे तथ्य को उद्धृत करके किसी महान पुरुष को गलत नहीं पेश करना चाहिए. जैसा कि मायावती और बीजेपी ने किया है.

(आर्टिकल के लेखक डॉ उदित राज पूर्व सांसद हैं. वे IRS अधिकारी रहे हैं और सामाजिक विषयों पर चिंतन-लेखन करते हैं. इस आर्टिकल में छपे उनके विचार निजी हैं. क्विंट का इनके विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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