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कश्मीर में खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी का देश से विदेश तक क्यों हो रहा विरोध?

Khurram Parvez का संगठन JKCCS कश्मीर पर रिपोर्ट्स छापता है, जिनकी गूंज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है

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राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने सोमवार को मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज (Khurram Parvez) को गिरफ्तार कर लिया. इससे पहले एजेंसी ने उनके घर और जम्मू कश्मीर कोलिशन ऑफ सिविल सोसायटी (JKCCS) के दफ्तर में छापे मारे थे. JKCCS वह एनजीओ है जहां वह प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर हैं.

खुर्रम के परिवार को जो अरेस्ट मेमो थमाया गया है, उसमें एजेंसी ने उन पर तमाम धाराओं के तहत आरोप लगाए हैं- जैसे आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र का एक पक्ष) और धारा 121 (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना) तथा गैर कानूनी गतिविधि (निवारण) एक्ट (यूएपीए) की धारा 17 (आतंकवादी गतिविधि के लिए वित्त जुटाना), धारा 18 (षड़यंत्र), धारा 18 बी (आतंकवादी कृत्य के लिए भर्ती), धारा 30 (एक आतंकवादी संगठन की सदस्यता) और धारा 40 (एक आतंकवादी संगठन के लिए धन जुटाने का अपराध).

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''उन्होंने उसके सारे गैजेट्स अपने कब्जे में ले लिए''

इस गिरफ्तारी से आलोचकों का यह दावा पुख्ता होता है कि जम्मू-कश्मीर में एक्टिविस्ट्स, पत्रकारों और विरोधियों के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है. 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद से इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

खुर्रम के परिवार का कहना है कि सोमवार सुबह करीब आठ बजे एनआईए के अधिकारी श्रीनगर में उनके घर पहुंचे. खुर्रम के भाई शेख शहरयार ने द क्विंट को फोन पर बताया कि “वे लोग दोपहर दो बजे तक तलाशी लेते रहे. फिर खुर्रम को एनआईए के कैंप ऑफिस में ले गए, जोकि पास ही में है. उन्होंने हमारे तो नहीं, पर खुर्रम के सारे गैजेट्स ले लिए. फिर शाम छह बजे हमें बुलाया और बताया कि खुर्रम को गिरफ्तार किया जाएगा और दिल्ली ले जाया जाएगा. हमें उनके कपड़े देने को कहा गया. उन्होंने हमें उनका अरेस्ट मेमो थमा दिया.”

शहरयार बताते हैं कि खुर्रम अपनी गिरफ्तारी के समय एकदम “एनर्जेटिक” थे. “बजाय हम उन्हें तसल्ली देते, वो हमें ही तसल्ली दे रहे थे.”

सोशल मीडिया पर लकड़ी की उस छोटी सी बिल्डिंग की तस्वीरें छाई हुई थीं, जो झेलम नदी के पास स्थित है. इस बिल्डिंग में जेकेसीसीएस का दफ्तर है. लाल चौक के पास एक व्यस्त कमर्शियल सेंटर के बीच बनी इस बिल्डिंग को पुलिस की वैन्स और सुरक्षाबलों ने छापेमारी के दौरान घेरा हुआ था.
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''वो आतंकवादी नहीं, मानवाधिकारों का रखवाला है''

परवेज की गिरफ्तारी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) अजीत डोवल के उस बयान के चंद दिनों बाद की गई है, जिसमें उन्होंने नागरिक समाज को “युद्ध के नए मोर्चे” के बारे में चेतावनी दी थी. उन्होंने हैदराबाद में नेशनल पुलिस एकैडमी की आईपीसी पासिंग आउट परेड में कहा था कि “युद्ध का नया मोर्चा, जिसे आप चौथी पीढ़ी का युद्ध कहते हैं, वह नागरिक समाज है... जिसे कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करके देश के हितों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है.” इस टिप्पणी पर एक्टिविस्ट्स, वकीलों और मीडिया के कई तबकों ने कड़ी नाराजगी जताई थी.

परवेज का प्रोफाइल ग्लोबल है, और इस गिरफ्तारी का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध हो रहा है. वह सिर्फ JKCCS के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर नहीं हैं, फिलिपींस के एशियन फेडरेशन अगेंस्ट इनवॉलंटरी डिसेपीरियंस (एएफएडी) के ‘चेयरपर्सन’ भी हैं. उन्हें रीबॉक ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड मिल चुका है जोकि “30 साल से कम उम्र के उन लोगों को सम्मानित करता है जिन्होंने अहिंसक तरीकों से मानवाधिकारों के लिए संघर्ष किया है.”

उनकी गिरफ्तारी पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं आ चुकी हैं. संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी कई खास शख्सीयतें तीखे शब्दों में अपना विरोध जता रही हैं.

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“मुझे यह बुरी खबर मिली है कि आज कश्मीर में खुर्रम परवेज को गिरफ्तार किया गया है और इस बात का खतरा है कि भारत में प्रशासन उन पर आतंकवाद से जुड़े अपराधों में शामिल होने पर आरोप लगाएगा...वह आतंकवादी नहीं हैं, मानवाधिकारों के रखवाले हैं.”
मैरी लॉलर, यूएन स्पेशल रैपोर्टर्र ऑन ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स

इसी तरह यूएन स्पेशल रैपोर्टर्र फॉर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन रहे डेवि काये ने ट्विट किया, “अगर, जैसा कि रिपोर्ट किया गया है, खुर्रम परवेज को भारत की 'आतंकवाद-निरोधक' एनआईए ने गिरफ्तार किया है, तो यह कश्मीर में एक और असामान्य उत्पीड़न है.”

जिनेवा की वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन अगेंस्ट टॉर्चर ने परवेज को तुरंत रिहा करने की अपील की है और कहा है कि वे “लोग इस बात से बहुत परेशान हैं कि परवेज को कस्टडी में कहीं यातनाएं न दी जाएं.”

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घाटी में असंतोष को दर्ज करने में JKCCS की भूमिका

JKCCS ने कश्मीर में मानवाधिकार हनन की घटनाओं को दर्ज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे लोगों की हत्याएं, उन्हें जबरन गायब किया जाना, और उनकी गिरफ्तारियां. ऐसे हादसे करीब तीस सालों से बहुत आम हो गए हैं. इस संगठन ने क्षेत्र में होने वाली हिंसा को ट्रैक करने के लिए एक डेटाबेस भी बनाया है. जेकेसीसीएस हत्याओं, हमलों और चोटों, यहां तक कि सुरक्षा बलों की गोलीबारी के दौरान घरों को होने वाले नुकसान पर वार्षिक और अर्ध वार्षिक रिपोर्ट भी छापता है.

जेकेसीसीएस की सबसे बड़ी रिपोर्ट अगस्त 2020 में छपी थी. इस रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन को लागू करने के पीछे "संदिग्ध" कानूनी ढांचे की पोल खोली गई थी. दूसरे अहम डॉक्यूमेंट्स में एलेजेड परपेट्रेटर्स नामक रिपोर्ट शामिल है जिसमें कश्मीर में "बहुत ज्यादा फौजीकरण के बीच सजा से छूट जाने की संस्कृति” का राज फाश करने की कोशिश की गई थी.

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2015 में इस संगठन ने 500 से अधिक पेज वाली रिपोर्ट स्ट्रक्चर्स ऑफ वॉयलेंस को छापा था. इसमें “एक-एक केस स्टडी के जरिए हिंसा के पैटर्न पर गौर किया गया था. किस तरह यह जम्मू और कश्मीर में संरचनात्मक तरीके से की जाने वाली हिंसा से सीधे तौर से जुड़े हुए हैं.”

सोमवार को परवेज के खिलाफ दूसरी बार कार्रवाई की गई थी. पिछले साल अक्टूबर में भी उनके घर और दफ्तर पर एनआईए ने छापा मारा था. जेकेसीसीएस के साथ, एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसेपियर्ड पर्सन्स (एपीडीपी) के दफ्तरों की भी तलाशी ली गई थी.

युनाइटेड नेशंस वॉलंटरी फंड फॉर विक्टिम्स ऑफ टॉर्चर के अनुदानों की मदद से एपीडीपी ने कश्मीर में जबरन गायब कर दिए गए लोगों से संबंधित सनसनीखेज रिपोर्ट्स तैयार की हैं.

जेकेसीसीएस की रिपोर्ट्स के आधार पर ही 2018 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने अपनी पहली रिपोर्ट छापी थी जिसमें मांग की गई थी कि कश्मीर में "मानवाधिकारों के उल्लंघन" की अंतरराष्ट्रीय जांच कराई जाए. इस रिपोर्ट के चलते मोदी सरकार बहुत ज्यादा शर्मिंदा हुई थी और उसने इसे "निराधार" और "राजनीति से प्रेरित" करार दिया था.

पिछले साल छापे के बाद जेकेसीसीएस ने एकाएक अपनी वार्षिक और अर्ध वार्षिक रिपोर्ट छापनी बंद कर दी थी. परवेज भी पहले से कम ट्वीट कर रहे थे.

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परवेज इससे पहले 76 दिन जेल में काट चुके हैं

परवेज को इससे पहले 2016 में भी गिरफ्तार किया गया था, जब आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद कश्मीर के लोगों में असंतोष बढ़ रहा था. 14 सितंबर 2016 को परवेज को इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर इमिग्रेशन अधिकारियों ने जिनेवा के लिए उड़ान भरने से रोक दिया था. वह यूएनएचआरसी के सेशन में हिस्सा लेने के लिए जिनेवा जा रहे थे.

उन्हें सीआरपीसी की धारा 107 (शांति को भंग करने का खतरा) और 151 (संज्ञेय अपराध का खतरा) के तहत कुपवाड़ा की एक सब जेल में चार दिनों तक बंद रखा गया. फिर रिहाई के बाद उन्हें प्रशासन ने दोबारा गिरफ्तार कर लिया. इस बार सार्वजनिक सुरक्षा एक्ट के तहत, जोकि निवारण के लिए नजरबंद करने से संबंधित है. फिर उन्हें जम्मू में कोट भलवाल जेल में रखा गया. जेल में 76 दिनों तक रहने के बाद जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने पीएसए के तहत उनकी नजरबंदी को रद्द कर दिया.

अदालत ने प्रशासन की आलोचना की थी और कहा था कि परवेज को वह सारे दस्तावेज नहीं दिए गए जिनके तहत नजरबंदी के आदेश जारी किए गए थे.

“इन परिस्थितियों में बंदी को भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(5) के लिहाज से अपनी नजरबंदी के खिलाफ प्रभावी प्रतिनिधित्व करने के अवसर से वंचित किया गया है.” अदालत ने कहा कि “इस संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन ही नजरबंदी के आदेश को अमान्य करता है. शिकायत में दर्ज आरोपों और इस शिकायत की हिमायत करने वाले पुलिसकर्मियों के बयानों के आधार पर, ऐसा महसूस होता है कि बंदी ने कोई अपराध नहीं किया था."

उसी साल द न्यूयॉर्क टाइम्स ने परवेज की नजरबंदी पर एक धमाकेदार एडिटोरियल लिखा था, जिसमें मोदी सरकार पर आरोप लगाया गया था कि उसने परवेज की गिरफ्तारी करके कश्मीर में “हालात बिगाड़े हैं”. उसमें परवेज के खिलाफ “झूठे आरोपों” (जैसा कि उसमें कहा गया था) की निंदा भी की गई थी.

एडटोरियल में कहा गया था कि उन्हें “रिहा किया जाना चाहिए और ट्रैवल करने की इजाजत दी जानी चाहिए.”

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2004 में IED विस्फोट

20 अप्रैल, 2004 को उत्तरी कश्मीर के लोलाब में चुनावों की मॉनिटरिंग के दौरान परवेज की कार एक हाई इंटेंसिटी वाले इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस से हुए विस्फोट से उड़ा दी गई थी. इस हादसे में उन्होंने अपना एक पैर गंवा दिया था और उनकी सहयोगी और साथी आसिया जिलानी मारी गई थीं. परवेज अभी भी हल्का लंगड़ा कर चलते हैं. वह 44 साल के हैं और उनके दो बच्चे हैं.

द क्विंट को दिए एक बयान में ह्यूमन राइट्स वॉच की साउथ एशिया डायरेक्टर मीनाक्षी गांगुली ने कहा कि वह परवेज की गिरफ्तारी से “सदमे में हैं”. उन्होंने कहा, “ऐसे समय में जब कश्मीरी लोग हत्याओं और अन्य दुर्व्यवहारों का विरोध कर रहे हैं, भारतीय अधिकारियों को मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के बजाय उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए काम करना चाहिए. हमने बार-बार कहा है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही से ही हिंसा के चक्र को समाप्त किया जा सकता है."

(शाकिर मीर एक फ्रीलांस पत्रकार हैं जोकि द टाइम्स ऑफ इंडिया, द वायर वगैरह के लिए नियमित रूप से लिखते हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @shakirmir. ये एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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