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जम्मू कश्मीर जीरो टेरिरिज्म की राह पर, फिर पुलिस-मजदूर पर आतंकी हमले कैसे बढ़े?

Jammu Kashmir में आतंकवाद के कमजोर पड़ने के बावजूद आतंकी समूहों को उन लोगों की सटीक जानकारी रहती है, जिन्हें वे अपना निशाना बनाना चाहते हैं.

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कश्मीर (Jammu Kashmir) में दो पुलिसवालों और एक प्रवासी मजदूर पर एक के बाद एक हमले (Target Killing in Kashmir) हुए. इससे पता चलता है कि आतंकवादियों को उनसे सहानुभूति रखने वालों और उन्हें उकसाने वालों से जानकारियां मिलती हैं और वे फिर हमले करते हैं. इसे हम सुरक्षा में गंभीर चूक नहीं कह सकते, लेकिन फिर भी यह चिंता का विषय है.

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दूसरी तरफ, अधिकारियों ने इन्हें अचानक हुए हमले करार दिया लेकिन सुरक्षा सूत्रों ने द क्विंट को ऑफ द रिकॉर्ड बताया कि हमलावरों ने पीड़ितों के करीब जाकर दिनदहाड़े पिस्तौल से गोलियां मारीं. इससे साफ संकेत मिलता है कि वे पुराने हमलावर हैं. वे मौके की तलाश में थे और सर्दियों के आने से पहले फिर से सामने आकर हमला तेज कर रहे हैं.

पिछले सप्ताह तीन हमले हुए, जिनमें एक मृतक के परिवार ने नया आरोप लगाया. परिवार का दावा है कि पास में भारतीय सेना की एक यूनिट तैनात थी, उनके कर्मियों ने ही 31 अक्टूबर को उत्तरी कश्मीर के तंगमर्ग गांव में हेड कांस्टेबल गुलाम मुहम्मद डार की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

डार की बेटी इस हादसे की चश्मदीद है. उसने शनिवार को मीडिया को बताया, "जैसे ही गोलियों की आवाज आई, सेना की एक गाड़ी तेजी से निकली. उन्होंने ही गोली चलाई थी."

संवाददाता इन आरोपों की सत्यता की पुष्टि नहीं कर पाया. हालांकि, द क्विंट के पास एक मीडिया रिलीज है. इसमें आतंकवादी समूह ने डार पर हमला करने का दावा किया है और हमले बढ़ाने की भी धमकी दी है.

प्री-प्लान अटैक की संभावनाएं

पिछले हफ्ते आतंकवादी समूह द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने श्रीनगर के ईदगाह इलाके के पास जम्मू-कश्मीर पुलिस के इंस्पेक्टर पर हमले का दावा किया था. इसे पुलिस लश्कर-ए-तैयबा का एक फ्रंट कहती है.

जम्मू-कश्मीर पुलिस के सूत्रों ने द क्विंट को बताया कि हमले के वक्त इंस्पेक्टर मसरूर वानी श्रीनगर के ईदगाह मैदान में क्रिकेट खेल रहे थे. सूत्रों ने कहा, ''वह मैदान में 6 घंटे से मौजूद थे. अपनी वर्दी में भी नहीं थे. मैदान में हजारों लोग थे. तभी कहीं से आतंकवादी आया और उसने तीन राउंड फायरिंग की.”

सूत्रों ने कहा कि हमले के बाद वह आतंकी गलियों से होता हुआ भाग निकला. श्रीनगर में छोटी-छोटी गलियां हैं. "आतंकवादी को गोलियां चलाने और भाग निकलने में सिर्फ 4 मिनट का समय लगा. मसरूर के कुछ दोस्तों ने उसका पीछा करने की कोशिश की लेकिन वह भाग गया.

सोर्स का कहना है "जब इतने सारे लोग मौजूद हों, तब ऐसे में वारदात को अंजाम देने में बहुत आत्मविश्वास की जरूरत होती है. समय के साथ आतंकियों ने यह सीख लिया है.'"

सूत्रों के मुताबिक, यह उम्मीद नहीं कि वानी पर हमला पूर्व नियोजित था. ''हो सकता है कि आतंकियों को उनके मैदान में होने का पता चला और उन्होंने अचानक हमला करने की योजना बनाई हो.''

अभी दो महीने पहले ही पूर्व डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा था कि हम "जम्मू-कश्मीर में जीरो टेरिरिज्म" की राह पर हैं. दिलबाग सिंह ने पिछले हफ्ते ही अपना पद छोड़ा है.

पूर्व डीजीपी ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद सबसे कमजोर स्थिति में है. पिछले महीने सीआरपीएफ (श्रीनगर सेक्टर) के महानिरीक्षक अजय कुमार यादव ने भी कहा था कि श्रीनगर में कोई आतंकवाद नहीं है.

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'लोगों में दहशत फैलाना मकसद'

श्रीनगर में वानी पर हमले के साथ ही दो घटनाएं और भी हुईं. उत्तरी कश्मीर के तांगमर्ग गांव में जम्मू-कश्मीर पुलिस के हेड कांस्टेबल की हत्या कर दी गई और उत्तर प्रदेश के एक प्रवासी मजदूर को मार डाला गया. ये प्रवासी मजदूर दक्षिण कश्मीर के पुलवामा के तुमची गांव में एक ईंट भट्ठे पर काम करता था.

पिछले हफ्ते क्विंट ने उत्तरी कश्मीर के तंगमर्ग के क्रालपोरा गांव का दौरा किया. वहां हेड कांस्टेबल गुलाम मुहम्मद डार के घर पर उन्हें श्रद्धांजलि देने बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे थे.

वानी की तरह डार भी हमले के समय ड्यूटी पर नहीं थे. धान के खेतों को पास ही उनका नया मकान बना था. वहां कुछ काम चल रहा था और डार उसे देखने गए थे.

उनके भाई मोहम्मद यूसुफ ने कहा, "वह मोटरसाइकिल पर एक प्लंबर को पास के गांव में छोड़ने गए थे. लौटते वक्त उन्हें हमलावरों ने गोली मारी."

डार की सात बेटियां हैं. इनमें सबसे छोटी 6 साल की और सबसे बड़ी 25 साल की है. गांव वालों का कहना है कि उन्हें कौन और क्यों मारना चाहेगा, हम सोच भी नहीं सकते. डार के बहनोई शब्बीर अहमद ने कहा..
"आतंकियों का मकसद आतंक फैलाना था. वरना हमें और कोई वजह समझ नहीं आती."
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क्रालपोरा की आबादी काफी कम है. यह मशहूर टूरिस्ट रिसॉर्ट तांगमर्ग की ओर जाने वाली सड़क की चोटी पर स्थिति है. यह गांव धान के लहलहाते खेतों से घिरा हुआ है, जहां धान की पराली के ढेर लगे हुए हैं. वहां सिर्फ रेसिडेंशियल क्वार्टर हैं, और फिर खुले खाली मैदान. यह ऐसी जगह नहीं जहां कोई उम्मीद करेगा कि आतंकवादी आएंगे और गांव वालों की हत्या करेंगे.

डार के चचेरे भाई मोहम्मद अशरफ भट ने कहा, "हमें शक है कि हमें और इस इलाके को अच्छी तरह जानने वाला कोई शख्स इस हत्या में शामिल है."

आतंकियों को एकदम सही जानकारी कैसे मिली?

यूं साजिश रचने का यह अंदाज पिछले हफ्ते श्रीनगर में इंस्पेक्टर पर हुए हमले के साथ-साथ प्रवासी मजदूर मुकेश कुमार की हत्या से भी मेल खाता है.

38 वर्षीय मुकेश उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के भटपुरा गांव का रहने वाला था. वह ईंट भट्ठे में काम करता था. उस दिन वह किसी काम से जा रहा था. तभी मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावर आए और उस पर कई राउंड गोलियां चलाईं. उसके सिर और सीने में गोली लगी. अस्पताल पहुंचने पर उसे मृत घोषित कर दिया गया.

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने हमले को "कायरतापूर्ण" बताया और कहा कि जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा.

इन हमलों से पता चलता है कि आतंकवाद के कमजोर पड़ने के बावजूद आतंकी समूहों को उन लोगों की सटीक जानकारी रहती है, जिन्हें वे अपना निशाना बनाना चाहते हैं. इसके लिए उनके अपने नेटवर्क हैं.

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल मारे गए 46 आतंकवादियों में से 37 पाकिस्तानी घुसपैठिए हैं, जबकि नौ रंगरूट हैं.
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हाइब्रिड आतंकवाद की वापसी

2021 से कश्मीर घाटी उस समस्या से जूझ रही है, जिसे सुरक्षा बल "हाइब्रिड आतंकवाद" कहते हैं. पुलिस का कहना है कि नए ट्रेंड में सहानुभूति रखने वाले युवाओं को निशाना बनाकर हत्या करने के लिए उकसाया जाता है. चूंकि ये लोग नौसिखिया होते हैं और आतंकवाद का उनका कोई पूर्व रिकॉर्ड नहीं होता, इसलिए उन पर कोई शक नहीं करता.

पिछले दो साल में इस इलाके में कई हाई-प्रोफाइल हत्याएं हुई हैं, जहां पीड़ित ज्यादातर पुलिस कर्मी या धार्मिक अल्पसंख्यक हैं. इस साल की शुरुआत में आतंकवादियों ने पुलवामा के अचन गांव में एक कश्मीरी हिंदू संजय शर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी थी. पिछले साल अकेले कश्मीर में निशानदेही पर ऐसे 29 हमले हुए थे.

द क्विंट ने इनमें से अधिकांश हत्याओं को व्यक्तिगत रूप से कवर किया है और हाइब्रिड उग्रवाद के उतार-चढ़ाव पर नजर रखी है.

बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी

एक के बाद एक हमलों के बाद सुरक्षा बलों ने घाटी में गिरफ्तारियां और छापेमारी तेज कर दी हैं. क्विंट के रिपोर्टर ने पुलवामा जैसे क्षेत्रों में कई लोगों से बात की. वहां के लोगों ने पुष्टि की कि उनके रिश्तेदारों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है.

ऐसा पहली बार नहीं है कि सुरक्षा बलों ने आगे के हमलों को रोकने की कोशिश में कथित ओवर ग्राउंड वर्कर्स (ओजीडब्ल्यू) को बड़े पैमाने पर हिरासत में लिया है.

जब अक्टूबर 2021 में घाटी में घातक हमलों का कहर था और आतंकियों ने लगभग 13 लोगों की गोली मारकर हत्या की थी, तब जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लिया गया था. वह भी इस शक के आधार पर कि वे ओसीडब्ल्यू नेटवर्क का हिस्सा थे.
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लेकिन इस हफ्ते जम्मू-कश्मीर के प्रमुख नेताओं ने लोगों को हिरासत में लेने पर हंगामा खड़ा किया. पूर्व मंत्री और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पार्टी के प्रमुख सज्जाद लोन ने गिरफ्तारियों को "मैक्रो-पुलिसिंग" कहकर उसकी निंदा की और इसे मनमानी बताया.

“ओजीडब्ल्यू के नाम पर पिछले 24 घंटों में सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया है. ये वे लोग हैं जिनके अतीत में आतंकवाद के दाग हैं, लेकिन वे लोग पिछले दशकों से कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं."

लोन ने कहा कि ऐसा करने से सिर्फ लोगों के बीच अलगाव गहरे होते हैं. यह कार्रवाई कश्मीरियों को "हिंसा के दुष्चक्र" से बाहर आने से रोकती है.

शांति भंग करने की लगातार कोशिश

सुरक्षा सूत्रों ने हाल ही में कहा था कि जम्मू कश्मीर में स्थिति सामान्य बताई जा रही है. इसी के जवाब में आतंकी समूह नए सिरे से हमलों की योजना बना रहे हैं. एक सुरक्षा सूत्र का कहना है...

"वरिष्ठ अधिकारियों और उपराज्यपाल ने कई बार दोहराया कि इस केंद्र शासित प्रदेश में शांति है और हिंसा खत्म हो गई है. इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि जम्मू-कश्मीर में नए पुलिस महानिदेशक ने कार्यभार संभाला है और नेतृत्व में बदलाव हुआ है."

अधिकारी ने कहा कि इन हमलों के अपराधी "सु-संगठित" लगते हैं और उन्होंने मध्य, दक्षिण और उत्तर की तीनों पुलिस रेंजों में खुफिया जानकारी के आधार पर एक के बाद एक हमलों को अंजाम दिया है.

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सूत्रों के अनुसार, "इससे पता चलता है कि उन्हें सीमा पार से आकाओं से हुक्म दिया जाता है कि कब और कहां हमला करना है."

इस बीच पुलिस सूत्रों ने द क्विंट को बताया कि घायल इंस्पेक्टर मसरूर वानी पिछले हफ्ते हुए जानलेवा हमले में बच गए हैं. “पहले तीन दिन उनके लिए बहुत बुरे रहे लेकिन डॉक्टर अब हमें बता रहे हैं कि उनके ग्लासगो कोमा स्केल (जो चोट के बाद बताता है कि उसके होश में आने का स्तर क्या है) में सुधार हुआ है. वह रिस्पांस दे रहे हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा. "लेकिन ऐसे मरीजों को अभी भी बहुत गंभीर माना जाता है."

(शाकिर मीर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वे @shakirmir पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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