जावेद अख्तर (Javed Akhtar) मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में एक संस्था की तरह हैं. सलीम खान के साथ, उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथा लिखी, जो 1970 के दशक में पूरे दक्षिण एशिया में किसी कल्ट जैसा बन गया.
सलीम खान के साथ उनकी पार्टनरशिप टूटने के बाद, उन्होंने फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखना जारी रखा. लेकिन उन्होंने खुद को सिर्फ स्क्रिप्ट लिखने तक सीमीत नहीं रखा. उन्होंने कविता और गीत भी लिखे. उनकी रुचि फिल्मों से परे है. वे सार्वजनिक मुद्दों में रुचि लेते हैं. राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में काम कर चुके हैं. उनकी फैन फॉलोइंग सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि पाकिस्तान सहित सरहदों से परे फैली हुई है.
हाल ही में जावेद अख्तर पाकिस्तान के दौरे पर गए थे. उन्होंने लाहौर में फैज उत्सव में भाग लिया. यहां से वे कराची साहित्यिक उत्सव में भाग लेने के लिए कराची गए.
फैज फेस्टिफल में एक सवाल के जवाब में जावेद अख्तर ने कहा, 'मैं पूरे विश्वास और गर्व के साथ कह सकता हूं कि हमने भारत में 1947 से लेकर आज तक काफी अच्छा काम किया है, लेकिन यह और भी अच्छा हो सकता था. आज, हम दुनिया के सबसे मजबूत इंडस्ट्रियल देशों में से एक हैं, लेकिन यह और बेहतर हो सकता था अगर क्षेत्र बंटा हुआ नहीं होता".
उन्होंने बताया कि दुनिया के कई क्षेत्रों ने एक साथ प्रगति की. उन्होंने पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका सहित अन्य क्षेत्रों का उदाहरण दिया.
आजादी के बाद से भारत की तरक्की के बारे में लाहौर में जावेद अख्तर के दिए सकारात्मक बयानों को भारतीय मीडिया में तवज्जो नहीं मिली. इन बयानों को इसलिए तवज्जो दी जानी चाहिए थी क्योंकि इस वक्त पाकिस्तान आर्थिक और दूसरे मोर्चे पर भारी संकटों से गुजर रहा है.
पाकिस्तान की बिगड़ती आर्थिक हालत के बीच क्या भारत से रिश्ते मजूबत हो सकते हैं?
पाकिस्तान इस वक्त बेहद मुश्किल आर्थिक हालातों से गुजर रहा है. वो IMF से कर्ज को जारी रखने और साथ ही अपने पंरपरागत मददगार अरब देशों और चीन से भी मदद की उम्मीद में है.
चूंकि कोई भी देश नहीं चाहता है कि परमाणु हथियारों वाले देश में आर्थिक मंदी से सामाजिक अशांति पैदा हो जाए. लेकिन पहले की तुलना में इस बार IMF ने पाकिस्तान पर कड़ी शर्तें थोप दी. IMF ने जोर देकर पाकिस्तान को अपना आर्थिक मैनेजमेंट दुरुस्त करने को कहा. इसके लिए अमीरों से टैक्स वसूली की शुरुआत और गरीबों को सब्सिडी का इंतजाम करना था.
पाकिस्तान का सदाबहार मित्र चीन भी 700 मिलियन अमेरीकी डॉलर का लोन देने पर सहमत हो गया, लेकिन उसने ऐसा तभी किया जब पाकिस्तान IMF की कठोर शर्तों को मान लिया.
इस सब के बीच, किसी भी बुद्धिमान पाकिस्तानी को जावेद अख्तर की बातों के मायने ठीक से समझना चाहिए था. इसे साथ साथ तरक्की की राह पर आगे बढ़ने वाले क्षेत्र के तौर पर लेना चाहिए था. इसका मतलब यह था कि उसके देश की इकोनॉमी को स्थायी तौर पर ऊपर की ओर रखा जा सकता है, अगर क्षेत्र की सबसे बड़ी इकोनमी भारत के साथ वो खुद को इंटीग्रेट कर ले.
लगभग एक साल पहले, पाकिस्तान के प्रमुख उद्योगपति मियां मंशा ने भी पाकिस्तानी सरकार से भारत के साथ आर्थिक संबंध सुधारने की मांग की थी, भले ही दोनों देशों के बीच सियासी मुद्दों पर गतिरोध क्यों ना हो.
हालांकि, मियां मंशा की बातों को नजरअंदाज कर दिया गया था. साथ ही इस बात पर भी संदेह है कि जावेद अख्तर ने दोनों देशों के मिलजुलकर प्रगति करने का जो सामूहिक नजरिया दिया उस पर कोई अमल भी करना चाहेगा या फिर किसी सत्ताधारी ताकत का ध्यान भी इधर आकर्षित होगा. क्योंकि वहां राजनीतिक वर्ग और उसके शक्तिशाली प्रतिष्ठान अपनी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए खैरात के आदी हो गए हैं. फिर भी, लाहौर के दर्शकों को भारत की आर्थिक प्रगति के बारे में जावेद अख्तर ने जो एक सकारात्मक संदेश दिया, वो अच्छा था.
संगीत और आतंकवाद पर जावेद अख्तर ने पाकिस्तान को बेपर्दा किया
जहां तक भारत का संबंध है, उसने हमेशा पाकिस्तान के साथ कारोबारी रिश्तों के विकास की वकालत की है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इलाके में 'सबका विकास' विजन का भी हिस्सा है. उनकी सरकार ने केवल एक ही शर्त रखी है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ ‘ आतंकवाद’ का इस्तेमाल बंद कर दे. इस संदर्भ में, कराची साहित्य उत्सव में जावेद अख्तर की टिप्पणी वाजिब थी. इसने भारत में मीडिया का ध्यान खींचा.
एक बातचीत के दौरान, अख्तर ने कहा कि महान पाकिस्तानी गायक दिवंगत नुसरत फतेह अली खान और दिवंगत मेहंदी हसन ने लाइव परफॉर्मेंस करने के लिए भारत का दौरा किया था लेकिन लता मंगेशकर को कभी भी पाकिस्तान में आमंत्रित नहीं किया गया था. अख्तर का साफगोई के साथ बोलना अच्छा था.
तथ्य यह है कि लता मंगेशकर का संगीत पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय था, वहीं पाकिस्तान ने हमेशा यह दिखाने की कोशिश की कि वो सांस्कृतिक तौर पर भारत से अलग है. अगर लता मंगेशकर को पाकिस्तान में जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला होता, जो कि निश्चित तौर पर ही होता अगर उन्हें बुलाया जाता, तो यह पाकिस्तान के लिए झटका जैसा होता. पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के जो लोग भारतीय और पाकिस्तानी संस्कृति के बीच मतभेदों को प्रोजेक्ट करने की लगातार कोशिश करते रहते हैं उनके लिए यह बड़ा सेटबैक होता.
अख्तर ने 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बारे में कराची के दर्शकों से जो कुछ कहा वो सीधे तौर पर उनके दिल से निकले थे. उन्होंने कहा कि वो मुंबई के रहने वाले हैं और हमलावर नॉर्वे या मिस्र से नहीं आए थे.
26/11 के मुजरिम "आपके देश" में खुलेआम घूम रहे थे, इसलिए अगर भारतीयों को इसकी शिकायत थी तो पाकिस्तानियों को नाराज नहीं होना चाहिए. उनके शब्द बहुत शालीन थे लेकिन संदेश कड़ा था. उनके दर्शकों ने उन्हें ध्यान से सुना, हालांकि बाद में जावेद अख्तर की टिप्पणी के खिलाफ पाकिस्तान में कुछ आवाजें उठीं.
इसमें संदेह है कि क्या पाकिस्तानी अधिकारी लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जावेद अख्तर की बातों को गंभीरता से लेंगे जो हमले के लिए जिम्मेदार थे. हालांकि, तथ्य यह है कि जावेद अख्तर जैसा व्यक्ति, जो किसी भी तरह से भारत के सत्तारूढ़ दल से जुड़ा नहीं है, ने इस तरह की खरी-खरी बात की. उनका सम्मान करने वाले पाकिस्तानियों की एक बड़ी संख्या को उन्होंने बता दिया कि मुंबई हमले के घाव भारत में नहीं भरे हैं.
अख्तर ने लाहौर और कराची में जो कुछ भी कहा, उसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए.
(लेखक, विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव [वेस्ट] हैं. उनका ट्विटर हैंडल @VivekKatju है. यह एक ओपिनियन पीस है. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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