कुछ हफ्ते पहले मैंने लिखा था कि देश की कई क्षेत्रीय पार्टियां एक शख्स या परिवार के भरोसे चल रही हैं और उनमें उत्तराधिकार के मसले को नहीं सुलझाया गया है. यह भारतीय राजनीति की कमजोरी है, जो तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके की निर्विवाद नेता जे जयललिता के निधन के बाद फिर सामने आ गई है.
अगले एक साल में जयललिता की पार्टी और तमिलनाडु सरकार का क्या होगा. क्या पार्टी बची रहेगी? अगर इसका वजूद बच भी जाता है, तो उसका स्वरूप क्या होगा? जयललिता के बाद एआईएडीएमके का नेता कौन होगा? क्या राज्य की जनता जयललिता के जाने के बाद पार्टी पर पहले की तरह भरोसा करती रहेगी?
जरा याद कीजिए कि 1987 में एआईएडीएमके के संस्थापक एमजीआर के निधन के बाद क्या हुआ था.
जयललिता के जाने से पहले चुन लिया था नया मुख्यमंत्री
वैसे अभी तो पार्टी एकजुट दिख रही है. जयललिता को मृत घोषित किए जाने से पहले केंद्र ने यह पक्का कर लिया था कि एआईएडीएमके के विधायक नया मुख्यमंत्री चुन लें. राज्यपाल ने भी परदे के पीछे से इस मामले में मजबूत भूमिका निभाई.
जयललिता को जब इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, तो उन्होंने ही पार्टी को बैकअप प्लान तैयार करने को कहा था. हालांकि जयललिता की बीमारी के दौरान ब्यूरोक्रेसी सरकार चलाती रही.
पार्टी की अंदरूनी चुनौतियां
एआईएडीएमके में अभी कोई टूट नहीं होने जा रही, लेकिन जाने एक साल बाद क्या होगा? पार्टी चाहे कुछ भी कहे, उसमें लीडरशिप को लेकर संघर्ष चल रहा है. शांत रहने वाले राज्य के नए चीफ मिनिस्टर ओ पनीरसेल्वम जयललिता की सबसे करीबी दोस्त और विश्वासपात्र शशिकला से मिलने वाली चुनौती का आगे कैसे सामना करेंगे, जिनका पार्टी पर कंट्रोल है.
इसमें कोई शक नहीं है कि शशिकला यह चुनौती पेश करेंगी. माना जाता है कि उनके मन में मुख्यमंत्री बनने की तमन्ना लंबे समय से है. तमिलनाडु में कई जानकारों का मानना है कि शशिकला और जयललिता के बीच लंबे समय तक अनबन इसलिए रही, क्योंकि वह अम्मा के खिलाफ साजिश कर रही थीं. दोनों को एक-दूसरे की जरूरत थी, इसलिए बाद में उनके बीच सुलह हुई.
पार्टी में शशिकला की चलती है
पार्टी में शशिकला की चलती है. वह सब कुछ कंट्रोल करती हैं. एक तरह से यह यूपीए सरकार जैसा है, जिसमें सोनिया गांधी का कांग्रेस पार्टी पर नियंत्रण था और मनमोहन सिंह सरकार चला रहे थे. लेकिन उसमें मनमोहन सिंह अपनी भूमिका से संतुष्ट थे.
क्या पनीरसेल्वम भी वैसा ही करेंगे? उन्हें अपनी कुर्सी के पीछे के पावर सेंटर को देखना होगा क्योंकि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहती थीं, जबकि शशिकला और उनके पति नटराजन की नजर तमिलनाडु के सिंहासन पर है. अगर वे पनीरसेल्वम सरकार के कामकाज में दखलंदाजी और पावर का गलत इस्तेमाल करते हैं, तो एआईएडीएमके टूट भी सकती है.
पार्टी का जनरल सेक्रेटरी कौन बनता है, यह बात काफी मायने रखती है. इसके लिए शशिकला का नाम उछाला जा रहा है. यह एआईएडीएमके के लिए ठीक नहीं होगा, क्योंकि इससे कई वजहों से पार्टी का बुरा वक्त शुरू हो सकता है.
अगर दो दर्जन एमएलए भी चले जाएं, तो सरकार गिर जाएगी. बहुत कुछ इस पर डिपेंड करेगा कि डीएमके नेता एम करुणानिधि के छोटे बेटे और घोषित उत्तराधिकारी एम के स्टालिन एआईएडीएमके में कैसे सेंध लगाते हैं. यह तय मानिए कि वह इसकी कोशिश करेंगे.
हालांकि हमें पनीरसेल्वम को हल्के में नहीं लेना चाहिए. वह भले ही जयललिता के आगे नतमस्तक रहे, लेकिन शशिकला की चुनौती वह स्वीकार कर सकते हैं. दरअसल सरकार के जरिये जो पावर मिलती है, वह नेताओं को पूरी तरह बदल सकती है, लेकिन मनमोहन सिंह इसके अपवाद हैं.
डीएमके फैक्टर
उत्तराधिकार की समस्या सिर्फ एआईएडीएमके में ही नहीं है. डीएमके सुप्रीमो एम करुणानिधि की उम्र बहुत ज्यादा हो चुकी है और वह बीमार चल रहे हैं. उसे भी एआईएडीएमके जैसी समस्या का सामना करना पड़ेगा.
क्या डीएमके में सभी लोग स्टालिन की लीडरशिप स्वीकार करेंगे? करुणानिधि की दूसरी पत्नी राजति अम्माल और उनकी बेटी कनिमोझी पार्टी में सत्ता के दूसरे केंद्र हैं. कनिमोझी की उम्र उनके साथ है और वह महिला हैं. तमिलनाडु की महिलाएं, विमेन लीडर्स को पसंद करती आई हैं.
कुल मिलाकर लग रहा है कि तमिलनाडु में लंबे समय तक राजनीतिक उथलपुथल का दौर शुरू हो गया है, क्योंकि जिन दो पांव पर यह 1991 के बाद से चल रह था, उसमें से एक हटा लिया गया है.
(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर राय रखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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