कोरोना लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूरों की समस्याओं से निपटने के लिए झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने 4 मई को मनरेगा के साथ तीन नई योजनाओं का ऐलान किया. बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटोहो खेल विकास योजना के जरिए झारखंड सरकार राज्य में रोजगार के अवसर पैदा कर मजदूरों के लिए आय के साधन सुनिश्चित करना चाहती है. ताकि उनके पलायन को रोका जा सके.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) की एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में बेरोजगारी की मौजूदा दर 47.1 फीसदी है, जो कि देश की औसत 23.5 फीसदी से दोगुनी है. वहीं भारत के आर्थिक सर्वे से खुलासा हुआ है कि साल 2001 से 2011 तक झारखंड से करीब 50 लाख कामगार पलायन कर गए.
मैं हिमाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक, पंजाब और महाराष्ट्र में काम करने वाले झारखंड के मजदूरों से मिला. एक बार रामगढ़ के पतरातू का विक्रम मेरे घर खाना लेकर आया, वह ऑनलाइन डिलीवरी ऐप जोमैटो के लिए काम करता था. उससे बातचीत में एक बात तो साफ थी कि वह अपने घर से दूर रहकर काम नहीं करना चाहता. उसने कहा,
‘घर पर रोजगार की संभावनाएं नहीं होने की वजह से ही मैं यहां आ गया. अगर वहां भी नियमित कमाई वाली ठीक-ठाक नौकरी मिल जाए तो मैं अपना घर और अपनी जमीन कभी ना छोड़ूं.’
देश भर के प्रवासी मजदूरों की भावना ऐसी ही है. अब झारखंड सरकार ने राज्य में लौट रहे 5 लाख प्रवासी मजदूरों की लिस्ट तैयार की है. ये डेटा झारखंड कोरोना सहायता ऐप पर रजिस्टर कर चुके मजदूरों से जुटाया गया. झारखंड सरकार की ये योजनाएं एकदम अलग हैं और बड़े बदलाव ला सकती हैं
बिरसा हरित ग्राम योजना
इस योजना का मुख्य लक्ष्य है 5 लाख परिवारों को अगले 5 साल तक सौ फल देने वाले पेड़ मुहैया कराना. इसलिए सरकार पूरे राज्य में करीब 5 करोड़ पेड़ लगाने जा रही है. इसके लिए ब्लॉक और जिला स्तर पर लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी.
इस स्कीम के तहत फलों को बेचने की भी व्यवस्था की जाएगी. सरकार 2 लाख करोड़ एकड़ बंजर जमीन का इस्तेमाल कर सड़क के दोनों तरफ पेड़ लगाएगी, जिसमें निजी जमीनें भी शामिल होंगी.
नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना
इस योजना की जिम्मेदारी जल और स्वच्छता विभाग पर होगी. इस प्रोजेक्ट के तहत फार्मो में पानी जमाकर 5 लाख करोड़ लीटर पानी बचाने का लक्ष्य रखा गया है. इस पॉलिसी में व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर लोगों को जोड़ कर फार्मों और घरों में पानी की बचत की जाएगी.
झारखंड कृषि जलवायु क्षेत्र 7 में आता है, राज्य का ज्यादातर इलाका पठारी है इसलिए बारिश के बाद ज्यादातर पानी पड़ोस के राज्यों में चला जाता है. ऐसे में पानी को बचाने से काफी फायदा हो सकता है. इस योजना में ज्यादा जोर पलामू डिवीजन पर होगा, जहां सूखा और कम बारिश की समस्या बनी रहती है.
केन्द्र सरकार के जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के 7 जिलों के 55 ब्लॉक सूखे से प्रभावित हैं. मानसून में जो बारिश होती है उससे सिर्फ खरीफ फसल हो पाती है. पानी बचा तो किसानों की खेती की क्षमता बढ़ेगी और पूरे साल में 3-4 फसल तैयार की जा सकेगी.
हेमंत सोरेन सरकार को उम्मीद है कि इन दोनों स्कीम से जन वितरण प्रणाली (PDS) भी मजबूत होगी. पिछली सरकार के दौरान कमजोर पीडीएस की वजह से राज्य में बड़ी तादाद में लोग भुखमरी के शिकार हो गए. उस समय बीजेपी सरकार ने राशन कार्ड को आधार से जोड़ना अनिवार्य कर दिया था. जिसकी वजह से बड़ी तादाद में लोगों के राशन कार्ड अवैध घोषित कर दिए गए.
28 अप्रैल को झारखंड सरकार ने हाईकोर्ट को जानकारी दी कि 7.29 लाख लोगों ने दोबारा राशन कार्ड के लिए आवेदन किया है, जिनमें से सिर्फ 35.64 फीसदी लोगों को सरकार से 10 किलो मुफ्त अनाज मिले.
वीर शहीद पोटोहो खेल विकास योजना
बिरसा हरित ग्राम योजना की तरह यह योजना भी ग्रामीण विकास विभाग की जिम्मेदारी होगी, जिसका मुख्य उद्देश्य है राज्य में पंचायत के स्तर पर (राज्य में 4300 पंचायत हैं) 5 हजार स्टेडियम तैयार करना. इसके तहत युवकों और युवतियों को खेल के साधन भी मुहैया कराए जाएंगे और ब्लॉक और जिला स्तर ट्रेनिंग सेंटर भी बनाए जाएंगे. इस स्कीम के तहत स्पोर्ट्स कोटा में लोगों को रोजगार की खास सुविधा भी दी जाएगी.
बिरसा हरित ग्राम योजना और पोटोहो खेल विकास योजना में मनरेगा के तहत रोजगार के मौके तैयार किए जाएंगे. जहां बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत 25 करोड़ रोजगार के अवसर बनाने का लक्ष्य रखा गया है, पोटोहो खेल विकास योजना के तहत 1 करोड़ रोजगार देने का प्लान है.
2020-21 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि पर 15 लाख करोड़ खर्च करने का बजट रखा है. बजट के मुताबिक खेती के लिए कर्ज देने वाली NBFC और कृषि सहकारी बैंकों को NABARD से मदद मिलेगी. झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार में ऐसे कृषि सहकारी बैंक लोगों में खूब प्रचलित हैं. इसलिए बिरसा हरित ग्राम योजना और नीलांबर-पीतांबर जल योजना दोनों स्कीम को इनकी मदद मिलेगी.
कोरोना लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूरों को ध्यान में रखकर बनाई गई इन योजनाओं पर अगर गंभीरता से काम किया गया तो न सिर्फ मजदूरों के लिए फौरी तौर पर मददगार साबित हो सकती हैं बल्कि पलायन की पुरानी समस्या को भी बहुत हद तक दूर कर सकती हैं.
(लेखक अर्घ्य भास्कर स्वतंत्र पत्रकार हैं. ये लेखक के अपने विचार है. इससे क्विंट का किसी तरह का सरोकार नहीं है.)
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