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13 नेशनल मेडल जीते, सुप्रीति को जाना है कोलंबिया लेकिन ढंग के जूते तक नहीं

सुप्रिति जब आठ महीने की थीं, उसी वक्त उनके पिता को माओवादियों ने मार दिया था.

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बीते 26 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में हाल ही में संपन्न हुए खेलो इंडिया का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि इस टूर्नामेंट में हमारे खिलाड़ियों ने कई रिकॉर्ड्स बनाए. इसमें अधिकतर बहुत ही साधारण परिवारों से आते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि यहां कुल 12 रिकॉर्ड्स टूटे हैं. इसमें 11, महिला खिलाड़ियों के नाम दर्ज हैं.

इस 11 में एक खिलाड़ी झारखंड की सुप्रिति कच्छप हैं. उन्होंने 3000 मीटर दौड़ में चार साल पहले बने नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ा है. इसके लिए उन्होंने 9.46.14 मिनट का समय निकाला है. पहले यह रिकॉर्ड सुप्रिति की ही सीनियर और हिमाचल प्रदेश की खिलाड़ी सीमा के नाम था. उन्होंने इसके लिए 9.50 मिनट का समय लिया था. फिलहाल दोनों एक साथ भोपाल के सेंटर फॉर एक्सिलेंस में एक साथ अभ्यास करती हैं.

रिकॉर्ड तोड़ने वाले इस इवेंट के बारे में वो कहती हैं, ‘इवेंट से पहले मेरी तबियत खाफी खराब हो गई. क्योंकि वहां बाकि इंतजाम तो ठीक थे, लेकिन खाना खराब था, जिस वजह से मेरा पेट खराब हो गया. इवेंट से पहले कोच प्रतीभा टोप्पो से कहा कि मैम मुझे नहीं लगता कि मैं चल भी पाऊंगी. लेकिन कोच ने हौसला दिया. रनिंग के बीच में ही पेट में दर्द होने लगे. लेकिन ठान लिया कि करना है. और किया तो रिकॉर्ड तोड़ दिया.’

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सुप्रिति अब अंडर-20 विश्वकप (2-7 अगस्त) खेलने कोलंबिया जा रही हैं. यहां वह 5000 मीटर रेस में हिस्सा लेंगी. लेकिन उनके पास शूज नहीं है. दी क्विंट से वो कहती हैं, ‘फिलहाल जिस शूज से मैंने नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा है, वह फटने लगे हैं. आगे जो मेरी जरूरत है, उसकी कीमत ही 20 हजार रुपए से शुरू होती है. जो कि मेरे पास नहीं हैं.’

रांची से 95 किलोमीटर दूर गुमला जिले के घाघरा ब्लॉक के बुरहू गांव की रहनेवाली इस खिलाड़ी की मां बालमती देवी सिसई ब्लॉक कार्यालय में ही फोर्थ ग्रेड की कर्मचारी हैं. सुप्रिति के मुताबिक, उनकी मां पिछले कई महीनों से जो भी सैलरी आती है, उसका अधिकतर हिस्सा उसे भेज दे रही हैं. लेकिन वह इतनी रकम नहीं है, जिससे वह जूते खरीद सके. वो कहती हैं, अगर खरीद लिया तो उस महीने सप्लीमेंट फूड मैं नहीं ले पाऊंगी. जो कि उससे भी ज्यादा जरूरी है.

वो आगे कहती हैं, सेंटर फॉर एक्सिलेंस में अभ्यास, खाना, रहना मुफ्त है. लेकिन सप्लीमेंट, पढ़ाई, जूते जैसे अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए घर से या कभी कभी पूर्व कोच से पैसे मंगाने पड़ते हैं.
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अब तक कुल 14 नेशनल टूर्नामेंट जीत चुकी इस खिलाड़ी के पैदा होने के कुछ महीने बाद ही ट्रैजडी शुरू हो गई थी. उनके पिता पेशे से किसान थे. साथ ही जड़ी-बूटियों से आसपास के ग्रामीणों का इलाज भी करते थे. सन 2000 में सुप्रिति जब आठ महीने की थी, उसी वक्त उनके पिता को माओवादियों ने मार दिया था.

उसके कुछ समय बाद मां मानसिक तौर पर बीमार रहने लगी. ठीक हुईं तो कुछ साल मजदूरी का काम किया. बाद में सरकार ने उन्हें मुआवजा के तौर पर नौकरी दिया. दो भाई और तीन बहन में सबसे छोटी सुप्रिति को उनकी बड़ी बहन के पति ने उन्हें गांव से दूर, गुमला जिला मुख्यालय के आपसास स्कूल में दाखिला दिलाया.

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इस कमी को झेलनेवाली क्या सुप्रिति पहली खिलाड़ी हैं

पहला सवाल, इस स्थिति से गुजरनेवाली सुप्रिति कच्छप क्या पहली खिलाड़ी हैं? जवाब है, नहीं. फर्स्टपोस्ट में लिखी खेल पत्रकार नौरिस प्रीतम की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 में भारत की स्टार धाविका दुती चांद जब रियो ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रही थीं, जाने से चार दिन पहले तक उनसे पास वो खास जूते नहीं थे. जर्मनी में रहनेवाले एक भारतवासी पत्रकार अनवर जमाल ने उन्हें यह मुहैया कराया था

ठीक ऐसी ही स्थिति का सामना साल 1998 में महान धाविका पीटी उषा को करना पड़ा था. बैंकॉक में आयोजित एशियन गेम्स में हिस्सा लेने के लिए उनके पास मात्र एक जोड़ी जूते थे. उस वक्त भी अनवर जमाल के संपर्क करने पर सिंगापुर में रह रहे खेल पत्रकार हकीकत राय ने यह जूते पीटी उषा को मुहैया कराए थे.

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दूसरा सवाल, क्या प्रॉपर शूज इतना जरूरी है? सुप्रिति को पहली बार तराशने वाले एथलेटिक कोच प्रभात तिवारी कहते हैं, ‘जो शूज जितना हल्का होता है, वो उतना बेहतर होता है. हल्के शूज काफी महंगे आते हैं. अगह यह शूज समय से मिल जाते हैं तो खिलाड़ी उसके साथ अभ्यास कर अपना पैर उसमें एडजस्ट करता है. कह सकते हैं कि अभ्यास किया हुआ शूज, बेहतर रिजल्ट देता है.’

वो बताते हैं कि सुप्रिति जिस शूज के साथ अभी अभ्यास कर रही है, वह उन्होंने लंदन ओलंपिक में हिस्सा लेने गई हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान के हाथों 14 हजार रुपए में मंगवाया था.

झारखंड सरकार ने क्यों बकाया रखा है 4 लाख रुपया

दसवीं में फर्स्ट डिविजन लानेवाली और फिलहाल ग्रैजुएशन सेकेंड ईयर की छात्रा सुप्रिति के मुताबिक वह साल 2017 में एथलेटिक में आई. बेहतर करने पर 2018 से अभ्यास भोपाल में करती हैं, लेकिन झारखंड की तरफ से खेलती हैं. झारखंड सरकार की ओर से लाई गई खेल नीति के मुताबिक कैश अवार्ड के रूप में सरकार के पास उनका लगभग 4 लाख रुपया बकाया है.

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ये हाल तब है, जबकि सुप्रिति ने नेशनल क्रॉस कंट्री चैंपियनशिप 2018 सिल्वर, जूनियर नेशनल क्रॉस कंट्री कांस्य, नेशनल क्रॉस कंट्री 2019 रजत, जूनियर एथलेटिक्स 2019 कांस्य, क्रॉस कंट्री 2020 स्वर्ण, खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2020 स्वर्ण, जूनियर एथलेटिक्स 2021 रजत, क्रॉस कंट्री 2021 स्वर्ण, फेडरेशऩ कप 2021 कांस्य, जूनियर फेडरेशन कप 2021 कांस्य, जूनियर फेडरेशन कप 2022 दो रजत पदक, खेलो इंडिया यूथ गेम्स स्वर्ण पदक सहित कुल 13 नेशनल टूर्नामेंट में पदक हासिल किए हैं.

झारखंड सरकार के खेल मंत्री हफिजुल हसन ने इस पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.

नंगे पैर गांव में दौड़ती थी. पहली बार ट्रैक पर भी नंगे पैर भी ही दौड़ी. खून निकल गए. फिर शूज मिला और नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा. अब वर्ल्ड कप के लिए वह 5000 मीटर में हिस्सा लेने जा रही हैं. वो बताती हैं, पिछले साल यहां गोल्ड मेडल हासिल करनेवाले की टाइमिंग 16.05 का था. वहीं कांस्य पदक वाले की टाइमिंग 16.20 मिनट था.

मैं ये लक्ष्य पार कर सकती हूं. क्योंकि वर्कआउट में मैं अकेले में 16.20 का समय आसानी से निकाल ले रही हूं. अगर बेहतर शूज और कुछ आर्थिक मदद मुहैया हो जाए तो शायद देश को एक बेहतरीन खिलाड़ी मिल जाए.

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