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झारखंड में नहीं ‘370’ का असर,BJP को भारी पड़ सकते हैं लोकल मुद्दे

अर्जुन मुंडा पर भी दांव लगा सकती है बीजेपी

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झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है. झारखंड में सत्ताधारी बीजेपी वापसी की तैयारी में है. उधर, विपक्षी दल रघुबर सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए महागठबंधन खड़ा करने की तैयारी में हैं.

जिस तरह हरियाणा में एंटी इनकंबेंसी ने अपना असर दिखाया, ठीक उसी तरह झारखंड में भी इसके पूरे आसार नजर आ रहे हैं. शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री रघुबर दास कश्मीर, एनआरसी और तीन तलाक जैसे मुद्दों से अलग पांच साल में किये गये अपने कामों को ज्यादा मजबूती से सामने रख रहे हैं. दूसरी तरफ प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा रघुबर सरकार की कमियों और अपने एजेंडे को सामने रख रहा है.

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अर्जुन मुंडा पर भी दांव लगा सकती है बीजेपी

भारतीय जनता पार्टी (BJP) जमीनी स्थितियों को समझ रही है और इसीलिए यह बात अंदरखाने फैलायी जा रही है कि अबकी मुख्यमंत्री रघुबरदास नहीं, बल्कि अर्जुन मुंडा बनेंगे. इसके जरिये लोगों की निराशा को साधना की कवायद हो रही है.

झारखंड गठन के 19 सालों के दौरान इस राज्य में जितने भी मुख्यमंत्री हुए, उनमें अर्जुन मुंडा की छवि लोगों की निगाह में काम करने वाले मुख्यमंत्री की रही है. 2014 के विधानसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा अपने घरेलू विधानसभा क्षेत्र खरसांवा से ही चुनाव हार गये थे और इसलिए मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गये थे.

हालांकि, जानकार लोगों का मानना है कि पार्टी नेतृत्व ने ही अर्जुन मुंडा को हरवा दिया था. पिछले लोकसभा चुनाव में भी अर्जुन मुंडा हारते-हारते जीते थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने राज्य की 14 में से 12 सीटें जीती थीं और इनमें 11 सीटों पर जीत का मार्जिन औसत दो लाख से ज्यादा का रहा था, वहीं अर्जुन मुंडा को बीजेपी की परंपरागत सीट खूंटी से जीतने में भी दिन-रात एक करना पड़ा था. इसके बाद भी जीत हुई सिर्फ डेढ़ हजार वोट से. बता दें, बीजेपी के कड़िया मुंडा ने 1989 से 2014 तक हुए आठ चुनावों में से सात बार (2004 को छोड़कर) इस सीट पर जीत दर्ज की थी.

विधानसभा चुनाव 2014 के नतीजों पर एक नजर

2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 37 सीटें जीती थी, जबकि इससे ठीक पहले हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने यहां की 14 में से 12 सीटों पर कब्जा किया था. झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) 2014 के विधानसभा चुनावों में 19 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही थी. राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (JVM) ने आठ और कांग्रेस ने छह सीटों पर जीत दर्ज की थी. ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (AJSU) ने पांच सीटें जीती थीं और अन्य ने छह.

बीजेपी ने AJSU के साथ गठबंधन में सरकार बनाई थी और बाद में बाबूलाल मरांडी के आठ में सात विधायक बीजेपी में शामिल हो गये. इस तरह बीजेपी की रघुबरदास सरकार बहुमत में आ गई.

इस चुनाव में बड़े-बड़े नेता हार गये थे. बाबूलाल मरांडी दो सीटों से लड़े थे और दोनों पर हार गए. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी अपनी सीट हार गए. तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी दो सीटों से लड़े थे, जिसमें से पार्टी की परंपरागत सीट दुमका से हार गये थे. पूर्व सीएम मधु कोड़ा भी नहीं जीत पाए थे.

यही नहीं पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो भी अपनी परंपरागत सीट से नहीं जीत पाए थे. महतो इस सीट पर हुए उपचुनाव में भी हारे. इन सबकी हार बहुत अप्रत्याशित थी.

2009 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और JMM को 18-18 सीटें मिली थीं. कांग्रेस और बाबूलाल मरांडी की JVM गठबंधन में चुनाव लड़ी थी और क्रमश: 16 और 9 सीटें जीती थीं. अन्य के खाते में 20 सीटें आई थीं.
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लोकसभा चुनाव में बीजेपी के आगे नहीं टिका महागठबंधन

2019 के आमचुनाव में भी बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने 12 सीटों पर जीत दर्ज कराई. हालांकि, आम चुनाव से ठीक पहले यहां आम राय थी कि JMM, कांग्रेस, JVM और RJD का महागठबंधन BJP को कड़ी टक्कर देगा.

यही नहीं, लोग हेमंत सोरेन में अगला मुख्यमंत्री भी देखने लगे थे कि विधानसभा चुनाव में यही महागठबंधन जीतेगा. लेकिन पुलवामा आतंकी हमले और फिर बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक ने पूरा माहौल बदल दिया. आरजेडी टूट गई और उसके बड़े नेता बीजेपी में चले गए. महागठबंधन सिर्फ दो सीट (कांग्रेस की गीता कोड़ा चाईंबासा से और JMM के विजय कुमार हंसदा राजमहल से) ही जीत पाया. यहां तक कि JMM सुप्रीमो शिबू सोरेन भी अपनी सीट नहीं बचा पाए.

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झारखंड में नहीं दिख रहा आर्टिकल 370 या पाकिस्तान जैसे मुद्दों का असर

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद और यह चर्चा आम हो गई है कि कहीं झारखंड में भी वोटर हरियाणा को न दोहरा दे. बढ़ती बेरोजगारी और खेती की खराब होती हालत से आम जनजीवन तनावग्रस्त है.

लोगों ने यह तक कहना शुरू कर दिया है कि कश्मीर को तो ओढ़-बिछा नहीं लेगें और न पाकिस्तान से पेट भरने वाला है. इसके अलावा, यहां के मूलवासियों के बीच भी सीएनटी-एसपीटी एक्ट और एसएआर कोर्ट जैसे मुद्दे धधक रहे हैं.  

जहां आदिवासियों के बीच आशंका जल-जंगल-जमीन को लेकर है तो सदानों के बीच एसएआर कोर्ट खत्म किये जाने को लेकर गुस्सा है. मुख्यमंत्री रघुबरदास सीएनटी एक्ट का ठीकरा हेमंत सोरेन के सिर फोड़ने के अभियान में लगे हुए हैं और हेमंत बीजेपी के सिर सीएनटी को खत्म करने की साजिश का आरोप मढ़ रहे हैं.

पिछले दिनों बीजेपी के राज्यसभा सांसद समीर उरांव की शिकायत पर हेमंत सोरेन को सीएनटी एक्ट का दुरुपयोग कर जमीनें खरीदने के मामले में नोटिस भी जारी किया गया. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर भी जनता के स्तर पर सवाल उठ रहे हैं.

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विपक्ष के सामने एकजुटता की चुनौती

चुनावों का ऐलान हो चुका है. लेकिन महागठबंधन को लेकर विपक्ष अब तक एकजुट नहीं दिख रहा है. JVM के महागठबंधन में शामिल होने को लेकर अब तक तस्वीर साफ नहीं है. बाबूलाल हेमंत सोरेन को नेता मानने को तैयार नहीं हैं और सभी सीटों पर लड़ने की बात कर रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस कह रही है, उनको मना लिया जाएगा.

JMM और कांग्रेस के बीच अब तक सीटों का बंटवारा तक नहीं हो पाया है और न यह तय हो पाया है कि कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा.

बता दें, झारखंड की 81 विधानसभा सीटों पर पांच चरणों में चुनाव होना है. 30 नवंबर को पहले चरण की वोटिंग होगी और 23 दिसंबर को नतीजे घोषित जारी कर दिए जाएंगे.

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