अमेरिका में शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता की बागडोर नए राष्ट्रपति जो आर बाइडेन को सौंप दी गई. बाइडेन ने उसी कैपिटल की सीढ़ियों पर 46वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली, जहां दो हफ्ते पहले 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उकसावे के बाद बगावत की कोशिश की गई थी.
लोकतंत्र की मशाल एक से दूसरे हाथ थमाने का दस्तूर आज के अमेरिका की कहानी कहता है. लेकिन 6 जनवरी की घटनाएं भी इस ताकतवर देश की एक दूसरी रवायत का एहसास कराती हैं. जब हजारों ट्रंप समर्थकों ने कैपिटल पर हमला बोला था. जब बाइडेन की जीत को रुसवा करने की जानलेवा कोशिश की गई थी. पूरी दुनिया घबराई सी यह नजारा देख रही थी. सोच रही थी कि इसका अंत क्या होने वाला है.
कमला हैरिस ने इतिहास रचा, ‘चिट्टी ब्रिगेड’ का इंतजार
लेकिन बुधवार को वही हुआ, जैसा होना चाहिए. बाइडेन ने परंपरागत तरीके से शपथ ली और इस कार्यक्रम में तीन पूर्व राष्ट्रपतियों ने शिरकत की. हां, ट्रंप नदारद थे. आपे इसे उनकी आखिरी शासकीय ढिठाई कह सकते हैं.
6 जनवरी का जख्म उस ऐतिहासिक घटना के साथ भर गया, जब पहली महिला और पहली पर्सन ऑफ कलर कमला देवी हैरिस अमेरिका की उप राष्ट्रपति बनीं.
भारतीय मां और जमैकन पिता की बेटी कमला के मजबूत कंधे उनके पर्पल कोट से ढंके हुए थे, बाइबिल पर शपथ लेने वाले हाथ चमड़े के दस्तानों में. इसके साथ उन्होंने इस गंभीर जिम्मेदारी को बहुत आसानी से संभाल लिया.
कमला को आशीर्वाद देने के लिए कैलीफोर्निया में भारतीय अमेरिकी आंटियों की ‘चिट्टी ब्रिगेड’ तैयार हो रही है, और इधर कमला वॉशिंगटन में उप राष्ट्रपति के मैन्शन में हैं.
ट्रंप इस बात से खासा नाराज थे कि बाइडेन ने उप राष्ट्रपति पद के लिए एक सांवली महिला को चुना और वह जीत भी गई. जबकि अमेरिकी लोग तो कब से उनकी गोरी-चिट्टी बिटिया इवांका का पलक पांवड़े बिछाए इंतजार कर रहे थे.
राजनीति को किनारे रखें
वैसे यह ध्यान रखने की बात है कि 2021 में सत्ता के हस्तांतरण को घरेलू आततायियों से बचाने के लिए 25,000 से ज्यादा नेशनल गार्ड्स की मदद लेनी पड़ी. उन्हें देश के कोने कोने से राजधानी बुलाया गया. द मॉल नागरिकों की बजाय हजारों झंडों से भरा हुआ था. फिर भी इस शारीरिक दूरियों वाले और सादे समारोह में धूमधाम और जश्न का माहौल, दोनों थे.
बाइडेन एक भावुक और धार्मिक शख्स हैं. पहले लेडी गागा और जेनफिर लोपेज ने राष्ट्रगान और ‘दिस लैंड इज योर लैंड’ और ‘अमेरिका द ब्यूटीफुल’ जैसे क्लासिक्स गाकर शपथ ग्रहण समारोह को गर्मजोशी से भरा, फिर बाइडेन ने उद्घाटन भाषण दिया. इस भाषण में उन्होंने बार बार एकता की अपील की.
बाइडेन ने देश के ‘विरोधी गुटों’ से कहा कि उन्हें ‘इस अविनय (अनसिविल) युद्ध को खत्म कर देना चाहिए जोकि रेड को ब्ल्यू से, ग्रामीण को शहरी से, और कंजरवेटिव्स को लिबरल्स से लड़ा रहा है.’ उन्होंने कहा कि हमारा देश वायरस के सबसे ‘मुश्किल और खतरनाक’ दौर से गुजर रहा है. इस वक्त राजनीति को किनारे रखने और ‘एक देश के तौर पर इस महामारी से जूझने की जरूरत है.’
अमेरिकी की चमक फीकी पड़ गई है
बाइडेन का खुद का रास्ता भी उतार-चढ़ाव भरा है. संकट मुंह बाए खड़ा है. कोविड-19 चार लाख से ज्यादा जानें ले चुका है. वैक्सीन आई तो है लेकिन वह भी अनियमित और अव्यवस्थित है. अर्थव्यवस्था डांवाडोल है. ट्रंप का समर्थक, करीब आधा अमेरिका यह सोचता है कि चुनावी जीत ‘चुराई हुई है’. व्हाइट नेशनलिस्ट्स और साजिश की बू सूंघने वाले डार्क वेब के बादशाह हैं. गुपचुप तरीके से अपने मंसूबों को अंजाम दे रहे हैं.
अमेरिका की चमक फीकी पड़ रही है और दुनिया सवाल पूछ रही है कि क्या अमेरिका फिर से अपनी ताकत को हासिल कर सकता है.
बाइडेन ने कहा, वह समझते हैं कि ये समस्याएं कितनी भयानक हैं. उन्होंने ओवल ऑफिस में पहुंचने के साथ काम करना शुरू कर दिया. एग्जेकेटिव आदेशों, मेमोरेंडा और डायरेक्टिव्स पर दस्तखत किए. उनके पहले दिन के काम में महामारी राहत, आव्रजन, जलवायु परिवर्तन, स्टूडेंट लोन, बेदखली पर रोक, नस्लीय असमानता और बहुपक्षीय समझौते शामिल हैं.
बाइडेन ने ट्रंप की कई विवादास्पद नीतियों को वापस लिया
बाइडेन ने ट्रंप की कई विवादास्पद फैसलों को पलट दिया है जिसमें तथाकथित ‘मुस्लिम बैन’ शामिल है. उन्होंने बॉर्डर वॉल के लिए फंड्स को फ्रीज किया है और फेडरल प्रॉपर्टी पर मास्क लगाने को अनिवार्य किया है. इसके अलावा वह पेरिस जलवायु समझौते, विश्व स्वास्थ्य संगठन में फिर से शामिल होंगे, अवैध प्रवासियों के बच्चों को राहत देने के लिए यूएस कांग्रेस को एक इमिग्रेशन बिल भेजेंगे.
रिपब्लिकन्स और कंजरवेटिव्स चीख रहे हैं- यह ‘एकता’ नहीं है, बल्कि भेदभाव को और बढ़ाने का सबूत है. पद संभालने के चंद घंटों के भीतर बाइडेन ने जिस तरह ट्रंप की खींची लकीर को मिटाया, उससे फॉक्स न्यूज के एंकर्स चकित हुए और रिपब्लिक सीनेटर गुस्से से आगबबूला.
लेकिन नफरत की राजनीति के बीज तो बराक ओबामा के समय ही रोप दिए गए थे, जब कई मोर्चों पर रिपब्लिकन्स ने ओबामा से पल्ला झाड़ लिया था.
परस्पर सहयोग की प्रवृत्ति तभी से लगभग खत्म हो गई थी. ट्रंप के चार सालों के शासन के दौरान डेमोक्रेट्स एक ही मंत्रोच्चार करते रहे- यह मेरा राष्ट्रपति नहीं. जांच दर जांच चलती रही. बात दूसरे महाभियोग के साथ खत्म हुई. सो, ‘असहयोग’ की परंपरा अब पूरी तरह पसर चुकी है.
बाइडेन या कांग्रेस में डेमोक्रेट्स के लिए यह डगर कठिन क्यों है
एग्जेकेटिव आदेशों से बाइडेन जो हासिल कर सकते हैं, वह बहुत अच्छा है. लेकिन जहां उन्हें कांग्रेस की जरूरत होगी, वहां दरवाजे पूरी तरह से बंद हो रहे हैं. हाउस में रिपब्लिकन्स की संख्या 130 है और उन्होंने बाइडेन की इलेक्टोरल कॉलेज की जीत के खिलाफ वोट दिया था. बेशक, वे सुलह के मूड में नहीं हैं. फिर डेमोक्रेट्स का बहुमत कमजोर है. सीनेट 50-50 में बंटी हुई है और हैरिस के पास एक वोट का विशेष अधिकार है.
इसलिए बाइडेन या कांग्रेस में डेमोक्रेट्स के लिए सब कुछ आसान होने वाला नहीं है. ट्रंप भले ही फ्लोरिडा के अपने रिसॉर्ट में हों लेकिन कैपिटल हिल में मौजूद रिपब्लिकन्स में अब भी उनका सिक्का चलता है.
इनमें से सिर्फ कुछ दिलेर रिपब्लिकन्स, लोग उन्हें मूर्ख कहते हैं, ने सार्वजनिक मंच पर ट्रंप के खिलाफ बोला. कैपिटल पर हिंसक हमले के बाद भी.
सीनेटर मिच मैककोनेल ने मैजॉरिटी लीडर के तौर पर अपने आखिरी दिन ट्रंप पर आरोप लगाया कि उन्होंने लोगों को कैपिटल पर हमला करने के लिए उकसाया. लेकिन उन्होंने चार साल तक ट्रंप से कुछ नहीं कहा. अगर वह सीनेट में महाभियोग के ट्रायल में ट्रंप के खिलाफ वोट देते हैं, जोकि जल्द शुरू होने वाला है तो मैककोनेल कुछ भला काम करेंगे. इससे दूसरे भी ऐसा करने को प्रोत्साहित होंगे. महाभियोग मंजूर होने के बाद ट्रंप फिर से राष्ट्रपति नहीं बन सकते.
2022 में कांग्रेस के मध्यावधि चुनाव- डर सचमुच है
ट्रंप के वफादार महाभियोग की आशंका पर गुस्सा गए और इसे अपने नेता के साथ विश्वासघात माना. उनकी राजनैतिक नियति एक कार्यकाल, और दो बार महाभियोग झेल चुके राष्ट्रपति पर निर्भर करती है. दूसरी तरफ ट्रंप ने इंतकाम की धमकी दी है और यह चेतावनी भी दी है कि उनके खिलाफ जाने वालों की राजनैतिक मौत होगी.
कांग्रेस के मध्यावधि चुनाव 2022 में होने वाले हैं और यह डर सचमुच का है, चूंकि रिपब्लिकन्स का जनाधार ट्रंप के आगे नतमस्तक है.
इसका मायने क्या है? बाइडेन का विरोध और भेदभाव का जारी रहना. यहां एकता नहीं होगी, और न ही एक दूसरे जख्मों पर मरहम लगाया जाएगा.
(सीमा सिरोही वॉशिंगटन में रहने वाली सीनियर जर्नलिस्ट हैं. वह @seemasirohi पर ट्विट करती हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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