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नीतीश के लिए चेतावनी जैसा है जोकीहाट का नतीजा,2019 में क्‍या होगा?

ऐसा लग रहा है कि 2019 चुनाव से पहले नीतीश कुमार के लिए अलार्म की घंटी बज चुकी है...पर कैसे?

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बिहार के जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव का नतीजा जेडीयू सुप्रीमो और सीएम नीतीश कुमार के लिए निराशा पैदा करने वाला है. जेडीयू के गढ़ रहे जोकीहाट पर अब आरजेडी का कब्‍जा हो चुका है. इस सीट पर पिछले 3 चुनाव में लगातार जेडीयू की ही जीत हो रही थी.

अगर हाल के कुछ चुनावी नतीजों और मौजूदा राजनीतिक हालात पर गौर करें, तो ऐसा लग रहा है कि 2019 चुनाव से पहले नीतीश कुमार के लिए अलार्म की घंटी बज चुकी है...पर कैसे?

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इस रिजल्‍ट के मायने पर चर्चा से पहले जोकीहाट सीट के बारे में कुछ बातें जानना जरूरी है.

जोकीहाट सीट की शॉर्ट हिस्‍ट्री

जोकीहाट सीट पर पिछले तीन चुनावों से लगातार जेडीयू बाजी मार रही थी. इससे ठीक पहले जेडीयू के सरफराज आलम विधायक थे. उन्‍होंने विधानसभा और जेडीयू से इस्तीफा देकर आरजेडी के टिकट पर अररिया से संसदीय उपचुनाव में हिस्सा लिया था और सांसद चुने गए थे. इसके बाद ही ये सीट खाली हुई थी. इस बार आरजेडी ने जोकीहाट में सरफराज के भाई शाहनवाज आलम को अपना प्रत्याशी बनाया था, जिनकी जीत हुई है.

सरफराज आलम के पिता मोहम्‍मद तस्लीमुद्दीन आरजेडी के सांसद थे, जिनका देहांत पिछले साल सितंबर में हो गया था. उनके देहांत से ही अररिया संसदीय सीट खाली हुई थी.

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इससे पहले जहानाबाद सीट विरोधी के हाथों गंवाई

नीतीश कुमार के लिए चिंता की बात ये है कि इससे ठीक पहले भी उनकी पार्टी को जहानाबाद उपचुनाव में भी हार का मुंह देखना पड़ा था. जहानाबाद उपचुनाव में भी जेडीयू की सीट उसके प्रबल प्रतिद्वंद्वी आरजेडी ने ही छीनी थी.

जेडीयू के लिए माथे पर बल पड़ने की बड़ी वजह ये है कि वह प्रदेश के साथ-साथ केंद्र की सत्ता में भी बीजेपी की सहयोगी है. आम तौर पर चुनाव में उतरते वक्‍त सत्ताधारी पार्टी का मनोबल विपक्ष की पार्टी के उम्‍मीदवार की तुलना में थोड़ा ऊंचा होता है. दोनों जगहों पर सत्ता में रहने वाली पार्टी पब्‍ल‍िक से भी ये उम्‍मीद करती है कि वह विकास के नाम पर उसे ही वोट देगी. लेकिन पब्‍ल‍िक का मूड कुछ वक्‍त से बदला-बदला मालूम पड़ रहा है.
ऐसा लग रहा है कि 2019 चुनाव से पहले नीतीश कुमार के लिए अलार्म की घंटी बज चुकी है...पर कैसे?

सिर मुड़ाते ही ओले पड़े...

पहली नजर में तो ऐसा ही लग रहा है कि जनता को आरजेडी-जेडीयू के बीच विलगाव रास नहीं आ रहा है. लालू प्रसाद के बेटे और आरजेडी के तेज-तर्रार नेता तेजस्‍वी यादव चुनाव प्रचार के दौरान 'चचा नीतीश' पर करारा प्रहार करते रहे. वे लोगों को समझाते रहे कि जब चुनाव में जनादेश आरजेडी-जेडीयू गठबंधन को मिला था, तो जनता की इच्‍छा के खिलाफ इसे तोड़ने का फैसला नीतीश ने किस आधार पर किया?

इसके विपरीत, नीतीश को भी इस सवाल का ठोस जवाब नहीं सूझ रहा है कि जिस बीजेपी को उन्‍होंने सांप्रदायिक ताकत मानते हुए उससे दूरी बनाई थी, उससे फिर वह किस आधार पर मिल गए.

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पब्‍ल‍िक की नाराजगी की बड़ी वजह क्‍या हो सकती है?

वैसे तो नीतीश कुमार की इमेज 'विकास पुरुष' वाली रही है. लेकिन ऐसा लगता है कि बिहार में इन दिनों कुछ चीजें पटरी से उतर रही हैं. पहले नीतीश जोर-शोर से इस बात का ढिंढोरा पीटा करते थे कि उनके प्रदेश में पिछले कई बरसों से सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए. लेकिन अब हालत थोड़े अलग हैं.

हाल ही में प्रदेश में कुछ जगहों पर सांप्रदायिक माहौल खराब हुआ. इसके पीछे एक बीजेपी सांसद के बेटे का भी हाथ बताया गया. लोगों के बीच ये मैसेज गया कि जेडीयू प्रदेश के ‘छोटे भाई’, लेकिन केंद्र के ‘मोटे भाई’ के दबाव में काम कर रही है और प्रशासन में ढिलाई बरत रही है.

तो 2019 के चुनाव में नीतीश कहां खड़े होंगे?

बिहार के उपचुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू के खराब प्रदर्शन के साथ-साथ बीजेपी के हालिया प्रदर्शन पर भी गौर करना जरूरी है.

अगर साल 2014 से लेकर अब तक के उपचुनाव के नतीजों पर गौर करें, तो बीजेपी को 13 में 8 सीटों पर हार का सामना करना पड़ रहा है. मोटे तौर पर इससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि बीजेपी का ध्रुवीकरण कार्ड बेअसर होता जा रहा है.

ऐसे में अगर नीतीश और मोदी की जुगलबंदी चलती रहती है, तो 2019 के आम चुनाव तक हालात और उलट हो सकते हैं. अगर बीजेपी जेडीयू पर और हावी होती चली जाती है, तो उस सूरत में नीतीश का कद और घट सकता है.
ऐसा लग रहा है कि 2019 चुनाव से पहले नीतीश कुमार के लिए अलार्म की घंटी बज चुकी है...पर कैसे?

लगता है कि जेडीयू ने भी इस खतरे को भांप लिया. यही वजह है कि उसने अभी से अपना सुर बदलना शुरू कर दिया है. जरा पार्टी प्रवक्‍ता केसी त्‍यागी के ताजा बयान पर गौर कीजिए, जिन्‍होंने जोकीहाट की हार का ठीकरा केंद्र सरकार की नीतियों पर फोड़ने में थोड़ी भी देर नहीं लगाई.

केसी ने त्‍यागी ने कहा:

‘’पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने से देशभर में नाराजगी है. तेल का दाम लगातार बढ़ना भी इस तरह के चुनाव परिणाम के पीछे एक वजह है. इसलिए इनके दाम में तुरंत कमी होनी चाहिए.’’ 

इससे ठीक पहले नीतीश कुमार भी नोटबंदी के फायदे पर सवाल उठाकर बीजेपी को हैरत में डाल चुके हैं. उनके बयान के राजनीतिक मायने तलाशे जा रहे हैं.

ये बात ठीक है कि उपचुनाव के नतीजों से 2019 चुनाव के बारे में अभी से अनुमान लगाना थोड़ी जल्‍दबाजी समझी जाएगी, लेकिन इस बारे में एक कहावत गौर करने लायक है. कहते हैं कि चावल के एक ही दाने से पूरी हांडी का अंदाजा मिल जाता है. उपचुनाव रिजल्‍ट को इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए.

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