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कश्मीर खतरे में, अफगानिस्तान में फल-फूल रहे हैं तालिबान और जैश के कैंप

जैश-ए-मोहम्मद के कैडरों द्वारा आतंकवादी अभियानों के लिए नियमित रूप से जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की जा रही है

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"पहले हम मैनहट्टन को लेते हैं," लियोनार्ड कोहेन ने सालों पहले गाया था.

पहले उन्होंने काबुल (Kabul) को अपने कब्जे में लिया, फिर क्षेत्र में चर्चा के मुताबिक अगला जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) होने जा रहा है. मैं तालिबान (Taliban) और जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-E-Mohammad) की बात कर रहा हूं. और सबसे बढ़कर, उनके कठपुतली, पाकिस्तानी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) की.

पिछले एक-एक साल में, जैश-ए-मोहम्मद ने अपने आईएसआई (ISI) आकाओं के माध्यम से, अफगान तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा है और उन्हें दक्षिण पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा और फाटा के इलाको से पाकिस्तानी लड़ाकों की एक निरंतर खेप देता रहा है.

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नंगरहार को 'व्यावहारिक रूप से जैश ए मोहम्मद को सौंप दिया गया है

बालाकोट के एक कैंप को मिलाकर जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेनिंग कैंप्स ने बड़ी संख्या में युद्ध में उन लड़ाकों की सप्लाई की है, जिन्होंने अफगान तालिबान की जमीनी सफलताओं में मदद की है. इसके अलावा जैश-ए-मोहम्मद ने अफगानिस्तान में हमलों को अंजाम देने के लिए तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को आत्मघाती हमलावर भी दिए हैं. अब स्थानीय सूत्रों के अनुसार अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत को व्यावहारिक रूप से तालिबान ने जैश-ए-मोहम्मद को सौंप दिया है.

इलाके में कई ट्रेनिंग कैंप हैं. कुछ तालिबान के सीधे नियंत्रण में हैं और वह केवल जैश के सदस्यों के छोटे समूहों के लिए बने हैं. जबकि अन्य कैंप जिन्हें 'मुस्तकिर' कैंप्स कहा जाता है उनका इस्तेमाल विशेष रूप से जैश द्वारा किया जाता है.

पहले इन कैंप का इस्तेमाल हक्कानी और तालिबान कैडरों को ट्रेनिंग देने के लिए किया जाता था और बाद में पाकिस्तान में हक्कानी लड़ाकों को जैश द्वारा दी जाने वाली ट्रेनिंग सुविधाओं के बदले इन कैंप को जैश-ए-मोहम्मद के सदस्यों को सौंप दिया गया.

जैश-ए-मोहम्मद के कैडरों को आईएसआई के निर्देश पर खैबर एजेंसी और पान चिनार से पाकिस्तान-अफगान सीमा पर नंगरहार में ट्रांसफर कर दिया गया है. तब से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के अलग जिलों से इन कैंप में नियमित रूप से नए लड़ाकों को लाया जाता है.

AK47, LMG, रॉकेट लॉन्चर: चश्मदीदों ने क्या देखा?

नए लड़ाकों के रख-रखाव, रसद और वेतन सहित इन कैंप का खर्च जैश उठाता है. कई ट्रेनिंग कैंप खोग्यानी जिले में, गांवों या किसी भी जगह जहां नागरिक रहते हैं उनके नजदीक हैं और यहां सभी प्रकार की सुविधाएं हैं: ट्रेनिंग ले रहे लड़ाकों के लिए हॉस्टल , मैदान, मस्जिद, कक्षाएं और इनके उस्तादों के लिए आवास. जैश के प्रभारी और कैडरों को अलग-अलग कैंप में ठहराया जाता है और यह वरिष्ठ अधिकारियों के साथ नागरिक आबादी वाले इलाकों में रहते हैं.

कैंप में ट्रेनिंग कार्यक्रम में फिजिकल ट्रेनिंग, कक्षा के पाठ, हथियारों को नष्ट करना और संभालना, हथियारों और गोला-बारूद को संभालना शामिल है. हालांकि नागरिक आबादी वाला इलाका पास होने के कारण फायरिंग अभ्यास कैंप से दूर किया जाता है. चश्मदीदों ने ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल किए जा रहे एके47, एलएमजी, रॉकेट लॉन्चर, ग्रेनेड, विस्फोटकों की एक खेप को देखा है. लड़ाकों को नूरिस्तान सीमा के पास कुनार जंगल में जंगल में जिन्दा रहने की ट्रेनिंग भी दी जाती हैं.

नंगरहार ट्रेनिंग कैम्प्स के जैश-ए-मोहम्मद कैडरों द्वारा आतंकवादी अभियानों के लिए नियमित रूप से जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की जा रही है.

फरवरी 2018 में जम्मू में सुंजवान आर्मी कैंप पर हमला खोग्यानी कैंप में ट्रेनड तीन पाकिस्तानी कैडर द्वारा किया गया था, इनमें से कई ट्रेनड कैडर कश्मीर घाटी में सक्रिय हैं.

यहां तक की कश्मीर में तैनात फिदायीनों के लिए एक अलग ट्रेनिंग प्रोग्राम है. 'साधारण' ट्रेनिंग के अलावा लड़ाकों को 10-दिवसीय विशेष कैप्सूल मॉड्यूल भी दिया जाता है, जिसमें सेना के शिविरों में घुसना, जीवित रहने की तकनीक और IED का निर्माण के साथ ही 20 दिनों की फायरिंग टेक्निक्स और नीलम, शारदा, कोटली जैसे इलाकों की प्रतिकृतियों में घुसपैठ की तकनीक शामिल है.

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असगर और मसूद

मसूद अजहर का भाई मुफ्ती अब्दुल रऊफ असगर कश्मीरी नंगरहार कैंप का प्रभारी हैं. वही मसूद अजहर जिसने बालाकोट कैंप की निगरानी की और जो कम से कम पिछले एक साल से सक्रिय रूप से फिदायीन कैडरों की भर्ती करने का प्रभारी रहा है.

आधिकारिक तौर पर सुरक्षात्मक हिरासत में रखे जाने के बावजूद असगर को आईएसआई के गुर्गों के साथ कई बैठकें करते देखा गया है. सूत्रों के अनुसार, आने वाले महीनों में जैश की भूमिका पर चर्चा करने के लिए विशेष रूप से, कुछ महीने पहले, असगर अपने भाई मसूद अजहर के साथ अपने आईएसआई संरक्षकों से मिलने इस्लामाबाद गया था.

वही सूत्रों का कहना है कि बैठक के दौरान इस मुद्दे पर कुछ मतभेद थे. आईएसआई अजहर और उसके सहयोगियों को बहुत स्पष्ट निर्देश दे रहा था कि उन्हें पहले महीनों के दौरान तालिबान का समर्थन करना चाहिए था और फिर कश्मीर पर अफगानिस्तान से अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए था. हालांकि असगर ने जोर देकर कहा कि संगठन आसानी से दोनों काम कर सकता है, यानी कश्मीर पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ तालिबान का समर्थन भी कर सकता है.

तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया और मसूद अजहर काबुल के पतन के कुछ दिनों बाद दोनों ग्रुपों के बीच जॉइंट ऑपरेशन के प्रस्ताव के लिए तालिबान नेताओं से मिलने के लिए कंधार पंहुचा. बैठक के दौरान, अजहर राजनीतिक उद्देश्यों का पीछा करने के बजाय दोनों समूहों को कश्मीर में जिहाद पर ध्यान केंद्रित करने की जरुरत की पुरजोर वकालत कर रहा था.

तो यह सिर्फ समय की बात है. सबसे पहले, हम मैनहट्टन को लेते हैं उसके बाद जम्मू-कश्मीर. अमेरिका चला गया है, आतंकवादी समूह अबाधित कार्रवाई और ट्रेनिंग कर सकते हैं, और अंत में, आईएसआई अगले आधार पर ध्यान केंद्रित कर सकता है.

(फ्रांसेस्का मैरिनो एक पत्रकार और दक्षिण एशिया विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने बी नताले के साथ 'एपोकैलिप्स पाकिस्तान' लिखा है, उनकी नवीनतम पुस्तक 'बलूचिस्तान - ब्रुइज़्ड, बैटरेड एंड ब्लडिड' है. क्विंट उनके विचारों के लिए न तो समर्थन करता है और न ही जिम्मेदार है.)

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