कई दशकों से आतंकवाद और अलगाववाद की आग में झुलस रहे ‘धरती के स्वर्ग’ कश्मीर के लोग बीते दो वर्षो से अधिक समय से ‘अच्छे दिन’ की बाट जोह रहे हैं.
बीजेपी द्वारा लगभग 18 महीने पहले दिसंबर 2014 में आयोजित एक विशाल जनसभा तथा केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के दो वर्ष पूरे होने के बाद भी कश्मीर और कश्मीरियों की समस्याएं जस की तस हैं. मोदी के शासन के एजेंडे में कश्मीर को विशेष स्थान मिलने के बाद भी मुद्दा जस का तस है।
चुनाव से पहले के वादों का क्या हुआ?
राज्य में साल 2015 में विधानसभा चुनाव से पहले हुई की बीजेपी जनसभा के कुछ महीने पहले घाटी में केंद्र सरकार ने लोगों के बीच सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की. घाटी में कम से कम छह सैनिकों को साल 2010 में हुए फर्जी मुठभेड़ में कथित संलिप्तता के लिए दोषी ठहराया गया. मुठभेड़ में तीन नागरिकों को विदेशी आतंकवादी करार देते हुए सेना के जवानों ने मार गिराया था.
कश्मीर में सेना लगभग तीन दशक से आतंकवादियों व अलगाववादियों से लोहा ले रही है.
कश्मीर में चुनाव प्रचार के दौरान एक जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था, “फर्जी मुठभेड़ के लिए जिम्मेदार लोगों को दोषी ठहराना मेरे मजबूत इरादे का सबूत है. मैं यहां आपको इंसाफ दिलाने आया हूं.”
चुनाव में मिली जीत के बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ बीजेपी ने गठबंधन सरकार का गठन किया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के लिए 80 हजार करोड़ रुपये के पैकेज के साथ नवंबर 2015 में एक बार कश्मीर पहुंचे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ‘जम्हूरियत’, ‘इंसानियत’ व ‘कश्मीरियत’ के सिद्धांत को समर्थन जारी रखने का संकल्प लिया.
जम्मू एवं कश्मीर में राजनीतिक और विकासात्मक तौर पर हालांकि बहुत थोड़ा-सा बदलाव दिखा है.
कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए वाजपेयी की प्रशंसा पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण पहल के लिए की जाती है. उन्होंने जहां एक तरफ पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ के साथ बातचीत की, वहीं कश्मीरी अलगाववादियों के साथ भी बातचीत की थी.
मोदी की उल्टी नीति से कितना फायदा- कितना नुकसान?
मोदी की रणनीति पूर्व प्रधानमंत्रियों की तुलना में उलट है. जहां तक कश्मीर की बात है, तो वह इस बात को स्पष्ट करते हैं कि इस मुद्दे पर उन्हें दुनिया के किसी देश या संस्था से सलाह या विश्लेषण की जरूरत नहीं है.
प्रधानमंत्री न केवल अलगाववादियों को दबाकर रखना चाहते हैं, बल्कि पाकिस्तान को इस बात से बाखबर कर देना चाहते हैं कि यह उनका आंतरिक मुद्दा है और इसका समाधान रोजगार व समुचित विकास के माध्यम से किया जाएगा.
कश्मीर के केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर गहनता से गौर करने की जरूरत है.
वाजपेयी ने मुद्दे को सही रूप में समझा. मोदी कट्टर देशभक्त होने का दिखावा कर रहे हैं. इस विवाद (भारत व पाकिस्तान) को न केवल पिछली केंद्र सरकारों ने स्वीकार किया, बल्कि भारतीय संविधान ने भी इसे समझाप्रो. शेख शौकत हुसैन, कश्मीर सेंट्रल यूनिवर्सिटी
हुसैन ने कहा कि केवल रोजगार और विकास वृहद कश्मीर की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता और यह क्षेत्र में शांति नहीं ला सकता.
हाल में अशांति के कुछ मामलों -एनआईटी श्रीनगर में हिंसक प्रदर्शन तथा हंदवारा में भीषण हिंसक प्रदर्शन, जिसमें सुरक्षाबलों की गोलीबारी में पांच लोगों की मौत हुई- ने यह साबित कर दिया है कि कश्मीर में शांति बहाल करना आसान नहीं है और यह एक छोटी से छोटी घटना या सुरक्षाबलों के झूठ-सच के मानवाधिकार उल्लंघन की खबरों पर उबल उठता है.
80 हजार करोड़ के पैकेज का क्या हुआ?
विकास के मोर्चे पर जम्मू एवं कश्मीर में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिला है. राज्य वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने आईएएनएस से कहा कि 80 हजार करोड़ रुपये के पैकेज का कुछ हिस्सा जारी किया गया है और अधिकांश राशि का इस्तेमाल 2014 में बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास के लिए किया गया.
राज्य में बेरोजगारी बड़ी परेशानी
नीति निर्माताओं के लिए बेरोजगारी चिंता की एक बड़ी वजह है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में लाखों पुरुष तथा महिलाएं बेरोजगारी से जूझ रहे हैं और 80 हजार करोड़ रुपये के पैकेज से इसका समाधान संभवन नहीं है. इसके लिए ठोस पहल करने की जरूरत है, जो रोजगार की गारंटी प्रदान करे.
राज्य के वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, “रोजगार के लिए अभी तक वैसा कुछ नहीं हुआ.”
उन्होंने कहा कि समस्या केवल रोजगार की ही नहीं, बल्कि कौशल की कमी की भी है. अधिकारी ने आईएएनएस से कहा, “सरकार ने हाल ही में एक कौशल विकास मिशन का गठन किया है. यह शुरुआती चरण में है, लेकिन अगर आप पूछेंगे कि कितने रोजगारों का सृजन किया गया है, तो मेरा जवाब होगा एक भी नहीं.”
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