ADVERTISEMENTREMOVE AD

कच्चाथीवू का मुद्दा अभी क्यों उठा रही BJP? फायदा से ज्यादा निराशा की उम्मीद

Katchatheevu Issue: कच्चाथीवू मुद्दे के अचानक फिर से उभरने से तमिलनाडु के अनुभवी चुनाव विश्लेषक भी आश्चर्यचकित हो गए हैं.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भारतीय जनता पार्टी (BJP) दक्षिण में प्रभाव बनाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है, ऐसे में तमिलनाडु तेजी से पार्टी के लिए फोकस का राज्य बन गया है. इस सप्ताह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और उसके 'इंडिया' ब्लॉक की सहयोगी तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के खिलाफ एक व्यापक मोर्चा खोला, और उस पर श्रीलंका को कच्चाथीवू (Katchatheevu) द्वीप देने का आरोप लगाया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि भारत की अखंडता की रक्षा के लिए कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने 1974 में यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था.

कच्चाथीवू मुद्दे के अचानक फिर से उभरने से तमिलनाडु के अनुभवी चुनाव विश्लेषक भी आश्चर्यचकित हो गए.

यह द्वीप दशकों से राज्य में एक राजनीतिक मुद्दा रहा है, लेकिन वास्तव में कभी भी वोट आकर्षित करने वाला मुद्दा नहीं रहा.

एक समय, ईलम युद्ध के चरम के दौरान, जब भारतीय मछुआरों को श्रीलंकाई नौसेना द्वारा गोली मार दी जा रही थी, तो गुस्सा था - और इस मुद्दे की कुछ असर भी हुआ लेकिन 2009 में युद्ध समाप्त होने के बाद से अपेक्षाकृत शांति है, हालांकि, मछुआरों को श्रीलंकाई नौसेना द्वारा गिरफ्तार किया जाना जारी है और जिन्हें कुछ सप्ताह बाद रिहा कर दिया जाता है.

उन दिनों भी, इस मुद्दे का भावनात्मक प्रभाव राज्य के एक जिले रामनाथपुरम तक ही सीमित था, जिसके मछुआरे पाक जलडमरूमध्य ( दक्षिणपूर्वी भारत और उत्तरी श्रीलंका के बीच बंगाल की खाड़ी का प्रवेश द्वार) में श्रीलंकाई नौसेना की कार्रवाई से प्रभावित थे. तो, बीजेपी की अपनी तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष, अन्नामलाई द्वारा दायर की गई RTI का जवाब आने के अब इस मुद्दे को क्यों उठाया गया, जबकि कोई सटीक वजह नहीं है?

अब यह मुद्दा क्यों उठाया गया?

इसका जवाब तमिलनाडु की चुनावी लड़ाई में छिपा है. बीजेपी अब पट्टाली मक्कल काची (PMK) और कुछ छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है और खुद को राज्य में एक मुश्किल स्थिति में पा रही है. यहां 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान होने हैं.

लगभग सभी ओपिनियन पोल में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन को अधिकांश सीटें जीतते हुए दिखाया गया है. हालांकि बीजेपी को वोट शेयर में बढ़त मिलती दिख रही है, लेकिन वे कई सीटें जीतने की स्थिति में नहीं दिख रही हैं. ऐसा पिछले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री की राज्य की कई यात्राओं के बावजूद हुआ.

जबकि बीजेपी हमेशा तमिलनाडु में लगभग 3-5 प्रतिशत वोट शेयर के साथ एक छोटी पार्टी रही है, इस बार वह आक्रामक रूप से दावा कर रही है कि वह राज्य में एक बड़ी ताकत बनकर उभरेगी. जैसे-जैसे अभियान ने गति पकड़ी, उस दावे की पोल खुलती नजर आ रही है.

कच्चाथीवू द्वीप का एक लंबा इतिहास रहा है. दो शताब्दियों से अधिक समय तक, यह रामनाद रियासत का था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद, इसका स्वामित्व अस्पष्ट नजर आता है. इसलिए, भारत सरकार ने 1974 में यह रुख अपनाया कि वे भारतीय क्षेत्र नहीं छोड़ रहे हैं, क्योंकि कच्चाथीवू को स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं किया गया था.

यही कारण है कि कुछ सौ एकड़ के क्षेत्र को कवर करने वाले द्वीप को सौंपते समय संसद की मंजूरी नहीं ली गई थी. इसके बदले में भारत को कन्याकुमारी के तट से कई हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र वेज बैंक मिला.

बीजेपी का मानना है कि कच्चाथीवू का मुद्दा उठाने से उसे डीएमके और उसके सहयोगी दल कांग्रेस को उनके दृष्टिकोण में 'पर्याप्त राष्ट्रवादी' नहीं होने के रूप में चित्रित करने में मदद मिलेगी. डीएमके ने, अपने शुरुआती दिनों में, अलगाववाद के साथ खिलवाड़ किया है - और बीजेपी, शायद, यह मानती है कि पार्टी में अभी भी द्रविड़ राष्ट्रवाद की एक झलक है, जिसका वह अपने लाभ के लिए फायदा उठा सकती है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

BJP को निराशा क्यों हाथ लगी है?

लेकिन अगर भगवा पार्टी का मानना है कि कच्चाथीवू मुद्दा उसे बड़ी संख्या में वोट दिलाएगा, तो यह संभवतः गलत है. जबकि कई लोग अभी भी पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के नेतृत्व वाली तत्कालीन डीएमके सरकार पर द्वीप को श्रीलंका को सौंपे जाने से रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाते हैं, उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को शर्मिंदा करने के लिए इसका उपयोग करने से काम चलने की संभावना नहीं है.

कच्चाथीवू को एक ऐसा मुद्दा माना जाता है, जिस पर अब कुछ भी नहीं किया जा सकता है, और शायद क्षेत्र के मछुआरों की एक छोटी संख्या को छोड़कर, कोई भी गंभीरता से यह उम्मीद नहीं करता है कि भारत इस द्वीप को वापस ले लेगा.

यह सवाल भी पूछा गया है कि मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में इस मुद्दे पर क्या किया है, सिवाय अदालतों को यह बताने के कि द्वीप को पुनः प्राप्त करना लगभग असंभव था. जयशंकर के लिए शर्मनाक बात यह है कि 2015 में, जब वह विदेश सचिव थे, उनके मंत्रालय ने कच्चाथीवू पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि 1974 के समझौते के तहत कोई भी भारतीय क्षेत्र श्रीलंका को नहीं सौंपा गया था क्योंकि तब द्वीप की सटीक स्थिति निर्धारित नहीं की गई थी.

दरअसल, इस सप्ताह मुद्दा उठाने के बाद से न तो पीएम मोदी और न ही जयशंकर ने कच्चाथीवू पर आधिकारिक सरकारी स्थिति के बारे में बोलने की हिम्मत की है. क्या वे द्वीप को वापस पाने की कोशिश के लिए श्रीलंका सरकार से बात करने जा रहे हैं? क्या भारत 1974 में हस्ताक्षरित समझौते को एकतरफा रद्द करने की योजना बना रहा है? ऐसी बहुत संभावना नहीं है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

यह पूरा मामला संभवतः तमिलनाडु में 'इंडिया' ब्लॉक को नुकसान पहुंचाने के लिए राजनीतिक लाभ उठाने के लिए है. इसीलिए चुनाव से पहले एक आरटीआई के जरिए यह मुद्दा उठाया जा रहा है. बीजेपी के लिए, यह उस क्षेत्र में पैठ बनाने का एक और पासा फेंकने जैसा है, जो उसके राजनीतिक रथ के लिए सबसे अधिक प्रतिरोधी क्षेत्रों में से एक रहा है.

तमिलनाडु ने बीजेपी को बार-बार निराश किया है - और वे इस बार चुनावी लड़ाई में अपना सब कुछ झोंक रहे हैं. यदि वे मानते हैं कि कच्चाथीवू एक ऐसा मुद्दा है जिसका वे फायदा उठा सकते हैं, तो उन्हें जल्द ही निराशा हाथ लगेगी.

(सुमंत सी रमन एक टेलीविजन एंकर और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह @sumanthraman पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×