मनोहर पर्रिकर ने जब दुनिया को अलविदा कहा, तो देश ने अपने महान सपूत को श्रद्धांजलि दी. पर्रिकर गोवा में 4 बार मुख्यमंत्री रहे, 2014 से 2017 के बीच भारत के रक्षा मंत्री रहे. 1994 के बाद से अपने बहु धार्मिक संरचना वाले निर्वाचन क्षेत्र में बार-बार चुने जाते हुए भी उनकी अलग पहचान रही.
अपने सादगी भरे जीवन और सबके लिए सहज सुलभ रहने की वजह से वह आम आदमी के मुख्यमंत्री के तौर पर भी जाने जाते थे.
पर्रिकर को टिकट के लिए लाइन में खड़ा देखकर, मंत्री या मुख्यमंत्री के तौर पर काम करते हुए स्कूटर चलाता देखकर या विमान में इकनॉमी सेक्शन में सीट पर बैठा पाकर लोग अक्सर चौंक जाते थे. ऐसा ही एक वाकया मुंबई के पांच सितारा होटल का है. होटल में एक सुरक्षा गार्ड चप्पलें पहनकर आए एक आदमी को रोक रहा था, जो एक रिक्शे से उतरा था. यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर थे.
IIT बॉम्बे से की इंजीनियरिंग की पढ़ाई
मनोहर पर्रिकर का जन्म मापुसा में हुआ था. उन्होंने मराठी माध्यम से स्कूल की पढ़ाई की. उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में 1978 में बीटेक कर ग्रेजुएशन किया. मनोहर पर्रिकर जब आईआईटी बॉम्बे में थे, उसी दौरान इमरजेंसी लगी थी. पर्रिकर ने उस समय भूमिगत रहकर काम किया था. वह लगातार चार साल तक निर्विरोध अपने होस्टल के मेस को-ऑर्डिनेटर चुने जाते रहे.
यह मुश्किल काम था, क्योंकि इस काम में शामिल था सख्त बजट नियंत्रण, तीर्थाटन पर रोक, साफ-सफाई, होस्टल के साथियों की मांग पर खान-पान और मेस वर्करों का मनोबल बनाए रखना. पर्रिकर काफी सख्त थे, वह कामगारों के अधिकारों के लिए लड़ते और व्यक्तिगत रूप से भी उनके कल्याण के लिए उन्हें फंड डॉनेट करते. कई सालों के बाद उन्होंने महसूस किया कि मेस सचिव के रूप में उनके बिताए साल सफल राजनीतिक करियर के लिए सबसे बेहतरीन प्रशिक्षण का दौर था. वह आरएसएस के सदस्य रहे और इसके लिए वह जीवनभर आभारी रहे कि इस वजह से उनमें अनुशासन और राष्ट्रवाद आया. उन्होंने कभी किसी प्रतिकूल परिस्थिति में भी हठधर्मिता नहीं दिखाई.
हमेशा लिखने को दी प्राथमिकता
1990 की शुरुआत में राजनीति में रहते और जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद भी उन्होंने कभी अपने मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस या अपने परिवार को नजरअंदाज नहीं किया. मगर साल 2000 में पत्नी मेधा के चल बसने के बाद उनका जीवन सूना हो गया. उसके बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह सार्वजनिक सेवा में लगा दिया. 1991 में बीजेपी का वोट शेयर 0.4 फीसदी था, जिसे 20 साल बाद 35 फीसदी तक पहुंचाने में मूल रूप से पर्रिकर का ही योगदान है. नजदीकी मित्र और सहकर्मी उन्हें उनकी कठिन मेहनत के लिए याद करते हैं, जिन्होंने हर दिन सोलह घंटे के कामकाज का रूटीन बनाकर रखा.
मंत्री रहकर भी उन्होंने हमेशा लिखने को प्राथमिकता दी और वह खुद भी अच्छे पाठक रहे. अपने दोस्तों को पढ़ने के लिए जो उनकी सिफारिशी किताब होती थी उनमें एक थी रॉबर्ट ग्रीन की 'द 48 लॉज ऑफ पावर'. तेज बुद्धि और सैद्धांतिक रूप से मजबूत उनकी सोच चाणक्य नीति जैसी थी. राजनीतिक विरोधियों के लिए उन पर भारी पड़ना आसान नहीं था.
अस्थिर गोवा की राजनीति में पर्रिकर की नीति वास्तव में प्रभावशाली थी. लीक से हटकर उनके उठाए कदमों में से एक था वित्त विभाग की जिम्मेदारी संभालते हुए वायुयान के ईंधन पर राज्य की ओर से एक्साइज ड्यूटी में भारी कटौती. राज्य का राजस्व कम होने के बजाए तीन गुना बढ़ गया, क्योंकि एयरलाइन्स में रात के वक्त गोवा एयरपोर्ट पर ईंधन भराने के लिए होड़ मच जाया करती थी.
सबको जोड़ने की थी क्षमता
राजनीतिक रूप से गलत होने पर किसी की सीमा बताने को लेकर पर्रिकर मुखर थे. सबको जोड़ने की जो उनकी क्षमता थी इस वजह से वह कभी डरते नहीं थे. उनके घोर दुश्मन भी उन पर वित्तीय भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा सके.
बेशक उनके राजनीतिक विरोधी थे और खासतौर पर गोवा के मजबूत पर्यावरणविद लॉबी के बीच उनकी मौजूदगी थी. कई विरोधी उन्हें सनकी, तानाशाही और सख्त कहा करते थे. वह लोगों के बीच बहुत बोलने वाले या अच्छे वक्ता नहीं थे. जननायक के तौर पर उन्हें तैयार नहीं किया जा सका था, लेकिन अपनी शानदार शैली के साथ छोटी-छोटी कहानियां सुनाकर या जीवन के संदेश बताकर वह दर्शकों को आकर्षित कर सकते थे.
उनका पहला प्यार हमेशा से गोवा रहा और उन्होंने अपना जीवन इसके विकास में समर्पित कर दिया. आधुनिक उद्योग के साथ पर्यावरण को बचाए रखने की जरूरत के साथ उन्होंने तालमेल बनाया. शिक्षा और बुनियादी संरचना के क्षेत्र में उन्होंने मुख्य रूप से ध्यान दिया. वह गोवा में अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल लेकर आए और मेहमान यह देखकर चकित थे कि वह खुद जमीन पर ट्रैफिक और सुरक्षा कर्मियों के साथ समन्वय बना रहे थे. अगर पर्यटन स्थल के रूप में गोवा की सबसे ज्यादा मांग है और इसे कई समुदायों के बीच सौहार्द के मॉडल के तौर पर देखा जाता है, तो इसका अच्छा खासा श्रेय पर्रिकर को जाता है.
सशस्त्र सेना के हितों के लिए और उनके आधुनिकीकरण पर बिना थके काम करते हुए रक्षा मंत्री के रूप में भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई. आखिर में उन्हें मिलनसार, स्पष्टवादी, असाधारण रूप से विलक्षण और कठिन परिश्रमी के साथ-साथ जनता के मुख्यमंत्री के तौर पर याद किया जाएगा. टेक्नोक्रैट, राजनीतिज्ञ और सक्षम प्रशासक के तौर पर उन जैसा व्यक्ति मिलना मुश्किल है जो राजनीति की चुनौतियों के बीच हमेशा ईमानदारी और सादगी पर डटे रहे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)