फरवरी की छहः तारीख, रविवार की सुबह जिस बुरी खबर को लाई, वो कभी न भूल पाने वाली खबर रही. इन्दौर में जन्मीं और पूरे भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक मण्डल में अपने स्वर से खुद को स्थापित करने वाली साधिका लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की सुरलोक की यात्रा का समाचार स्तब्ध कर गया.
आज हजारों गीत रो रहे हैं, गीतों का रुदन यदि सुनना चाहते हैं तो बम्बई के प्रभु-कुंज की ओर देखिए. जो शब्द पूजनीया लता दीदी के कंठ से अवतरित हुए होंगे उनका अभिमान निश्चित तौर पर चरम पर होगा और वे लाखों शब्द आज रो रहे होंगे.
इन्दौर के खाते में दर्ज लता जी का गौरव
स्वर और शब्दों पर लता ताई की अद्भुत पकड़ रही, लता ताई मंगेशकर को स्वरों की अधिष्ठात्री भी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. ऐसी स्वर अधिष्ठात्री के अवसान से आज समूचा भारत स्तब्ध हैं.
यह गौरव इन्दौर के खाते में दर्ज हुआ कि इस मालवा की धीर-वीर, गम्भीर और रत्नगर्भा धरती पर लता ताई का जन्म हुआ. वैसे संगीत समृद्ध शहर इन्दौर कला, साहित्य और पत्रकारिता की भी उर्वरक धरा है.
आज स्वर साम्राज्ञी के इह लोक से सुरलोक की यात्रा के लिए प्रस्थान को नियति ने तय किया और भारत भू से अपने प्रदत्त स्वर को बैकुण्ठ के कंठ में पुनः प्रविष्ठ कर लिया किन्तु खाली रह गया तो केवल यह भूमि का टुकड़ा जिसे हम भारत कहते हैं.
निश्चित तौर लता जी के महाप्रयाण से संगीत, गायकी और फिल्म जगत ही नहीं बल्कि समूची भारत भूमि प्रभावित हुई है. हजारों गायिकाओं की आदर्श और हिन्दी गीतों की अनंत यात्रा का नाम लता मंगेशकर हुआ करता है.
कहते हैं, मुम्बई के दिल में भी इन्दौर लता दीदी के रूप में धड़कता रहा हैं. इन्दौर और मध्यप्रदेश से लता दीदी बेहद प्यार करती रहीं, उनके नाम पर शासन द्वारा लता अलंकरण भी दिया जाता है. इन्दौर की एक गली जिसे पताशे वाली गली के नाम से भी प्रसिद्धि मिली जहां लता जी का जन्म हुआ.
28 सितंबर 1929 को इंदौर के एक मध्यमवर्गीय मराठा परिवार में जन्मीं लता मंगेशकर का नाम पहले हेमा था. हालांकि जन्म के 5 साल बाद माता-पिता ने इनका नाम बदलकर लता रख दिया था.
पंडित दीनानाथ मंगेशकर जी की सुपुत्री व शिष्या लता ताई किसी विद्यालय नहीं गईं किन्तु बीसियों विश्वविद्यालयों ने उन्हें सम्मान स्वरूप डॉक्टरेट प्रदान कर शैक्षिण अभिनंदन किया है.
'कृष्ण की बांसुरी थीं लता दीदी'
अपनी मधुर आवाज से लोगों को दीवाना बनाने वाली लता मंगेशकर जी ने लंबे समय तक अपने गीतों से दर्शकों का मनोरंजन किया. फिल्म इंडस्ट्री में स्वर कोकिला के नाम से मशहूर लता जी के गाने आज भी लोगों के मानस में जीवित हैं. हिंदी सिनेमा की इस दिग्गज गायिका के गाने न सिर्फ बीती पीढ़ी के लोग पसंद करते हैं, बल्कि नई पीढ़ी भी इन्हें बड़े शौक से सुनती है.
अपनी दमदार आवाज के दम पर इंडस्ट्री में एक अलग पहचान बनाने वालीं लता मंगेशकर आज भी करोड़ों दिलों की धड़कन हैं. 'भारत रत्न' से सम्मानित मशहूर गायिका लता मंगेशकर अपने अनूठे अंदाज के लिए भी जानी जाती रही हैं.
गीतकार प्रेम धवन ने लता जी के व्यक्तित्व पर एक कविता लिखी थी जिसमें दृश्य यह था कि गिरधर कृष्ण ने जब यह बात याद दिलाई होगी कि आपने वादा किया था जन्म लेने का तब कृष्ण का उत्तर रहा होगा कि वो तो नहीं आएं अब तक, पर पहले अपनी बांसुरी भारत में भेजी है उस बांसुरी का नाम भारत रत्न लता मंगेशकर है.
50,000 से ज्यादा गीतों को अपनी आवाज दे चुकीं लता जी ने करीब 36 क्षेत्रीय भाषाओं में भी गाने गाए, जिसमें मराठी, बंगाली और असमिया भाषा शामिल है.
92वें वर्ष की दैहिक आयु को तजकर आज स्वर कोकिला अपनी अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गईं. स्वर कोकिला ने देह परिवर्तन कर लिया, पर यकीन जानना वह हमारे बीच हमेशा रही हैं और हमेशा रहेंगी.
विधि के विधान के आगे हम नतमस्तक हैं. भारत रत्न, पूजनीया लता मंगेशकर जी के चरणों में विनम्र प्रणाम सहित स्वर साम्राज्ञी लता ताई को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि.
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल', मातृभाषा उन्नयन संस्थान, इन्दौर की राष्ट्रीय अध्यक्ष, हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)