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LIC IPO: डर भगाओ, पैसा कमाओ और चीन को भी 'पछाड़ो'

देश की टॉम बीमा कंपनी एशिया का सबसे बड़ा बीमा ब्रांड है, वक्त आ गया है कि हम ओवरसीज मार्केट में उतरने की हिम्मत करें

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प्रधानमंत्री मोदी अपने बजट को दुरुस्त करने के लिए एलआईसी के आईपीओ (LIC IPO) के आसरे हैं. उनकी सरकार को इसकी पब्लिक ऑफरिंग से 80,000 करोड़ रुपए मिल सकते हैं, जिसकी वैल्यू 10-15 लाख करोड़ रुपए के बीच होगी (150 से 200 अरब डॉलर). यूं इसके लिए उन्हें जिस एक शख्स का शुक्रगुजार होना चाहिए, वह हैं पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू. नेहरू ने ही लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी एलआईसी का 1956 में राष्ट्रीयकरण किया था. और इसमें 154 घरेलू बीमा कंपनियों, 16 विदेशी आउटफिट्स, और 75 प्रॉविडेंट कंपनियों का विलय हुआ था. लेकिन मुझे उम्मीद नहीं कि आपको डीआरएचपी (ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस) में नेहरू का कोई जिक्र मिलेगा!

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एलआईसी निवेशकों को लुभाए, इसके लिए मोदी सरकार हर संभव कोशिश कर रही है. सिक्योरिटीज रेगुलेटर ने निवेशकों को सिर्फ 5% शेयर बेचने की अनुमति देने के लिए अपने नियमों में बदलाव किए हैं. 10 इनवेस्टमेंट बैंकों, वॉल स्ट्रीट के दिग्गज गोल्डमैन सैश और जेपी मॉर्गन से लेकर स्थानीय डीलर्स जैसे जेएम फाइनैंशियल और कोटक महिंद्रा को नियुक्त किया गया है. एलआईसी के पॉलिसीधारकों को कर्मचारियों के बराबर रखने के लिए कानून में संशोधन किया गया है, जिससे वे भी 10% की छूट पर फ्लोट का 10% हिस्सा हासिल कर सकते हैं.

सरकार को एलआईसी के आईपीओ पर पूरा भरोसा क्यों नहीं?

फिर भी सरकार एक बार में सब कुछ नहीं बेचना चाहेगी. शायद पहले के दो इंश्योरेंस आईपीओ के कारण अंगूर कुछ खट्टे लग रहे हैं. जीआईसी और न्यू इंडिया इंश्योरेंस के आईपीओ की कीमत आधी लगाई गई थी. इससे सरकार फूंक फूंककर कदम रखना चाहती है. इसके अलावा बहुतों को इस बात में संदेह है कि भारतीय बाजार में एक बार में 80,000 करोड़ रुपए खर्चने की ताकत मौजूद है. इसलिए यह भी सोचा जा रहा है कि क्यों न इसे दो टुकड़ों में तोड़कर बाजार में उतारा जाए, यानी 40,000 करोड़ रुपए, दो बार.

चूंकि सरकार में आत्मविश्वास की कमी है, इसीलिए वह एक बड़े मौके का फायदा नहीं उठा रही. एलआईसी को लंदन की कंसल्टेंसी फर्म ब्रांड फाइनांस ने एशिया का सबसे मजबूत बीमा ब्रांड बताया है. उसे तीसरी पायदान पर रखा गया है.

पहली पायदान पर इटली की कंपनी पोस्ते इटैलियान है, और दूसरे पर स्पेन की मैपफ्रे. लेकिन एलआईसी चीन की पिंगएन इंश्योरेंस और दक्षिण कोरिया की सैंमसंग लाइफ इंश्योरेस से आगे है जो क्रमशः चौथी और पांचवी पायदान पर हैं. हां, ब्रैंड वैल्यू के आधार पर वह चीनी, जर्मन, फ्रेंच और अमेरिकी कंपनियों से पीछे है. ब्रैंड वैल्यू के लिहाज से एलआईसी 10वें पायदान पर है और इसकी कीमत है, 8.65 अरब अमेरिकी डॉलर. लेकिन इससे उलट, कोविड-19 महामारी के दौर में जब दुनिया की टॉप 100 बीमा कंपनियों की कुल ब्रैंड वैल्यू 6% गिरी, वहीं एलआईसी की ब्रैंड वैल्यू में 6.8% का इजाफा हुआ.

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एलआईसी, चाइना लाइफ से बड़ी है, वह ओवरसीज मार्केट में क्यों नहीं उतरती

लेकिन बाजार में सिर्फ ब्रॉन्ड वैल्यू और मजबूती के कॉन्सेप्ट से ही प्रतिद्वंद्वी की ढेर नहीं किया जाता. कई बार आंकड़े और पूंजीकरण का गणित भी बहुत मायने रखता है. आइए चीन की सबसे बड़ी कंपनी चाइना लाइफ इंश्योरेंस (ग्रुप) कंपनी और एलआईसी के बीच तुलना करके देखें:

  • एलआईसी के फील्ड एजेंट्स की संख्या 30 लाख के करीब है, और चाइना लाइफ के प्रॉडक्ट्स को बेचने वाले कर्मचारियों यानी सेल्स फोर्स चैनल्स की 18 लाख.

  • दोनों कंपनियों ने करीब 30 करोड़ पॉलिसी बेची हैं.

  • एलआईसी का 66% मार्केट शेयर चाइना लाइफ के आधे अरब ग्राहकों से बेहतर है.

  • लिस्टिंग में एलआईसी का मार्केट कैप 100-150 अरब अमेरिकी डॉलर के दायरे में रहने की उम्मीद है, जो चाइना लाइफ के 90-100 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा है.

  • एलआईसी भारत में एनएसई और बीएसई में लिस्ट होगी; चाइनालाइफ शंघाई, हॉन्गकॉन्ग और न्यूयॉर्क में लिस्टेड है.

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अब इन दो प्वाइंट्स को दोबारा पढ़िए और तसल्ली से सोचिए:

  • एलआईसी की मार्केट वैल्यू चाइन लाइफ से बड़ी है.

  • लेकिन एलआईसी भारत में सिमटी हुई है जबकि चाइना लाइफ प्रतिस्पर्धी ग्लोबल मार्केट एक्सचेंज में लिस्टेड है.

एलआईसी नीरज चोपड़ा जैसा लक्ष्य क्यों नहीं भेदती?

अब कुछ अलग सोचिए- बड़ा सोचिए:

  • हम ऑफरिंग को दो टुकड़ों में क्यों बांटना चाहते हैं, जिनके बीच कई महीनों का फासला होगा. सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें अपने स्थानीय निवेशकों की क्षमता पर भरोसा नहीं. इसकी बजाय क्या हम आधे इश्यू को भारत में, और उसके साथ ही आधे इश्यू को ओवरसीज़ में नहीं बेच सकते हैं?

  • इसके अलावा हम एलआईसी के साथ ‘नीरज चोपड़ा जैसा निशाना क्यों नहीं भेदते’? हम हमेशा चीन से एक कदम पीछे हटकर क्यों चलना चाहते हैं? हम यह क्यों मानकर चलते हैं कि यही हमारी नियति है? जब एलआईसी का मार्केट कैप 100-150 अरब अमेरिकी डॉलर के आस-पास है तो हम तो पांच बड़ी चीनी कंपनियों को पछाड़ सकते हैं जिनमें चाइना लाइफ, पिंगएन, चाइना पैसेफिक इंश्योरेंस, चाइनाज एआईए और पीपुल्स इंश्योरेंस कंपनी ऑफ चाइना शामिल हैं.

  • फिर, हमें अपने आंगन में सुरक्षित और अकेले बैठे रहने में क्यों आनंद आ रहा है? हम शेर को उसी की मांद में चुनौती नहीं दे सकते? हम अपने आंगन से क्यों नहीं निकलते, और बेधड़क होकर एलआईसी को हॉन्गकॉन्ग, और शंघाई में लिस्ट करते हैं, अगर रेगुलेशंस इस बात की इजाजत देते हैं? और फिर लंदन और न्यूयॉर्क के बाजार में उतरने की तैयारी करते हैं?

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रुकिए, आलोचक चिल्लाएंगे. क्या एलआईसी की बैलेंस शीट अंतरराष्ट्रीय छानबीन को सह पाएगी? क्या विदेशी निवेशकों की क्रूर खोजबीन उसकी कमियों का पर्दाफाश कर देगी? क्या यह ग्लोबल मार्केट स्टॉक के झटकों से उबरने लायक है? अंतरराष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज के उतार-चढ़ाव को उसके स्टॉक प्राइज झेल सकेंगे? और देश के कट्टर कानूनों के साथ, क्या भारत में मनी लॉन्ड्रिंग के नियम हमें इस बात की इजाजत देते हैं कि हम हॉन्गकॉन्ग और शंघाई स्टॉक एक्सचेंज में उतर सकें?

बिल्कुल... हम भारतीय लोग चुनौतियों से घबराते हैं. हमारे पास हर तर्क का वितर्क है. हम अपने जहाज को घरेलू और महफूज किनारे पर लंगर डालकर रोके रखना चाहते हैं. या फिर हम 2018 की सेबी की रिपोर्ट की सलाह पर गौर कर सकते हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हमारी कंपनियों के लिए हॉन्गकॉन्ग और चीन के बाजार में उतरने का समय आ गया है. तो, हम या तो अपने चिड़ियाघर के पिंजड़ों में कैद रहें या ड्रैगन को उसके जंगल में ललकारें.

जरा, हेडलाइन्स की कल्पना कीजिए. भारत की मुख्य बीमा कंपनी शंघाई के बाजार में लिस्ट हुई. चाइना लाइफ से ज्यादा है मार्केट कैप?

हे प्रभु! यह तो भारत की अर्थव्यवस्था ही नहीं, विदेश नीति की भी अद्भुत जीत होगी.

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