स्कूल के बाद मैंने अपना शहर छोड़ दिया था, क्योंकि मैं ग्रेजुएशन किसी दूसरे शहर से करना चाहती थी.
बोर्ड एग्जाम के दिनों में मां से पड़ने वाली डांट सुन-सुनकर मैंने सोच लिया था कि बस अब बहुत हुआ, अब मुझे अकेले रहना है, अपनी तरह से. आखिर ये मेरी जिंदगी है. शायद उस उम्र में अधिकतर लोग इसी तरह सोचते हैं.
मुझे भी उस वक्त नहीं पता था कि मैं किस झमेले में पड़ने जा रही हूं. तब से अब तक, आठ साल अकेले रहने के बाद ये कुछ अनुभव हैं, जिन्हें मैं आप सब के साथ साझा कर रही हूं. मुझे लगता है कि मेरी उम्र के काफी लोगों के अनुभव इससे मिलते-जुलते रहे होंगे.
भैया, एक किलो ‘पोटैटो’ कितने का है?
पोस्ट ग्रैजुएशन के दौरान मैं बंगलुरु के एक हॉस्टल में रहती थी. यहां शिफ्ट हुए कुछ ही दिन हुए होंगे. बाहर का खा-खाकर जबान स्वाद पहचानना भूल चुका था, इसलिए सोचा कि आज कुकिंग का श्री-गणेश कर ही दिया जाए.
तो निकल पड़ी मैं भाजी-तरकारी खरीदने. यहां कई ऐसी भी सब्जियां थीं जिन्हें मैंने पूरी जिंदगी में कभी नहीं देखी थी. असल में इतने करीब से सब्जियां तब ही देखीं थी जब वो पककर मेरी थाली में होती थीं.
खैर! जैसे तैसे सब्जियों को पहचाना, कुछ की तस्वीरें पापा को वॉट्सऐप पर भेजीं ताकि वो नाम बता दें.
आखिर सब्जीवाले से कितना पूछती, वो भी सोचता - पता नहीं किस दुनिया से आई है.
मैने एक-एक कर किसी एक्सपर्ट खरीदार की तरह 5 आलू, 6 टमाटर, 6 प्याज चुने और सब्जीवाले को दे दिए.
उसने मेरी तरफ देखा और पूछा, “कितने किलो चाहिए?” मैंने कहा कि “इतना ही चाहिए.” वो मुस्कुरा दिया.
बाद में जब पापा ने मुझसे बेंगलुरु में आलू का भाव पूछा तो मैं कैल्कुलेटर ढूंढती फिर रही थी.
....उस दिन पता चला, बिजली का बिल भी झटका दे सकता है
बचपन में जब बिजली का बिल आता था तो पापा के चेहरे पर शिकन दिख जाती थी. इसके बाद के दो-तीन दिन बेवजह पंखा-लाइट नहीं चलाने के उपदेश सुनते बीतते थे.
पापा का ऐसा सनकी बिहेवियर तब नहीं समझ आता था.
पर जब पीजी के मालिक ने मुझे धमकाते हुए कहा, “फैन बंद कर दिया करो, बिल ज्यादा आता है” तो मुझे एक बार में ही सब समझ आ गया.
जब आप 20 साल की उम्र पार कर पहली बार अकेले रहने जाते हैं, तब आपको बड़ी आसानी से समझ आ जाता है कि बिजली के बिल का झटका कितनी तेज लगता है.
कपड़े अपने-आप साफ नहीं होते, धोने पड़ते हैं!
धुले हुए साफ-सुथरे कपड़े पहनना किसे पसंद नहीं होता? जाहिर है, मुझे भी पसंद है.
प्रेस किए हुए परफ्यूम्ड कपड़े हमेशा अलमारी में तैयार दिखते थे, लेकिन इसके पीछे की मेहनत का अंदाजा मां ने कभी नहीं लगने दिया.
जब पूरे टशन में शहर छोड़कर आई थी तब ये बिल्कुल नहीं पता था कि संडे की छुट्टी कपड़े धोने के लिए ही मिलती है.
अब जब दोस्त वीकएंड का प्लान पूछते हैं, तो मेरा जवाब अक्सर कुछ ऐसा होता है, “कपड़े धो रही हूं, और तुम?”
कपड़े धोने का महान काम पूरा करने के बाद खुद पर इतना गर्व होता है कि पिज्जा मंगवाकर अपने को ट्रीट देना पड़ता है.
काम वाली बाई ‘एंजेल’ होती है
अगर आपको खाना बनाने, बर्तन साफ करने और घर की सफाई करने के लिए कोई मिल जाए, तो मान लीजिए कि आपकी किस्मत अच्छी है.
घर पर जब काम वाली बाई के न आने पर मां परेशान हो जाती थीं, तो मुझे लगता था कि एक ही दिन की तो बात है, मां इतना परेशान क्यों हैं. अब हर सुबह पहला कॉल अपनी काम वाली बाई को ही मिलाती हूं.
मैं उससे कभी बहस नहीं करती, सिर्फ रिक्वेस्ट करती हूं. कभी-कभी तो गिड़गिड़ाने की नौबत आ जाती है.
गुल्लक में अब पैसे डालती कम, निकालती ज्यादा हूं
जब मैंने अपनी पहली नौकरी जॉइन की थी, तो फ्रेशर्स को मिलने वाली तनख्वाह को देखते हुए मैंने एक बजट डायरी रखना शुरू किया. इस डायरी में मैं अपने सारे खर्चों का हिसाब रखती थी.
पर भगवान जाने, कहां गायब हो जाते थे सारे पैसे!
मैं डरकर डायरी के पन्ने को देखती थी और अपने मां-पापा की तरह कहती थी, “हे भगवान! महंगाई कितनी बढ़ गई है.”
आजादी अपने साथ अकेलापन लेकर आती है!
मूड स्विंग्स तो होते ही हैं, पर जब आप अकेले रह रहे होते हैं, तो फिर ये और भी खतरनाक हो जाता है.
कई दिन ऐसे भी आते हैं, जब आप खुद को खुश करना चाहते हैं. और इसके लिए रीटेल थेरेपी (शॉपिंग) सबसे कारगर लगती है. यानी जेब और हल्की.
कई बार जब आप उदास होते हैं, उस वक्त आपके सबसे करीबी लोग - आपके दोस्त, आपका बॉयफ्रेंड, आपकी मां, सब कहीं न कहीं व्यस्त होते हैं और ऐसे में आप खुद को संभालना सीख जाते हैं.
टीनएजर्स के लिए सबसे जरूरी टिप – इंडिपेंडेंट होने की सबसे बड़ी कीमत यही चुकानी पड़ती है.
पैसा सबकुछ नहीं पर किसी से कम भी नहीं!
काश! जिंदगी किसी फिल्म की तरह होती और आप जब चाहे, हाथ में शॉपिंग बैग्स लिए घूम सकते.
कॉलेज में तो मुझे एक फिक्स पॉकेटमनी मिलती थी. उन दिनों मुझे अपने पर्स और अपनी ख्वाहिशों के बीच तालमेल बिठाने में पूरी जंग लड़नी पड़ती थी.
जब मुझे पहली नौकरी मिली, तब जाकर मैंने पैसे की सही कीमत पहचानी. मैं सोचा करती थी कि अगली बार जब तनख्वाह बढ़ेगी, तो परेशानियां थोड़ी कम हो जाएंगी. पर हर बार तनख्वाह बढ़ने पर परेशानियां कम होने की जगह बढ़ ही जाती थीं.
आज जब मैं 26 साल की होने को हूं, हर बार नई-नई परेशानियां आ खड़ी होती हैं, जैसे टैक्स सेविंग, इनवेस्टमेंट्स, अपने ड्रीम हॉलिडे के लिए पैसे बचाना, वगैरह-वगैरह.
दुनियादारी इसी को कहते हैं मेरे दोस्त!
इस उम्र में अकेले रहने पर एक बात तो है कि आप खुद को और इस दुनिया को अच्छी तरह जान पाती हैं.
21 की उम्र में आपने अपने बारे में जो समझ बनाई थी, 25 के होते-होते वह बदल गई.
किसी कठिन परिस्थिति से जब आप सर उठाकर बाहर आती हैं, तो महसूस करती हैं, “अरे! मैं इतनी समझदार कब हो गई?”
बेशक! आपका दिल कई बार टूटेगा, आप इनसिक्योर भी होंगी, पर अच्छा वक्त भी आएगा. और इसी अच्छे वक्त के लिए आप जीना सीख जाएंगी.
ये सबकुछ उस फीलिंग के लिए वाजिब है, जो आपको मजबूत और इंडिपेंडेंट महसूस कराता है और बार-बार कहता है — “जिंदगी एक बार मिलती है, दिल खोल के जी लो!”
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