ADVERTISEMENTREMOVE AD

'INDIA' ब्लॉक की EBC/OBC रणनीति क्या बिहार में NDA को बढ़त से रोक पाएगी?

पिछले तीन चुनावों में 40 लोकसभा सीटों में से 17 पर एक ही जाति के उम्मीदवार ने जीत हासिल की है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बिहार की चुनावी लड़ाई 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Poll 2024) के सातवें चरण में अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर जाएगी, जहां 1 जून को आठ सीटों पर मतदान होगा. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं, जिसमें से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने 2019 के चुनाव में 39 सीटें जीतकर राज्य में जीत हासिल की थी. इस बार भी एनडीए और इंडिया, दोनों गुटों ने कई बड़े और छोटे दलों को अपने गठबंधन में शामिल किया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एनडीए को उम्मीद है कि वह पीएम मोदी की लोकप्रियता, महिलाओं के वफादार वोट आधार और लाभार्थियों के कारण कम से कम नुकसान के साथ, अपनी बढ़त बनाए रखेगी. वहीं, इंडिया ब्लॉक को उम्मीद है कि वो जनता दल यूनाइटेड के प्रमुख और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट, मौजूदा सांसदों और मोदी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों की वजह से एनडीए के पिछले बार की सफलता में महत्वपूर्ण सेंध लगाने में कामयाब होगी.

छठे चरण तक, बीजेपी ने 2019 में 278 सीटें जीती थीं. कुछ राज्यों में हार की चर्चा के बीच, 7वां चरण पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. ऐसे में 2024 में बिहार, पार्टी के लिए अपना नंबर (सांसदों की संख्या) मजबूत करने की कुंजी है.

तेजस्वी यादव राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस पार्टी, वामपंथी दलों और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं. दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी बीजेपी, जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं. नीतीश कुमार के यू-टर्न ने एनडीए को बढ़त दे दी है, अन्यथा सर्वे भारी नुकसान की भविष्यवाणी कर रहे थे.

तेजस्वी यादव ने 2020 के विधानसभा चुनावों में एनडीए को एक कड़ी टक्कर दी, और नीतीश को लगभग 37 प्रतिशत के बराबर वोट शेयर के साथ हरा दिया. इस चुनाव में एनडीए 125 और महागठबंधन 110 सीट जीतने में सफल हुई थी. यदि कांग्रेस ने अपनी सीटों पर थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया होता, तो महागठबंधन चुनाव जीत जाती.

बिहार की राजनीति में जाति अहम भूमिका निभाती है. 40 लोकसभा सीटों में से 17 पर, पिछले तीन चुनावों - 2009, 2014 और 2019 में एक ही जाति के उम्मीदवार ने सीट जीती है. इनमें से आठ सीटें ऊंची जाति के उम्मीदवारों ने जीती हैं, और चार सीटें राजपूतों (महाराजगंज, आरा, वैशाली और औरंगाबाद) ने जीती हैं.

नीतीश ने जाति जनगणना कराई, जिसमें पता चला कि ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) 27 प्रतिशत, ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) 36 प्रतिशत, एससी (अनुसूचित जाति) 20 प्रतिशत, एसटी (अनुसूचित जनजाति) दो प्रतिशत और सामान्य वर्ग की आबादी 15 प्रतिशत हैं. दोनों पक्षों के पास निश्चित वोट बैंक हैं और लड़ाई ईबीसी/ओबीसी वोट के लिए है, जो आबादी का 60 प्रतिशत से अधिक है.

एनडीए को उच्च जातियों (ब्राह्मण, बनिया, राजपूत), कुर्मी/कोइरी समुदाय (सीएम और डिप्टी सीएम का जाति समूह), और महादलित और दलित (चिराग पासवान और एलजेपी) का समर्थन प्राप्त है, जिसकी आबादी लगभग 40 प्रतिशत है. चिराग पासवान के पास दुसाध समुदाय का भी समर्थन हैं, जबकि जीतन राम मांझी मुसहर समुदाय से आते हैं.

दूसरी ओर, इंडिया ब्लॉक को मुसलमानों और यादवों (32 प्रतिशत) का समर्थन प्राप्त है. सीपीआई (एमएल) के पास दलित और ईबीसी का समर्थन है, जबकि वीआईपी का मल्लाहों में प्रभाव है. कांग्रेस अपने उच्च जाति के मतदाताओं के एक वर्ग को वापस लुभाने का प्रयास कर रही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ओबीसी/ईबीसी वोटरों को लुभाने के लिए इंडिया ब्लॉक ने समुदाय से 23 उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो उसके कुल टिकटों का लगभग 60 प्रतिशत है, जबकि एनडीए ने 19 दिया है. मुसलमानों और दलितों को छह-छह टिकट दिए गए हैं, जबकि सामान्य वर्ग/उच्च जाति के उम्मीदवारों को पांच टिकट दिए गए हैं. 16 ओबीसी उम्मीदवारों में से 9 यादव समुदाय से हैं.

दूसरी ओर, एनडीए ने अपने मुख्य वोटिंग आधार सामान्य वर्ग को सबसे अधिक 14 टिकट दिए हैं. 19 टिकट ओबीसी/ईबीसी उम्मीदवारों को, छह टिकट दलितों को और एक टिकट मुस्लिमों को (जेडीयू द्वारा) दिया गया है. बीजेपी ने सामान्य वर्ग से 10 को टिकट दिया है - पांच राजपूत, दो भूमिहार, दो ब्राह्मण और एक कायस्थ उम्मीदवार है.

जहां इंडिया ब्लॉक ने 57.5 प्रतिशत ओबीसी/ईबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिया है, वहीं एनडीए ने इस समुदाय को 47.5 प्रतिशत टिकट दिए हैं. एनडीए ने 35 फीसदी ऊंची जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है, वहीं इंडिया ब्लॉक ने सिर्फ 12.5 फीसदी को टिकट दिया है.

इंडिया ब्लॉक की नजर स्पष्ट रूप से ओबीसी/ईबीसी वोट पर है. 2019 के लोकसभा चुनाव में, जहां एनडीए को ओबीसी वोट का 71 प्रतिशत मिला, वहीं इंडिया ब्लॉक (उस समय संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन/महागठबंधन) को केवल 13 प्रतिशत समर्थन मिल सका,

2020 के विधानसभा चुनावों में, एनडीए का समर्थन घटकर 58 प्रतिशत (-13 प्रतिशत) हो गया, जबकि इंडिया ब्लॉक को 18 प्रतिशत (प्लस पांच प्रतिशत) प्राप्त हुआ. अन्य को 24 प्रतिशत वोट मिले और इंडिया गुट को उम्मीद है कि 2024 में मुकाबला दो पक्षीय हो जाने पर वह इन मतदाताओं को अपने पक्ष में कर लेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
आरजेडी गंभीर रूप से अपने मुस्लिम-यादव वोट बैंक का विस्तार करने और गठबंधन से ओबीसी और ईबीसी को अधिक टिकट देकर, केवल उन दो समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी की अपनी छवि को खत्म करने का प्रयास कर रही है. तेजस्वी यादव ने अक्सर कहा है कि आरजेडी BAAP - B (बहुजन), A (अगाड़ी), A (आधी आबादी, यानी महिला) और P (गरीब) का प्रतिनिधित्व करता है.

संक्षेप में, आरजेडी, जो 2019 के लोकसभा चुनावों में अपना खाता भी नहीं खोल सकी, बिहार में एनडीए की संख्या में सेंध लगाने के लिए एक नई रणनीति की कोशिश कर रही है, जहां उसने पिछले चुनावों में सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था. यह सफल होगा या नहीं यह तो समय ही बताएगा.

लोकसभा चुनाव 2024 से जुड़ी क्विंट हिंदी की तमाम अन्य ओपिनियन पीस को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

(अमिताभ तिवारी एक स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार हैं और उनसे एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर @पोलिटिकलबाबा पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×