मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में बीजेपी की ओर से सीएम फेस की घोषणा न करने के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) के राजनीतिक करियर पर प्रश्न चिन्ह लगता दिखाई दे रहा है. बीजेपी ने उन्हें पार्टी का सीएम चेहरा घोषित करने से किनारा कर लिया है. शीर्ष पद के लिए नजरअंदाज किए जाने पर उनका दर्द और पीड़ा हाल ही में सीहोर की एक रैली में दिखाई दी जब उन्होंनेमचुटकी लेते हुए कहा, " ऐसा भैया नहीं मिलेगा. जब मैं चला जाऊंगा, तब बहुत याद आऊंगा."
शिवराज का रिप्लेसमेंट ढूंढने में बीजेपी नाकाम
शिवराज सिंह चौहान भारत के सभी राज्यों में बीजेपी के सबसे लंबे (16 साल से अधिक) समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री हैं. 2020 में जब बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद से कमलनाथ सरकार गिराई थी, उस समय भी नए सीएम के नाम की चर्चा चल रही थी. हालांकि, इसमें कोई बदलाव न हो सका.
पिछले करीब एक साल से अटकलें तेज थीं कि शिवराज को सीएम पद से हटा दिया जाएगा और पार्टी गुजरात, उत्तराखंड और त्रिपुरा में प्रयोग के समान, एक नए नेतृत्व के तहत आगामी चुनाव लड़ेगी.
लेकिन बीजेपी शिवराज का उपयुक्त रिप्लेसमेंट ढूंढ पाने में नाकाम रही और "मामा" का पद हमेशा की तरह उनके लिए सुरक्षित रहा. दरअसल शिवराज सिंह चौहान पार्टी के एकमात्र ओबीसी सीएम हैं. यही वजह है, जिसने बीजेपी के लिए यह मामला मुश्किल बना दिया है.
उनकी जगह लेने में असमर्थ पार्टी ने आगामी चुनाव में शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, वीडी शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रह्लाद पटेल आदि के संयुक्त नेतृत्व में चुनाव लड़ने का विकल्प चुना है और 3 कैबिनेट मंत्री सहित 7 सांसदों को मैदान में उतारा है. शुरुआती ओपिनियन पोल में मध्य प्रदेश में बीजेपी के लिए कड़ी लड़ाई की भविष्यवाणी की गई है.
ऐसी अफवाहें हैं कि शिवराज सिंह चौहान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में भेजा जा सकता है. लोकसभा के तुरंत बाद जेपी नड्डा का कार्यकाल भी खत्म होने वाला है. ऐसे में शिवराज को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है. वहीं, दूसरी ओर एक और अफवाह यह है कि केंद्रीय नेतृत्व 'मामा' को कमजोर करना चाहता है, नहीं तो 2024 में खंडित जनादेश की स्थिति में वह एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर सकते हैं.
बीजेपी ने अभी तक शिवराज को पार्टी का सीएम फेस घोषित क्यों नहीं किया है, इसके आठ कारण हैं:
सत्ता विरोधी लहर रोकने की कोशिश
किसी भी नेता के नेतृत्व वाली ऐसी लंबे समय तक सेवा करने वाली सरकार के खिलाफ कुछ हद तक सत्ता-विरोधी लहर पैदा होना बहुत स्वाभाविक है. हालांकि, मध्य प्रदेश कई सामाजिक-आर्थिक मापदंडों पर अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन राष्ट्रीय औसत से कम प्रति व्यक्ति आय के मामले में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
यहां तक कि कुछ बीजेपी समर्थक भी चाहते हैं कि बीजेपी एमपी में कोई नया चेहरा पेश करे. 'मामा' ने योगी की बुलडोजर बाबा छवि की नकल करते हुए इस शब्द में एक नई छवि अपनाने या खुद को फिर से गढ़ने की कोशिश की है, लेकिन यह उनके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता.
राज्य में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी शीर्ष तीन मुद्दे हैं. PEACS-News24 सर्वे के अनुसार 26 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इन मुद्दों के लिए मुख्यमंत्री को दोषी ठहराया है. 60 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने उनके प्रदर्शन को खराब, औसत या यह नहीं कह सकते, 35 प्रतिशत से भी कम ने अच्छा बताया है. जो कि काफी कम है.
संयुक्त नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं
मोदी युग (2014-आज तक) में राज्य चुनावों में, बीजेपी ने 16 चुनाव लड़े हैं, जहां वह सत्ता में थी (उन राज्यों को नजरअंदाज कर दिया जहां सहयोगियों के पास सीएम पद है). बीजेपी 7 राज्यों में सरकार बनाने में असफल रही और 9 राज्यों में उन्होंने अपनी सरकार बनाई. जिन 7 राज्यों में बीजेपी को हार मिली उनमें से 5 पर कांग्रेस को जीत मिली.
इन सभी पांच राज्यों, राजस्थान (2018), मध्य प्रदेश (2018), छत्तीसगढ़ (2018), हिमाचल प्रदेश (2022) और कर्नाटक (2023) में, कांग्रेस ने सीएम चेहरे की घोषणा नहीं की थी और संयुक्त नेतृत्व में चुनाव लड़ा था. अब बीजेपी मध्य प्रदेश में इस मॉडल को अपना रही है, जहां आदर्श रूप से वह सीएम को बदलना चाहती थी, लेकिन ऐसा नहीं कर सकी.
युवाओं के मन में व्याप्त बोरियत को रोकना
2023 में पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले मतदाताओं में से 93% शिवराज को सीएम के रूप में देख चुके हैं. मध्य प्रदेश में जो कुछ भी अच्छा-बुरा है, उसका श्रेय वे शिवराज को देते हैं. वास्तव में उन्होंने दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के "काले दिन" नहीं देखे हैं, जैसा कि बीजेपी आरोप लगाती है. जाहिर है कि यह पीढ़ी बहुत जल्दी बोर हो जाती है और नई चीजें आजमाना चाहती है.
अत्यधिक स्थानीय चुनाव
बीजेपी को एहसास है कि राज्य के चुनाव अत्यधिक स्थानीय होते हैं और स्थानीय उम्मीदवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. दरअसल, 2018 में एमपी में सीएसडीएस के पोस्ट पोल अध्ययन के अनुसार वोट देने के लिए मतदाताओं को प्रेरित करने में सीएम का चेहरा तीसरे स्थान पर है.
2018 में एमपी में केवल 14 फीसदी मतदाताओं के लिए सीएम का चेहरा सबसे महत्वपूर्ण विचार था, जबकि 32 फीसदी ने स्थानीय उम्मीदवारों के आधार पर वोट दिया. पार्टी को लगता है कि सीट दर सीट मुकाबले में सीएम की भूमिका कम होती है. साथ ही वह सत्ता विरोधी लहर से पीड़ित हैं, तो उन्हें प्रोजेक्ट क्यों किया जाए?
बीजेपी के वफादार मतदाता
राजस्थान और यूपी के साथ एमपी पहला राज्य था, जहां बीजेपी ने अपने नए अवतार (भारतीय जनसंघ के बाद) में राज्य सरकार बनाई थी. यह मजबूत संगठनात्मक आधार के साथ पार्टी के मजबूत गढ़ में से एक है.
एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल 2019 के अनुसार भारत में केवल 31 प्रतिशत मतदाता बीजेपी के प्रति वफादार हैं, जबकि एमपी के लिए यह संख्या 44 प्रतिशत है. इसके अलावा, 46 प्रतिशत मतदाताओं के लिए, पार्टी सबसे महत्वपूर्ण मतदान विचार थी.
पीएम मोदी की लोकप्रियता
बीजेपी की रणनीति 60 प्रतिशत से अधिक रेटिंग के साथ हिंदी पट्टी राज्य में अपनी उच्च लोकप्रियता के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगने की है. पार्टी को उम्मीद है कि इससे कुछ हद तक शिवराज के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को कम किया जा सकता है. जिन कद्दावर नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए कहा गया है, उनकी सकारात्मक छवि के साथ, पार्टी को उम्मीद है कि उसके पास जीत का फॉर्मूला है.
व्यापम पर फोकस को रोकना
2018 के विपरीत इस बार कांग्रेस की रणनीति सीएम की कमजोर स्थिति का फायदा उठाकर इसे कमल नाथ और शिवराज के बीच मुकाबला बनाने की है. 2018 में शिवराज को सीएम पद का चेहरा नहीं बनाए जाने का एक कारण यह था कि इससे कांग्रेस को कुख्यात व्यापम घोटाले सहित उनके कार्यकाल के दौरान कथित घोटालों पर पार्टी को घेरने का मौका मिलता. PEACS-News24 सर्वेक्षण में 26.3 प्रतिशत मतदाताओं ने राज्य में टॉप तीन मुद्दों में से एक भ्रष्टाचार भी बताया है.
सीएम रेटिंग में शिवराज की लोकप्रियता घटी
एबीपी-सीवोटर सर्वे के मुताबिक, 37 फीसदी मतदाता शिवराज को सीएम के रूप में देखना चाहते हैं, जबकि 36 फीसदी लोग कमल नाथ को सीएम के रूप में देखना चाहते हैं. शिवराज सिर्फ 1 फीसदी से आगे हैं. इन मामलो में, पदधारी को आम तौर पर दिमाग के शीर्ष पर होने के कारण कुछ प्रतिशत अंक अधिक मिलते हैं.
PEACS-News 24 सर्वे के मुताबिक, शिवराज महज 0.1 फीसदी से आगे हैं. उनकी लोकप्रियता रेटिंग 2018 में 45% से गिरकर 2023 में 37 प्रतिशत हो गई है, जो मतदाताओं की थकान के साथ-साथ उनकी सरकार की संतुष्टि रेटिंग में गिरावट को उजागर करती है.
कुल मिलाकर यह पार्टी के लिए बहुत पेचीदा फैसला है. चूंकि किसी सीएम चेहरे की घोषणा नहीं की गई है, इसलिए सर्वेक्षणों में शिवराज अभी भी सबसे लोकप्रिय बीजेपी नेता के रूप में उभर रहे हैं. उनके समर्थकों का दावा है कि वह अलोकप्रिय नहीं हैं. इसे बीजेपी द्वारा अपने नेता पर भरोसा खोने के तौर पर भी देखा जा रहा है. ऐसे में पार्टी कैसे उम्मीद कर सकती है कि मतदाता उसका समर्थन करेंगे? यह एक तरह से "न इधर, न उधर" की रणनीति है.
ऐसा ही कुछ हिमाचल प्रदेश में हुआ जहां बीजेपी द्वारा जय राम ठाकुर को हटाने की अफवाहों के बावजूद वह पद पर बने रहे और पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा. कर्नाटक में एक पुनरावृत्ति हुई: बसवराज बोम्मई के भविष्य पर सस्पेंस - अगर पार्टी सत्ता में आती है तो क्या वह सीएम बनेंगे, या नहीं - ने मतदाता के मन में भ्रम पैदा कर दिया. मप्र में यह काम करेगा या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा. इस निर्णय के पार्टी के पक्ष में काम करने की संभावनाएं काफी हद तक इसके खिलाफ हैं.
(लेखक एक स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार हैं और उनसे @politicbaaba पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक राय ओपिनियन है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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