मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Election 2023) से पहले, सभी सर्वे ने कांग्रेस पार्टी की जीत की अधिक संभावना जताई थी, लेकिन 30 दिसंबर को जारी एग्जिट पोल (हालांकि सभी नहीं) इससे उलट आए हैं.
कम से कम दो एग्जिट पोल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली बीजेपी को अभूतपूर्व बहुमत मिलता दिख रहा है, जिससे कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस को किसी भी सरकार गठन को चुनौती देने का कोई मौका नहीं मिलेगा. हालांकि, एक लोकप्रिय हिंदी समाचार चैनल (और यहां तक कि सी-वोटर) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, कांग्रेस सरकार बनाएगी. अन्य एग्जिट पोल आमने-सामने की लड़ाई की संभावना जता रहे हैं.
अब, कौन सा सबसे सटीक है?
जब यह सब चल रहा था और मध्य प्रदेश में लोग चर्चा कर रहे थे कि मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन बनेगा, सोशल मीडिया पर एक छोटी सी क्लिप वायरल हो गई थी.
एक समाचार चैनल के दो वरिष्ठ संपादकों को एग्जिट पोल में शामिल एक आउटलेट के शीर्ष बॉस के साथ बीजेपी की क्लीन स्वीप दिखाने वाले आंकड़ों पर चर्चा करते सुना गया. संपादकों ने कहा कि यह अविश्वसनीय है, और जैसे-जैसे चर्चा आगे बढ़ी, शीर्ष बॉस भी थोड़ा घबराए हुए लगने लगे.
क्या यह एक मार्केटिंग का हथकंडा था, एक अच्छी तरह से लिखी गई बातचीत और बाद में विश्वसनीयता का दावा करने के लिए जानबूझकर लीक किया गया? मध्य प्रदेश में ऐसे ही एक सर्वेक्षण में शामिल एक अधिकारी ने मुझे बताया, "एग्जिट पोल कोई सटीक विज्ञान नहीं है और हम सभी को इसे एक चुटकी नमक के साथ लेना चाहिए." वह खुद एग्जिट पोल के पूर्वानुमानों में भिन्नता को एक्सप्लेन करने में विफल रहे.
ये तीन फैक्टर्स बीजेपी के साथ
बीजेपी के समर्थक उस एग्जिट पोल को प्रमोट करने में जुटे हैं, जिनमें पार्टी के क्लीन स्वीप की संभावना जताई गई है. अगर 3 दिसंबर को वास्तव में बीजेपी बहुमत पाती है तो संभावित मुख्यमंत्री को लेकर अटकलें भी शुरू हो चुकी हैं.
अगर बीजेपी ने वास्तव में कांग्रेस को पछाड़ दिया है, जैसा कि ऑस्ट्रेलिया ने विश्व कप फाइनल में भारत के साथ किया था, तो इसके तीन बड़े कारक हैं:
मुख्य कारक 'लाडली बहना योजना' होगी, यानी मध्य प्रदेश की 1.3 करोड़ महिलाओं के लिए चौहान द्वारा चुनाव से आठ महीने पहले मार्च में शुरू की गई कैश-इन-हैंड योजना. मतदान से कुछ महीने पहले ही सीएम द्वारा की गई घोषणाओं में इसे भी शामिल किया गया था.
कल्याणकारी घोषणाओं में लगभग 30 लाख जूनियर स्तर के कर्मचारियों के लिए वेतन और भत्ते में वृद्धि और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का वेतन 10,000 रुपये से बढ़ाकर 13,000 रुपये करना शामिल है. उन्होंने रोजगार सहायकों का मानदेय दोगुना (9,000 रुपये से 18,000 रुपये) करने और जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, जिला अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और उपसरपंच और पंच जैसे नेताओं का मानदेय तीन गुना करने का भी वादा किया.
इसके साथ ही उन्होंने मेधावी छात्रों को 135 करोड़ रुपये की लागत से ई-स्कूटर के साथ-साथ 196 करोड़ रुपये की लागत से 78,000 छात्रों को लैपटॉप देने की भी गारंटी दी है.
दूसरा कारक चुनाव आदर्श आचार संहिता लागू होने से लगभग 15 दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संबोधित 15 रैलियां होंगी.
इसके अलावा, बुंदेलखंड में अलग-अलग दिनों में मुख्यमंत्री चौहान के साथ असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी भी थे.
और तीसरा, बाद के चुनावी अभियान में हिंदू मंदिरों की चर्चा. राज्य सरकार ने चार मंदिरों- सलकनपुर में देवीलोक, ओरछा में रामलोक, सागर में रविदास समरक और चित्रकूट में दिव्य वनवासी लोक के विस्तार और स्थापना के लिए 358 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.
सागर में जिस रविदास मंदिर का भूमिपूजन इस साल अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी ने किया था, उसका निर्माण 100 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा है.
14 साल पहले छिंदवाड़ा में कांग्रेस के दिग्गज नेता कमल नाथ द्वारा बनाई गई 101 फुट ऊंची हनुमान प्रतिमा का मुकाबला करने के लिए, इस साल अगस्त में शिवराज ने छिंदवाड़ा में एक पुराने हनुमान मंदिर के 350 करोड़ रुपये के नवीकरण परियोजना की घोषणा की.
इन सबके बीच, कांग्रेस पर बीजेपी के संगठनात्मक कौशल की सर्वोच्चता वास्तव में कभी भी संदेह में नहीं थी.
मुख्यमंत्री शिवराज के बारे में क्या?
जब पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दरकिनार करते हुए अभियान की कमान संभाली, तो पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर और मतदाता में निराशा से संभावित नुकसान को कम करने की कोशिश की.
भोपाल में एक वरिष्ठ बीजेपी पदाधिकारी ने याद दिलाया, “इन सबके बावजूद, वे शिवराज को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं कर पाए, जिन्होंने राज्य में 166 रैलियों को संबोधित किया.”
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिलचस्प टिप्पणी की, "शिवराज मोदी और शाह के वर्चस्व को समझते हैं लेकिन राज्य में पार्टी की हार का ठीकरा उन पर फोड़ा जाता."
क्या वह पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनेंगे? भगवा पार्टी के कई नेता अभी भी चुप्पी साधे हुए हैं. वे कहते हैं, ''दिल्ली में लोग फैसला करेंगे.''
और पीएम मोदी के तीन कैबिनेट सहयोगियों सहित उन सात सांसदों के बारे में क्या, जिन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था? पार्टी सूत्रों ने कहा, "अगर बीजेपी एमपी में जीत हासिल करती है, तो उन्हें 2024 का चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीटें खाली करने के लिए कहा जा सकता है."
एक बीजेपी नेता ने मुझे बताया, मध्य प्रदेश बीजेपी की सबसे पुरानी हिंदुत्व प्रयोगशालाओं में से एक रहा है. राज्य में आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ताओं की एक मजबूत टीम है. “और संघ की यह टीम, कार्यकर्ताओं और मतदाताओं दोनों का प्रबंधन करती है”.
अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश जीतना बहुत मायने रखेगा. बीजेपी नेता ने कहा, ''इसका मतलब है कि पार्टी की उंगली हिंदी पट्टी की नब्ज पर है.''
कांग्रेस पार्टी का क्या?
अगर एग्जिट पोल सही साबित होते हैं तो कांग्रेस पार्टी का क्या होगा?
कमलनाथ ने अपने तथाकथित नरम हिंदुत्व दृष्टिकोण के साथ हिंदुत्व को भी अपनाने की कोशिश की. लेकिन उस रणनीति में क्या गलत हो सकता है?
मतदाताओं में निराशा, सत्ता-विरोधी लहर या फिर बीजेपी नेताओं के बीच अंदरूनी कलह को कांग्रेस क्यों नहीं भुना पाई? क्या यह पार्टी का अति आत्मविश्वास है जो उनके लिए महंगा साबित हो रहा है या टिकट वितरण? क्या कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच गंभीर मतभेद थे जो अंततः पार्टी के भाग्य पर मुहर लगा सकते थे? इन सवालों के जवाब के लिए गंभीर चिंतन की जरूरत होगी.
अगर मध्य प्रदेश चुनावों में बीजेपी की जीत को दर्शाने वाले एग्जिट पोल सही हैं, तो कांग्रेस को न केवल खुद को पुनर्गठित करना होगा, बल्कि 2024 के संबंध में हिंदी पट्टी के लिए अपनी रणनीति को संशोधित करना होगा.
वहीं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का राजनीतिक करियर का क्या होगा, इसके संबंध में मैं वास्तव में नहीं कह सकता.
(लेखक मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक विचारात्मक लेख है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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