झांसी जेल से बागपत जेल शिफ्ट करने का फैसला होते ही यूपी का डॉन मुन्ना बजरंगी को खुद की हत्या की आशंका हो गई थी. उसे पुलिस के सुरक्षा के तमाम वादों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था यहां तक कि झांसी से बागपत के 12 घंटे के सफर में पूरे वक्त वो सहमा हुआ था. हत्याओं के आरोपी, फिरौती वसूलने वाले और लोगों को डराने वाले
ये डॉन आखिर जेल बदलने के नाम पर ही कांप क्यों जाते हैं? ये डॉन क्यों किसी खास जेल में ही रहना चाहते हैं? ऐसा क्या सिस्टम है कि सिस्टम से बाहर होने के बाद डॉन जेल के अंदर भी महफूज नहीं होता?
मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह कह चुकी थीं, मुन्ना कुछ पुलिस वालों से गिड़गिड़ा रहा था कि उसे बागपत जेल ना भेजें. क्योंकि वहां दूसरा गैंगस्टर सुनील राठी बंद था और पुलिस सूत्रों के मुताबिक राठी ने ही बजरंगी को कई गोलियां मारीं.
ऐसे मामलों के बाद अक्सर वही सवाल दोहराए जाते हैं जेल प्रशासन की नाकामी? पुलिस की अक्षमता? जेल के अंदर हथियार कैसे पहुंचे वगैरह वगैरह.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि बड़े से बड़ा अपराधी भी जेल शिफ्ट करने के नाम से ही क्यों थर थर कांपने लगता है? आखिर जेलों में बड़े अपराधी कैसे रहते हैं? जेलों की दुनिया में क्या वही सिस्टम काम करता है जो पुलिस ने बनाया है या फिर अपराधियों का अपना तंत्र भी होता है?
तो आइए आपके लिए ये पहेली हल किए देते हैं. अब आगे हम बताएंगे कि जेलों की दुनिया कैसी होती है. अपराधियों को सुधारने के लिए बने यह कैदखाने दरअसल अपराध की दुनिया के कितने बड़े गढ़ बन गए हैं.
जेल में पता चलता है कि कौन कितना बड़ा डॉन है!
डॉन के लिए जेल की दुनिया बड़ी जालिम होती है. बाहर से तो पुलिस की सुरक्षा दिखती है पर अंदर खतरे कम नहीं होते. जान जा सकती है. इसलिए जेलों में जलवा कायम रखना सबके बस की बात नहीं. बड़े से बड़े डॉन की असली ताकत जेल में ही पता चलती है. जेल में जिसकी बादशाहत चलती है वही अपराध की दुनिया में लंबे समय तक राज करता है.
डॉन अपने गुर्गों पर कैसे काबू करता है?
डॉन जब जेल से बाहर रहता है तो उसके साथ पूरा गिरोह रहता है. जब उसे जेल भेजा जाता है तो कुछ दिनों तक तो उसके गुर्गे सपोर्ट करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगती है और फिर गिरोह का कोई और सदस्य उसकी जगह ले लेता है. ऐसे में जेल में होते हुए भी गैंगस्टर को अपना दबदबा कायम रखने के लिए जरूरी है कि वो जेल में रहते हुए भी बाहर हुकूमत करने का रास्ता और सिस्टम बना ले.
डॉन अपने गुर्गों को भी जेल ले जाता है
जेल में बादशाहत कायम करने के लिए पैसा और बाहुबल भी जरूरी है. बाहुबल, इसलिए कि जेल में कई गैंग पहले से मौजूद होते हैं. दूसरे गिरोह के कई सदस्य उस पर हमले की फिराक में रहते हैं. ऐसे में जेल जाने के साथ ही माफिया डॉन अपने साथियों को इकट्ठा करना शुरू कर देता है. उसके गिरोह के सदस्य छोटे-मोटे अपराध करके जेल पहुंच जाते हैं. पैसा और प्रभाव से माफिया डॉन साथियों को अपने बैरक में ट्रांसफर करा लेता है.
जब उसकी ताकत बढ़ जाती है तो वह दूसरे गिरोह के मजबूत सदस्यों को तोड़ता है. व्यवस्था बनते ही वो बाहर मौजूद साथियों के जरिए अपने तमाम धंधे जारी रखता है. जिसने जेल में यह तंत्र बना लिया उसके लिए जेल एक सुरक्षित अड्डे में तब्दील हो जाती है. हालांकि, यह महंगा सौदा है क्योंकि जेल में कोई काम फ्री नहीं होता.
माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का जेल सिस्टम
मुन्ना बजरंगी की हत्या से कई माफिया डॉन हिले हुए हैं. बताया जा रहा है कि मुन्ना बजरंगी के गुरु और पूर्वांचल के बड़े माफिया डॉन मुख्तार अंसारी पर भी खतरा मंडरा है. बीजेपी विधायक कृष्णानन्द राय की हत्या के मामले में मुख्तार भी 2005 से ही जेल में बंद है. मुन्ना बजरंगी भी इस हत्याकांड में नामजद था.
मुन्ना बजरंगी से पहले इसी हत्याकांड के एक और आरोपी प्रिंस अहमद की भी जेल में हत्या हो चुकी है. इसलिए मुख्तार पर खतरा बड़ा है. मुख्तार अंसारी को जेल में नेटवर्क तैयार करने में सबसे ताकतवर माना जाता है.
शुरुआती दिनों में मुख्तार को गाजीपुर जेल में रखा गया था. जानकारी के मुताबिक, मुख्तार बैरक नम्बर 10 में रहता था. उसमें मुख्तार के साथ उसके खास लोग रहते थे. 11 नम्बर बैरक भी मुख्तार की टीम के लिए बुक रहता था. उस दौरान मुख्तार के साथ गिरोह के 30 से 40 बदमाश जेल में रहते थे. मुख्तार के आदमियों की नजर जेल आने वाले हर नए कैदी पर होती थी. ताकि किसी भी खतरे को पहले ही भांपा जा सके.
पुलिस की मिलीभगत से जेल में चलता है माफिया राज
आखिर इस पूरे खेल में पुलिस कहां है? दरअसल, हमारे यहां जेलों की व्यवस्था बहुत खराब है. वहां तय संख्या से कम पुलिसकर्मी हैं और जेल की क्षमता से कई गुना ज्यादा कैदी. इसके अलावा अपराधियों का सियासत से गहरा रिश्ता रहा है. इसलिए पुलिसकर्मी कई तरह के दबाव में काम करते हैं. कई बार कैदियों की मनमानी रोकने पर जेल कर्मचारियों की हत्या तक हो चुकी है.
करीब दो साल पहले वाराणसी जिला जेल में कैदियों ने जेल की कई बैरकों पर कब्जा कर लिया था और जेल अधीक्षक आशीष तिवारी को बंधक बना लिया था.
इस सिस्टम पर करीब नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि तमाम नफा नुकसान देखकर पुलिस सिस्टम अक्सर माफियाओं के साथ व्यवहारिक हो जाता है. वो जेलों की व्यवस्था को अपराधियों से मिलजुल कर चलाते हैं. मतलब इस पूरे खेल में पुलिस सूत्रधार की भूमिका निभाती है क्योंकि ये उनके लिए फायदे का सौदा होता है.
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