महाराष्ट्र में इस समय विपक्ष में बैठे शिवसेना उद्धव बाल ठाकरे (यूबीटी) और कांग्रेस की महाविकास आघाडी की ओर से हांक लगाई जा रही है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से फूटे और वर्तमान में राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार (Ajit Pawar) 10 अगस्त को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने यह बात कही है.
इसके पीछे क्या तर्क?
इसके पहले ‘सामना’ ने भी लिखा था कि शिंदे की जगह पवार को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. MVA शायद यह मानकर चल रही है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Ekanath Shinde) और उनके साथ गए विधायकों की अयोग्यता के मामले में 10 अगस्त के पहले फैसला हो जाएगा तथा शिंदे व उनके 10 साथी विधायक अयोग्य घोषित किए जाएंगे और उसके बाद सत्ता हस्तांतरण होगा, जिसमें अजित पवार को मुख्यमंत्री पद का ताज पहनाया जाएगा.
क्या MVA ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ देख रहा है?
शायद MVA ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ देख रहा है. सारा मामला किंतु- परंतु का है, यदि विधानसभा अध्यक्ष या अदालत शिंदे और उनके साथियों को अयोग्य घोषित करती है तो ऐसा होगा. फैसला क्या होने जा रहा है, इसका किसी को अता पता नहीं है, न ही फैसला कब आने वाला है इसका भी सिर पैर नहीं है. लेकिन MVA नेताओं ने फैसला भी दे दिया है और ताजपोशी की तारीख भी घोषित कर दी है.
देखा जाए तो मुख्यमंत्री किसे बनाना है या कौन बनेगा, इसका निर्णय शिवसेना (शिंदे गुट) बीजेपी और एनसीपी (अजित गुट) को करना है लेकिन प्रसव वेदना किसी और को हो रही है.
मोदी से उद्धव का सवाल-70 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का क्या हुआ?
राज्य में विपक्ष की स्थिति सदन में और जमीनी तौर पर बड़ी दयनीय है. शिवसेना (यूबीटी) 50 खोके के सदमे से अभी तक उबर नहीं पाई है. शिंदे गुट की बगावत के 1 साल बाद भी उद्धव ठाकरे पुराना रिकॉर्ड बजा रहे हैं. उनके भाषणों में वही आरोप, वही दोहराव है.
अभी हाल पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादक संजय राऊत को दिए इंटरव्यू में यही दिखायी दिया. शब्दों के थोड़े बहुत हेरफेर के अलावा विषय वस्तु में कोई परिवर्तन नहीं दिखा. उद्धव और उनके साथियों ने ट्विटर और फेसबुक लड़ने का मैदान और हथियार बनाया हुआ हैं. अभी 2 दिन पहले सामना में छपे इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे ने अजित पवार की तारीफ करते हुए उन्हें काबिल मंत्री बताया था.
कुछ दिन पहले पुणे ट्रस्ट ने तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुना और एक अगस्त को आयोजित सम्मान समारोह के लिए शरद पवार को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया है. समारोह में उपमुख्यमंत्री अजित पवार भी शामिल होने वाले हैं. इस पर व्यंग्य करते हुए उद्धव ने 11 जुलाई को संवाददाताओं से कहा, "70 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का क्या हुआ? मंच पर उस समय कौन होगा. वह (NCP) पार्टी आपके साथ है." बीजेपी के पास इसका साफ-सुथरा जवाब नहीं है लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद जो भी राजनीतिक नाटक हुआ है उसे खुली आंखों से देख रही जनता किसी को पाक साफ नहीं मानती है.
अजित पवार 2019 में पहले एक सरकार (देवेंद्र फडणवीस) के साथ थे फिर दूसरी सरकार एमवीए में भी थे और अब तीसरे सरकार शिंदे-बीजेपी में भी उसी उपमुख्यमंत्री पद पर दिखाई दे रहे हैं. उनके साथ आए छगन भुजबल, धनंजय मुंडे, हसन मुर्शिद जैसे लोग MVA में भी मंत्री थे और 1 साल बाद फिर मंत्री बने हुए हैं.
अजित का शरद पवार से आशीर्वाद लेने से उद्धव को पहुंची है चोट
उद्धव ने अपना साथ छोड़ने वाले बगावती विधायकों को 'गद्दार', 'खोखा लेने वाले', 'विश्वासघाती' और न जाने क्या-क्या कहा था. बागियों को गाली देने में बेटे आदित्य ठाकरे और सांसद संजय राऊत ने मुख्य भूमिका निभाई थी. एक ओर गालियां देना और उसी समय बागियों को बातचीत के लिए बुलाना ये दोनों विरोधाभासी काम एक साथ किए जा रहे थे.
शरद पवार से अलग होने और मंत्री पद की शपथ लेने के बाद अजित पवार, छगन भुजबल और अन्य मंत्रियों का शरद पवार से मिलने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जाना उद्धव ठाकरे को कहीं गहरी चोट कर गया है.
उन्होंने इंटरव्यू में कहा था कि "शिवसेना छोड़ने वाले गद्दारों को मेरे पास आने की हिम्मत नहीं हुई. वे मेरे पास नहीं आ सकते. वे मेरे स्वभाव को अच्छी तरह जानते हैं. शिवसेना की विचारधारा बाबासाहेब की विचारधारा है". याद रखने वाली बात यह है कि जब एकनाथ शिंदे और उनके साथियों ने बगावत की थी तब शिंदे ने कहा था कि उद्धव ठाकरे से मिलने नहीं दिया जाता है, उन्हें ऐसे लोग घेरे रहते हैं जो जमीन से जुड़े हुए नहीं है. 'मातोश्री' के बाहर भी यह चर्चा थी कि उद्धव न तो किसी से मिलते हैं और ना उनसे किसी को मिलने दिया जाता है. पानी सिर से गुजरने के बाद यदि कोई सोचता है कि लोग उससे मिलने आए या माफी मांगे तो इससे अधिक अजीब कोई बात नहीं हो सकती.
बागियों को गालियां देते हैं उद्धव, लेकिन पवार हैं खामोश
राष्ट्रवादी कांग्रेस की हालत और विचित्र है. बगावत करने वाले अजित पवार और उनके साथी आशीर्वाद लेने के लिए शरद पवार के घर जाते हैं. बागी लोग अपनी शर्तों पर उनका नेतृत्व मानने के लिए राजी हैं. यह सब देखने के बाद कोई भी व्यक्ति यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि राकांपा में फूट पड़ी है. अधिकतर लोगों की राय है कि जो कुछ हुआ और हो रहा है; उसकी पटकथा शरद पवार ने ही लिखी है, उसका डायरेक्शन भी वे ही कर रहे हैं, अजीत और उनके साथ गए लोग शरद पवार के इशारे पर अभिनय कर रहे हैं.
जानकारों का कहना है कि कथित रूप से पार्टी तोड़ने वाले अजित पवार या उनके साथ गए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ शरद पवार ने एक भी शब्द नहीं कहा है. उनकी प्रतिक्रिया नपी तुली और संयत भाषा में है. न खोखे की बात है न ईडी या सीबीआई का जिक्र.
दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के बयानों में बागियों, केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ आक्रामकता और बदले की भावना दिखाई देती है. उस भाषा में जोड़ने वाली कोई बात है ही नहीं.
अजित पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे: फडणवीस की साफगोई
अजीत आज नहीं तो कल मुख्यमंत्री बनेंगे: प्रफुल्ल पटेल का आशावाद
फडणवीस के खुलासे के बाद एनसीपी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि अजित पवार आज नहीं तो कल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनेंगे क्योंकि वे पार्टी का बड़ा चेहरा है और लगन से काम करने वालों को नेतृत्व का मौका मिलता है. प्रफुल्ल पटेल की आशावादिता उनके इस बयान में दिखाई देती है कि ‘जो लोग काम करते हैं उन्हें आज, कल या उसके बाद मौका मिलता ही है. कई लोगों को मौका मिला. भले ही आज नहीं, कल नहीं भविष्य में कभी भी अजित दादा को मिलेगा. हम उसी दिशा में काम करेंगे. पटेल के बयान ने संदेह का बीज तो बो ही दिया है.
यदि कुर्सी खाली होगी तो फडणवीस ही मुख्यमंत्री होंगे
सवाल यह है कि यदि एकनाथ शिंदे अयोग्य घोषित होते हैं या किसी अन्य राजनीतिक कारण से उनके हाथ में मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन जाती है तो क्या सचमुच अजित पवार मुख्यमंत्री बन सकते हैं? इसका जवाब नहीं में आएगा क्योंकि कोई बड़ी पार्टी एक ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नहीं बना सकता जिसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगजाहिर है.
फडणवीस का वह बयान महत्वपूर्ण है जिसमें वे बताते हैं की महायुति में उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है जिसका नेतृत्व वे खुद कर रहे हैं. अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. उस समय भले ही कार्यवाहक सरकार हो लेकिन सत्ता में रहने वाली पार्टी को चुनाव में अतिरिक्त लाभ, अधिक जानकारी मिलती ही है. इसलिए यदि एकनाथ शिंदे को किसी वजह से कुर्सी खाली करनी पड़ी तो भी महायुति की सबसे बड़ी पार्टी यानी बीजेपी ही सत्ता संभालेगी.
2019 में देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे और जून-जुलाई 2022 में जब सरकार बन रही थी तब भी देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे. बीजेपी आलाकमान ने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया तो इस फैसले को बड़े बुझे मन से स्वीकार किया था. यदि अब राजनीतिक स्थिति बदलती है तो बीजेपी आलाकमान बेहिचक फडणवीस को नेतृत्व सौपेंगा या बीजेपी के ही किसी नेता को कमान सौंपेगा. कम विधायक होने के बावजूद शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का वादा बीजेपी पूरा कर चुकी है. यदि किन्हीं हालातों में शिंदे की जगह अजित पवार को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला बीजेपी द्वारा किया जाता है तो यह कुल्हाड़ी पर पैर मारने जैसा होगा.
(विष्णु गजानन पांडे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे क्विंट हिंदी का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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