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अंधाधुन EXIT POLL:मंदी, बेरोजगारी से अब BJP को कोई फर्क नहीं पड़ता

हरियाणा-महाराष्ट्र चुनाव पर एग्जिट पोल नतीजे संकेत हैं कि रिजनल पार्टियों के आखिरी किले भी ढह रहे हैं

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महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों पर आए एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि दोनों राज्यों में बीजेपी को बड़ी जीत मिल सकती है. अगर ये अनुमान सही हैं तो कुछ संकेत साफ नजर आ रहे हैं.

  • देश में मंदी कोई मुद्दा नहीं.
  • बेरोजगारी कोई समस्या नहीं.
  • रिजनल पार्टियों के आखिरी किले भी ढहते नजर आ रहे हैं
  • लोकल मुद्दों की लोकल चुनावों में भी कोई पूछ नहीं बची
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चुनाव के लिए GDP नहीं MNP चाहिए

जबसे मोदी सरकार 2.0 आई है, मंदी का हल्ला मचा है. इकनॉमी गर्त में जा रही है. छंटनियां हो रही हैं. हरियाणा के मानसेर में अचानक बेरोजगारों की फौज खड़ी हो गई. कोई इंडस्ट्री अखबार में इश्तेहार निकालकर दुखड़ा सुना रही है तो कोई सेक्टर कह रहा है कि लाखों बेकार हो रहे हैं. वर्ल्ड बैंक से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कन्फर्म कर रहे हैं कि भारत की आर्थिक हालत बिगड़ गई है. ऐसे में लोगों को आशंका होगी कि शायद केंद्र में बैठी बीजेपी को जनता सजा देगी. लेकिन जिस प्रकार का प्रचंड बहुमत बीजेपी और उसके नेतृत्व वाले गठबंधन को मिलता दिख रहा है, उससे तो यही लगता है कि अब इस देश में GDP कोई मुद्दा नहीं, बल्कि MNP (मोदी, नेशनलिज्म और पाकिस्तान) के मुद्दे पर ही चुनाव जीते जा सकते हैं

राष्ट्रवाद की लहर पर चुनावी नैया पार

2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनावों के नतीजों ने भरोसा कायम किया था कि वोटर लोकल मुद्दों को तरजीह देता है. वो देश के लिए अलग पार्टी और राज्य के लिए अलग पार्टी को मौका दे सकता है. हरियाणा और महाराष्ट्र, दोनों ही राज्य ऐसे हैं जहां किसान तबाह हो चुका है. महाराष्ट्र में किसान आंदोलन हुए. हरियाणा में फसल की सही कीमत न मिलने को लेकर गुस्सा था. महाराष्ट्र में पानी की किल्लत, खासकर किसानों के लिए सिंचाई का पानी न मिलना शाश्वत सत्य बन चुका है. लेकिन जब वोट देने की बारी आई तो ये सारे मुद्दे हवा हो गए.

मतलब साफ है लोकल चुनाव में लोकल मुद्दे ही मायने नहीं रखते. दोनों ही राज्यों में मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम नेताओं ने 370 पर खूब बैटिंग की. मोदी अपनी लगभग हर रैली में ये बोलते सुने गए कि 370 के नाम से विपक्ष को डर लगता है. 370 की मिसाइल के साथ NRC का असलहा भी था.

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रिजनल पार्टियों के आखिरी किले भी ढह रहे

NCP से लेकर INLD तक.. ये कुछ ऐसी पार्टियां थीं जिन्होंने इंडिया माइनस साउथ इंडिया में रिजनल पार्टियों की आबरू बचा रखी थी..लेकिन अगर एग्जिट पोल के अनुमान सही साबित हुए तो देश में लोकल पार्टियों की औकात और कम होती नजर आ रही है. यूपी में बसपा-सपा का बुरा हाल है. बिहार में आरजेडी अंदरूनी झगड़ों से परेशान है. जेडीयू है भी, तो वो बीजेपी के साथ आ गई है. झारखंड में हुए लोकसभा चुनावों में पहले ही रिजनल पार्टियों की बुरी हार हुई. लोकसभा चुनाव में टीएमसी के लिए भी अच्छे संकेत नहीं मिले. महाराष्ट्र में भी संभव है कि बीजेपी अकेले दम सरकार बनाने की स्थिति में होगी. ऐसे में अगर वो शिवसेना को सरकार में जगह देती भी है तो वो बीजेपी के रहमोकरम पर होगी. उधर कांग्रेस का बुरा हाल है.

जाहिर है देश दो पार्टी वाली व्यवस्था की तरफ और तेजी से कदम बढ़ाता दिख रहा है और उसमें भी एक का भारी वर्चस्व. वन नेशन-वन इलेक्शन की बातें हो ही रही हैं. समय को छोड़ दीजिए तो ये मुद्दों से मुकाबले तक...अमल में आता दिख रहा है.

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