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Maharashtra Politics: BJP-शिवसेना की लड़ाई, कौन-किसको नीचा दिखा रहा है?

Maharashtra: उद्धव ठाकरे तो 1995 में ही मुख्यमंत्री बनना चाहते थे- शिवसेना छोड़ चुके सुरेश नवले

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Maharashtra Politics: BJP-शिवसेना की लड़ाई, कौन-किसको नीचा दिखा रहा है?
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महाराष्ट्र (Maharashtra) में चल रहे सत्ता संघर्ष में नए-नए खुलासे और आरोप प्रत्यारोप होते रहते हैं. दो गुटों में बंटी शिवसेना (Shivsena) के झगड़े में अब कांग्रेस (Congress) भी कूद पड़ी है. शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस के गठबंधन महाविकास आघाडी सरकार (Maha Vikas Aaghadi) में मंत्री रहे और उससे पहले राज्य के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण (Ashok Chavhan) ने नया दावा किया है.

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उन्होंने कहा कि, शिवसेना ने पांच साल पहले 2017 में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने की पेशकश की थी. उस समय राज्य में देवेन्द्र फडणवीस (Devendra Phadanavis) के नेतृत्व में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार सत्तारुढ़ थी. शिवसेना की पेशकश लेकर आने वाले प्रतिनिधि मंडल में वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शामिल थे.

चव्हाण के मुताबिक उन्होंने इस प्रतिनिधिमंडल से कहा था कि वे इस पेशकश के बारे में आलाकमान से बात करेंगे लेकिन शिवसेना इस बारे में एनसीपी प्रमुख शरद पवार से बात करे. चव्हाण ने कहा कि मुझे नहीं मालूम कि शिवसेना का यह प्रतिनिधिमंडल या शिवसेना के नेताओं ने शरद पवार से कोई बातचीत की या उनसे मिले या नहीं पर इस चर्चा के बाद शिवसेना की ओर से कोई आगे बातचीत नहीं हुई.

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बयान से बढ़ी शिवसेना की मुसीबत, फैसले तो उद्धव लेते थे

चव्हाण के इस बयान से यह पता चलता है कि बीजेपी-शिवसेना के रिश्तों में कितनी खटास थी और शिवसेना इस गठबंधन से निकलने के लिए कब से और कितनी बेताब थी. ऊपर से देखने पर चव्हाण का बयान वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को एक्सपोज करने वाला दिखायी देता है, लेकिन इससे असली फजीहत शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thakare) की हो रही है.

शिवसेना में सारे फैसले लेने का एकाधिकार शिवसेना प्रमुख को होता है.जाहिर है कि एकनाथ शिंदे को अशोक चव्हाण के पास भेजने का फैसला भी उद्धव ठाकरे का होगा. निश्चित रूप से एकनाथ शिंदे आज जितने पॉवरफुल हैं, पांच साल पहले उतने पॉवरफुल नहीं थे. एक सिपाही की तरह ही उन्होंने उद्धव के आदेश का पालन किया होगा.

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2014 से चल रही है बीजेपी-शिवसेना में खुन्नस, खडसे की अहम भूमिका

2014 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी से पिछड़ने के बाद से ही उद्धव ठाकरे बेचैन थे. शिवसेना- बीजेपी के बीच गठबंधन के प्रयास किए गए थे लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर मतभेदों के कारण गठबंधन नहीं हो सका था. फडणवीस की मौजूदगी में एकनाथ ने शिवसेना के साथ 25 साल पुराना गठबंधन टूटने की घोषणा करते हुए कहा था कि शिवसेना मुख्यमंत्री पद के लिए अड़ी है और सीटों के बंटवारे को लेकर तरह-तरह के प्रस्ताव पेश करती रही है.

उनके साथ बातचीत में हमको कोई समाधान नहीं मिला है इसलिए हमारे कोर ग्रुप ने संबंध समाप्त करने का फैसला किया है. फडणवीस ने कहा था कि लोकसभा चुनावों में बीजेपी का साथ देने वाले छोटे दलों को पार्टी छोड़ नहीं सकती है. शिवसेना ने जितनी बार भी प्रस्ताव पेश किए उनमें या तो बीजेपी कि सीटें कम होती थीं या छोटी पार्टियों की सीटें घटा दी जाती थीं. हर प्रस्ताव के साथ यह भी कहा जाता था कि हमने यह फैसला किया है,आपको कुछ कहना है तो कहें. उनके प्रस्ताव शब्दों के हेरफेर के साथ हर बार एक ही तरह के होते थे.

उद्धव ठाकरे की ओर से जो अंतिम प्रस्ताव आया था उसमें शिवसेना के 151, बीजेपी 119 और छोटी पार्टियों के लिए 18 सीटें छोड़ने की बात कही गई थी. महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. 2009 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 169 और बीजेपी ने 119 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.

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बीजेपी ने गठबंधन तोड़ने में की जल्दबाजी- शिवसेना

गठबंधन टूटने की घोषणा होने के बाद शिवसेना ने आरोप लगाया था कि बीजेपी ने गठबंधन तोड़ने में जल्दबाजी की जबकि बीजेपी का कहना था कि शिवसेना के हठ के कारण गठबंधन टूटा है. मोदी लहर के कारण विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 122 और शिवसेना को 63 सीटें मिलीं. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी लेकिन उसके पास बहुमत नहीं था. अंतत: शिवसेना ने बीजेपी का साथ देने और सरकार में शामिल होने का फैसला किया.

शिवसेना को यह बात हमेशा चुभती रही कि वह सरकार में दूसरे स्थान पर है इसलिए उसने देवेन्द्र सरकार में रहकर विपक्ष जैसी ही भूमिका निभायी. शिवसेना मंत्री हमेशा कहते रहते थे कि वे जेब में इस्तीफा लेकर घूमते हैं. जिन एकनाथ खडसे ने शिवसेना के साथ गठबंधन टूटने की घोषणा कि थी वे नाराज होकर बीजेपी छोड़कर अक्टूबर 2020 में एनसीपी में शामिल हो गए लेकिन जाते-जाते यह आरोप लगा गए कि देवेन्द्र फडणवीस ने उनका राजनीतिक करियर और जीवन बर्बाद करने की कोशिश की है.

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कांग्रेस-एनसीपी चाहते थे शिवसेना का साथ- सुभाष देसाई

चव्हाण ने जब यह राज खोला तो उद्धव ठाकरे के नजदीकी माने जाने वाले पूर्व मंत्री सुभाष देसाई ने सफाई दी कि चव्हाण से मिलने गए ऐसे किसी भी प्रतिनिधिमंडल में वे (देसाई) शामिल नहीं थे. देसाई का तो कहना है कि इसके उलट कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं ने समय समय पर शिवसेना से संपर्क कर सरकार बनाने की पेशकश की थी. उस समय मैंने उनसे कहा था कि आज की घड़ी में हम बीजेपी के साथ सरकार में हैं. होना तो यह था कि चव्हाण के बयान पर एकनाथ शिंदे अपनी सफाई देते लेकिन स्पष्टीकरण आया शिवसेना की ओर से. इस गोलमाल से यह लगता है कि कुछ न कुछ हुआ जरूर हुआ होगा.

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वफादारी दिखा रहे हैं अशोक चव्हाण- शिंदे गुट का आरोप

पिछले कुछ समय से अशोक चव्हाण के बारे में खबरें आ रहीं हैं कि वे पार्टी से नाराज चल रहे हैं. विधानसभाध्यक्ष के चुनाव में वे अनुपस्थित थे और शिंदे-फडणवीस सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव के समय भी वे मौजूद नहीं थे. शिवसेना (शिंदे गुट) के प्रवक्ता नरेश म्हस्के ने इसी बात पर उंगली रखी है. उनका कहना है कि कांग्रेस में अशोक चव्हाण की निष्ठा पर संदेह किया जा रहा है. अपनी वफादारी साबित करने के लिए उन्होंने यह पटाखा छोड़ दिया है. चव्हाण के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने शिंदे गुट के कुछ लोगों के साथ संपर्क किया था.

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चव्हाण की बात में दम होगा- जयंत पाटिल

उधर प्रदेश एनसीपी अध्यक्ष जयंत पाटिल का कहना है कि जब पूर्व मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण जैसा व्यक्ति यह बात कहता है तो उस बात में जरूर दम होगा. इस मामले में एनसीपी अब तक खामोश है. शिवसेना की सत्ता के लिए बेताबी और नंबर एक बने रहने की लालसा के कारण इस बात की संभावना तो है कि पार्टी ने शरद पवार से संपर्क किया होगा भले ही इसका कुछ नतीजा न निकला हो. यह संभव है कि उस समय ऐसे किसी प्रस्ताव की व्यवहारिकता पर शरद पवार शंकित हों इसलिए उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया हो.

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विवाद का लाभ बीजेपी को, घाटे में रही शिवसेना

इतना जरूर है कि अशोक चव्हाण के इस दावे का लाभ बीजेपी को ज्यादा मिलेगा क्योंकि वह लगातार कह रही है कि 2019 के चुनाव में मुख्यमंत्री पद ढाई-ढाई साल तक बांटने के बारे में उद्धव से कोई चर्चा नहीं हुई थी. यह स्पष्ट था कि जिस पार्टी के सबसे अधिक विधायक जीतेंगे मुख्यमंत्री उसी दल का होगा. बीजेपी आरोप लगाती रही है कि दोनों दलों के बीच हुआ गठबंधन उद्धव ठाकरे ने तोड़ा है. यदि अशोक चव्हाण का बयान संदेह से परे है तो यही साबित होगा कि शिवसेना शुरू से ही बीजेपी के साथ डबल गेम खेल रही थी. बीजेपी को ढाई साल तक सत्ता में बाहर रखने में वह सफल तो हो गयी लेकिन इसके लिए उसे अपनी पार्टी के दो-फाड़ होने की कीमत चुकानी पड़ी है.

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उद्धव तो 1995 में ही मुख्यमंत्री बनना चाहते थे- सुरेश नवले

इस बीच पूर्व मंत्री और अब शिवसेना छोड़ चुके सुरेश नवले ने दावा किया है कि उद्धव ठाकरे तो 1995 में ही मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. तब उद्धव ने शिवसेना विधायकों का एक गुट तैयार किया और उनसे कहा था कि वे लोग शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के सामने उन्हें (उद्धव) मुख्यमंत्री बनाने के लिए लॉबिंग करें.

बालासाहब ने तब मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन उद्धव चाहते थे कि जोशी पदत्याग करें और उनकी ताजपोशी हो. इस काम के लिए उन्होंने उदय शेट्टी को मेरे पास भेजा. इसके बाद मैं, चंद्रकांत खैरे,अर्जुन खोतकर और कई विधायक बालासाहब से मिले और कहा कि उद्धव को मुख्यमंत्री बनाया जाए. उन्होंने पूछा कि क्या सभी विधायकों की ऐसी इच्छा है तो हमने कहा था कि सभी विधायक ऐसा चाहते हैं. नवले ने कहा कि उद्धव कहते हैं कि उन्होंने शरद पवार के आग्रह पर मुख्यमंत्री पद पर स्वीकार किया है लेकिन सच यह है कि वे बहुत पहले से इस पद के इच्छुक थे. नवले के अनुसार चन्द्रकांत खैरे, अर्जुन खोतकर इस बात के गवाह हैं.

यदि नवले की बात सच है तो बीजेपी के साथ 2019 में गठबंधन तोड़ने के बाद में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के साथ महाविकास आघाडी बनाने के घटनाक्रम को नए आयाम मिलते हैं और उद्धव की विश्वनीयता पर नए सवालिया निशान लगेंगे.

(विष्णु गजानन पांडे महाराष्ट्र की सियासत पर लंबे समय से नजर रखते आए हैं. वे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे द क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)

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