मिखाइल गोर्बाचेव एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इतिहास बदल दिया. उन्होंने पुराने सोवियत संघ के आठवें नेता (इसके पहले और अंतिम राष्ट्रपति) के तौर पर उन्होंने "पेरेस्त्रोइका" (पुनर्गठन या सुधार) और "ग्लासनोस्ट" (खुलेपन) शब्दों में निहित नीतियों के माध्यम से कम्युनिस्ट प्रणाली में सुधार किए और एक लोकतांत्रिक तथा मानवीय समाजवादी समाज का निर्माण किया.
गोर्बाचेव के क्रांतिकारी सुधार से शुरु हुआ सोवियत संघ का पतन
इसके बजाय उनके अच्छे-विचारों वाले एक्शन की वजह से सोवियत संघ का पतन शुरु हो गया था. उस समय सोवियत संघ एक शक्तिशाली यूरेशियन साम्राज्य था, जिसमें 15 गणराज्य शामिल थे लेकिन 1991 में ज्यादातर गणराज्यों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी. इसके बाद शेष रूसी संघ सैकड़ों परमाणु हथियारों के साथ उत्तराधिकारी राज्य के रूप में उभरा. वहीं साल के अंत तक यूएसएसआर को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया और गोर्बाचेव ने इस्तीफा दे दिया.
मिखाइल गोर्बाचेव को उनके सुधार कार्यों के लिए 1990 प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, आज पूरी दुनिया में उन्हें एक नायक के तौर पर सम्मान दिया जाता है, लेकिन रूसी संघ में उनकी निंदा की गई थी. व्लादिमीर पुतिन सहित ऐसे लोग जो सुरक्षा तंत्र से संबंधित थे और ऐसे लोग जो 1990 के दशक के कठिन वर्षों से गुजरे थे उनके लिए सोवियत का पतन शर्म और हार का क्षण था. इसकी गूंज अभी भी महसूस की जा रही है, क्योंकि रूस इतिहास को पहले जैसा करने और यूक्रेन को काबू में करने के लिए जंग लड़ रहा है.
भले ही वे अनजान रहे हों, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और जर्मन चांसलर हेल्मुट कोल जैसे समकालीन पर्यवेक्षकों के अनुसार क्रांतिकारी परिवर्तनों का श्रेय गोर्बाचेव के पक्ष में जाता है. गोर्बाचेव की नीतियों ने सोवियत संघ को तोड़ दिया, शीत युद्ध को समाप्त कर दिया, जर्मनी को फिर से मिला दिया, पूर्वी यूरोप को अपने देशों को फिर से प्राप्त करने में सक्षम बनाया. उन्होंने यूरोप के लिए खतरा पैदा करने वाले परमाणु हथियारों के एक पूरे वर्ग के उन्मूलन में योगदान दिया, अफगानिस्तान में सोवियत युद्ध को समाप्त किया, क्षेत्रीय संघर्षों को सुलझाया और मुद्दों से निपटने के लिए पूरी तरह से शांतिपूर्ण तरीका विकसित किया.
लेकिन हम यह भी जानते हैं कि एक संयुक्त लोकतांत्रिक राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में रूस और उसके पूर्व विरोधियों को शामिल करते हुए शांतिपूर्ण यूरोप के उनके विजन को कभी उनके समर्थक रहे और विरोधियों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, जो कि बोरिस येल्तसिन से शुरू हुआ और व्लादिमीर पुतिन के साथ समाप्त हुआ.
पोलितब्यूरो के सबसे कम उम्र के सदस्य थे गोर्बाचेव
स्टावरोपोल के काकेशस क्षेत्र में, गोर्बाचेव का जन्म 1931 में रूसी और यूक्रेनी मूल के एक गरीब किसान परिवार में हुआ था. गोर्बाचेव 1985 में यूएसएसआर के सर्वोच्च नेता तब बने, जिस समय दुनिया की दूसरी महाशक्ति (यूएसएसआर) की अर्थव्यवस्था बेकार हो गई थी और यह अफगानिस्तान में युद्ध में फंस गई थी.
गोर्बाचेव 54 वर्ष की आयु में पोलित ब्यूरो के सबसे कम उम्र के सदस्य थे और उनसे समाजवादी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को पुनर्जीवित करने की उम्मीद की गई थी, इसके बजाय उन्होंने सोवियत साम्राज्य को मिटाने वाली ताकतों को हटा दिया और हमेशा परमाणु संघर्ष के कगार पर रहने वाले शीत युद्ध को समाप्त कर दिया.
इसका प्राथमिक कारण यह था कि गोर्बाचेव ने जल्दी ही महसूस किया कि देश की सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता को संबोधित किए बिना पेरेस्त्रोइका या पुनर्गठन असंभव होगा. ग्लासनोस्ट की नीति का उद्देश्य सोवियत में उन लोगों को अधिक स्वतंत्रता देना था, जो सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चलाए जा रहे क्रूर शासन के अधीन रह रहे थे. इस नीति ने जनता को जेल की सजा के डर के बिना खुद को व्यक्त करने के लिए सक्षम बनाया. उन्होंने राजनीतिक बंदियों को भी रिहा कर दिया था और अपने पूर्ववर्तियों के पिछले अपराधों का खुलासा करते हुए सोवियत आर्काइव्स खोल दिए थे.
गोर्बाचेव को उखाड़ फेंकने के लिए तख्तापलट का प्रयास
उदारीकरण का पहला परिणाम यह था कि 1988 से बाल्टिक, अल्बानिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, पोलैंड मास्को के नियंत्रण से अलग होने लगे. लोकतंत्र के पक्ष में विरोध शुरू हो गया, जोकि काफी लोकप्रिय रहा. मार्च 1990 में जर्मनी का पुन: एकीकरण हुआ. यह एक महत्वपूर्ण घटना थी. इस घटना के लगभग एक साल बाद फरवरी 1991 में, वारसॉ पैक्ट सैन्य गठबंधन भंग कर दिया गया था.
इस बिखराव को रोकने और गोर्बाचेव को उखाड़ फेंकने के प्रयास में कम्युनिस्ट कट्टरपंथियों और कुछ सैन्य तत्वों ने अगस्त 1991 में तख्तापलट किया. केजीबी और सेना ने गोर्बाचेव को उनके वैकेशन होम ब्लैक सी रिजॉर्ट के दरवाजे पर खड़ा कर दिया और इस्तीफा देने के लिए कहा. हालांकि मॉस्को में बोरिस येल्तसिन की मदद से तख्तापलट को नाकाम कर दिया गया था. लेकिन इस घटना ने यूनियन के बिखरने का मार्ग प्रशस्त किया था.
सोवियत संघ एक अत्यधिक केंद्रीकृत राज्य था, इसमें 15 गणराज्य शामिल थे. लेकिन 1998 की शुरुआत में सोवियत संघ बिखरने लगा क्योंकि बाल्टिक देशों और आठ अन्य गणराज्य ने उससे अलग होना शुरू कर दिया था.
8 दिसंबर, 1991 को सोवियत संघ को भंग कर दिया गया और रूस, यूक्रेन तथा बेलारूस के नेता स्वतंत्र राज्यों का एक नया राष्ट्रमंडल बनाने के लिए सहमत हुए. इस घटना के दो हफ्ते बाद आर्मेनिया, अजरबैजान, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मोल्दोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और यूक्रेन सीआईएस में शामिल होने वाले एक नए प्रोटोकॉल के लिए सहमत हुए.
इस घटना के चार दिन बाद गोर्बाचेव ने इस्तीफा दे दिया और अपनी राष्ट्रपति की शक्तियों को बोरिस येल्तसिन को सौंप दिया. इस प्रकार बोरिस येल्तसिन ने नए रूसी संघ का प्रेसीडेंट बनते हुए कार्यभार संभाला.
दो बड़े प्रतिद्वंद्वी जब नजदीक आ गए
इसी दौरान गोर्बाचेव को रोनाल्ड रीगन के नेतृत्व में सोवियत संघ को अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी संयुक्त राज्य अमेरिका से निपटना पड़ा. उस समय अमेरिका न केवल अफगानिस्तान में युद्ध का समर्थन कर रहा था बल्कि वह तथाकथित स्टार वार्स योजना बनाने के बारे में सोच रहा था, जिसका उद्देश्य सोवियत मिसाइल क्षमता को उच्च तकनीक वाली मिसाइल-विरोधी ढाल द्वारा बेअसर करना था.
रेक्जाविक में अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन और गोर्बाचेव के बीच लंबी चर्चा हुई, जिसके परिणामस्वरूप 1987 में इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज (INF) संधि का सूत्रपात हुआ. दोनों पक्ष सभी परमाणु हथियारों को खत्म करने के लिए नजदीक आ गए. लेकिन स्टार वार्स पर समझौता करने से अमेरिका ने इनकार कर दिया जिससे वार्ता टूट गई. समकालीन इतिहास में यह एक उल्लेखनीय क्षण था लेकिन दुर्भाग्य से इससे कुछ भी नहीं निकला. यहां तक कि आईएनएफ संधि भी अब नष्ट हो गई है.
रीगन और गोर्बाचेव अच्छी तरह से मिल गए, वे एक-दूसरे के लिए वास्तविक सम्मान और सहानुभूति रखते थे. अन्य किसी फैक्टर की तुलना में इसने शीत युद्ध को समाप्त करने में गोर्बाचेव की काफी मदद की थी. रेक्जाविक वार्ता ने गोर्बाचेव को अफगानिस्तान में एक दशक से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए राजी किया. अप्रैल 1988 के जिनेवा समझौते द्वारा कार्रवाई शुरू की गई और फरवरी 1989 में वहां से वापसी की प्रक्रिया शुरू हुई.
भले ही यह अप्रत्याशित रूप से शुरू हुआ हो लेकिन यह गोर्बाचेव की सबसे बड़ी उपलब्धि थी. सोवियत संघ भंग हो गया, संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में दुनिया एकध्रुवीयता बन गई और पूर्वी यूरोप का संपूर्ण स्वरूप बदल गया और वे ( जो सोवियत नेतृत्व वाले वारसॉ संधि के पूर्व सदस्य थे), नाटो (इसके प्रतिद्वंद्वी समूह) के सदस्य बन गए. फिर भी इन घटनाओं ने कुछ मलबा छोड़ दिया है जो अभी भी यूरोप को परेशान करता है. इसका उदाहरण इस समय यूक्रेन में जारी युद्ध है.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के ख्यात फेलो हैं. लेख में व्यक्ति गए विचार लेखक के हैं और इनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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