ADVERTISEMENT

रविशंकर प्रसाद, जावेडकर, हर्षवर्धन...इन मंत्रियों को मोदी सरकार ने क्यों दी सजा?

मोदी कैबिनेट फेरबदल में एक बात कॉमन थी - अधिकांश हटाए गए मंत्री सार्वजनिक तौर पर असामान्य रूप से जुझारू हो रहे थे

Published
रविशंकर प्रसाद, जावेडकर, हर्षवर्धन...इन मंत्रियों को मोदी सरकार ने क्यों दी सजा?
i

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

7 जुलाई को बड़े कैबिनेट फेरबदल को एकदम पीएम मोदी के स्टाइल में किया गया. व्यापक. कोई पछतावा नहीं. उत्तेजक. कोई ढिलाई नहीं बरती गई, वाजपेयी दौर के दिग्गजों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

ADVERTISEMENT
हालांकि इसे कभी स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया जाएगा लेकिन इतने बड़े स्तर पर इस कवायद ने यह साबित कर दिया कि सरकार की दूसरी पारी बहुत खराब रही है.इसमें प्रशासन ने एक के बाद एक गलत कदम उठाए हैं, खासकर महामारी की दूसरी लहर के दौरान. वैक्सीन खरीदने में सरकार की विफलता अविश्वसनीय थी. भारत एकमात्र बड़ा देश था जिसने इस साल जनवरी की शुरुआत तक एक भी डोज की खरीद नहीं की थी.

जैसे-जैसे ऑक्सीजन के लिए हांफते या हॉस्पिटल के बाहर इंतजार करते हुए मरीज दम तोड़ रहे थे, दवाइयों का स्टॉक खत्म हो रहा था या लाशें नदियों में फेंकी जा रही थी,उसके साथ ही भारत के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की बेरहम सच्चाई उजागर हो रही थी. स्पष्ट रूप से अपदस्थ स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को बलि का बकरा बना दिया गया. लेकिन बहस का मुद्दा यह है कि क्या वे खुद इंचार्ज थे या प्रधानमंत्री द्वारा चुने गए प्रोफेशनल,डॉ. वीके पॉल हरेक निर्णय ले रहे थे और सीधे पीएमओ को रिपोर्ट कर रहे थे.

ADVERTISEMENT

विरोधियों से मुकाबला करने में हद से ज्यादा आक्रामक-हटाने की वजह यह थी?

सूचना मंत्री प्रकाश जावेडकर को किनारे इसलिए किया गया क्योंकि वो एक पॉजिटिव नैरेटिव फैलाने में विफल रहे. उनके रहते भारत को अंतरराष्ट्रीय मीडिया और घरेलू मीडिया में कोविड-19 महामारी को हैंडल करने, साल भर लंबे किसानों के विरोध प्रदर्शन को हैंडल करने या नागरिक अधिकार एक्टिविस्टों के खिलाफ अनुचित और कठोर कानूनों को लागू करने से संबंधित मानवाधिकार के हनन के लिए आलोचना की गई.

कैबिनेट परिवर्तन में एक और थीम कॉमन था, जिसका ज्यादा विश्लेषण नहीं किया गया है- अधिकांश बर्खास्त मंत्री सार्वजनिक तौर पर असामान्य रूप से जुझारू हो रहे थे. रविशंकर प्रसाद ट्विटर के साथ एक उग्र लड़ाई में बने रहे और उसी प्लेटफॉर्म के खिलाफ कानून को हथियार बना रहे थे जो कभी मोदी सरकार के प्रचार का सबसे पसंदीदा प्लेटफॉर्म था.

उन्हें गैर-लचीला, शायद थोड़ा पक्षपाती और प्रॉब्लम सॉल्व ना कर पाने वाले के रूप में देखा गया, क्योंकि वास्तविक संकटों ने टेलीकॉम ऑपरेशन को बुरी तरह प्रभावित करना शुरू कर दिया है. वो जजों के कॉलेजियम के साथ भी टकराव में थे. सामंजस्य बैठाने और संवेदनशील संवाद की जगह उन्होंने बलपूर्वक बातचीत को प्राथमिकता दी.

ADVERTISEMENT

प्रकाश जावेडकर ने एक नकारात्मक कानून बनाकर पर्यावरण एक्टिविस्टों को बुरी तरह नाराज कर दिया था. डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने के उद्देश्य से लाए गए नियमों के एक और सेट को देशभर में कई मीडिया कंपनियों ने संवैधानिक स्वतंत्रता पर कैंची चलाने के रूप में देखा और उसे चुनौती दी .

आमतौर पर मिलनसार राजनेता डॉ. हर्षवर्धन अपने आलोचकों के प्रति असामान्य रूप से कटु हो गए थे. कोविड-19 से लड़ने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सकारात्मक सुझाव पर उनके कड़े जवाब की चौतरफा निंदा हुई.

तो क्या वाजपेयी युग के इन मंत्रियों को इसलिए बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि वे विरोधियों से मुकाबला करने में हद से ज्यादा आक्रामक हो गए थे? क्या उनके सार्वजनिक झगड़े, जो जहरीले और लगभग असंसदीय थे, सरकार की छवि को चोट पहुंचाने लगे थे? या उन्हें इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्होंने शोर तो बहुत मचाया लेकिन ज्यादा कुछ कर नहीं पाये, यानी अपने विरोधियों को वश करने में विफल रहने पर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया? इस सवाल का जवाब महत्वपूर्ण भी है और अज्ञात भी.
ADVERTISEMENT

नए मंत्री शांत से काम लेंगे या और हमलावर होंगे

इन दिग्गजों के अधिकांश मंत्रालय को युवा, ऊर्जावान, राजनीतिक तुर्कों को सौंप दिया गया है ,जो प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र हैं.अश्विनी वैष्णव, मनसुख मंडाविया, अनुराग ठाकुर, किरन रिजिजू, भूपेंद्र यादव- इनका जनादेश क्या है ? क्या यह तरीका है गुस्से को शांत करने और सरकार के अधिक संवेदनशील और तार्किक चेहरे को सामने लाने का ? या पहले से दुगना कठोर बनने का, लेकिन बिना शोर किये एक स्नाइपर की सटीकता और बिना नैरेटिव बर्बाद करने वाली खून-खराबों से भरी चीखों के.

ये जख्मों पर मरहम लगाने वाले हैं या सिर्फ समझने के लिए बोलें तो 'साइलेंट असैसिन' हैं. इस सवाल का जवाब,जो पूरी तरह से अज्ञात है, 2024 तक की राजनीति को परिभाषित करेगा. जब मोदी 2.0, मोदी 3.0 को लाने के लिए पूरी दम लगा रही होगी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×