बारिश के मौसम में छुक-छुक करती रेल का सफर बेहद सुहाना लगता है. खासतौर पर तब जब रेलगाड़ी हरे-भरे खेतों और पहाड़ों के बीच से गुजरती है. लेकिन क्या आप जानते हैं ट्रेन में आपका हर सफर रेल मंत्रालय की जेब पर भारी पड़ता है और इसीलिए केंद्र सरकार चाहती है कि जो लोग आर्थिक रूप से समर्थ हैं वो रेलवे टिकट पर मिलने वाली सब्सिडी खुद ही छोड़ दें. इसी मकसद से रेलवे ने पिछले साल जून से हर रेल टिकट के पीछे लिखना शुरू कर दिया था – “क्या आप जानते हैं कि आपके किराये का 43 फीसदी देश के आम नागरिक वहन करते हैं?” यानी किसी यात्री की हर रेल यात्रा पर होने वाले खर्च का 43 फीसदी पैसा सरकार देती है.
सब्सिडी के मुद्दे पर सरकार की ये मुहिम कितनी असरदार रही ये बहस का विषय हो सकता है लेकिन फरीदाबाद के रहने वाले अवतार सिंह खेर ने इस साल मई में जब जम्मू राजधानी का टिकट लिया और उस पर 43 फीसदी सब्सिडी की बात पढ़ी तो उन्हें लगा कि वो अपने किराये की पूरी रकम देने में सक्षम हैं तो फिर वो सरकारी सब्सिडी क्यों लें? फिर क्या था, उन्होंने अपने टिकट पर मिली सब्सिडी का आंकड़ा निकाला जो करीब 950 रुपये था. इसके बाद उन्होंने IRCTC के नाम पर 950 रुपये का चेक बनावाया और टिकट पर लिखे पते पर एक चिट्ठी के साथ रेलवे को भेज दिया.
यात्री किराये पर हर साल सैकड़ों करोड़ की सब्सिडी देने वाले रेलवे के लिए 950 रुपये की रकम कोई मायने नहीं रखती. लेकिन एक यात्री की ओर से भेजे गए सब्सिडी के इस चेक ने रेल मंत्रालय को एक नया आइडिया जरूर दे दिया. अवतार सिंह खेर के चेक ने सरकार के हौसले को उड़ान दी और सरकार ने एक नई योजना बना ली, जिसका सार ये था कि समर्थवान जनता रेलवे टिकट पर मिलने वाली सब्सिडी खुद ही छोड़ दे.
टिकट बुक कराते समय सब्सिडी छोड़ने का विकल्प दे सकता है रेलवे
अब खबर है कि अगले महीने से रेलवे आपको रेल टिकट बुक कराते समय विकल्प देगा कि आप अपनी टिकट सब्सिडी छोड़ना चाहते हैं या नहीं? अगर छोड़ना चाहते है तो कितनी? अब तक मिली जानकारी के मुताबिक, यात्रियों को सब्सिडी छोड़ने के लिए तीन विकल्प दिए जा सकते हैं। इसमें 100 फीसदी सब्सिडी छोड़ने, 50 फीसदी सब्सिडी छोड़ने और सब्सिडी नहीं छोड़ने का विकल्प होगा. ये भी बहुत हद तक मुमकिन है कि आगे चलकर सब्सिडी छोड़ने को अनिवार्य भी बना दिया जाए. रेलवे की इस योजना से ये तो साफ है कि आने वाले दिनों में आपकी जेब पर किराये का बोझ बढ़ने वाला है. लेकिन अब तक आपकी रेल यात्राओं से सरकारी खजाने पर कितना बोझ पड़ता रहा है जरा ये भी समझ लीजिए.
रेलवे के आंकड़ों के मुताबिक, हर यात्री को किराये पर औसतन 43 फीसदी की छूट मिलती है यानी अगर किराया 100 रुपये है तो यात्री को अपनी जेब से सिर्फ 57 रुपये देने पड़ते हैं बाकी का 43 रुपया सरकारी खजाने से जाता है. हालांकि अलग-अलग क्लास और छूट वर्ग के आधार पर यात्रियों को मिलने वाली सब्सिडी का प्रतिशत कम या ज्यादा होता है. मसलन AC-1 से रेल यात्रा पर किराये का 24 फीसदी खर्च सरकार अपने खजाने से सब्सिडी के तौर पर भरती है. इसी तरह AC-2 से रेल यात्रा पर सरकार 27 फीसदी नुकसान उठाती है, स्लीपर क्लास की यात्रा पर 34 फीसदी और चेयर कार की यात्रा पर 16 फीसदी का नुकसान होता है.
केंद्र सरकार सबसे ज्यादा सब्सिडी सब-अर्बन ट्रेन (यानी लोकल ट्रेन) के किराये पर देती है. सब-अर्बन ट्रेनों के किराये का करीब 64 फीसदी हिस्सा सरकार अपनी जेब से भरती है. इकलौता AC-3 श्रेणी का ही किराया ऐसा है, जिसमें सरकार को फायदा होता है और वो भी महज 7 फीसदी का.
सब्सिडी छोड़ने का विकल्प देकर रेलवे का घाटा कम कर सकती है सरकार
इन आंकड़ों से साफ है कि जनता के लिए ट्रेन चलाना सरकार के लिए कितना घाटे का सौदा है. यात्री किराये से रेलवे को हर साल करीब 34000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है, जिसकी बड़ी भरपाई सरकार मालभाड़े से होने वाली कमाई से पूरी करती है.
हालांकि दुनिया के तमाम देश ऐसा करते हैं और रेलवे किराये पर यात्रियों को कम या ज्यादा सब्सिडी देते हैं. यही वजह है कि रेलवे लंबे अरसे से साल-दर-साल घाटे में चल रहा है. ऐसे में सरकार सब्सिडी छोड़ने का विकल्प देकर घाटे की इस गहरी होती खाई को कम करने के जुगाड़ में जुटी है. और अगर सरकार की इस मुहिम ने असर दिखाया तो रेलवे की तस्वीर बदल भी सकती है.
सब्सिडी का सामजिक गणित दिल्ली से हावड़ा के बीच चलने वाली सुपरफास्ट एक्सप्रेस के किराए की मदद से समझते हैं -
अगर सब्सिडी छोड़ने का सरकार का ये फॉर्मूला कारगर साबित हुआ तो आगे चलकर यही फॉर्मूला रेल किराये में अलग-अलग उम्र और वर्ग के लोगों को मिलने वाली छूट पर भी लागू किया जा सकता है. सरकार रेल से यात्रा करने वाले वरिष्ठ नागरिकों, छात्रों, रक्षा कर्मचारियों, दिव्यागों और मंथली सीजनल टिकट (MST) के किराये में भी छूट देती है.
रेलवे के पास अलग-अलग तरह की कुल 53 कैटेगरी हैं, जिनके तहत सरकार किराये में छूट देती है. इससे सरकार को हर साल 1600 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ता है. इसमें 1300 करोड़ रुपये सिर्फ वरिष्ठ नागरिकों को छूट के तौर पर मिलते हैं, बाकी 300 करोड़ में 52 कैटेगरी के लोग आते है. सरकार इस तरह के छूट से होने वाले नुकसान को भी कम करने की फिराक में है, ताकि घाटे के बोझ से जूझ रहे रेलवे को थोड़ी राहत मिले और किराये पर सब्सिडी का बोझ सरकार के साथ जनता भी मिलकर उठाए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)