जनवरी से जून आ गया, लेकिन मोदी जी ने जिस आला अफसर को यूपी भेजा था, उसका नंबर नहीं आया. उसे यूपी में कोई अहम जिम्मेदारी नहीं मिली. तो क्या इस वक्त बीजेपी में कल्पना से परे चीजें हो रही हैं? क्या योगी सीधे मोदी को चुनौती दे रहे हैं और केंद्र तमाम कोशिशों के बावजूद योगी को नहीं झुका पा रहा है?
एके शर्मा ने नौकरी खत्म होने से डेढ़ साल पहले जनवरी में वीआरएस लेकर बीजेपी ज्वाइन की थी तो दुनिया को बताया था उन्हें राजनीति में मोदी लेकर आए हैं. शर्मा ने ट्वीट किया था-
बीजेपी ज्वाइन कर रहा हूं. पार्टियां तो बहुत हैं. मैं पिछड़े गांव का रहने वाला हूं. जिसका कोई सियासी बैकग्राउंड न हो उसको राजनीति में लाना केवल मोदी जी ही कर सकते हैं.
वैसे भी गुजरात से लेकर दिल्ली तक एके शर्मा मोदी के भरोसेमंद रहे हैं. तो जाहिर है उनके वीआरएस लेने से लेकर यूपी डिस्पैच तक में आलाकमान के मन की बात रही होगी. लेकिन इतने खास व्यक्ति को यूपी में एमएलसी बनाने के लिए तो नहीं भेजा जा सकता. चर्चा चलते हुए महीनों हो गए कि एके शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा लेकिन वो दिन नहीं आया. खास बात ये नहीं कि योगी नहीं चाहते शर्मा डिप्टी सीएम बनें, खास बात ये है कि शायद योगी को मनाने की कई कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं. योगी पर दबाव बनाने की तरकीबें काम नहीं कर रहीं.
यूपी में केंद्र से दूत पर दूत
24 से 27 मई के बीच पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले, RSS जनरल सेक्रेट्री दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ पहुंचे. हालांकि सार्वजनिक यही कहा गया कि यह दौरा राजनीतिक ना होकर राज्य में कोविड-19 की स्थिति की समीक्षा और संघ उसमें क्या कर सकता है,इससे जुड़ा था. लेकिन मामले के जानकारों का कहना है कि उन्होंने योगी सरकार के कार्यों को लेकर यूपी की जनता का ओपिनियन जानने के लिए मंत्रियों, विधायकों, संघ कार्यकर्ताओं से मीटिंग की और दूरदराज इलाकों के प्रचारकों से फोन पर बातचीत भी की. अहम बात ये है कि इस दौरे में होसबोले ने योगी से मुलाकात नहीं की.
बीजेपी के जनरल सेक्रेटरी (संगठन) बीएल संतोष और पार्टी के उपाध्यक्ष राधामोहन सिंह भी जून की शुरुआत में लखनऊ पहुंचे. यहां उन दोनों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा सरकार के 15 मंत्रियों से भी मुलाकात की, जिसमें दोनों उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और दिनेश शर्मा भी शामिल थे.
सूत्रों की मानें तो अगले महीने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी लखनऊ पहुंचने वाले हैं.
बीजेपी में कैसे हो रहा 'असंभव'?
योगी के हार्ड हिंदुत्व स्टैंड का असर है कि 'भगत मंडली' उन्हें पीएम का उत्तराधिकारी बताते हैं. वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी में महाराज जी को अद्वितीय बताने वाले संदेश भरे पड़े हैं. तो जहां तक बीजेपी और आरएसएस के हिंदुत्व एजेंडे का सवाल है योगी चैंपियन नजर आते हैं. ऐसे में योगी को सीधे-सीधे सबक सिखाना अच्छा संदेश नहीं देगा.
मुश्किल ये है कि योगी जितना भी अपने आसपास के लोगों की तारीफ और पेड प्रशंसा से आत्ममुग्ध हो जाएं लेकिन शासन के लेवल पर उनकी उपलब्धियां नहीं के बराबर हैं. कोरोना की दूसरी लहर में गंगा जी में बहती लाशें हों, लव जिहाद और कोरोना कंट्रोल को लेकर में कोर्ट से किरकिरी हो, सीएए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पोस्टर बाजी और बेजा सख्ती हो, योगी मोदी के लिए नेशनल और इंटरनेशनल सुर्खियां बटोरते हैं.
हेडलाइन मैनेजमेंट के तमाम प्रयासों के बावजूद योगी की नाकामियों से अखबार रंगे पड़े हैं- हाथरस कांड में प्रशासन की गलत प्रतिक्रिया, कानपुर का विकास दुबे कांड, बीजेपी के ही विधायकों का आरोप लगाना कि राज्य सरकार ब्राह्मणों के खिलाफ है, कोरोना में लापरवाहियों पर खुलकर बोलते बीजेपी नेता. ऊपर से विकास के मोर्चे पर भी कुछ खास नहीं हुआ है. उनके शासन काल में एक भी एक्सप्रेसवे का नहीं बनना तो एक उदाहरण है. ऐसे में आलाकमान भी जानता है कि योगी को रास्ते पर नहीं लाया गया तो 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी हाथ से निकल सकता है.
2022 का डर, 2024 की चिंता
2022 में यूपी हाथ से निकला तो 2024 में दिल्ली की गारंटी कोई नहीं. एके शर्मा को सरकार में अहम पद देने के पीछे ये मकसद हो सकता है कि वो प्रशासक होने के नाते चीजों के बेहतर संभालेंगे, योगी हिंदुत्व और शर्मा विकास के एजेंडे को देखेंगे और गड़बड़ियों की तेज खबर दिल्ली भी पहुंचाएंगे.
जाहिर है योगी को एकछत्र राज में कोई हिस्सेदारी नहीं भाएगी. अब आने वाले दिनों में तय होगा कि यूपी में योगी की एकमुश्त चाहत चलेगी या केंद्र की जरूरत. अगर शर्मा को सरकार में अहम पद मिला तो समझा जाएगा कि योगी भी बाकी मुख्यमंत्रियों के तरह एक मुख्यमंत्री हैं और सबकुछ आलाकमान के हाथ में है. अगर योगी की चली तो 'मोदी के बाद योगी' के नेरेटिव को और बल मिलेगा. साथ ही पार्टी पर पीएम मोदी के एकाधिकार की स्थिति भी बदलती दिखेगी.
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