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मुंबई में 'हफ्ता वसूली', बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी!

पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर वो राज खोल रहे हैं जिसके कभी वो भी खुद राजदार थे

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अंबानी-वझे क्राइम थ्रिलर की श्रृंखला की इस दूसरी कड़ी में सीनियर पत्रकार स्मृति कोप्पिकर कई और राज खेल रही हैं. इसकी पहली कड़ी यहां पढ़ी जा सकती है.

यह किस्सा कुछ यूं शुरू हुआ था कि मुंबई में अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन की छड़ों से भरी एसयूवी खड़ी मिली थी और उनकी जान को खतरा होने की आशंका जताई गई थी. अब इस किस्से के क्लाइमेक्स में महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें हो रही हैं. भारतीय जनता पार्टी (BJP) तो चाहेगी कि इस किस्से का अंत राज्य में राष्ट्रपति शासन और इसके बाद अपनी सरकार के शासन के साथ हो.

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इसके केंद्र में सरकारों पर हमला या उनके तख्ता पलट का पुराना पैंतरा है-भ्रष्टाचार और घूस कमाई- जैसा कि इस मामले में भी साफ दिखाई दे रहा है, और इस बार शीर्ष पर विराजमान दो दिग्गजों को शिकार बनाया जा रहा है. ये हैं राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और गृह मंत्री अनिल देशमुख.

इस किस्से में एक मुख्य किरदार की जरूरत थी जोकि जनता का ध्यान खींच सके और सरकार विरोधी लहर का फायदा उठा सके. मुंबई के पूर्व पुलिस कमीशनर परम बीर सिंह ने यह भूमिका निभाई. अनिल देशमुख पर आरोप लगाकर उन्होंने प्रशासन और सरकार की राजनीतिक इकाई के बीच युद्ध छेड़ दिया. खास बात यह थी कि परम बीर सिंह की पॉलिटिकल टाइमिंग एकदम सटीक है और वह BJP की धुन पर राग अलापते सुनाई दे रहे हैं.

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ठाकरे सरकार को दागदार साबित करके, हटाने की कोशिशें

इस तरह यह धारणा बनाई जा रही है कि ठाकरे सरकार में सभी स्तरों पर अव्यवस्था है. कीचड़ नीचे से ऊपर तक खदबदा रहा है. सरकार कानून के हिसाब से नहीं चल रही है और इन हालात में राष्ट्रपति शासन के अलावा कोई चारा नहीं बचता.

क्या ऐसा होगा? फिलहाल इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. क्या ऐसा होना चाहिए क्योंकि इससे संघीय संबंधों में और गिरावट होगी. महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) की हालत खस्ता हो जाएगी. शिव सेवा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की तिकड़ी के चीथड़े उड़ जाएंगे. अगर ऐसा नहीं होता तो इसे ठाकरे को ठिकाने लगाने की देवेंद्र फडणवीस की एक और कोशिश कहा जाएगा. उनके लिए तो मीम ही बन गया है- डेसपेरेट देवेंद्र.

परम बीर सिंह को रिटायर होने में करीब 14 महीने बचे हैं. उन्होंने यहां एक बड़ा खेल खेला. ट्रांसफर किए जाने के बाद 20 मार्च को उन्होंने ठाकरे को एक सनसनीखेज चिट्ठी भेजी. यह चिट्ठी अनिल देशमुख की ‘घूस कमाई’ की थी जोकि एक बम का गोला साबित हुई. इसके बाद लोगों का ध्यान अंबानी-एसयूवी मामले से हट गया. उस मामले की जांच एनआईए कर रही है.

इसके बाद परम बीर सिंह ने होम गार्ड्स के कमांडेंट जरनल के नए पद को संभाला और दो दिन बाद सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली जिसमें उनके ट्रांसफर को ‘मनमाना और गैर कानूनी’ कहा गया था. याचिका में परम बीर सिंह ने कहा कि उन्हें अपने खिलाफ दमन की कार्रवाई से संरक्षण दिया जाए (यह जानने के लिए पढ़िए कि यह क्यों महत्वपूर्ण है) और अनिल देखमुख के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की. अभी छह महीने पहले परम बीर सिंह ने सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड मामले में सीबीआई जांच का जोरदार तरीके से विरोध किया था और मुंबई पुलिस की तारीफ की थी.

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परम बीर सबूत हैं कि शीर्ष पर बैठा शख्स व्यवस्थागत सड़ांध को नजरंदाज करता रहता है

परम बीर सिंह की चिट्ठी में लिखा है कि गृह मंत्री देशमुख ने असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वझे को हर महीने होटल और बार से 100 करोड़ रुपए ‘जमा’ करने को कहा था और उन्होंने (परम बीर ने) मुख्यमंत्री ठाकरे और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को इस सिलसिले में मौखिक रूप से चेतावनी दी थी.

इसके मायने साफ हैं: शीर्ष पर बैठे लोग उस सड़ांध के सूंघ लेते हैं लेकिन फिर भी उसे नजरंदाज करते रहते हैं. और इसका यह मतलब भी है कि परम बीर एक ‘ईमानदार और पाक साफ पुलिसवाले हैं’ और काजल की कोठरी में उनके हाथ काले नहीं हुए हैं.
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परम बीर सिंह को पक्का यकीन है कि इस खलबली के बीच लोग उन बातों को भी अनदेखा कर देंगे, जो स्वाभाविक रूप से समझी जा सकती हैं. जैसे 16 साल की अराजकता, राजनैतिक निकटताओं और दूसरे धंधों के बाद वझे को पुलिस फोर्स में बहाल करने वाला कौन था- खुद परम बीर सिंह. वझे उन्हें ही सीधा रिपोर्ट करता था, वह भी पुलिस हेरारकी के चार लेवल्स को बायपास करके. इसके अलावा वझे हाई प्रोफाइल मामलों में जांच करें- जैसे सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड, टीआरपी घोटाला, आर्किटेक्ट नाइक के सुसाइड मामले में टीवी न्यूज एंकर अर्णब गोस्वामी का कथित रूप से शामिल होना- इस बात की इजाजत भी मुंबई पुलिस कमीशनर के तौर पर परम बीर सिंह ने ही दी थी.

क्या उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट में वझे किस तरह काम करते थे- जबकि वझे की मर्सडीज़ में नोट गिनने की मशीन और फेक नंबर प्लेट्स मौजूद थीं- या वह इन सब बातों को नजरंदाज कर रहे थे.

क्या उनका जमीर तब जागा जब एनआईए ने अंबानी-एसयूवी मामले में वझे को गिरफ्तार किया या शायद वह खुद को बचा रहे हैं? इसके लिए उन्हें देशमुख और फिर सरकार पर निशाना साधना होगा
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मुंबई में हफ्ता वसूली का सिस्टम कैसे काम करता है

अनिल देशमुख ने अपना बचाव किया है, उनकी पार्टी के सर्वेसर्वा पवार और एनसीपी ने भी उनका बचाव किया है. ‘हर महीने 100 करोड़ रुपए’ के आरोप लिए उन्होंने परम बीर सिंह पर मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दी है. लेकिन अब वह सरकार की सबसे कमजोर कड़ी है. मंत्रिमंडल में उनकी जगह इस बात से तय होगी कि क्या पवार और ठाकरे राजनैतिक तूफान का सामना करने की इच्छा रखते हैं. वह मंत्री बने रहने के लिए इस विवाद का ढिठाई से मुकाबला करें या सरकार बचाने के लिए इस्तीफा दे दें, उनके लिए इस दाग से छुटकारा पाना आसान नहीं होगा. इसलिए जैसा कि BJP कहती है, इसने पुलिस फोर्स की अव्यवस्था और गंदगी, घूस कमाई की पोल पट्टी खोलकर रख दी है.

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फडणवीस ने एक और विस्फोट किया है. उन्होंने कहा है कि उनके पास ऐसे पुलिस वालों के खिलाफ ‘गंभीर और संवेदनशील आरोपों की नकल और 6.3 जीबी का डेटा है’ जो अपने ट्रांसफर्स और पोस्टिंग्स के लिए नेगोशिएट करते हैं. उनका यह भी दावा है कि ठाकरे के पास भी यह डेटा था लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं किया.

लेकिन यह मुंबई के ‘हफ्ता वसूली’ सिस्टम का सिर्फ एक छोटा सा टुकड़ा है. ‘हफ्ता’ गैंगस्टर्स को दी जाने वाली प्रोटेक्शन मनी को कहा जाता है, और ‘वसूली’ का मतलब होता है, किसी अथॉरिटी- ताकतवर अधिकारी की तरफ से की जाने वाली रिकवरी या जबरन पैसे ऐंठना.

यह वह पैसा होता है जो कानून के उल्लंघन को अनदेखा करने या ‘जान बख्शने’ की एवज में दिया जाता है. उल्लंघन जितना बड़ा होगा, ‘वसूली’ उतनी ज्यादा होगी. या यूं कहें कि टार्गेट जितना दौलतमंद होगा, ‘हफ्ते’ की मांग उतनी ज्यादा होगी, जैसा कि 1990 के दशक में होता था, जब गैंगस्टर्स ने अंधेरगर्दी मचाई हुई थी.

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‘हफ्ता वसूली’ का एक सिस्टम होता है. एक ईमानदार और नो नॉनसेंस अधिकारी माने जाने वाले आईपीएस अधिकारी संजय पांडे ने कई साल पहले आमिर खान के शो में यह खुलासा किया था. वह दो बार मुंबई पुलिस कमीशनर बनते बनते रह गए. उन्होंने कहा था कि कैजुअल कलेक्शन तब होता है, जब ट्रैफिक सिग्नल तोड़ने वाले लोग जुर्माने से बचना चाहते हैं, या फुटपाथ पर सामान बेचने वाला नो पार्किंग जोन में खड़ा होना चाहता है. दूसरी तरफ इंस्टीट्यूशनल कलेक्शन कमर्शियल इस्टैबलिशमेंट्स जैसे होटल और बार से किया जाता है और यह व्यवस्थित, स्ट्रक्चर्ड होता है. यह पहले से पता होता है, और इसमें पॉलिटीशियन्स जुड़े होते हैं.

एक मजबूत और पक्के इरादों वाला कमीशनर इसे हतोत्साहित करता है, और इस पर नजर रखता है. लेकिन किसी ने इसे खत्म नहीं किया है. इसके अलावा कोई राजनैतिक दल यह दावा नहीं कर सकता कि वह इसमें शामिल नहीं है.

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आईपीएस अधिकारी संजय पांडे की चिट्ठी

परम बीर सिंह के आरोपों के बाद संजय पांडे ने भी एक चिट्ठी लिखी लेकिन उसकी तरफ मीडिया का ध्यान नहीं गया. उस चिट्ठी में उन्होंने उस जांच का जिक्र किया जो उन्होंने अपने साथी आईपीएस अधिकारी एडीशनल डायरेक्टर जनरल देवेन भारती के खिलाफ की थी. भारती का आखिरी सक्रिय पद राज्य के एंटी टेरेरिज्म स्कॉड चीफ का था. चिट्ठी में लिखा था कि, “देवेन भारती के खिलाफ जांच के दौरान मुझे मुंबई के कमीशनर ऑफ पुलिस और तत्कालीन डीजीपी की तरफ से बिल्कुल सहयोग नहीं मिला. कमीशनर ऑफ पुलिस परम बीर सिंह ने गवाहों को धमकाया, जिसका रिकॉर्ड मौजूद है, और इस बात की जानकारी सरकार को भी दी गई थी.”

उन्होंने यह भी कहा है कि तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी ने भी जांच को रोकने को कहा था. अब ऐसा क्यों किया गया, यह भी जान लें.

आप नेता प्रीति शर्मा मेनन बताती हैं, जिसे ज्यादातर लोग जानते ही हैं. “एक रिटायर्ड असिस्टेंट कमीशनर ने फरवरी में ठाकरे को एक चिट्ठी और पेन ड्राइव भेजी, जिसमें भारती के आपराधिक संबंधों का खुलासा था. पेन ड्राइव में एक वीडियो में एक गैंगस्टर ने अपना गुनाह कबूल किया था. इस कबूलनामे में जबरन वसूली के तौर तरीकों का ब्यौरा था जिसमें बड़ा पुलिस अधिकारी शामिल था.” प्रीति बताती हैं.

पेन ड्राइव में जो सब था, वह काफी धड़ाकेदार था. अंबानी के घर के बाहर मिली 20 जिलेटिन छड़ों से भी ज्यादा. इससे पता चलता था कि पुलिस अधिकारी और गैंगस्टर के बीच ‘हफ्ता वसूली’ की कैसी मिलीभगत थी. वे किस तरह काम करते थे और लूट का माल कैसे बांटा जाता था. यह भी कि पैसे कैसे नेपाल भेजे जाते थे.
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दिलचस्प यह है कि भारती ज्वाइंट कमीशनर ऑफ पुलिस (आर्थिक अपराध शाखा) थे, और फिर उन्हें देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री रहते राज्य एटीएस चीफ बनाया गया. क्या राज्य के गृहमंत्री के तौर पर फडणवीस उनके काम के तरीके और छल कपट से अनजान थे?


यह सड़ांध पूरे सिस्टम में फैली हुई है, गहराई तक

जांच में परम बीर ने संजय पांडे के साथ सहयोग क्यों नहीं किया (इसकी तुलना सुप्रीम कोर्ट में ‘दमन की कार्रवाई’ वाली याचिका से कीजिए). इसके जवाब से दोनों लोग ज्यादा परेशान हो जाएंगे.

जैसा कि संजय पांडे कहते हैं, यह सड़ांध पूरे सिस्टम में गहराई से फैली हुई है.

इस थ्रिलर में अपराध और राजनीति के गठजोड़ की परतें लगातार खुल रही हैं, इसके कथा सूत्रों पर अब किसी का नियंत्रण नहीं. वझे एनआईए को क्या और कितना बताएंगे, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. दूसरी तरफ परम बीर सिंह खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, मुंबई पुलिस में घूस कमाई के बीच खुद को सच्चा नेकनीयत पुलिस वाला साबित करने के फेर में हैं.

ठाकरे को चिट्ठी, सुप्रीम कोर्ट में याचिका, उन्हें सहारा देने के लिए फडणवीस का सनसनीखेज सबूत देना- यह सब एक ही फिल्म के अलग-अलग दृश्य हैं. इसकी एक रील सोमवार को दिखाई दी थी जब BJP सांसदों ने संसद में देखमुख के खिलाफ ‘100 करोड़ के कलेक्शन’ वाले आरोप का मामला उठाया था और यह मांग की थी कि ठाकरे सरकार को बर्खास्त किया जाए.
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लेकिन परम बीर सिंह को ‘संरक्षण’ की चिंता नहीं करनी चाहिए

लेकिन परम बीर सिंह को संरक्षण के लिए ज्यादा चिंता नहीं करनी पड़ेगी. युद्ध के इस मैदान में फडणवीस उनकी तरफ हैं, उनके कंधे पर बंदूक भी रखे हुए हैं. यह भी सही है कि परम बीर सिंह का BJP से गहरा नाता है. उनके बेटे का ब्याह दत्ता मेघे की पोती से हुआ है जोकि विदर्भ से विधायक रहे हैं. उन्होंने अपने करियर का अच्छा खासा समय कांग्रेस सांसद के रूप में गुजारा लेकिन फिर BJP में चले गए. मेघे अब रिटायर हो चुके हैं लेकिन वर्धा में उनकी अच्छी चलती है. उनका छोटा बेटा BJP विधायक है.

कई परतों में छिपी इस जटिल कहानी का अंत क्या होता है, राष्ट्रपति शासन लगता है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कि ठाकरे शरद पवार की मदद से बिसात में सही पासा फेंककर प्रतिद्वंद्वी को चारों खाने चित कर पाते हैं या नहीं.

(स्मृति कोप्पिकर स्वतंत्र पत्रकार हैं. फिलहाल मुंबई में रह रहीं कोप्पिकर राजनीति, सिटी, जेंडर इश्यूज और मीडिया पर लिखती है. उनका ट्विटर हैंडल है @smrutibombay. यह एक ओपनियन लेख है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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