प्रधानमंत्री मोदी का ‘वेल्थ क्रिएटर्स’ की तारीफ करना अप्रत्याशित और हिला देने वाला था. इस बात को असरदार ढंग से रखने के लिए उन्होंने अंग्रेजी के लोकप्रिय टर्म का इस्तेमाल किया, न कि हिंदी में इसके लिए इस्तेमाल होने वाले पूंजी उत्पादक शब्द का (जैसा वो अक्सर करते हैं). इसके जरिये वह नए दौर के उद्यमियों और एलीट बिजनेस क्लास को संदेश दे रहे थे, जो उनसे रूठ गए हैं.
उन्होंने छिपे तौर पर यह भी माना कि सरकार ने उनका तिरस्कार और उन पर संदेह किया है. उन्होंने इसके लिए हिंदी के शब्द हीनभावना का प्रयोग किया था. यह कहकर मोदी वैसे ही पछतावा जता रहे थे, जैसे किसी सार्वजनिक मंच से जताया जा सकता है.
माना जा रहा है कि लाल किले की प्राचीर से 94 मिनट का भाषण खत्म करने के बाद मोदी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सीधे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और नीतियां बनाने वाले उनके अधिकारियों के साथ मीटिंग करने पहुंचे. मुझे यकीन है कि उन्होंने उस मीटिंग में उनसे नीचे दिए गए तर्ज पर तीखे सवाल पूछे होंगेः
- जून तिमाही में पब्लिक कैपिटल एक्सपेंडिचर में 30 पर्सेंट की कमी क्यों आई?
- इंडिया इंक की तरफ से नए प्रोजेक्ट्स का ऐलान घटकर आधा क्यों रह गया, पिछले साल इसका तिमाही औसत 2.7 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन जून तिमाही में सिर्फ 71,300 करोड़ की नई परियोजनाओं का ही ऐलान हुआ, आखिर माजरा क्या है?
- रिजर्व बैंक जिन मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों का सर्वे करता है, उनमें से दो तिहाई को ऑर्डर बुक में बढ़ोतरी की उम्मीद क्यों नहीं है? दुर्भाग्यवश, यह पिछले एक दशक में इस तरह का सबसे कम आंकड़ा है.
- इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रॉडक्शन (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) के 23 में से 15 सब-सेक्टर (उप-क्षेत्रों) की ग्रोथ माइनस में क्यों चली गई है?
- पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप वाले 60 प्रतिशत प्रोजेक्ट्स में देरी क्यों हो रही है?
- हवाई मार्ग से माल ढुलाई पिछले साल की तुलना में 5 पर्सेंट क्यों कम हो गई है?
- कारों की बिक्री इतनी क्यों कम हो गई है? यह घटकर चार साल पहले के स्तर पर आ गई है.
- देश की 2,000 बड़ी कंपनियों के मुनाफे में साल भर पहले के मुकाबले 12.8 पर्सेंट की भारी गिरावट क्यों आई है? क्या इसी वजह से 2019 लोकसभा चुनाव में दोबारा मेरी जीत के बाद से शेयर बाजार 10 पर्सेंट नीचे आ गया है?
- और अंत में आखिरी और नौवां सवाल- देश में पुरुषों के अंडरवियर की बिक्री की क्या स्थिति है?
पुरुषों के अंडरवियर? ये क्या बला है...
अफसोस, प्रधानमंत्री मोदी ने जब पहले 8 सवाल किए होंगे तो जवाब में उन्हें सिर्फ ऐसी बुदबुदाहट सुनाई पड़ी होगी कि ‘यह अस्थायी आर्थिक सुस्ती है, जिसे कुछ क्षेत्रों के लिए राहत पैकेज लाकर दूर किया जा सकता है.’ जब नौकरशाहों को आर्थिक संकट खत्म करने का कोई उपाय नहीं सूझता तो वे रटारटाया और घिसा-पिटा यह फॉर्मूला पेश कर देते हैं.
बदकिस्मती से, मुझे इसका भी यकीन है कि उन्होंने उनसे आखिरी यानी नौवां प्रश्न नहीं पूछा होगा, जो एलन ग्रीनस्पैन के ‘मेन्स अंडरवियर इंडेक्स’ से प्रेरित है, जिसे करीब 50 साल पहले बनाया गया था.
अगर मोदी ने वाकई यह सवाल पूछा होता तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और उनके अधिकारियों को देश की शीर्ष चार अंडरवियर कंपनियों के प्रदर्शन का पता लगाने जाना पड़ता. इन कंपनियों की बिक्री पिछले एक दशक के निचले स्तर पर आ गई है. इनमें सबसे जाने-माने ब्रांड जॉकी की बिक्री सिर्फ दो फीसदी बढ़ी, जबकि लक्स की बिक्री साल भर पहले के स्तर पर रही, डॉलर की बिक्री में चार फीसदी की गिरावट आई और वीआईपी की सेल 20 पर्सेंट कम हो गई.
ग्रीनस्पैन के मुताबिक, यह अर्थव्यवस्था में कमजोरी का पक्का संकेत है, लेकिन क्या रायसीना हिल के नौकरशाह ऐसे ‘शर्मसार करने वाले और जायका बिगाड़ने वाले’ आर्थिक आंकड़े को स्वीकार करेंगे? वह भी एक शुद्धतावादी प्रधानमंत्री के सामने!?
खैर, बात अंडरवियर की हो या मारुति कारों की, आर्थिक खौफ साफ दिख रहा है और इससे निपटना आसान नहीं होगा. अगर मोदी इससे निपटने के लिए अपने बाबुओं (नौकरशाहों) पर भरोसा करते रहे तो अर्थव्यवस्था इस दलदल में और धंस जाएगी. लेकिन इसके साथ ही लाल किले की प्राचीर से उन्होंने जो कहा था, वह बात मेरे कानों में अब तक गूंज रही हैः
इसलिए मैं हमारे प्रधानमंत्री को संदेह का लाभ देना चाहूंगा. शायद उनका मन कह रहा है कि अब पुरानी जंजीरों से आजाद होने का वक्त आ गया है.
शायद वह उस यथास्थितिवादी मानसिकता को छोड़ने को तैयार हैं, जिसके कारण उनकी आर्थिक नीतियां अब तक भ्रमित करने वाली रही हैं.
मुझे पता है कि साल में दो बार आने वाले नवरात्र के दौरान संकल्प को दृढ़ बनाने के लिए उपवास करने पर उनकी कितनी श्रद्धा और आस्था है, इसलिए मैं हमारे शुद्धतावादी प्रधानमंत्री के सामने... भारत की अर्थव्यवस्था को सही रास्ते पर लाने, उसमें जान फूंकने की खातिर पुनर्विचार के लिए 9 आइडिया पेश कर रहा हूं.
- संपत्तियों को बचाइए, घाटे को इक्विटी-बॉन्ड निवेशकों पर डालिएः मोदी सरकार ने कंपनियों के बदमाश मालिकों और मैनेजरों को सजा दिलाने की कोशिश के साथ संपत्तियों को खत्म करने की भारी भूल की है. IL&FS और जेट एयरवेज (और शायद DHFL भी मरणासन्न अवस्था में है) इसकी दो बड़ी मिसालें हैं. दोनों ही मामलों में हेल्दी एसेट्स को बचाया जा सकता था और साथ ही कानून तोड़ने वालों को सजा भी दिलाई जा सकती थी. इससे हजारों निर्दोष कर्मचारियों का रोजगार बचता और पूरा घाटा रिस्क कैपिटल के मालिकों पर डाला जाता. आखिर, हवाई जहाज, सड़कें और फ्लैट्स तो अपराधी नहीं हैं!
- सरकारी बैंकों में जो भी पैसा लगाया जा रहा है, उसे मल्टीप्लाई करने के लिए डीप डिस्काउंट राइट्स इश्यू का इस्तेमाल किया जाएः मोदी सरकार ने पिछले कई वर्षों में सरकारी बैंकों में बूंद-बूंद की शैली में निवेश करके उस पैसे को जाया कर दिया है. अब उसे सारे बैंकों की बैलेंस शीट को एक साथ दुरुस्त करना और इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए ‘राइट्स बेसिस पर अटैच्ड वॉरंट के साथ डीप डिस्काउंट इक्विटी इश्यू’ लाना होगा.
- रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल सेक्टर के साथ NBFC को लाइफलाइन देने की शंकाओं या विरोध को छोड़ना होगाः कहते हैं कि अ स्टिच इन टाइम सेव नाइन (देखिए, फिर नवरात्र!) मुझे तो लगता है कि मुश्किल में फंसी कई कंपनियों के लिए TARP जैसा बोल्ड कदम उठाना चाहिए. जहां बात भरोसे की हो, वहां लिक्विडिटी (फंड) की कमी को सॉल्वेंसी क्राइसिस (कंपनी के वजूद पर संकट) में न बदलने दिया जाए. (नोटः TARP यानी ट्रबल्ड एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन प्रोग्राम को बेन बर्नान्की ने लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए लॉन्च किया था और इसे शानदार सफलता मिली थी)
- सभी सरकारी कंपनियों को मिलाकर एक लाख करोड़ डॉलर का सॉवरिन फंड बनाया जाएः इस प्रोफेशनली मैनेज्ड कंपनी को विदेशी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट कराया जाए, जो एक तरह से ‘इंडिया स्टॉक’ यानी भारत का शेयर होगा. इसे कमजोर और गैर-प्रमुख कारोबार को बेचने की छूट दी जाए. मेरा अनुमान कहता है कि इससे कई सौ अरब डॉलर का प्रॉडक्टिव इनवेस्टमेंट हो सकता है. इसमें पहले फेज में कंपनी शुरू और खड़ी करने के लिए निवेश करना होगा और बाद में उसमें विनिवेश करके रिटर्न हासिल किया जा सकता है.
- आईबीसी में व्यापक बदलाव होः इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) यानी दिवाला कानून में अब तक के तजुर्बों के आधार पर व्यापक बदलाव किया जाए. इसे कैपिटल एसेट्स मोबिलिटी के लिए तेज और निर्णायक कानून में बदला जाए.
- इक्विटी कैपिटल पर सितम ढाने वाले टैक्स हटें: इस मामले में स्थिति को तुरंत सुधारने की जरूरत है. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस और डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स को खत्म कर देना चाहिए. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों से सुपररिच सरचार्ज भी हटाया जाना चाहिए. डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स शेयर जारी करने में आने वाली सारी बाधाएं दूर होनी चाहिए. एंजेल और वैल्यूएशन मिसमैच टैक्स को तो सारी कंपनियों के लिए खत्म करने की जरूरत है.
- ‘टैक्स टेररिज्म’ को रोकिएः मोदी सरकार को मानना चाहिए कि उसने टैक्स अधिकारियों को गिरफ्तार करने और दूसरे अधिकार देकर भस्मासुर खड़ा कर दिया है. उनसे इस तरह के सारे अधिकार वापस लिए जाने चाहिए.
- फिस्कल डेफिसिट डेटा में हेराफेरी बंद होः सरकार ने अपने बहीखाते से बाहर जो भी कर्ज लिए हैं, अगर उसे परपेचुअल बॉन्ड में बदला जाए तो एक झटके में यह खत्म हो सकता है. इसके बाद इसमें पारदर्शिता बरती जाए.
- महत्वपूर्ण रेगुलेटरी संस्थाओं में रिटायर्ड नौकरशाहों की नियुक्ति बंद होः इनके बजाय पीएम मोदी को खास क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वालों की नियुक्ति करनी चाहिए. आधुनिक सोच रखने वाले विश्वसनीय एक्सपर्ट्स को महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों की निगरानी का काम सौंपा जाना चाहिए. अगर रेगुलेटरों और मंत्रियों के बीच मतभेद होते हैं तो पीएम मोदी को ऐसे विरोध पर खुश होना चाहिए क्योंकि इससे समस्याओं के ईमानदार हल निकलेंगे.
मेरी गुजारिश है कि इस नवरात्र पर प्रधानमंत्री जी आप ये काम कर ही डालें.
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